ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 466/2010/166
'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी दोस्तों का एक बार फिर से स्वागत है पुराने सदाबहार गीतों की इस महफ़िल में। जैसा कि आप जानते हैं इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर जारी है गीतकार, शायर, लेखक व फ़िल्मकार गुलज़ार साहब के लिखे फ़िल्मी गीतों पर केन्द्रित शृंखला 'मुसाफ़िर हूँ यारों', तो आज जिस गीत की बारी है, वह भी कुछ मुसाफ़िर और रास्तों से ताल्लुख़ रखता है। और ये रास्ते हैं ज़िंदगी के रास्ते। इस गीत में भी ज़िंदगी का एक कड़वा सत्य उजागर होता है, जिसे बहुत ही मर्मस्पर्शी शब्दों से संवारा है गुलज़ार साहब ने। "जीवन से लम्बे हैं बंधु ये जीवन के रस्ते, एक पल रुक कर रोना होगा, एक पल चल के हँस के, ये जीवन के रस्ते"। दादामुनि अशोक कुमार पर फ़िल्माये और मन्ना डे के गाए फ़िल्म 'आशिर्वाद' के इस गीत को सुन कर भले ही दिल उदास हो जाता है, आँखें नम हो जाती हैं, लेकिन जीवन के इस कटु सत्य को नज़रंदाज़ भी तो नहीं किया जा सकता। सुखों और दुखों का मेला है ज़िंदगी, और निरंतर चलते रहने का नाम है ज़िंदगी, बस यही दो सीख हैं इस गीत में। वसंत देसाई के संगीत ने इस गीत के बोलों में ऐसा जान डाला है कि गीत का शुरुआती संगीत ही एक अजीब सी हलचल पैदा कर देती है सुनने वाले के मन में। गीत के फ़िल्मांकन में दादामुनि को बैल गाड़ी में बैठ कर अपने गाँव जाते हुए दिखाया जाता है, इसलिए गीत की धुन में भी बैलों के गले के घण्टियों की आवाज़ें शामिल की गई हैं और पूरे गाने का रिदम इन्ही घण्टियों की ध्वनियों पर आधारित है। कुल मिलाकर एक मास्टरपीस गीत हम इसे कह सकते हैं।
'आशिर्वाद' ॠषीकेश मुखर्जी की फ़िल्म थी जिसके संवाद और गीत लिखे थे गुलज़ार साहब ने। कहानी व स्क्रीनप्ले ॠषी दा का ही था। अशोक कुमार, संजीव कुमार और सुमिता सान्याल अभिनीत यह फ़िल्म हिंदी सिनेमा के इतिहास की एक बेहद यादगार फ़िल्म रही है। ख़ास कर दादामुनि के अभिनय ने इस फ़िल्म को अविस्मरणीय बना दिया है, जिसके लिए उन्हे उस साल सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। इस फ़िल्म के गानें भी ख़ासा लोकप्रिय हुए थे। ख़ुद दादामुनि की आवाज़ में "रेल गाड़ी" और "नानी की नाव चली" जैसे गीत उनके जीनियस होना का एक और प्रमाण देते हैं। लता जी की आवाज़ में "झिर झिर बरसे सावनी अखियाँ" और "एक था बचपन" भी सदाबहार गीतों में शामिल हैं। और मन्ना दा का गाया प्रस्तुत गीत तो शायद इन सब से उपर है। उनकी गम्भीर आवाज़ ने इस गीत की वज़न को और भी बढ़ा दिया है। हाल ही में विविध भारती पर सुनिधि चौहान ने एक टेलीफ़ोनिक इंटरव्यु में मन्ना दा के बारे में कहा था कि "मन्ना दा की गायकी गायकी से एक लेवल उपर है। वो जब कोई गीत गाते हैं, तो वो सिर्फ़ गीत बन कर नहीं रह जाता, बल्कि उससे थोड़ा और उपर होता है। उनका गाना सिर्फ़ गाना ना सुनाई दे, कुछ और हो। जब फ़ीलिंग्स कुछ और हो और आप महसूस करने लगे उस आवाज़ को, उस बात को, उस बात को जो वो कहना चाह रहे हैं, तो उसका मज़ा कुछ और ही होता है। वो मन्ना दा पूरी तरीके से उसको करते थे, मेरे उपर पूरा असर होता था, होता है आज भी।" और दोस्तों, क्योंकि यह शृंखला केन्द्रित है गुलज़ार साहब पर, आइए आज आपको बताया जाए कि किन किन फ़िल्मों के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। ये फ़िल्में हैं - १९७२ - कोशिश (सर्वश्रेष्ठ पटकथा), १९७५ - मौसम (द्वितीय सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म), १९८८ - "मेरा कुछ सामान" - इजाज़त (सर्वश्रेष्ठ गीत), १९९१ - "यारा सिलि सिलि" - लेकिन (सर्वश्रेष्ठ गीत), १९९६ - माचिस (सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म)। और आइए अब मन्ना डे की आवाज़ में आज का गीत सुना जाए...
क्या आप जानते हैं...
कि गुलज़ार साहब का पहला फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड था १९७१ में फ़िल्म 'आनंद' के संवाद के लिए।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. ये एक लोरी है जिसे एक पुरुष गायक ने गाया है, कौन हैं ये गायक - ३ अंक.
२. संगीतकार बताएं - २ अंक.
३. एक अंतरा शुरू होता है इस शब्द से -"सच्चा". फिल्म बताएं - १ अंक.
४ फिल्म के मुख्या कलाकार कौन कौन हैं - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी और अवध जी की टीम लौट आई है कनाडा वाले प्रतिभा जी और किशोर जी से लोहा लेने, पवन जी गायब है कुछ दिनों से
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी दोस्तों का एक बार फिर से स्वागत है पुराने सदाबहार गीतों की इस महफ़िल में। जैसा कि आप जानते हैं इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर जारी है गीतकार, शायर, लेखक व फ़िल्मकार गुलज़ार साहब के लिखे फ़िल्मी गीतों पर केन्द्रित शृंखला 'मुसाफ़िर हूँ यारों', तो आज जिस गीत की बारी है, वह भी कुछ मुसाफ़िर और रास्तों से ताल्लुख़ रखता है। और ये रास्ते हैं ज़िंदगी के रास्ते। इस गीत में भी ज़िंदगी का एक कड़वा सत्य उजागर होता है, जिसे बहुत ही मर्मस्पर्शी शब्दों से संवारा है गुलज़ार साहब ने। "जीवन से लम्बे हैं बंधु ये जीवन के रस्ते, एक पल रुक कर रोना होगा, एक पल चल के हँस के, ये जीवन के रस्ते"। दादामुनि अशोक कुमार पर फ़िल्माये और मन्ना डे के गाए फ़िल्म 'आशिर्वाद' के इस गीत को सुन कर भले ही दिल उदास हो जाता है, आँखें नम हो जाती हैं, लेकिन जीवन के इस कटु सत्य को नज़रंदाज़ भी तो नहीं किया जा सकता। सुखों और दुखों का मेला है ज़िंदगी, और निरंतर चलते रहने का नाम है ज़िंदगी, बस यही दो सीख हैं इस गीत में। वसंत देसाई के संगीत ने इस गीत के बोलों में ऐसा जान डाला है कि गीत का शुरुआती संगीत ही एक अजीब सी हलचल पैदा कर देती है सुनने वाले के मन में। गीत के फ़िल्मांकन में दादामुनि को बैल गाड़ी में बैठ कर अपने गाँव जाते हुए दिखाया जाता है, इसलिए गीत की धुन में भी बैलों के गले के घण्टियों की आवाज़ें शामिल की गई हैं और पूरे गाने का रिदम इन्ही घण्टियों की ध्वनियों पर आधारित है। कुल मिलाकर एक मास्टरपीस गीत हम इसे कह सकते हैं।
'आशिर्वाद' ॠषीकेश मुखर्जी की फ़िल्म थी जिसके संवाद और गीत लिखे थे गुलज़ार साहब ने। कहानी व स्क्रीनप्ले ॠषी दा का ही था। अशोक कुमार, संजीव कुमार और सुमिता सान्याल अभिनीत यह फ़िल्म हिंदी सिनेमा के इतिहास की एक बेहद यादगार फ़िल्म रही है। ख़ास कर दादामुनि के अभिनय ने इस फ़िल्म को अविस्मरणीय बना दिया है, जिसके लिए उन्हे उस साल सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। इस फ़िल्म के गानें भी ख़ासा लोकप्रिय हुए थे। ख़ुद दादामुनि की आवाज़ में "रेल गाड़ी" और "नानी की नाव चली" जैसे गीत उनके जीनियस होना का एक और प्रमाण देते हैं। लता जी की आवाज़ में "झिर झिर बरसे सावनी अखियाँ" और "एक था बचपन" भी सदाबहार गीतों में शामिल हैं। और मन्ना दा का गाया प्रस्तुत गीत तो शायद इन सब से उपर है। उनकी गम्भीर आवाज़ ने इस गीत की वज़न को और भी बढ़ा दिया है। हाल ही में विविध भारती पर सुनिधि चौहान ने एक टेलीफ़ोनिक इंटरव्यु में मन्ना दा के बारे में कहा था कि "मन्ना दा की गायकी गायकी से एक लेवल उपर है। वो जब कोई गीत गाते हैं, तो वो सिर्फ़ गीत बन कर नहीं रह जाता, बल्कि उससे थोड़ा और उपर होता है। उनका गाना सिर्फ़ गाना ना सुनाई दे, कुछ और हो। जब फ़ीलिंग्स कुछ और हो और आप महसूस करने लगे उस आवाज़ को, उस बात को, उस बात को जो वो कहना चाह रहे हैं, तो उसका मज़ा कुछ और ही होता है। वो मन्ना दा पूरी तरीके से उसको करते थे, मेरे उपर पूरा असर होता था, होता है आज भी।" और दोस्तों, क्योंकि यह शृंखला केन्द्रित है गुलज़ार साहब पर, आइए आज आपको बताया जाए कि किन किन फ़िल्मों के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। ये फ़िल्में हैं - १९७२ - कोशिश (सर्वश्रेष्ठ पटकथा), १९७५ - मौसम (द्वितीय सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म), १९८८ - "मेरा कुछ सामान" - इजाज़त (सर्वश्रेष्ठ गीत), १९९१ - "यारा सिलि सिलि" - लेकिन (सर्वश्रेष्ठ गीत), १९९६ - माचिस (सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म)। और आइए अब मन्ना डे की आवाज़ में आज का गीत सुना जाए...
क्या आप जानते हैं...
कि गुलज़ार साहब का पहला फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड था १९७१ में फ़िल्म 'आनंद' के संवाद के लिए।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. ये एक लोरी है जिसे एक पुरुष गायक ने गाया है, कौन हैं ये गायक - ३ अंक.
२. संगीतकार बताएं - २ अंक.
३. एक अंतरा शुरू होता है इस शब्द से -"सच्चा". फिल्म बताएं - १ अंक.
४ फिल्म के मुख्या कलाकार कौन कौन हैं - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी और अवध जी की टीम लौट आई है कनाडा वाले प्रतिभा जी और किशोर जी से लोहा लेने, पवन जी गायब है कुछ दिनों से
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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अवध लाल
अवध लाल
Pratibha K-S
Canada
Kishore
Canada