हिन्द-युग्म का सबसे लोकप्रिय स्तम्भ 'ओल्ड इज गोल्ड' अब अपने 456वें पायदान पर पाँव धर चुका है। हम इसकी सफलता से खुश तो हैं ही साथ ही गौरवान्वित भी हैं कि पुराने फिल्मी पर आधारित इस कार्यक्रम को श्रोताओं/पाठकों ने इतना सराहा।
एक-एक करके हम इसके 500वें अंक की तरफ भी पहुँच जायेंगे, तो आवाज़ टीम ने निश्चय किया कि क्यों न इस अंक को यादगार बनाया जाय। कुछ ऐसा किया जाय, जो अभी तक किसी ने नहीं किया। जी हाँ, हम कुछ ऐसा ही करने जा रहे हैं। आपलोगों में से बहुतों को तो पता ही होगा कि हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री का पहला गीत नष्ट हो चुका है। जी हाँ, 'आलम आरा' फिल्म को पहली बोलती फिल्म और इसके गीत 'दे दे खुदा के नाम पे' को पहला हिन्दी फिल्मी गीत माना जाता है। अब न तो यह फिल्म कहीं मौज़ूद है और न ही इसके गीतों को संरक्षित करके रखा गया है।
तो हमने तय किया है कि 'ओल्ड इज गोल्ड' के 500वें संस्करण में इस गीत का संगीतबद्ध संस्करण हिन्द-युग्म ज़ारी करेगा। चूँकि इस गीत की रिकॉर्डिंग कहीं भी मौज़ूद नहीं है, इसलिए हम इस गीत एक ऑनलाइन प्रतियोगिता के माध्यम से संगीतबद्ध करवा रहे हैं। हमारी टीम द्वारा किये गये शोध के अनुसार इस गीत के बारे में तरह-तरह की बातें कहीं जाती हैं। कोई कहता है कि यह एक ग़ज़ल थी, जिसे फिल्म के ही कलाकार, जिनपर यह फिल्माया गया था, वज़ीर मोहम्मद ख़ान ने लिखी थी। कुछ कहते हैं कि इसमें एक ही शेर था। कोई कहता है कि यह पूरा गीत था। लेकिन हम इसके मुखड़े को ही खोज पाये।
इसलिए पहले हमने अपने कविता प्रभाग पर इस मुखड़े को बढ़ाने की प्रतियोगिता रखी और उसमें से 4 और लाइने चुनीं। अब इस गीत के बोलों की शक्ल कुछ इस तरह से हो गई है-
दे दे ख़ुदा के नाम पे प्यारे, ताक़त हो गर देने की,
चाहे अगर तो माँग ले मुझसे, हिम्मत हो गर लेने की
इत्र, परांदी और महावर, जिस्म सजा, पर बेमानी
दुलहन रुह को कब है ज़रुरत सजने और सँवरने की
चला फकीरा हंसता-हंसता, फिर जाने कब आएगा
जोड़-जोड़ कर रोने वाले, फुर्सत कर कुछ देने की
संगीतकारों/गायकों को क्या करना है-
1) उपर्युक्त गीत को संगीतबद्ध करके 10 सितम्बर 2010 तक podcast@hindyugm.com पर भेजें।
2) गीत के साथ अपना परिचय और चित्र भी भेजें।
पुरस्कारः
1) आवाज़ टीम सर्वश्रेष्ठ संगीतबद्ध गीत का निर्णय करेगी, जिसे 'ओल्ड इज़ गोल्ज़' के 500वें अंक में रीलिज किया जायेगा।
2) सर्वश्रेष्ठ प्रविष्टि वाले गीत की टीम को हिन्द-युग्म के वार्षिकोत्सव (जो कि 25 दिसम्बर से 31 दिसम्बर 2010 के मध्य दिल्ली में आयोजित होगा) में सम्मानित किया जायेगा और रु 5000 का नगद इनाम भी दिया जायेगा।
नोट- उपर्युक्त गीत का प्रथम 2 पंक्तियाँ ज्ञात श्रोतों के आधार पर 'आलम आरा' फिल्म से हैं। तीसरी और चौथीं पंक्ति स्वप्निल तिवारी 'आतिश' की हैं और अंतिम 2 पंक्तियाँ निखिल आनंद गिरि की हैं। गीत को आगे बढ़ाने के लिए आयोजित की गई प्रतियोगिता में कुल 7 लोगों ने भाग लिया था (डॉ॰ अरुणा कपूर, शरद तैलंग, मोहन बिजेवर, स्वप्निल तिवारी, निखिल आनंद गिरि, संजय कुमार, आकर्षण कुमार गिरि)। हम सभी का धन्यवाद करते हैं।
एक-एक करके हम इसके 500वें अंक की तरफ भी पहुँच जायेंगे, तो आवाज़ टीम ने निश्चय किया कि क्यों न इस अंक को यादगार बनाया जाय। कुछ ऐसा किया जाय, जो अभी तक किसी ने नहीं किया। जी हाँ, हम कुछ ऐसा ही करने जा रहे हैं। आपलोगों में से बहुतों को तो पता ही होगा कि हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री का पहला गीत नष्ट हो चुका है। जी हाँ, 'आलम आरा' फिल्म को पहली बोलती फिल्म और इसके गीत 'दे दे खुदा के नाम पे' को पहला हिन्दी फिल्मी गीत माना जाता है। अब न तो यह फिल्म कहीं मौज़ूद है और न ही इसके गीतों को संरक्षित करके रखा गया है।
तो हमने तय किया है कि 'ओल्ड इज गोल्ड' के 500वें संस्करण में इस गीत का संगीतबद्ध संस्करण हिन्द-युग्म ज़ारी करेगा। चूँकि इस गीत की रिकॉर्डिंग कहीं भी मौज़ूद नहीं है, इसलिए हम इस गीत एक ऑनलाइन प्रतियोगिता के माध्यम से संगीतबद्ध करवा रहे हैं। हमारी टीम द्वारा किये गये शोध के अनुसार इस गीत के बारे में तरह-तरह की बातें कहीं जाती हैं। कोई कहता है कि यह एक ग़ज़ल थी, जिसे फिल्म के ही कलाकार, जिनपर यह फिल्माया गया था, वज़ीर मोहम्मद ख़ान ने लिखी थी। कुछ कहते हैं कि इसमें एक ही शेर था। कोई कहता है कि यह पूरा गीत था। लेकिन हम इसके मुखड़े को ही खोज पाये।
इसलिए पहले हमने अपने कविता प्रभाग पर इस मुखड़े को बढ़ाने की प्रतियोगिता रखी और उसमें से 4 और लाइने चुनीं। अब इस गीत के बोलों की शक्ल कुछ इस तरह से हो गई है-
दे दे ख़ुदा के नाम पे प्यारे, ताक़त हो गर देने की,
चाहे अगर तो माँग ले मुझसे, हिम्मत हो गर लेने की
इत्र, परांदी और महावर, जिस्म सजा, पर बेमानी
दुलहन रुह को कब है ज़रुरत सजने और सँवरने की
चला फकीरा हंसता-हंसता, फिर जाने कब आएगा
जोड़-जोड़ कर रोने वाले, फुर्सत कर कुछ देने की
संगीतकारों/गायकों को क्या करना है-
1) उपर्युक्त गीत को संगीतबद्ध करके 10 सितम्बर 2010 तक podcast@hindyugm.com पर भेजें।
2) गीत के साथ अपना परिचय और चित्र भी भेजें।
पुरस्कारः
1) आवाज़ टीम सर्वश्रेष्ठ संगीतबद्ध गीत का निर्णय करेगी, जिसे 'ओल्ड इज़ गोल्ज़' के 500वें अंक में रीलिज किया जायेगा।
2) सर्वश्रेष्ठ प्रविष्टि वाले गीत की टीम को हिन्द-युग्म के वार्षिकोत्सव (जो कि 25 दिसम्बर से 31 दिसम्बर 2010 के मध्य दिल्ली में आयोजित होगा) में सम्मानित किया जायेगा और रु 5000 का नगद इनाम भी दिया जायेगा।
नोट- उपर्युक्त गीत का प्रथम 2 पंक्तियाँ ज्ञात श्रोतों के आधार पर 'आलम आरा' फिल्म से हैं। तीसरी और चौथीं पंक्ति स्वप्निल तिवारी 'आतिश' की हैं और अंतिम 2 पंक्तियाँ निखिल आनंद गिरि की हैं। गीत को आगे बढ़ाने के लिए आयोजित की गई प्रतियोगिता में कुल 7 लोगों ने भाग लिया था (डॉ॰ अरुणा कपूर, शरद तैलंग, मोहन बिजेवर, स्वप्निल तिवारी, निखिल आनंद गिरि, संजय कुमार, आकर्षण कुमार गिरि)। हम सभी का धन्यवाद करते हैं।
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