तुम्हें जिंदगी के उजाले मुबारक....एक गैर-गुलज़ारनुमा गीत, जो याद दिलाता है मुकेश और कल्याणजी भाई की भी
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 468/2010/168
रक्षाबंधन के शुभवसर पर सभी दोस्तों को हम अपनी हार्दिक शुभकामनाएँ देते हुए आज की यह प्रस्तुति शुरु कर रहे हैं। दोस्तों, आज रक्षाबंधन के साथ साथ २४ अगस्त भी है। आज ही के दिन सन् २००० को संगीतकार जोड़ी कल्याणजी-आनंदजी के कल्याणजी भाई हम से हमेशा के लिए दूर चले गए थे। आज जब हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर गुलज़ार साहब के लिखे गीतों की शृंखला प्रस्तुत कर रहे हैं, तो आपको यह भी बता दें कि गुलज़ार साहब ने एक फ़िल्म में कल्याणजी-आनंदजी के लिए गीत लिखे थे। और वह फ़िल्म थी 'पूर्णिमा'। आज कल्याणजी भाई के स्मृति दिवस पर आइए उसी फ़िल्म से एक बेहद प्यारा सा दर्द भरा गीत सुनते हैं मुकेश की आवाज़ में - "तुम्हे ज़िंदगी के उजाले मुबारक़, अंधेरे हमें आज रास आ गए हैं, तुम्हे पाके हम ख़ुद से दूर हो गए थे, तुम्हे छोड़ कर अपने पास आ गए हैं"। अभी दो दिन बाद, २७ अगस्त को मुकेश जी की भी पुण्यतिथि है। इसलिए आज के इस गीत के ज़रिए हम कल्याणजी भाई और मुकेश जी, दोनों को ही श्रद्धांजली अर्पित कर रहे हैं।'पूर्णिमा' १९६५ की फ़िल्म थी और उन दिनों गुलज़ार साहब नए नए फ़िल्मी गीतकार बने थे। इस गीत को सुनते हुए आप महसूस करेंगे कि इसमें गुलज़ार साहब का वह ग़ैर पारम्परिक स्टाइल तब तक डेवेलप नहीं हुआ था जिसके लिए बाद में वो जाने गए; बल्कि इस गीत में उस ज़माने के गीतकारों की झलक ज़्यादा मिलती है। फिर भी गीत के अंतरों में बहुत सुंदर बातें उन्होंने कहे हैं, जैसे कि "तुम्हारी वफ़ाओं से शिकायत नहीं है, निभाना तो कोई रवायत नहीं है, जहाँ तक क़दम आ सके आ गए हैं, अंधेरे हमें आज रास आ गए हैं"। दूसरे अंतरे में गुलज़ार साहब लिखते हैं "चमन से चले हैं ये इलज़ाम लेकर, बहुत जी लिए हम तेरा नाम लेकर, मुरादों की मंज़िल से दूर आ गए हैं, अंधेरे हमें आज रास आ गए हैं"। मुकेश, जो ज़्यादातर यादगार दर्द भरे गीतों के लिए जाने जाते हैं, यह गीत भी उन्ही यादगार गीतों में से एक है। मुकेश की आवाज़ में ये सभी गीत जैसे आम आदमी के गले से निकले हुए लगते हैं। आज का यह प्रस्तुत गीत फ़िल्माया गया है धर्मेन्द्र पर और इस फ़िल्म में उनकी नायिका बनीं थीं मीना कुमारी।
आज बहुत दिनों बाद हम रुख़ कर रहे हैं उसी आनंदजी के 'उजाले उनकी यादों के' कार्यक्रम की तरफ़ और आज उस लम्बे इंटरव्यु से उस अंश को पेश कर रहे हैं जिसमें चला था फ़िल्म 'पूर्णिमा' के गीतों का ज़िक्र। आनंदजी से बात कर रहे हैं कमल शर्मा।
प्र: 'पूर्णिमा' के गानों का ज़िक्र हम कर रहे हैं तो उसमें एक बड़ा ही संजीदा गाना मुकेश जी की आवाज़ में, और बड़ा ही दिल को छू लेने वाला गाना है, "तुम्हे ज़िंदगी के उजाले मुबारक़"।
उ: अच्छा, इस फ़िल्म में गुलज़ार जी ने पहली बार हमारी फ़िल्म में गाना लिखा था। कमल जी, 'पूर्णिमा' में, आपको मालूम है दो गानें गुलज़ार जी ने लिखे, प्रकाश मेहरा जी ने भी गाना लिखा था इसमें, पहली बार, और कॊमेडी गाना था, भरत व्यास जी ने भी लिखा था, इस फ़िल्म का "हमसफ़र मेरे हमसफ़र पंख तुम परवाज़ हम" गाना बहुत चला था, इसमें एक और गाना भी था जिसे मुकेश जी ने गाया था, "गोरी नैन तुम्हारे क्या कहने", उन दिनों आशिक़ महबूबा को हाथ नहीं लगाते थे, बातों से ही काम निबटा लेते थे। (कमल शर्मा ज़ोर से हंस पड़ते हैं)
प्र: सांकेतिक था सबकुछ, ताकि मर्यादा भी बनी रहे, बात भी हो जाए!
उ: यह भी बहुत बोल्ड है, क्योंकि किसी को 'आप सुंदर हैं' यह कहना उन दिनों में हिम्मत नहीं होती थी, मन ही मन समझ जाते थे, आँखें उनकी तरफ़ करके स्माइल कर देंगे, लेकिन कह नहीं सकते। लेकिन आज के दिनों में अगर आप अपने बीवी को भी कहदो कि 'आज आप अच्छी लग रही हो' तो वो कहेगी कि 'कल बुरी लग रही थी क्या?'
दोस्तों, मुकेश की आवाज़ में आज का यह प्रस्तुत गीत राग दरबारी कानाड़ा पर आधारित है। उपर आनंदजी ने इस फ़िल्म के कई गीतों का उल्लेख किया, एक और गीत इस फ़िल्म का जिसका भी उल्लेख होना चाहिए, वह है सुमन कल्याणपुर की आवाज़ में "शरदचन्द्र की पूर्णिमा", जो फ़िल्म का शीर्षक गीत भी है। तो लीजिए सुनिए मुकेश की आवाज़ में कल्याणजी-आनंदजी की संगीत रचना, और शब्दकार हैं गुलज़ार। 'आवाज़' परिवार की तरफ़ से कल्याणजी भाई और मुकेश जी को स्मृति सुमन!
क्या आप जानते हैं...
कि गुलज़ार साहब को सन् २००४ में पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया था और सन् २००२ में उनकी लघु कहानियों की किताब 'धुआँ' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाज़ा गया था।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. मुखड़े में शब्द है "कटोरा", संगीतकार बताएं - २ अंक.
२. किस लेखक की मूल कहानी पर आधारित है ये फिल्म, जिसे लिखा और निर्देशित किया भी गुलज़ार साहब ने था - ३ अंक.
३. गायिका बताएं - १ अंक.
४ फिल्म की प्रमुख अभिनेत्री का नाम बताएं - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
ठीक है प्रतिभा जी, हमें इंतज़ार रहेगा. शरद जी अब मात्र ४ अंक दूर हैं..सभी को बधाई....
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
रक्षाबंधन के शुभवसर पर सभी दोस्तों को हम अपनी हार्दिक शुभकामनाएँ देते हुए आज की यह प्रस्तुति शुरु कर रहे हैं। दोस्तों, आज रक्षाबंधन के साथ साथ २४ अगस्त भी है। आज ही के दिन सन् २००० को संगीतकार जोड़ी कल्याणजी-आनंदजी के कल्याणजी भाई हम से हमेशा के लिए दूर चले गए थे। आज जब हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर गुलज़ार साहब के लिखे गीतों की शृंखला प्रस्तुत कर रहे हैं, तो आपको यह भी बता दें कि गुलज़ार साहब ने एक फ़िल्म में कल्याणजी-आनंदजी के लिए गीत लिखे थे। और वह फ़िल्म थी 'पूर्णिमा'। आज कल्याणजी भाई के स्मृति दिवस पर आइए उसी फ़िल्म से एक बेहद प्यारा सा दर्द भरा गीत सुनते हैं मुकेश की आवाज़ में - "तुम्हे ज़िंदगी के उजाले मुबारक़, अंधेरे हमें आज रास आ गए हैं, तुम्हे पाके हम ख़ुद से दूर हो गए थे, तुम्हे छोड़ कर अपने पास आ गए हैं"। अभी दो दिन बाद, २७ अगस्त को मुकेश जी की भी पुण्यतिथि है। इसलिए आज के इस गीत के ज़रिए हम कल्याणजी भाई और मुकेश जी, दोनों को ही श्रद्धांजली अर्पित कर रहे हैं।'पूर्णिमा' १९६५ की फ़िल्म थी और उन दिनों गुलज़ार साहब नए नए फ़िल्मी गीतकार बने थे। इस गीत को सुनते हुए आप महसूस करेंगे कि इसमें गुलज़ार साहब का वह ग़ैर पारम्परिक स्टाइल तब तक डेवेलप नहीं हुआ था जिसके लिए बाद में वो जाने गए; बल्कि इस गीत में उस ज़माने के गीतकारों की झलक ज़्यादा मिलती है। फिर भी गीत के अंतरों में बहुत सुंदर बातें उन्होंने कहे हैं, जैसे कि "तुम्हारी वफ़ाओं से शिकायत नहीं है, निभाना तो कोई रवायत नहीं है, जहाँ तक क़दम आ सके आ गए हैं, अंधेरे हमें आज रास आ गए हैं"। दूसरे अंतरे में गुलज़ार साहब लिखते हैं "चमन से चले हैं ये इलज़ाम लेकर, बहुत जी लिए हम तेरा नाम लेकर, मुरादों की मंज़िल से दूर आ गए हैं, अंधेरे हमें आज रास आ गए हैं"। मुकेश, जो ज़्यादातर यादगार दर्द भरे गीतों के लिए जाने जाते हैं, यह गीत भी उन्ही यादगार गीतों में से एक है। मुकेश की आवाज़ में ये सभी गीत जैसे आम आदमी के गले से निकले हुए लगते हैं। आज का यह प्रस्तुत गीत फ़िल्माया गया है धर्मेन्द्र पर और इस फ़िल्म में उनकी नायिका बनीं थीं मीना कुमारी।
आज बहुत दिनों बाद हम रुख़ कर रहे हैं उसी आनंदजी के 'उजाले उनकी यादों के' कार्यक्रम की तरफ़ और आज उस लम्बे इंटरव्यु से उस अंश को पेश कर रहे हैं जिसमें चला था फ़िल्म 'पूर्णिमा' के गीतों का ज़िक्र। आनंदजी से बात कर रहे हैं कमल शर्मा।
प्र: 'पूर्णिमा' के गानों का ज़िक्र हम कर रहे हैं तो उसमें एक बड़ा ही संजीदा गाना मुकेश जी की आवाज़ में, और बड़ा ही दिल को छू लेने वाला गाना है, "तुम्हे ज़िंदगी के उजाले मुबारक़"।
उ: अच्छा, इस फ़िल्म में गुलज़ार जी ने पहली बार हमारी फ़िल्म में गाना लिखा था। कमल जी, 'पूर्णिमा' में, आपको मालूम है दो गानें गुलज़ार जी ने लिखे, प्रकाश मेहरा जी ने भी गाना लिखा था इसमें, पहली बार, और कॊमेडी गाना था, भरत व्यास जी ने भी लिखा था, इस फ़िल्म का "हमसफ़र मेरे हमसफ़र पंख तुम परवाज़ हम" गाना बहुत चला था, इसमें एक और गाना भी था जिसे मुकेश जी ने गाया था, "गोरी नैन तुम्हारे क्या कहने", उन दिनों आशिक़ महबूबा को हाथ नहीं लगाते थे, बातों से ही काम निबटा लेते थे। (कमल शर्मा ज़ोर से हंस पड़ते हैं)
प्र: सांकेतिक था सबकुछ, ताकि मर्यादा भी बनी रहे, बात भी हो जाए!
उ: यह भी बहुत बोल्ड है, क्योंकि किसी को 'आप सुंदर हैं' यह कहना उन दिनों में हिम्मत नहीं होती थी, मन ही मन समझ जाते थे, आँखें उनकी तरफ़ करके स्माइल कर देंगे, लेकिन कह नहीं सकते। लेकिन आज के दिनों में अगर आप अपने बीवी को भी कहदो कि 'आज आप अच्छी लग रही हो' तो वो कहेगी कि 'कल बुरी लग रही थी क्या?'
दोस्तों, मुकेश की आवाज़ में आज का यह प्रस्तुत गीत राग दरबारी कानाड़ा पर आधारित है। उपर आनंदजी ने इस फ़िल्म के कई गीतों का उल्लेख किया, एक और गीत इस फ़िल्म का जिसका भी उल्लेख होना चाहिए, वह है सुमन कल्याणपुर की आवाज़ में "शरदचन्द्र की पूर्णिमा", जो फ़िल्म का शीर्षक गीत भी है। तो लीजिए सुनिए मुकेश की आवाज़ में कल्याणजी-आनंदजी की संगीत रचना, और शब्दकार हैं गुलज़ार। 'आवाज़' परिवार की तरफ़ से कल्याणजी भाई और मुकेश जी को स्मृति सुमन!
क्या आप जानते हैं...
कि गुलज़ार साहब को सन् २००४ में पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया था और सन् २००२ में उनकी लघु कहानियों की किताब 'धुआँ' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाज़ा गया था।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. मुखड़े में शब्द है "कटोरा", संगीतकार बताएं - २ अंक.
२. किस लेखक की मूल कहानी पर आधारित है ये फिल्म, जिसे लिखा और निर्देशित किया भी गुलज़ार साहब ने था - ३ अंक.
३. गायिका बताएं - १ अंक.
४ फिल्म की प्रमुख अभिनेत्री का नाम बताएं - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
ठीक है प्रतिभा जी, हमें इंतज़ार रहेगा. शरद जी अब मात्र ४ अंक दूर हैं..सभी को बधाई....
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
अवध लाल
ऐसी ही एक अनोखी कल्पना थी उस पुराने गीत में, ज़रा भाव देखिये - चाँद एक बेवा की चूड़ी की तरह टूटा हुआ; हर सितारा बेसहारा सोच में डूबा हुआ. ग़म के बादल एक जनाज़े की तरह ठहरे हुए... वाह, क्या बात थी.
और इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हैं गुलज़ार साहेब.
लाजवाब
अवध लाल
आवाज़ के लिए मेरी शुभकामनायें !
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