जाने क्या सोच कर नहीं गुजरा....गुलज़ार साहब के गीतों से सजा हर लम्हा कुछ सोचता रुक जाता है हमारे जीवन में भी
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 470/2010/170
ओल्ड इज़ गोल्ड' पर गुलज़ार साहब के लिखे गीतों की लघु शृंखला 'मुसाफ़िर हूँ यारों' की अंतिम कड़ी में आपका स्वागत है। दोस्तों, अभी शायद कल ही हमने ज़िक्र किया था गुलज़ार साहब के ग़ैर पारम्परिक रूपक और उपमाओं का। जिस ख़ूबसूरती से वो रूपकों का इस्तेमाल करते है, उसी अंदाज़ में विरोधाभास का एक उदाहरन देखिए कि जब वो लिखते हैं "जाने क्या सोच कर नहीं गुज़रा, एक पल रात भर नहीं गुज़रा"। एक पल जो हक़ीक़त में एक पल में ही गुज़र जाता है, गुलज़ार साहब ने उस पल को रात भर नहीं गुज़रने दिया। विरोधाभास का इससे बेहतर इस्तेमाल भला और क्या हो सकता है। आज फ़िल्म 'किनारा' के इसी गीत के साथ इस शृंखला का समापन कर रहे हैं। राहुल देव बर्मन की तर्ज़ पर यह गीत किशोर कुमार ने गाया था। गुलज़ार साहब के शब्दों में ये रही इस गीत की भूमिका - "ज़िंदगी कभी पलों में गुज़र जाती है, कभी ज़िंदगी भर एक पल नहीं गुज़रता। इंदर की ज़िंदगी में भी ऐसा ही एक पल ठहर गया था जिसे वो आरति के नाम से पहचान सकता था। रात गुज़र रही थी लेकिन वह एक पल सारी रात पे भारी था। जाने क्या सोच कर नहीं गुज़रा, एक पल रात भर नहीं गुज़रा।" 'किनारा' १९७७ की फ़िल्म थी जिसका निर्माण प्राणलाल मेहता और गुलज़ार ने मिलकर किया था। कहानी, संवाद और निर्देशन गुलज़ार साहब का ही था। यानी कि पूरी तरह से यह गुलज़ार साहब की ही फ़िल्म थी। जीतेन्द्र, हेमा मालिनी, धर्मेन्द्र और श्रीराम लागू अभिनीत इस फ़िल्म की शूटिंग मध्य प्रदेश के माण्डू में किया गया था। इस फ़िल्म के सभी गानें हिट हुए थे। आज के प्रस्तुत गीत के अलावा लता और भूपेन्द्र का गाया "नाम गुम जाएगा चेहरा ये बदल जाएगा" और "मीठे बोल बोले, बोले पायलिया", भूपेन्द्र और हेमा मालिनी का गाया "एक ही ख़्वाब कई बार देखा है मैने", और लता का गाया "अब के ना सावन बरसे" बेहद सुरीले गानें हैं जिन्हें राहुल देव बर्मन ने शास्त्रीय संगीत के आधार पर स्वरबद्ध किया था।
और अब गुलज़ार साहब के लेखनी की कुछ और बात की जाए! गुलज़ार साहब ने कविता लेखन की एक नई परम्परा की शुरुआत की है जिसे उन्होंने नाम दिया है 'त्रिवेणी'। इस तरह की कविताओं के हर अंतरे में तीन पंक्तियाँ होती हैं जो आपस में तुकबंद होते हैं। उनकी प्राइवेट ऐल्बम 'कोई बात चले' के सभी गीत इसी त्रिवेणी शैली में लिखे हुए हैं जिन्हे गाया है जगजीत सिंह ने। गुलज़ार साहब के जीवन की पूरी जानकारी अगर आप पाना चाहते हैं तो उन पर लिखी किताब 'Because he is...' को पढ़ें जो उनकी जीवनी है और जिसे लिखा है उन्ही की सुपुत्री मेघना गुलज़ार ने, जो ख़ुद भी एक निर्देशिका हैं। गुलज़ार साहब के बारे में और क्या बताएँ, उनके गानें, जो लगातार आते जा रहे हैं, और हर बार कुछ नया उनसे मिलता है, गुलज़ार साहब इसी तरह से लिखते चले जाएँ, इसी तरह से शब्दों के साथ खेलते रहें और हर बार कुछ अलग हट के लिख कर हमें चौंकाते रहें, 'आवाज़' परिवार की तरफ़ से हम उन्हें दे रहे हैं ढेरों शुभकामनाएँ। गुलज़ार साहब पर केन्द्रित इस लघु शृंखला को समाप्त करने से पहले हम फिर एक बार आपको याद दिलाना चाहेंगे कि अब आप भी अपने पसंद के गीतों को 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर सुन सकते हैं अपने नाम के साथ। आपको बस इतना करना होगा कि अपने मनपसंद गीत की फ़रमाइश और उस गीत से जुड़ी अपनी यादों को संक्षिप्त में लिख कर oig@hindyugm.com के ईमेल पते पर लिख भेजना होगा। आपकी फ़रमाइश हम पूरी करेंगे 'ओल्ड इज़ गोल्ड - ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' में जो प्रस्तुत होता है हर शनिवार की शाम। आप चाहें तो किसी भी विषय पर अपने अनुभव और संस्मरण भी हमें लिख सकते हैं। तो इसी उम्मीद के साथ कि आपके ईमेल हमें जल्दी ही प्राप्त होंगे, अब आज के लिए आप से इजाज़त चाहते हैं, शनिवार को आपसे फिर मुलाक़ात होगी 'ओल्ड इज़ गोल्ड - ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' में। और लीजिए अब सुनिए फ़िल्म 'किनारा' का गीत किशोर दा की आवाज़ में।
क्या आप जानते हैं...
कि किशोर कुमार के गाए फ़िल्म 'किनारा' का यह गीत "जाने क्या सोच कर नहीं गुज़रा" राग केदार पर आधारित है।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. शशिकला, श्यामा और शालिनी पर फिल्माई गयी ये कव्वाली किस फिल्म से है - १ अंक.
२. केवल महिला गायिकाओं की आवाजें हैं इसमें, तीनों प्रमुख गायिकाओं के नाम बताएं - ३ अंक.
३. संगीतकार बताएं - २ अंक.
४ फिल्म चौदहवीं का चाँद में भी एक कव्वाली थी जो इस कव्वाली की धुन से प्रेरित थी, याद करें और बताएं इसके बोल- २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी बहुत बहुत मुबारक आपने १०० का आंकड़ा छू कर एक बार फिर अपनी काबिलियत साबित कर दी है. आपके लिए एक विशेष पुरस्कार हमने सुरक्षित रखा है हमारे सालाना कार्यक्रम में. ५०० वें एपिसोड तक जो भी अन्य प्रतिभागी इस आंकड़े को छू लेगा उसे भी पुरस्कार अवश्य मिलेगा. तो जल्दी कीजिये अब तक अन्य सदस्यों के स्कोर इस तरह हैं- अवध जी - ७०, इंदु जी ३८, पवन जी २६, और किशोर, नवीन और प्रतिभा जी १८ अंको पर हैं. ई मेल नोटिफिकेशन में समय लग सकता है, आप सीधे ६.३० पर आवाज़ पर पधार सकते हैं और जवाब देने में फुर्ती दिखा सकते हैं रोमेंद्र जी, शुभकामनाएँ
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इज़ गोल्ड' पर गुलज़ार साहब के लिखे गीतों की लघु शृंखला 'मुसाफ़िर हूँ यारों' की अंतिम कड़ी में आपका स्वागत है। दोस्तों, अभी शायद कल ही हमने ज़िक्र किया था गुलज़ार साहब के ग़ैर पारम्परिक रूपक और उपमाओं का। जिस ख़ूबसूरती से वो रूपकों का इस्तेमाल करते है, उसी अंदाज़ में विरोधाभास का एक उदाहरन देखिए कि जब वो लिखते हैं "जाने क्या सोच कर नहीं गुज़रा, एक पल रात भर नहीं गुज़रा"। एक पल जो हक़ीक़त में एक पल में ही गुज़र जाता है, गुलज़ार साहब ने उस पल को रात भर नहीं गुज़रने दिया। विरोधाभास का इससे बेहतर इस्तेमाल भला और क्या हो सकता है। आज फ़िल्म 'किनारा' के इसी गीत के साथ इस शृंखला का समापन कर रहे हैं। राहुल देव बर्मन की तर्ज़ पर यह गीत किशोर कुमार ने गाया था। गुलज़ार साहब के शब्दों में ये रही इस गीत की भूमिका - "ज़िंदगी कभी पलों में गुज़र जाती है, कभी ज़िंदगी भर एक पल नहीं गुज़रता। इंदर की ज़िंदगी में भी ऐसा ही एक पल ठहर गया था जिसे वो आरति के नाम से पहचान सकता था। रात गुज़र रही थी लेकिन वह एक पल सारी रात पे भारी था। जाने क्या सोच कर नहीं गुज़रा, एक पल रात भर नहीं गुज़रा।" 'किनारा' १९७७ की फ़िल्म थी जिसका निर्माण प्राणलाल मेहता और गुलज़ार ने मिलकर किया था। कहानी, संवाद और निर्देशन गुलज़ार साहब का ही था। यानी कि पूरी तरह से यह गुलज़ार साहब की ही फ़िल्म थी। जीतेन्द्र, हेमा मालिनी, धर्मेन्द्र और श्रीराम लागू अभिनीत इस फ़िल्म की शूटिंग मध्य प्रदेश के माण्डू में किया गया था। इस फ़िल्म के सभी गानें हिट हुए थे। आज के प्रस्तुत गीत के अलावा लता और भूपेन्द्र का गाया "नाम गुम जाएगा चेहरा ये बदल जाएगा" और "मीठे बोल बोले, बोले पायलिया", भूपेन्द्र और हेमा मालिनी का गाया "एक ही ख़्वाब कई बार देखा है मैने", और लता का गाया "अब के ना सावन बरसे" बेहद सुरीले गानें हैं जिन्हें राहुल देव बर्मन ने शास्त्रीय संगीत के आधार पर स्वरबद्ध किया था।
और अब गुलज़ार साहब के लेखनी की कुछ और बात की जाए! गुलज़ार साहब ने कविता लेखन की एक नई परम्परा की शुरुआत की है जिसे उन्होंने नाम दिया है 'त्रिवेणी'। इस तरह की कविताओं के हर अंतरे में तीन पंक्तियाँ होती हैं जो आपस में तुकबंद होते हैं। उनकी प्राइवेट ऐल्बम 'कोई बात चले' के सभी गीत इसी त्रिवेणी शैली में लिखे हुए हैं जिन्हे गाया है जगजीत सिंह ने। गुलज़ार साहब के जीवन की पूरी जानकारी अगर आप पाना चाहते हैं तो उन पर लिखी किताब 'Because he is...' को पढ़ें जो उनकी जीवनी है और जिसे लिखा है उन्ही की सुपुत्री मेघना गुलज़ार ने, जो ख़ुद भी एक निर्देशिका हैं। गुलज़ार साहब के बारे में और क्या बताएँ, उनके गानें, जो लगातार आते जा रहे हैं, और हर बार कुछ नया उनसे मिलता है, गुलज़ार साहब इसी तरह से लिखते चले जाएँ, इसी तरह से शब्दों के साथ खेलते रहें और हर बार कुछ अलग हट के लिख कर हमें चौंकाते रहें, 'आवाज़' परिवार की तरफ़ से हम उन्हें दे रहे हैं ढेरों शुभकामनाएँ। गुलज़ार साहब पर केन्द्रित इस लघु शृंखला को समाप्त करने से पहले हम फिर एक बार आपको याद दिलाना चाहेंगे कि अब आप भी अपने पसंद के गीतों को 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर सुन सकते हैं अपने नाम के साथ। आपको बस इतना करना होगा कि अपने मनपसंद गीत की फ़रमाइश और उस गीत से जुड़ी अपनी यादों को संक्षिप्त में लिख कर oig@hindyugm.com के ईमेल पते पर लिख भेजना होगा। आपकी फ़रमाइश हम पूरी करेंगे 'ओल्ड इज़ गोल्ड - ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' में जो प्रस्तुत होता है हर शनिवार की शाम। आप चाहें तो किसी भी विषय पर अपने अनुभव और संस्मरण भी हमें लिख सकते हैं। तो इसी उम्मीद के साथ कि आपके ईमेल हमें जल्दी ही प्राप्त होंगे, अब आज के लिए आप से इजाज़त चाहते हैं, शनिवार को आपसे फिर मुलाक़ात होगी 'ओल्ड इज़ गोल्ड - ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' में। और लीजिए अब सुनिए फ़िल्म 'किनारा' का गीत किशोर दा की आवाज़ में।
क्या आप जानते हैं...
कि किशोर कुमार के गाए फ़िल्म 'किनारा' का यह गीत "जाने क्या सोच कर नहीं गुज़रा" राग केदार पर आधारित है।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. शशिकला, श्यामा और शालिनी पर फिल्माई गयी ये कव्वाली किस फिल्म से है - १ अंक.
२. केवल महिला गायिकाओं की आवाजें हैं इसमें, तीनों प्रमुख गायिकाओं के नाम बताएं - ३ अंक.
३. संगीतकार बताएं - २ अंक.
४ फिल्म चौदहवीं का चाँद में भी एक कव्वाली थी जो इस कव्वाली की धुन से प्रेरित थी, याद करें और बताएं इसके बोल- २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी बहुत बहुत मुबारक आपने १०० का आंकड़ा छू कर एक बार फिर अपनी काबिलियत साबित कर दी है. आपके लिए एक विशेष पुरस्कार हमने सुरक्षित रखा है हमारे सालाना कार्यक्रम में. ५०० वें एपिसोड तक जो भी अन्य प्रतिभागी इस आंकड़े को छू लेगा उसे भी पुरस्कार अवश्य मिलेगा. तो जल्दी कीजिये अब तक अन्य सदस्यों के स्कोर इस तरह हैं- अवध जी - ७०, इंदु जी ३८, पवन जी २६, और किशोर, नवीन और प्रतिभा जी १८ अंको पर हैं. ई मेल नोटिफिकेशन में समय लग सकता है, आप सीधे ६.३० पर आवाज़ पर पधार सकते हैं और जवाब देने में फुर्ती दिखा सकते हैं रोमेंद्र जी, शुभकामनाएँ
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
बहुत बहुत धन्यवाद ! दर असल old is gold लगता है मेरे जीवन के रोज़मर्रा का एक अंग बन गया है । कृपया यह बताने की कृपा करें कि मैं आगे भी पहेली के उत्तर देता रहूँ या १०० अंक पूरे हो जाने के कारण विश्राम करना पडेगा ।
Sujoy
Sharadji aapko aanginat badhai.. Mere Khayal se aapko vikraam nahi karna chaahiye...Competition and challenge is good for heart and soul..
Pratibha K-S.
Ottawa, Canada
जो व्यक्ति धन गंवाता है, बहुत कुछ खो बैठता है; जो व्यक्ति मित्र को खो बैठता है, वह उससे भी कहीं अधिक खोता है, लेकिन जो अपने विश्वास को खो बैठता है, वह व्यक्ति अपना सर्वस्व खो देता है.
-एलेयानोर
Sharadji ko bahut bahut badhaai ho...
Kishore Sampat
Kanata,Ontario,CANADA
Naveen Prasad
Uttranchal, now working in Canada
समय के कारण आज केवल एक ही अंक से संतोष करता हूँ . फिल्म: जीनत
अवध लाल
अवध लाल
"प्रतिभा जी ने बहुत अच्छा कहा है. सही है कि Challenge और competition की अपनी अलग महत्ता है. पर इस विषय में Eleanor के इस Quotation का जो आत्म विश्वास की कमी से सम्बंधित है क्या सम्बन्ध है, मैं नहीं समझ पाया."
Avadhji, koi sambandh nahi hai. Jab uttar de rahi thi to ye quotation paya kahin se, kisi se. To maine jod diya. Confusion ke liye maafi....
P.S.: Vaise to meri matrubhasha Hindi hai, parantu pichhle 31 saal se Ottawa mein rahkar or Hindi ka kuchh kum prayog hone se, Hindi mein likhne par kuchh taklif or galatiyaan hoti hai..Jayadatar yahan Indian community mein 'Hinglish' boli jati hai...
Pratibha K-S.
Ottawa, Canada