जब भी ये दिल उदास होता है....जब ओल्ड इस गोल्ड के माध्यम से गायिका शारदा ने शुभकामनाएँ दी गुलज़ार साहब को
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 464/2010/164
आज १८ अगस्त है। गुलज़ार साहब को हम अपनी तरफ़ से, 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की तरफ़ से, आवाज़' परिवार की तरफ़ से, और 'हिंद युग्म' के सभी चाहनेवालों की तरफ़ से जनमदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ देते हैं, और ईश्वर से यही प्रार्थना करते हैं कि उन्हें दीर्घायु करें, उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करें, और वो इसी तरह से शब्दों के, गीतों के, ग़ज़लों के ताने बाने बुनते रहें और फ़िल्म जगत के ख़ज़ाने को समृद्ध करते रहें। आज उनके जनमदिन पर 'मुसाफ़िर हूँ यारों' शृंखला में हम जिस गीत को चुन लाए हैं वह है फ़िल्म 'सीमा' का। मोहम्मद रफ़ी और शारदा की आवाज़ों में यह गीत है "जब भी ये दिल उदास होता है, जाने कौन आसपास होता है"। वैसे रफ़ी साहब की ही आवाज़ है पूरे गीत में, शारदा की आवाज़ आलापों में सुनाई पड़ती है। यह सन् १९७१ में निर्मित 'सीमा' है जिसका निर्माण सोहनलाल कनवर ने किया था और जिसे सुरेन्द्र मोहन ने निर्देशित किया था। राकेश रोशन, कबीर बेदी, सिमी गरेवाल, पद्मा खन्ना, चाँद उस्मानी, और अभि भट्टाचार्य अभिनीत इस फ़िल्म का संगीत निर्देशन शंकर जयकिशन ने किया था। फ़िल्म तो फ़्लॊप रही, लेकिन इस फ़िल्म का यह गीत आज भी सदाबहार गीतों में शामिल किया जाता है। विविध भारती के 'बायस्कोप की बातें' कार्यक्रम में लोकेन्द्र शर्मा ने एक बार इस फ़िल्म की बातें बताते हुए कहा था कि जयकिशन चाहते थे कि यह गीत लता जी गाएँ, लेकिन शंकर जिन्होंने इस गीत की धुन बनाई थी, वो उन दिनों शारदा को प्रोमोट कर रहे थे, इसलिए उन्होंने शारदा का ही नाम फ़ाइनल कर लिया। इससे शंकर और जयकिशन के बीच थोड़ा सा मनमुटाव हो गया था, और कहा जाता है कि लता जी भी थोड़ी नाराज़ हो गई थीं शंकर पर। दोस्तों, इन सब बातों की मैं पुष्टि तो नहीं कर सकता, लेकिन क्योंकि ये सब विविध भारती पर आया था, इसलिए मान लेते हैं कि ये सच ही होंगे।
दोस्तों, शारदा जी इन्टरनेट पर सक्रीय हैं, और इसी बात का फ़ायदा उठाते हुए हमने उनसे ईमेल द्वारा सम्पर्क किया और उनसे इस गीत से जुड़ी हुई उनकी यादें जाननी चाही। ईमेल के जवाब में उन्होंने जो कुछ लिखा था, उसका हिंदी अनुवाद ये रहा - "शुक्रिया सुजॊय जी! जब भी ये दिल उदास होता है गीत को याद करना ही एक बेहद सुखद अनुभव होता है। यह गीत जब बना था उस समय को याद करते हुए बहुत रोमांच हो आता है। मेरे लिए तो एक सपना जैसा था कि रफ़ी साहब मेरे बगल में खड़े होकर मेरे साथ गा रहे हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि गुलज़ार साहब ने असंख्य गीत लिखे हैं एक से बढ़कर एक, लेकिन यह गीत भीड़ में अलग नज़र आता है। इस गीत का कॊनसेप्ट और बोल, दोनों ही यूनिक हैं। गुलज़ार साहब को उनके जनमदिन पर मेरी ओर से बहुत बहुत शुभकामनाएँ और आशा करती हूँ कि वो इसी तरह से आगे भी हमें बहुत सारे सुंदर गानें देते रहेंगे"। आशा है शारदा जी की ये बातें गुलज़ार साहब तक 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के माध्यम से पहुँच गई होंगी। दोस्तों, यह पहला मौका था कि जब 'ओल्ड इज़ गोल्ड' ने किसी कलाकार से सीधे सम्पर्क स्थापित कर उनके विचारों को आलेख का हिस्सा बनाया, जिसे हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का एक और नया क़दम ही कहेंगे। हम कोशिश करेंगे कि आगे भी कई और कलाकारों के उद्गार हम इसी तरह आप तक पहुँचा पाएँगे। आइए अब हम सब मिलकर सुनते हैं फ़िल्म 'सीमा' का यह गीत, और गुलज़ार साहब को एक बार फिर से सालगिरह की ढेरों शुभकामनाएँ!
क्या आप जानते हैं...
कि गुलज़ार साहब ने टीवी धारावाहिक 'मिर्ज़ा ग़ालिब' और 'किरदार' का निर्देशन किया, तथा 'दि जंगल बूक', ''एक कहानी और मिली', 'पोटली बाबा की', 'गुच्छे', 'दाबे अनार के' और 'ऐलिस इन वंडरलैण्ड' जैसे धारावाहिकों के शीर्षक गीत भी लिखे।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. फिल्म में नायक एक ट्रक चालक की भूमिका में हैं, किसने निभाया है इस किरदार को - २ अंक.
२. इस फिल्म का निर्देशन भी गुलज़ार साहब ने किया था, किनकी कहानी पर अधर्तित थी ये फिल्म - ३ अंक.
३. इसी कहानीकार की एक और कहानी पर गुलज़ार फिल्म बना चुके थे, कौन सी थी वो फिल्म - २ अंक.
४. किस गायक की मधुर आवाज़ है इस गीत में - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी सेहत का ध्यान रखिये आपको हम सब ने मिस किया, कनेडा वाले किशोर जी, प्रतिभा जी और नवीन जी तैयार मिले जवाबों के साथ. मनु जी और इंदु जी का आना भी सुखद लगा...
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
आज १८ अगस्त है। गुलज़ार साहब को हम अपनी तरफ़ से, 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की तरफ़ से, आवाज़' परिवार की तरफ़ से, और 'हिंद युग्म' के सभी चाहनेवालों की तरफ़ से जनमदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ देते हैं, और ईश्वर से यही प्रार्थना करते हैं कि उन्हें दीर्घायु करें, उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करें, और वो इसी तरह से शब्दों के, गीतों के, ग़ज़लों के ताने बाने बुनते रहें और फ़िल्म जगत के ख़ज़ाने को समृद्ध करते रहें। आज उनके जनमदिन पर 'मुसाफ़िर हूँ यारों' शृंखला में हम जिस गीत को चुन लाए हैं वह है फ़िल्म 'सीमा' का। मोहम्मद रफ़ी और शारदा की आवाज़ों में यह गीत है "जब भी ये दिल उदास होता है, जाने कौन आसपास होता है"। वैसे रफ़ी साहब की ही आवाज़ है पूरे गीत में, शारदा की आवाज़ आलापों में सुनाई पड़ती है। यह सन् १९७१ में निर्मित 'सीमा' है जिसका निर्माण सोहनलाल कनवर ने किया था और जिसे सुरेन्द्र मोहन ने निर्देशित किया था। राकेश रोशन, कबीर बेदी, सिमी गरेवाल, पद्मा खन्ना, चाँद उस्मानी, और अभि भट्टाचार्य अभिनीत इस फ़िल्म का संगीत निर्देशन शंकर जयकिशन ने किया था। फ़िल्म तो फ़्लॊप रही, लेकिन इस फ़िल्म का यह गीत आज भी सदाबहार गीतों में शामिल किया जाता है। विविध भारती के 'बायस्कोप की बातें' कार्यक्रम में लोकेन्द्र शर्मा ने एक बार इस फ़िल्म की बातें बताते हुए कहा था कि जयकिशन चाहते थे कि यह गीत लता जी गाएँ, लेकिन शंकर जिन्होंने इस गीत की धुन बनाई थी, वो उन दिनों शारदा को प्रोमोट कर रहे थे, इसलिए उन्होंने शारदा का ही नाम फ़ाइनल कर लिया। इससे शंकर और जयकिशन के बीच थोड़ा सा मनमुटाव हो गया था, और कहा जाता है कि लता जी भी थोड़ी नाराज़ हो गई थीं शंकर पर। दोस्तों, इन सब बातों की मैं पुष्टि तो नहीं कर सकता, लेकिन क्योंकि ये सब विविध भारती पर आया था, इसलिए मान लेते हैं कि ये सच ही होंगे।
दोस्तों, शारदा जी इन्टरनेट पर सक्रीय हैं, और इसी बात का फ़ायदा उठाते हुए हमने उनसे ईमेल द्वारा सम्पर्क किया और उनसे इस गीत से जुड़ी हुई उनकी यादें जाननी चाही। ईमेल के जवाब में उन्होंने जो कुछ लिखा था, उसका हिंदी अनुवाद ये रहा - "शुक्रिया सुजॊय जी! जब भी ये दिल उदास होता है गीत को याद करना ही एक बेहद सुखद अनुभव होता है। यह गीत जब बना था उस समय को याद करते हुए बहुत रोमांच हो आता है। मेरे लिए तो एक सपना जैसा था कि रफ़ी साहब मेरे बगल में खड़े होकर मेरे साथ गा रहे हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि गुलज़ार साहब ने असंख्य गीत लिखे हैं एक से बढ़कर एक, लेकिन यह गीत भीड़ में अलग नज़र आता है। इस गीत का कॊनसेप्ट और बोल, दोनों ही यूनिक हैं। गुलज़ार साहब को उनके जनमदिन पर मेरी ओर से बहुत बहुत शुभकामनाएँ और आशा करती हूँ कि वो इसी तरह से आगे भी हमें बहुत सारे सुंदर गानें देते रहेंगे"। आशा है शारदा जी की ये बातें गुलज़ार साहब तक 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के माध्यम से पहुँच गई होंगी। दोस्तों, यह पहला मौका था कि जब 'ओल्ड इज़ गोल्ड' ने किसी कलाकार से सीधे सम्पर्क स्थापित कर उनके विचारों को आलेख का हिस्सा बनाया, जिसे हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का एक और नया क़दम ही कहेंगे। हम कोशिश करेंगे कि आगे भी कई और कलाकारों के उद्गार हम इसी तरह आप तक पहुँचा पाएँगे। आइए अब हम सब मिलकर सुनते हैं फ़िल्म 'सीमा' का यह गीत, और गुलज़ार साहब को एक बार फिर से सालगिरह की ढेरों शुभकामनाएँ!
क्या आप जानते हैं...
कि गुलज़ार साहब ने टीवी धारावाहिक 'मिर्ज़ा ग़ालिब' और 'किरदार' का निर्देशन किया, तथा 'दि जंगल बूक', ''एक कहानी और मिली', 'पोटली बाबा की', 'गुच्छे', 'दाबे अनार के' और 'ऐलिस इन वंडरलैण्ड' जैसे धारावाहिकों के शीर्षक गीत भी लिखे।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. फिल्म में नायक एक ट्रक चालक की भूमिका में हैं, किसने निभाया है इस किरदार को - २ अंक.
२. इस फिल्म का निर्देशन भी गुलज़ार साहब ने किया था, किनकी कहानी पर अधर्तित थी ये फिल्म - ३ अंक.
३. इसी कहानीकार की एक और कहानी पर गुलज़ार फिल्म बना चुके थे, कौन सी थी वो फिल्म - २ अंक.
४. किस गायक की मधुर आवाज़ है इस गीत में - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी सेहत का ध्यान रखिये आपको हम सब ने मिस किया, कनेडा वाले किशोर जी, प्रतिभा जी और नवीन जी तैयार मिले जवाबों के साथ. मनु जी और इंदु जी का आना भी सुखद लगा...
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
Pratibha K-S.
Canada
Kishore S.
Canada
Naveen Prasad
Foreign Worker in Canada
Uttranchal, India