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तेरा हिज्र मेरा नसीब है... जब कब्बन मिर्ज़ा से गवाया खय्याम साहब और कमाल अमरोही ने

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 458/2010/158

'रज़िया सुल्तान' कमाल अमरोही की एक महत्वाकांक्षी फ़िल्म थी, लेकिन बदक़िस्मती से फ़िल्म असफल रही। हाँ फ़िल्म के गानें बेहद सराहे गए और आज इस फ़िल्म को केवल इसके गीतों और ग़ज़लों की वजह से ही याद किया जाता है। 'सेहरा में रात फूलों की' शृंखला में आज सुनिए हेमा मालिनी व धर्मेन्द्र अभिनीत सन् १९८३ की इसी फ़िल्म से एक ग़ज़ल कब्बन मिर्ज़ा की आवाज़ में। ख़य्याम साहब का संगीत और निदा फ़ाज़ली का क़लाम। दोस्तों, आज मैं ख़ुद कुछ नहीं बोलूँगा, आज बातें होंगी वो जो इस ग़ज़ल के बारे में आपको बताएँगे ख़ुद ख़य्याम और निदा साहब। पहले ख़य्याम साहब को मौका देते हैं। "कमाल अमरोही साहब, उनकी फ़रमाइश थी कि हमारा जो हीरो है, बहुत बड़ा वारियर, सिपह सालार है, वो कभी कभी, जब उसको वक़्त मिलता है, अकेला होता है, तब वो अपनी मस्ती में गाता है। और ये ऐसा है कि वो सिंगर नहीं है। तो बड़ी कठिन बात हो गई कि सिंगर ना मिले कोई। अब ये हुआ कि पूरे हिंदुस्तान से ५० से उपर लोग आए और सब आवाज़ों में ये हुआ कि लगा कि वो सब सिंगर हैं। ऐसे ही कब्बन मिर्ज़ा भी आए। हम सब ने सुना उन्हे। मैं, जगजीत जी, कमाल साहब। फिर उनसे पूछा कि आपने कहाँ सीखा? उन्होने कहा कि मैंने कभी नहीं सीखा। कौन से गानें गा सकते हैं? तो वो सब लोक गीत सुना रहे थे। तो हम लोग मुश्किल में पड़ गए कि भई ये तो बड़ा कठिन काम है! तो हम लोगों ने उन्हे रिजेक्ट कर दिया था। अगले दिन कमाल साहब का टेलीफ़ोन आया कि आप फ़्री हैं तो अभी आप तशरीफ़ लाएँ। नाश्ता उनके साथ हुआ। नाश्ता हुआ तो कहने लगे कि रात भर मुझे नींद नहीं आई। कमाल साहब, क्या हुआ? ये जो आवाज़ है जो हमने कल सुनी कब्बन मिर्ज़ा की, यही वो आवाज़ है। मैंने कहा 'कमाल साहब, लेकिन उनको गाना तो आता नहीं'। तो कहने लगे 'ख़य्याम साहब, आप मेरे केवल मौसीकार ही नहीं हैं, आप तो मेरे दोस्त भी हैं। प्लीज़ आपको मेरे लिए यह करना है, मुझे इन्ही की आवाज़ चाहिए'। तो फिर इनको कुछ ३-४ महीने स्वर और ताल का ज्ञान दिलवाया, और उसके बाद गाने की रेकॊर्डिंग् शुरु हुई। अक्सर हम लोग ये करते हैं कि रेकॊर्डिंग् के वक़्त म्युज़िक डिरेक्टर रेकॊर्डिंग् करवाता है अपने रेकॊर्डिस्ट से। तो ऐसिस्टैण्ट जो होते हैं वो ऒरकेस्ट्रा सम्भालते हैं। तो उस दिन वो नए थे, गा नहीं पा रहे थे, तो मैंने जगजीत जी को यहाँ भेजा, रेकॊर्डिंग में, और ऐस्टैण्ट को बोला अंदर जाओ, और कण्डक्टिंग् मैंने की। युं गाना हुआ ये और इसे आप सुनाइए" (सौजन्य: संगीत सरिता, विविध भारती)। दोस्तों, लेकिन जैसा कि हमने आप से वादा किया था, पहले निदा साहब से भी तो उनके ख़यालात जान लें इस ग़ज़ल से जुड़ी हुई!

"बात दरअसल है कि जब घर से बेघर हो गया तो हर शहर एक सा हो गया। और मैं भटकता रहा। और उस वक़्त मसला, न सियासत था, न तासूत था, ना मुल्की तफ़सीम थी, सिर्फ़ मसला था रोटी की, कपड़ों की, और सर पे छत का। आम हिंदुस्तानी की ज़िंदगी में हर चीज़ बड़ी लेट आती है। मेरे साथ भी यही हुआ। जब मैं यहाँ बम्बई आया, तो ले दे के एक ही काम आता था कि क़लम से लिखना और अख़्बारों में छपवाना। मालूम पड़ा कि उस पीरियड में जगह जगह मैसेज मिलती था कि 'Mr Kamal Amrohi wants to meet Nida Fazli'। तो मैं सोच नहीं पाता था कि कमाल अमरोही, इतने मशहूर डिरेक्टर मुझसे क्यों मिलना चाहते हैं। बहरहाल मैं ज़रूरतमंद था और वो ज़रूरतें पूरी करने वाले डिरेक्टर थे। मैं पहुँच गया और जब पहुँचा तो मालूम पड़ा कि वो खाना खाने के बाद आधा घंटा आराम फ़रमाते हैं। बहरहाल उनके ऐसिस्टैण्ट ने मुझे इंतेज़ार करने को कहा। मैं गया तो ज़ाहिर है कि मैंने कहा कि 'अमरोही साहब, मैं हाज़िर हूँ, मेरा नाम निदा फ़ाज़ली है, आप ने मुझे याद किया'। बोले 'जी, तशरीफ़ रखिए, आप से कुछ नग़मात तहरीर करवाना है'। तो ऐसे नस्तारीख़ ज़बान, जो मैं पढ़ता था किताबो में, बम्बई में आके भूल गया था, तो उनके जुमले से। मैंने कहा मैं हाज़िर हूँ। उन्होने कहा कि एक बात का ख़याल रखिये, कि मुझे मुक़म्मल शायर की ज़रूरत है, लेकिन इस शर्त के साथ कि अदबी शायरी और होती है और फ़िल्मी शायरी और। अदबी शायरी के आपको मेरे मिज़ाज की शिनाख़्त बहुत ज़रूरी है। जाँ निसार अख़्तर मेरे मिज़ाज को पहचान गए थे, अल्लाह को प्यारे हो गए। मैंने कहा मैं यह शर्त पूरी करने वाला नहीं हूँ, लेकिन कोशिश करूँगा कि आपके मिज़ाज के मुताबिक़ गीत लिख सकूँ। मैंने वो ग़ज़ल लिखी थी "तेरा हिज्र ही मेरा नसीब है, तेरा ग़म ही मेरी हयात है"।

तेरा हिज्र ही मेरा नसीब है, तेरा ग़म ही मेरी हयात है,
मुझे तेरी दूरी का ग़म हो क्यों, तू कहीं भी हो मेरे साथ है।

मेरे वास्ते तेरे नाम पर, कोई हर्फ़ आए नहीं नहीं,
मगर मेरे रू-ब-रू तेरी ज़ात है, मेरे रू-ब-रू तेरी ज़ात है।

तेरा वस्ल ऐ मेरी दिलरुबा, नहीं मेरी क़िस्मत तो क्या हुआ,
मेरी महजबीं यही कम है क्या, तेरी हसरतों का तो साथ है।


तेरा इश्क़ मुझ पे है महरबाँ, मेरे दिल को हासिल है दो जहाँ,
मेरी जान-ए-जाँ इसी बात पर, मेरी जान जाए तो बात है।



क्या आप जानते हैं...
कि कब्बन मिर्ज़ा किसी ज़माने में विविध भारती के उद्घोषक हुआ करते थे और उनकी गम्भीर और अनूठी आवाज़ दूसरे उद्घोषकों के मुक़ाबले बिलकुल अलग सुनाई पड़ती थी।

पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)

१. ये संगीतकार भी कल पहली बार तशरीफ लायेगें ओल्ड इस गोल्ड की महफ़िल पर, नाम बताएं - ३ अंक.
२. शायर कौन हैं इस गज़ल के - २ अंक.
३. मुकुल आनंद निर्देशित और डिम्पल कपाडिया अभिनीत इस फिल्म का नाम बताएं - १ अंक.
४. आशा भोसले का साथ किस गायक ने दिया है इस युगल गज़ल में - २ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी क्या बात है फिर से चूक गए, पर प्रतिभा जी, किशोर जी और नवीन प्रसाद जो शायद पहली बार पधारे हैं पहेली में, सही जवाब दिया है, इंदु जी खता माफ, अंक मिल जायेंगें

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

singhSDM said…
संगीतकार bappi lahiri

*****
PAWAN KUMAR
गायक हैं : भूपेन्द्र
कल मेरा जवाब गलत हो गया था किन्तु नेट पर निम्न लिखित लिंक पर कब्बन मिर्ज़ा की गाई ग़ज़ल के शायर का नाम जाँ निसार अख्तर ही दिया हुआ था http://www.earthmusic.net/cgi-bin/cgiwrap/nuts/search.cgi?song=tera+hijr+mera+naseeb
sumit said…
bahit he pyari gazal hai ye..
abhi office mein sun nahi sakta ghar ja kar jaroor sununga...
sumit said…
maine ye gazal radio par kai baar suni hai mujhe lagta tha ye kisi album ki gazal hogi....
Pratibha K. said…
Shayar: Hasan Kamaal

Pratibha K.
Canada
Kishore S. said…
Film: Aitbaar (1985)

Kish(ore)
Canada
इस ग़ज़ल को आशा भोसले के साथ गाया है भूपेन्द्र ने...." किसी नज़र को तेरा इंतज़ार आज भी है ..." !!!
शायर हसन कमाल का नाम देते देते ( टाईप करते करते) प्रतिभा जी ने जवाब चस्पां कर दिया , सो गायक ही बताना रह गया था....सो दे दिया ! ;))
manu said…
lambaa lekh...
बडे दिनों बाद आया हूं भारत वापिस, और आपके सुरीले दर पर. मज़ा आ गया.
indu puri said…
हम तो हरियाली अमावस्या का त्यौहार मनाने आज बाहर चले गए थे सब के सब.सो चूकना तो था ही.रात ग्यारह बजे घर आये हैं और आज यहाँ इतने लोगों को एक साथ देख कर बहुत अच्छा लग रहा है.
बेशक यह गजल मुझे भी बहुत पसंद है.
दिलीप जी स्वागत! बाहें पसारे तुझको पुकारे देस तेरा....और वो यानि आप आ गए. बता के जाया करिये.ये भी आपका एक परिवार है भाई!
और.........इंतज़ार भी करते हैं हम.गोड ब्लेस यु.
शेइला said…
दिल को छू लेने वाला गीत
ऐसे ही सभी गीत हो

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