Skip to main content

रविवार सुबह की कॉफी और रफ़ी साहब के अंतिम सफर की दास्ताँ....दिल का सूना साज़

३१ जुलाई को सभी रफ़ी के चाहने वाले काले दिवस के रूप मानते आये हैं और मनाते रहेंगे क्यूंकि इस दिन ३१ जुलाई १९८० को रफ़ी साब हम सब को छोड़ कर चले गए थे लेकिन इस पूरे दिन का वाकया बहुत कम लोग जानते हैं आज उस दिन क्या क्या हुआ था आपको उसी दिन कि सुबह के साथ ले चलता हूँ.

३१ जुलाई १९८० को रफ़ी साब जल्दी उठ गए और तक़रीबन सुबह ९:०० बजे उन्होंने नाश्ता लिया. उस दिन श्यामल मित्रा के संगीत निर्देशन तले वे कुछ बंगाली गीत रिकॉर्ड करने वाले थे इसलिए नाश्ते के बाद उसी के रियाज़ में लग गए. कुछ देर के बाद श्यामल मित्रा उनके घर आये और उन्हें रियाज़ करवाया. जैसे ही मित्रा गए रफ़ी साब को अपने सीने में दर्द महसूस हुआ. ज़हीर बारी जो उनके सचिव थे उनको दवाई दी वहीँ दूसरी तरफ ये बताता चलूँ के इससे पहले भी रफ़ी साब को दो दिल के दौरे पड़ चुके थे लेकिन रफ़ी साब ने उनको कभी गंभीरता से नहीं लिया. मगर हाँ नियमित रूप से वो एक टीका शुगर के लिए ज़रूर लेते थे और अपने अधिक वज़न से खासे परेशान थे. सुबह ११:०० बजे डॉक्टर की सलाह से उनको अस्पताल ले जाया गया जहाँ एक तरफ रफ़ी साब ने अपनी मर्ज़ी से माहेम नेशनल अस्पताल जाना मंज़ूर किया वहीँ से बदकिस्मती ने उनका दामन थाम लिया क्योंकि उस अस्पताल में कदम से चलने की बजाय सीडी थीं जो एक दिल के मरीज़ के लिए घातक सिद्ध होती हैं और रफ़ी साब को सीढियों से ही जाना पड़ा. शाम ४:०० बजे के आसपास उनको बॉम्बे अस्पताल में दाखिल किया गया लेकिन संगीत की दुनिया की बदकिस्मती यहाँ भी साथ रही और यहाँ भी रफ़ी साब को सीढियों का सहारा ही मिला. अस्पताल में इस मशीन का इंतज़ाम रात ९:०० बजे तक हो पाया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. रात ९:०० बजे के आसपास डॉक्टर के. ऍम. मोदी और डॉक्टर दागा ने उनका मुआयना किया और डॉक्टर के. ऍम. मोदी ने बताया के अब रफ़ी साब के बचने की उम्मीद बहुत कम है.

गीत : तू कहीं आस पास है दोस्त


और आखिर वो घडी आ ही गयी जो न आती तो अच्छा होता काश के वक़्त थम जाता उस वक़्त को निकालकर आगे निकल जाता :

देखकर ये कामयाबी एक दिन मुस्कुरा उठी अज़ल
सारे राग फीके पड़ गए हो गया फनकार शल
चश्मे फलक से गिर पड़ा फिर एक सितारा टूटकर
सब कलेजा थामकर रोने लगे फूट फूटकर
लो बुझ गयी समां महफ़िल में अँधेरा हो गया
जिंदगी का तार टूटा और और तराना सो गया

गीत : कोई चल दिया अकेले


मजरूह सुल्तानपुरी ने तकरीबन शाम ८:०० बजे नौशाद अली को टेलीफ़ोन करके बताया कि रफ़ी साब कि तबियत बहुत ख़राब है. नौशाद अली ने इस बात ज्यादा गौर नहीं दिया क्योंकि सुबह ही तो उन्होंने रफ़ी साब से टेलीफ़ोन पर बात की थी. लेकिन रात ११:०० बजे एक पत्रकार ने नौशाद अली को टेलीफ़ोन करके बताया के रफ़ी साब चले गए. नौशाद अली को फिर भी यकीन नहीं आया और उन्होंने रफ़ी साब के घर पर टेलीफ़ोन किया जिसपर इस खबर की पुष्टि उनकी बेटी ने की. नौशाद अली जब अपनी पत्नी के साथ रफ़ी साब के घर गए तो उनका बड़ा बेटा शहीद रफ़ी बेतहाशा रो रहा है.

नौशाद अली ने दिलीप कुमार के घर टेलीफ़ोन किया जो उनकी पत्नी सायरा बानो ने उठाया लेकिन दिलीप कुमार की तबियत का ख़याल करते हुए उन्होंने इस बारे में अगली सुबह बताया.

गीत : जाने कहाँ गए तुम


तकरीबन १०:१० बजे उनके इस दुनिया से कूच करने के वक़्त उनकी बीवी, बेटी और दामाद बिस्तर के पास थे.

अस्पताल के नियमानुसार उनके शरीर को उस रात उनको परिवार वालों को नहीं सौंपा गया तथा पूरी रात उनका शरीर अस्पताल के बर्फ गोदाम में रहा.

अगले दिन १ अगस्त १९८० सुबह ९:३० बजे रफ़ी साब का शरीर उनको परिवार को मिल सका उस वक़्त साहेब बिजनोर, जोहनी विस्की और ज़हीर बारी भी मौजूद थे. दोपहर १२:३० बजे तक किसी ट्रक का इंतज़ाम न होने की वजह से कन्धों पर ही उनको बांद्रा जामा मस्जिद तक लाया गया वहां पर जनाज़े की नमाज़ के बाद उनको ट्रक द्वारा शंताक्रूज़ के कब्रिस्तान तक लाया गया. शाम ६:१५ बजे कब्रिस्तान पहुंचकर ६:३० बजे तक वहीँ दफना दिया गया.

गीत : दिल का सूना साज़


प्रस्तुति- मुवीन



"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.

Comments

singhSDM said…
रफ़ी साहब के आखिरी दिन की इन स्मृतियों ने आँखों में आंसू ला दिए...मार्मिक पोस्ट संगीत प्रेमियों की तरफ से रफ़ी साहब को नमन
रफ़ी साहब के अन्तिम पलों के ज़िक्र ने रविवार सुबह की कॊफ़ी में कड्वाहट भर दी किन्त उनकी आवाज़ ने फ़िर उसमें मिठास घोल दी । ऐसे महान गायक को मेरी हार्दिक श्रद्धान्जली !
"दिल का सूना साज़" तो लगता है मानो रफ़ी साहब के लिए हीं लिखा गया था।

रफ़ी साहब के अंतिम क्षणों को जानकर आँखें गीली हो गईं। मुबीन जी आपका प्रयास काबिल-ए-तारीफ़ है।

मेरे हिसाब से रफ़ी साहब कहीं गए नहीं है. यहीं है हमारे बीच और हमेशा रहेंगे।
-विश्व दीपक
सबसे पहले तो मुवीन का स्वागत....उन अंतिम क्षणों का जिया तरह जिक्र किया लगा जैसे सब कुछ आँखों के आगे घट रहा हो, इस सकून से भरी आवाज़ को लाख लाख सजदे
muveen said…
Singhsdm, Sharad Telang,Vishwa Deepak, Sajeev Sarathee aur Sujoy Chatterjee sabhi ka bahut bahut dhanyawad,

Muveen
अचानक अंतरजाल की यायावरी करते हुए रफ़ी साब की स्मृती "रफ़ी साहब के अंतिम सफ़र की दास्तान..." देखा ...मर्म को छू गया !! मुवीन जी को बधाई !
चलते चलते ....रफ़ी साब के प्रति एक और श्रद्धांजली का लिंक दे रहा हूँ ! एक चटका तो बनता है हम रफ़ी साब के फेंस के लिए ... अवश्य देखें !!
धन्यवाद !!

http://www.youtube.com/watch?v=onaz4SI1FWA

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट