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रोज अकेली आये, चाँद कटोरा लिए भिखारिन रात.....गुलज़ार साहब की अद्भुत कल्पना और सलिल दा के सुर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 469/2010/169

'मुसाफ़िर हूँ यारों', गुलज़ार साहब के लिखे गीतों के इस लघु शृंखला की आज नवी कड़ी है। अब तक इसमें आपने गुलज़ार साहब के साथ जिन संगीतकारों के गीत सुनें, वो हैं राहुल देव बर्मन, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, शंकर-जयकिशन, वसंत देसाई, इलैयाराजा और कल्याणजी-आनंदजी। आज बारी है संगीतकार सलिल चौधरी की। गुलज़ार साहब और सलिल दा के कम्बिनेशन का कौन सा गीत हमने चुना है, उस पर हम अभी आते हैं, उससे पहले गुलज़ार साहब की शान में कुछ कहने को जी चाहता है। गुलज़ार साहब ने अपने अनोखे अंदाज़ में पुराने शब्दों को भी जैसे नए पहचान दिए हों। उनके ख़ूबसूरत रूपक और उपमाएँ सचमुच हमें हैरत में डाल देते हैं और यह सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि ऐसा भी कोई सोच सकता है! उनके गीतों में कभी तारे ज़मीं पर चलते हैं तो कभी सर से आसमान उड़ जाता है। धूप, मिट्टी, रात, बारिश, ज़मीन, आसमान और बूंदों को नए नए रूप में हमारे सामने लाते रहे हैं गुलज़ार साहब। अब रात और चांद जैसे शब्दों को ही ले लीजिए। न जाने कितने असंख्य गीत बनें हैं "चाँद" और "रात" पर। लेकिन जब गुलज़ार साहब ने इन पर गीत लिखना चाहा तो उन्होंने रात को भिखारन के रूप में देखा जो चाँद रूपी कटोरा लेकर भीख माँगने निकली है। किसी और गीतकार ने ऐसा क्यों नहीं सोचा इससे पहले? लेकिन आप अब तक ज़रूर समझ गए होंगे कि सलिल दा और गुलज़ार साहब का कौन सा गीत आज हम सुनवाने जा रहे हैं। जी हाँ, फ़िल्म 'मेरे अपने' का "रोज अकेली आए, रोज बेचारी जाए, चाँद कटोरा लिए भिखारन रात"। लता जी की आवाज़ है इस ख़ूबसूरत गीत में। एन. सी. सिप्पी, राज एन. सिप्पी और रोमू एन. सिप्पी निर्मित १९७१ की इस फ़िल्म के निर्देशक थे गुलज़ार और उन्होंने ही इंद्र मित्र की मूल कहानी को फ़िल्मी जामा पहनाया। फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे मीना कुमारी, विनोद खन्ना, शत्रुघ्न सिंहा, सुमिता सान्याल, रमेश देओ, देवेन वर्मा, अभि भट्टाचार्य प्रमुख। फ़िल्म के संगीत विभाग की बात करे तो लता मंगेशकर, किशोर कुमार और मुकेश के गाए गानें थे, सेबास्टियन डी'सूज़ा और कानू घोष सलिल दा के सहायक थे, और बतौर सॊंग रेकॊर्डिस्ट इस फ़िल्म के गीतों को रेकॊर्ड किया डी.ओ. भन्साली, मंगेश देसाई, कौशिक, मीनू कात्रक और ब्रह्मानंद शर्मा ने।

'मेरे अपने' की कहानी जहाँ एक तरफ़ गाँव और शहरों के बीच की दूरी को दर्शाती है, वहीं दूसरी तरफ़ इंसानी रिश्तों की भी कहानी है। आनंदी (मीना कुमारी) एक विधवा औरत है जो अकेली अपने गाँव में रहती है। एक दिन अचानक कोई अरुण गुप्ता (रमेश देओ) उसके पास आ खड़ा होता है और अपने आप को उसका रिश्तेदार कहता है, और उसे वो अपने साथ चल कर शहर में उसके परिवार का हिस्सा बनने को कहता है। आनंदी मान जाती है। लेकिन शहर में आते ही आनंदी को अहसास हो जाता है गाँव और शहर के बीच के फ़र्क का। यहाँ शहर में ना किसी के दिल में ममता है, चारों तरफ़ मार-धाड़, चोरी डकैती हो रही है, बच्चों का शोषण हो रहा है। ऐसे ही एक शोषित बच्चे को वो घर ले आती है, लेकिन घरवाले उसे अपनाने से इंकार कर देते हैं। आनंदी को भी इस बात का अहसास हो जाता है कि अरुण ने दरअसल उसे हमदर्दी या प्यार से अपने परिवार में शामिल नहीं किया था, बल्कि उसे अपने घर के काम काज और बच्चे की देखभाल के लिए बुला लाया था ताकि मुफ़्त में एक आया मिल जाए। आनंदी घर छो़ड़ कर चली जाती है उस बेसहारा बच्चे के साथ और एक टूटे फूटे घर में रहने लगती है इस उम्मीद के साथ कि कभी कोई आए और आकर कहे कि वही है उसका अपना। फ़िल्म में आगे आनंदी दो मोहल्ले के बेरोज़गार युवकों की रंजीशों का शिकार हो जाती है। 'मेरे अपने' तपन सिंहा की बांगला फ़िल्म 'आपोन जोन' पर आधारित था। और दोस्तों, अब गीत सुनने से पहले पढ़िए कि गुलज़ार साहब ने 'जयमाला' में इस गीत को बजाने से पहले किस तरह की भूमिका पेश की थी - "लता जी की आवाज़ से जी तो नहीं भरता, आप का भी नहीं भरा होगा! मेरी बेसुरी आवाज़ आपको नाराज़ कर रही होगी! मैं आप को ख़फ़ा नहीं करूँगा और ना ही लता जी की आवाज़ की लड़ी को टूटने दूँगा। उसी रात का ज़िक्र सुनिए जो बीतानी पड़ी थी। भिखारन रात को चाँद कटोरा लिए गाते हुए कभी सुना है? कभी रात को आँखें खुल गई हो और दूर से किसी की आलप सुनाई दे रही हो?"



क्या आप जानते हैं...
कि फ़िल्म 'मेरे अपने' गुलज़ार द्वारा निर्देशित पहली फ़िल्म थी।

पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)

१. किशोर के गाये इस गीत के संगीतकार कौन हैं - २ अंक.
२. गुलज़ार निर्देशित इस फिल्म का नाम बताये - १ अंक.
३. मुखड़े की पहली पंक्ति में शब्द है -"सोच", संगीतकार बताएं - २ अंक.
४ फिल्म की प्रमुख अभिनेत्री कौन है - ३ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
अवध जी, शरद जी और इंदु जी सही जवाबों के साथ हाज़िर मिले. कनाडा वाली टीम नदारद रही.....कहाँ ????

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

फ़िल्म की प्रमुख अभिनेत्री : हेमा मालिनी
सुजॊय जी
आपने आज २ प्रश्नों में संगीतकार पूछा है क्या कुछ और पूछना चाह रहे थे ?
सुजॊय जी
आपने आज २ प्रश्नों में संगीतकार पूछा है क्या कुछ और पूछना चाह रहे थे ?
Kishore Sampat said…
गुलज़ार निर्देशित इस फिल्म का नाम बताये - KINARA (1971)


Kishore S.
Canada
मुखड़े की पहली पंक्ति में शब्द है -"सोच", संगीतकार बताएं - Rahul Dev Burman (R.D.B.-Pancham)

Jaane Kya Sochkar Nahin Guzra
Ik Pal Raat Bhar Nahin Guzra

Apni Tanhai Kaa Auron Se Na Shikva Karna - 2
Tum Akele Hi Nahin Ho Sabhi Akele Hain
Ye Akela Safar Nahin Guzra
Jaane Kya Sochkar Nahin Guzra
Ek Pal Raat Bhar Nahin Guzra


Pratibha K-S.
Canada
indu puri said…
जाने क्या सोच कर नही गुजरा
एक पल रात भर नही गुज़रा
बाबा! ये तो नही?
हा हा हा
गुलज़ारजी +किशोरजी+हेमाजी सब तो हैं ,अब क्या बच्ची की जान लोगे?
भाग जाऊंगी.
ऐसिच हूं मैं सच्ची.
indu puri said…
दो बार संगीतकार? एक का 'सं'मैंने उड़ा दिया
हा हा हा
ऐसा भी करती हूं मैं अक्सर,क्योंकि
ऐसिच हूं मैं तो.

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