ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 456/2010/156
'ओल्ड इज़ गोल्ड' के एक नए सप्ताह के साथ हम हाज़िर हैं। इससे पहले कि हम आज की प्रस्तुति की शुरुआत करें, आपको हम यह याद दिलाना चाहेंगे कि 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में आप अपने फ़रमाइश के गीत सुन सकते हैं अपने नाम के साथ। आपको बस इतना करना है कि अपने पसंद का गीत और अगर कोई याद उस गीत से जुड़ी हुई है तो उसे एक ई-मेल में लिख कर हमें oig@hindyugm.com के पते पर भेज दीजिए। साथ ही अगर आप कोई सुझाव देना चाहें तो भी इसी पते पर आप हमे लिख सकते हैं। हमें आपके ई-मेल का इंतेज़ार रहेगा। दोस्तों, इन दिनों आप 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में आनंद ले रहे हैं ८० के दशक के कुछ चुनिंदा फ़िल्मी ग़ज़लों का लघु शृंखला 'सेहरा में रात फूलों की' के अंतर्गत। इस दौर के ग़ज़ल गायकों की जब बात चलती है तो जो एक नाम सब के ज़ुबान पर सब से पहले आता है, वो नाम है जगजीत सिंह का। युं तो मेहदी हसन और ग़ुलाम अली ग़ज़लों के बादशाह माने जाते हैं, लेकिन जगजीत सिंह की गायकी कुछ इस तरह से आयी कि छोटे, बड़े, जवान, बूढ़े, सभी को उन्होने अपनी ओर आकर्षित किया और आज भी वो सब से लोकप्रिय ग़ज़ल गायक बने हुए हैं। जगजीत सिंह ने ना केवल ग़ैर फ़िल्मी ग़ज़लों की लड़ी लगा दी, बल्कि फ़िल्मों के लिए भी ग़ज़लों को थोड़े हल्के फुल्के अंदाज़ में पेश कर ख़ूब ख़ूब तारीफ़ें बटोरी। ऐसे में इस शृंखला में बेहद ज़रूरी हो जाता है कि उनकी गायी कोई फ़िल्मी ग़ज़ल आप तक पहुँचायी जाए। तो हमने फ़िल्म 'साथ साथ' की एक ग़ज़ल चुनी है, और इसे इसलिए चुना क्योंकि इस फ़िल्म के जो संगीतकार हैं उनका नाम भी ग़ैर फ़िल्मी ग़ज़लों को कॊम्पोज़ करने के लिए काफ़ी जाना जाता है। कुलदीप सिंह। जी हाँ, फ़िल्म 'साथ साथ' में कुलदीप सिंह का संगीत था और इस फ़िल्म के जिस ग़ज़ल को हमने चुना है वह है "तुमको देखा तो ये ख़याल आया, ज़िंदगी धूप तुम घना साया"। दोस्तों, ग़ज़ल एक शायर के जज़्बाती दिल बयान करती है। और जगजीत सिंह का भी हमेशा यही मक़सद रहता है कि उनके गाए ग़ज़लों में जज़्बात पूरी तरह से बाहर निकल सामने आए। जगजीत सिंह का पहला एल.पी रेकॊर्ड सन् १९७६ में बना जो लोगों के दिलों में घर कर गई थी। एक ग़ज़ल गायक होने के साथ साथ वो एक संगीतकार भी हैं। उन्होने पाश्चात्य संगीत को शास्त्रीय संगीत के साथ ब्लेण्ड करके ग़ज़ल को ख़ास-ओ-आम बनाया है।
फ़िल्म 'साथ साथ' में गानें लिखे थे जावेद अख़्तर साहब ने। उनकी ही ज़ुबानी पढ़ते हैं इस ग़ज़ल के बनने की कहानी के रूप में - "तुमको देखा तो ये ख़याल आया, ज़िंदगी धूप तुम घना साया, कई दिनों से इस ग़ज़ल के लिए रमण साहब मेरे पीछे पड़े हुए थे, और मैं आज नहीं कल, कल नहीं परसों कर रहा था। एक रात, दो बजे, उन्होने मुझसे पूछा कि आज भी नहीं हुआ? मैंने कहा, लाओ क़ाग़ज़ कलम दो, और मैंने ८/९ मिनट में ग़ज़ल लिख दिया और लोगों को पसंद भी आया। फ़िल्म में वो पोएट का करेक्टर था जिस पर यह ग़ज़ल लिखना था, इसलिए मुझे काफ़ी लिबर्टी मिल गई। और रमण कुमार को भी ज़बान का सेन्स था, इससे मेरा काम आसान हो गया। जिनको ज़बान की अकल होती है, उनके साथ काम करना आसान हो जाता है।" दोस्तों, फ़िल्म 'साथ साथ' सन् १९८२ की फ़िल्म थी जो ४ मार्च को प्रदर्शित हुई थी। निर्देशक का नाम तो आप जावेद साहब से सुन ही चुके हैं; फ़िल्म का निर्माण किया था दिलीप धवन ने। डेविड धवन ने एडिटिंग् का पक्ष संभाला था। फ़िल्म की कहानी रमण साहब ने ही लिखी थी और मुख्य कलाकारों में शामिल थे राकेश बेदी, सुधा चोपड़ा, फ़ारुख़ शेख़, नीना गुप्ता, ए.के. हंगल, अवतार गिल, दीप्ती नवल, जावेद ख़ान, सतीश शाह, यूनुस परवेज़, गीता सिद्धार्थ, अंजन श्रीवास्तव प्रमुख। तो आइए सुना जाए यह कालजयी ग़ज़ल जिसके चार शेर इस तरह से हैं...
तुमको देखा तो ये ख़याल आया,
ज़िंदगी धूप तुम घना साया।
आज फिर दिल ने एक तमन्ना की,
आज फिर दिल को हमने समझाया।
तुम चले जाओगे तो सोचेंगे,
हमने क्या खोया हमने क्या पाया।
हम जिसे गुनगुना नहीं सकते,
वक़्त ने ऐसा गीत क्यों गाया।
क्या आप जानते हैं...
कि जगजीत सिंह को ग़ज़लों में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए भारत सरकार ने सन् २००३ में राष्ट्र के द्वितीय सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मविभूषण से सम्मानित किया था।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. एक हादसे के बाद इन्होने गाना छोड़ दिया था, हम किस गायिका की बात कर रहे हैं जिन्होंने इस गज़ल को गाया है - २ अंक.
२. इस गमजदा गज़ल के शायर कौन हैं - ३ अंक.
३. महेश भट्ट निर्देशित इस फिल्म में किन दो अभिनेत्रियों की अहम भूमिकाएं थी - १ अंक.
४. संगीतकार कौन है इस गज़ल के - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
पवन जी एक बार फिर ३ अंक ले गए, प्रतिभा जी, इंदु जी और किश जी को भी बधाई.
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
'ओल्ड इज़ गोल्ड' के एक नए सप्ताह के साथ हम हाज़िर हैं। इससे पहले कि हम आज की प्रस्तुति की शुरुआत करें, आपको हम यह याद दिलाना चाहेंगे कि 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में आप अपने फ़रमाइश के गीत सुन सकते हैं अपने नाम के साथ। आपको बस इतना करना है कि अपने पसंद का गीत और अगर कोई याद उस गीत से जुड़ी हुई है तो उसे एक ई-मेल में लिख कर हमें oig@hindyugm.com के पते पर भेज दीजिए। साथ ही अगर आप कोई सुझाव देना चाहें तो भी इसी पते पर आप हमे लिख सकते हैं। हमें आपके ई-मेल का इंतेज़ार रहेगा। दोस्तों, इन दिनों आप 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में आनंद ले रहे हैं ८० के दशक के कुछ चुनिंदा फ़िल्मी ग़ज़लों का लघु शृंखला 'सेहरा में रात फूलों की' के अंतर्गत। इस दौर के ग़ज़ल गायकों की जब बात चलती है तो जो एक नाम सब के ज़ुबान पर सब से पहले आता है, वो नाम है जगजीत सिंह का। युं तो मेहदी हसन और ग़ुलाम अली ग़ज़लों के बादशाह माने जाते हैं, लेकिन जगजीत सिंह की गायकी कुछ इस तरह से आयी कि छोटे, बड़े, जवान, बूढ़े, सभी को उन्होने अपनी ओर आकर्षित किया और आज भी वो सब से लोकप्रिय ग़ज़ल गायक बने हुए हैं। जगजीत सिंह ने ना केवल ग़ैर फ़िल्मी ग़ज़लों की लड़ी लगा दी, बल्कि फ़िल्मों के लिए भी ग़ज़लों को थोड़े हल्के फुल्के अंदाज़ में पेश कर ख़ूब ख़ूब तारीफ़ें बटोरी। ऐसे में इस शृंखला में बेहद ज़रूरी हो जाता है कि उनकी गायी कोई फ़िल्मी ग़ज़ल आप तक पहुँचायी जाए। तो हमने फ़िल्म 'साथ साथ' की एक ग़ज़ल चुनी है, और इसे इसलिए चुना क्योंकि इस फ़िल्म के जो संगीतकार हैं उनका नाम भी ग़ैर फ़िल्मी ग़ज़लों को कॊम्पोज़ करने के लिए काफ़ी जाना जाता है। कुलदीप सिंह। जी हाँ, फ़िल्म 'साथ साथ' में कुलदीप सिंह का संगीत था और इस फ़िल्म के जिस ग़ज़ल को हमने चुना है वह है "तुमको देखा तो ये ख़याल आया, ज़िंदगी धूप तुम घना साया"। दोस्तों, ग़ज़ल एक शायर के जज़्बाती दिल बयान करती है। और जगजीत सिंह का भी हमेशा यही मक़सद रहता है कि उनके गाए ग़ज़लों में जज़्बात पूरी तरह से बाहर निकल सामने आए। जगजीत सिंह का पहला एल.पी रेकॊर्ड सन् १९७६ में बना जो लोगों के दिलों में घर कर गई थी। एक ग़ज़ल गायक होने के साथ साथ वो एक संगीतकार भी हैं। उन्होने पाश्चात्य संगीत को शास्त्रीय संगीत के साथ ब्लेण्ड करके ग़ज़ल को ख़ास-ओ-आम बनाया है।
फ़िल्म 'साथ साथ' में गानें लिखे थे जावेद अख़्तर साहब ने। उनकी ही ज़ुबानी पढ़ते हैं इस ग़ज़ल के बनने की कहानी के रूप में - "तुमको देखा तो ये ख़याल आया, ज़िंदगी धूप तुम घना साया, कई दिनों से इस ग़ज़ल के लिए रमण साहब मेरे पीछे पड़े हुए थे, और मैं आज नहीं कल, कल नहीं परसों कर रहा था। एक रात, दो बजे, उन्होने मुझसे पूछा कि आज भी नहीं हुआ? मैंने कहा, लाओ क़ाग़ज़ कलम दो, और मैंने ८/९ मिनट में ग़ज़ल लिख दिया और लोगों को पसंद भी आया। फ़िल्म में वो पोएट का करेक्टर था जिस पर यह ग़ज़ल लिखना था, इसलिए मुझे काफ़ी लिबर्टी मिल गई। और रमण कुमार को भी ज़बान का सेन्स था, इससे मेरा काम आसान हो गया। जिनको ज़बान की अकल होती है, उनके साथ काम करना आसान हो जाता है।" दोस्तों, फ़िल्म 'साथ साथ' सन् १९८२ की फ़िल्म थी जो ४ मार्च को प्रदर्शित हुई थी। निर्देशक का नाम तो आप जावेद साहब से सुन ही चुके हैं; फ़िल्म का निर्माण किया था दिलीप धवन ने। डेविड धवन ने एडिटिंग् का पक्ष संभाला था। फ़िल्म की कहानी रमण साहब ने ही लिखी थी और मुख्य कलाकारों में शामिल थे राकेश बेदी, सुधा चोपड़ा, फ़ारुख़ शेख़, नीना गुप्ता, ए.के. हंगल, अवतार गिल, दीप्ती नवल, जावेद ख़ान, सतीश शाह, यूनुस परवेज़, गीता सिद्धार्थ, अंजन श्रीवास्तव प्रमुख। तो आइए सुना जाए यह कालजयी ग़ज़ल जिसके चार शेर इस तरह से हैं...
तुमको देखा तो ये ख़याल आया,
ज़िंदगी धूप तुम घना साया।
आज फिर दिल ने एक तमन्ना की,
आज फिर दिल को हमने समझाया।
तुम चले जाओगे तो सोचेंगे,
हमने क्या खोया हमने क्या पाया।
हम जिसे गुनगुना नहीं सकते,
वक़्त ने ऐसा गीत क्यों गाया।
क्या आप जानते हैं...
कि जगजीत सिंह को ग़ज़लों में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए भारत सरकार ने सन् २००३ में राष्ट्र के द्वितीय सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मविभूषण से सम्मानित किया था।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. एक हादसे के बाद इन्होने गाना छोड़ दिया था, हम किस गायिका की बात कर रहे हैं जिन्होंने इस गज़ल को गाया है - २ अंक.
२. इस गमजदा गज़ल के शायर कौन हैं - ३ अंक.
३. महेश भट्ट निर्देशित इस फिल्म में किन दो अभिनेत्रियों की अहम भूमिकाएं थी - १ अंक.
४. संगीतकार कौन है इस गज़ल के - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
पवन जी एक बार फिर ३ अंक ले गए, प्रतिभा जी, इंदु जी और किश जी को भी बधाई.
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
******
PAWAN KUMAR
नही मालुम. किन्तु दोनों पति पत्नी की गाई एक गजल 'मिल कर जुदा हुए तो ना सोया करेंगे हम.
एक दुसरे की याद में रोया करेंगे हम'
मेरी पसंदीदा गज़लों में से एक है.
अवध लाल
अवध लाल
अवध लाल