हमें तो लूट लिया मिलके हुस्न वालों ने...फ़िल्म 'अल-हिलाल' की मशहूर सदाबहार क़व्वाली जो आज कव्वाल्लों की पहली पसंद है
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 473/2010/173
रमज़ान के मुबारक़ मौक़े पर आपके इफ़्तार की शामों को और भी ख़ुशनुमा बनाने के लिए इन दिनों हर शाम हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल को रोशन कर रहे हैं फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर की कुछ शानदार क़व्वालियों के ज़रिए। और इन्ही क़व्वालियों के ज़रिए ४० के दशक से ८० के दशक के बीच क़व्वालियों का मिज़ाज किस तरह से बदलता रहा, इसका भी आप ख़ुद ही अंदाज़ा लगा पाएँगे और महसूस भी करेंगे एक के बाद एक इन क़व्वालियों को सुनते हुए। पिछली दो कड़ियों में आपने ४० के दशक की दो क़व्वालियाँ सुनी, आइए आज एक लम्बी छलांग मार कर पहुँच जाते हैं साल १९५८ में। इस साल एक ऐसी क़व्वाली आई थी जिसने इतनी ज़्यादा लोकप्रियता हासिल की कि आने वाले सालों में बहुत से क़व्वालों ने इस क़व्वाली को गाया और आज भी गाते हैं। इस तरह से इस क़व्वाली के बहुत से संस्करण बन गए हैं लेकिन जो मूल क़व्वाली है वह १९५८ के उस फ़िल्म में थी जिसका नाम है 'अल-हिलाल'। जी हाँ, "हमें तो लूट लिया मिलके हुस्नवालों ने, काले काले बालों ने, गोरे गोरे गालों ने"। इस्माइल आज़ाद और साथियों की गाई इस क़व्वाली को लिखा था शेवन रिज़्वी ने। फ़िल्म में संगीत था बुलो सी. रानी का। १९५४ में 'बिलवामंगल' फ़िल्म में लोकप्रिय संगीत देने के बाद 'अल-हिलाल' की यह क़व्वाली उनकी मशहूर हुई थी। वैसे यह बताना मुश्किल है कि इस क़व्वाली में उनका योगदान कितना था और इस्माइल आज़ाद के क़व्वाली वाले अंदाज़ का कितना! लेकिन इस कामयाबी के बावजूद बुलो सी. रानी का करीयर ग्राफ़ ढलान पर ही चलता गया और धीरे धीरे वो फ़िल्म जगत से दूर होते चले गए। 'अल-हिलाल' के निर्देशक थे राम कुमार, और फ़िल्म के नायक नायिका थे महिपाल और शक़ीला।
और आइए अब कुछ बातें की जाए क़व्वाली के विशेषताओं की। कल हमने आपको क़व्वाली के उत्स की जानकारी दी थी, आज बात करते हैं कि किन किन भाषाओं में क़व्वाली गाई जाती है। वैसे तो सामान्यत: क़व्वाली में उर्दू और पंजाबी भाषा का ज़्यादा इस्तेमाल होता है, लेकिन बहुत सी क़व्वालियाँ परशियन, ब्रजभाषा और सिरैकी में भी गाई जाती है। कुछ स्थानीय भाषाओं में भी क़व्वालियाँ बनती है, मसलन, बंगला में छोटे बाबू क़व्वाल की गाई हुई क़व्वालियाँ मशहूर हैं, हालाँकि ये संख्या में बहुत कम है। इन बंगला क़व्वालियों की गायन शैली भी इस तरह की है कि उर्दू क़व्वालियों से बिल्कुल अलग सुनाई देती है। इनमें बाउल गायन शैली का ज़्यादा प्रभाव महसूस किया जा सकता है। आज ये बंगला क़व्वालियाँ बंगलादेश में ही गाई और सुनी जाती है। किसी भी क़व्वाली का उद्देश्य है आध्यात्म की खोज। क़व्वाली का जो मूल अर्थ है, वह यही है कि इसे गाते गाते ऐसे ध्यानमग्न हो जाएँ कि ईश्वर के साथ, अल्लाह के साथ एक जुड़ाव सा महसूस होने लगे। क़व्वाली केन्द्रित होती है प्रेम, श्रद्धा और आध्यात्म के खोज पर। वैसे हल्के फुल्के और सामाजिक क़व्वालियाँ भी ख़ूब मशहूर हुआ करती हैं। हिंदी फ़िल्मों में मज़हबी और सामाजिक, दोनों तरह की क़व्वालियों का ही चलन शुरु से रहा है। हम इस शृंखला में ज़्यादातर सामाजिक क़व्वालियाँ ही पेश कर रहे हैं, जिनमें है प्यार, मोहब्बत, हुस्न-ओ-इश्क़ की बातें हैं, मीठी नोक झोक और तकरार की बातें हैं, जीवन दर्शन की बातें भी होंगी आगे चलकर किसी क़व्वाली में। लेकिन प्यार मोहब्बत और इश्क़ भी तो ईश्वर से जुड़ने का ही साधन होता है। इसलिए ये हुस्न-ओ-इश्क़ की क़व्वालियों में भी स्पिरिचुअलिटी समा ही जाती है। तो आनंद लेते रहिए इस शुंखला का और अब सुनिए फ़िल्म 'अल-हिलाल' की मशहूर सदाबहार क़व्वाली।
क्या आप जानते हैं...
कि मशहूर बैनर रणजीत मूवीटोन के जानेमाने संगीतकारों में शुमार होता है बुलो सी. रानी का। रणजीत मूवीटोन में स्वतंत्र संगीतकार बनने से पहले वो ज्ञान दत्त और खेमचंद प्रकाश जैसे संगीतकारों के सहायक हुआ करते थे।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. ये है एक क्लास्सिक एतिहासिक फिल्म की मशहूर कव्वाली, फिल्म का नाम बताएं - १ अंक.
२. किस संगीतकार गीतकार जोड़ी ने रचा है ये गीत - २ अंक.
३. लता का साथ किस गायिका ने दिया है इस कव्वाली में - ३ अंक.
४ मुखड़े में शब्द है -"नजदीक". फिल्म के निर्देशक बताएं - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अवध जी, नवीनजी, प्रतिभा जी, और किशोर जी को बधाई, दादी और शरद जी ने आकर महफ़िल की शान दुगनी की है
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
रमज़ान के मुबारक़ मौक़े पर आपके इफ़्तार की शामों को और भी ख़ुशनुमा बनाने के लिए इन दिनों हर शाम हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल को रोशन कर रहे हैं फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर की कुछ शानदार क़व्वालियों के ज़रिए। और इन्ही क़व्वालियों के ज़रिए ४० के दशक से ८० के दशक के बीच क़व्वालियों का मिज़ाज किस तरह से बदलता रहा, इसका भी आप ख़ुद ही अंदाज़ा लगा पाएँगे और महसूस भी करेंगे एक के बाद एक इन क़व्वालियों को सुनते हुए। पिछली दो कड़ियों में आपने ४० के दशक की दो क़व्वालियाँ सुनी, आइए आज एक लम्बी छलांग मार कर पहुँच जाते हैं साल १९५८ में। इस साल एक ऐसी क़व्वाली आई थी जिसने इतनी ज़्यादा लोकप्रियता हासिल की कि आने वाले सालों में बहुत से क़व्वालों ने इस क़व्वाली को गाया और आज भी गाते हैं। इस तरह से इस क़व्वाली के बहुत से संस्करण बन गए हैं लेकिन जो मूल क़व्वाली है वह १९५८ के उस फ़िल्म में थी जिसका नाम है 'अल-हिलाल'। जी हाँ, "हमें तो लूट लिया मिलके हुस्नवालों ने, काले काले बालों ने, गोरे गोरे गालों ने"। इस्माइल आज़ाद और साथियों की गाई इस क़व्वाली को लिखा था शेवन रिज़्वी ने। फ़िल्म में संगीत था बुलो सी. रानी का। १९५४ में 'बिलवामंगल' फ़िल्म में लोकप्रिय संगीत देने के बाद 'अल-हिलाल' की यह क़व्वाली उनकी मशहूर हुई थी। वैसे यह बताना मुश्किल है कि इस क़व्वाली में उनका योगदान कितना था और इस्माइल आज़ाद के क़व्वाली वाले अंदाज़ का कितना! लेकिन इस कामयाबी के बावजूद बुलो सी. रानी का करीयर ग्राफ़ ढलान पर ही चलता गया और धीरे धीरे वो फ़िल्म जगत से दूर होते चले गए। 'अल-हिलाल' के निर्देशक थे राम कुमार, और फ़िल्म के नायक नायिका थे महिपाल और शक़ीला।
और आइए अब कुछ बातें की जाए क़व्वाली के विशेषताओं की। कल हमने आपको क़व्वाली के उत्स की जानकारी दी थी, आज बात करते हैं कि किन किन भाषाओं में क़व्वाली गाई जाती है। वैसे तो सामान्यत: क़व्वाली में उर्दू और पंजाबी भाषा का ज़्यादा इस्तेमाल होता है, लेकिन बहुत सी क़व्वालियाँ परशियन, ब्रजभाषा और सिरैकी में भी गाई जाती है। कुछ स्थानीय भाषाओं में भी क़व्वालियाँ बनती है, मसलन, बंगला में छोटे बाबू क़व्वाल की गाई हुई क़व्वालियाँ मशहूर हैं, हालाँकि ये संख्या में बहुत कम है। इन बंगला क़व्वालियों की गायन शैली भी इस तरह की है कि उर्दू क़व्वालियों से बिल्कुल अलग सुनाई देती है। इनमें बाउल गायन शैली का ज़्यादा प्रभाव महसूस किया जा सकता है। आज ये बंगला क़व्वालियाँ बंगलादेश में ही गाई और सुनी जाती है। किसी भी क़व्वाली का उद्देश्य है आध्यात्म की खोज। क़व्वाली का जो मूल अर्थ है, वह यही है कि इसे गाते गाते ऐसे ध्यानमग्न हो जाएँ कि ईश्वर के साथ, अल्लाह के साथ एक जुड़ाव सा महसूस होने लगे। क़व्वाली केन्द्रित होती है प्रेम, श्रद्धा और आध्यात्म के खोज पर। वैसे हल्के फुल्के और सामाजिक क़व्वालियाँ भी ख़ूब मशहूर हुआ करती हैं। हिंदी फ़िल्मों में मज़हबी और सामाजिक, दोनों तरह की क़व्वालियों का ही चलन शुरु से रहा है। हम इस शृंखला में ज़्यादातर सामाजिक क़व्वालियाँ ही पेश कर रहे हैं, जिनमें है प्यार, मोहब्बत, हुस्न-ओ-इश्क़ की बातें हैं, मीठी नोक झोक और तकरार की बातें हैं, जीवन दर्शन की बातें भी होंगी आगे चलकर किसी क़व्वाली में। लेकिन प्यार मोहब्बत और इश्क़ भी तो ईश्वर से जुड़ने का ही साधन होता है। इसलिए ये हुस्न-ओ-इश्क़ की क़व्वालियों में भी स्पिरिचुअलिटी समा ही जाती है। तो आनंद लेते रहिए इस शुंखला का और अब सुनिए फ़िल्म 'अल-हिलाल' की मशहूर सदाबहार क़व्वाली।
क्या आप जानते हैं...
कि मशहूर बैनर रणजीत मूवीटोन के जानेमाने संगीतकारों में शुमार होता है बुलो सी. रानी का। रणजीत मूवीटोन में स्वतंत्र संगीतकार बनने से पहले वो ज्ञान दत्त और खेमचंद प्रकाश जैसे संगीतकारों के सहायक हुआ करते थे।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. ये है एक क्लास्सिक एतिहासिक फिल्म की मशहूर कव्वाली, फिल्म का नाम बताएं - १ अंक.
२. किस संगीतकार गीतकार जोड़ी ने रचा है ये गीत - २ अंक.
३. लता का साथ किस गायिका ने दिया है इस कव्वाली में - ३ अंक.
४ मुखड़े में शब्द है -"नजदीक". फिल्म के निर्देशक बताएं - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अवध जी, नवीनजी, प्रतिभा जी, और किशोर जी को बधाई, दादी और शरद जी ने आकर महफ़िल की शान दुगनी की है
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
Pratibha Kaushal-Sampat
Ottawa, Canada
सीखने से मस्तिष्क कभी नहीं थकता है.
-लियोनार्डो दा विंची
संगीतकार - Naushad Ali
गीतकार - Shakeel Badayuni
Kishore
CANADA
Naveen Prasad
Uttranchal
(now working/residing in Canada)
'तेरी महफिल मे किस्मत आजमा के हम भी देखेंगे,घड़ी भर को तेरे नजदीक आ के हम भी देखेंगे'
ओहो तो ये के.आसीफ साहब का नाम है!
Karimuddin Asif
एक अविस्मरणीय फिल्म
अवध लाल