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आप आये तो ख़्याल-ए-दिले नाशाद आया....साहिर के टूटे दिल का दर्द-ए-बयां बन कर रह गया ये गीत.

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 75

निर्माता-निर्देशक बी. आर. चोपड़ा अपनी फ़िल्मों के लिए हमेशा ऐसे विषयों को चुनते थे जो उस समय के समाज की दृष्टि से काफ़ी 'बोल्ड' हुआ करते थे। और यही वजह है कि उनकी फ़िल्में आज के समाज में उस समय की तुलना में ज़्यादा सार्थक हैं। हमारी पुरानी फ़िल्मों में नायिका का चरित्र बिल्कुल निष्पाप दिखाया जाता था। तुलसी के पत्ते की तरह पावन और गंगाजल से धुला होता था नायिका का चरित्र। शादी से बाहर किसी ग़ैर पुरुष से संबंध रखने वाली नायिका की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। लेकिन ऐसा ही कुछ कर दिखाया चोपड़ा साहब ने सन १९६३ की फ़िल्म 'गुमराह' में। एक शादी-शुदा औरत (माला सिन्हा) किस तरह से अपने पति (अशोक कुमार) से छुपाकर अपने पहले प्रेमी (सुनिल दत्त) से संबंध रखती है, लेकिन बाद में उसे पता चलता है कि जिस आदमी से वो छुप छुप कर मिल रही है उसकी असल में शादी हो चुकी है (शशीकला से)। इस कहानी को बड़े ही नाटकीय और भावुक अंदाज़ में पेश किया गया है इस फ़िल्म में। अशोक कुमार, सुनिल दत्त, माला सिन्हा और शशीकला के जानदार अभिनय, बी. आर. चोपड़ा के सशक्त निर्देशन, और साहिर-रवि के गीत संगीत ने इस फ़िल्म को कालजयी बना दिया है।

गीतकार साहिर लुधियानवी, संगीतकार रवि, गायक महेन्द्र कपूर और गायिका आशा भोंसले बी. आर. फ़िल्म्स के नियमित सदस्य हुआ करते थे। इस बैनर की कई फ़िल्मों में इस टीम का योगदान रहा है, और 'गुमराह' इन्ही में से एक उल्लेखनीय फ़िल्म है। सुनिल दत्त का किरदार इस फ़िल्म में एक गायक का था और इस वजह से उन पर कई गाने फ़िल्माये भी गये जिन्हें अपनी आवाज़ से नवाज़ा महेन्द्र कपूर ने। इस फ़िल्म के महेन्द्र कपूर के गाये कुछ 'हिट' गानें गिनायें आपको? "चलो एक बार फिर से अजनबी बन जायें हम दोनो", "ये हवा ये हवा..... आ भी जा आ भी जा", "इन हवाओं में इन फिजाओं में तुझको मेरा प्यार पुकारे" जैसे मशहूर गानो ने इस फ़िल्म की शोभा बढ़ाई। इसी फ़िल्म में एक और गीत भी था "आप आये तो ख्याल-ए-दिल-ए-नाशाद आया", महेन्द्र कपूर की आवाज़ में यह गीत सिर्फ़ संगीत की दृष्टि से ही नहीं बल्कि साहिर साहब की बेहतरीन उर्दू शायरी की वजह से भी एक अनमोल नग्मा बन कर रह गया है। "आपके लब पे कभी अपना भी नाम आया था, शोख़ नज़रों से कभी मोहब्बत का सलाम आया था, उम्र भर साथ निभाने का पयाम आया था", अपनी ज़िन्दगी की अनुभवों, निराशाओं, और व्यर्थतायों को साहिर अपने कलम से काग़ज़ पर उतारते चले गये। बचपन में ही उनकी माँ उनके पिता की अय्याशियों से तंग आकर उनसे अलग हो गयीं और साहिर को लेकर घर छोड़ दिया था। और तभी से फूटने लगा साहिर के कोमल मन में विद्रोह का अंकुर। ज़िन्दगी की परेशानियों ने उन्हे तोड़कर रख दिया था। कालेज के पहले असफल प्रेम ने उन्हे एक बार फिर से झकझोर कर रख दिया। बाद में गीतकार बनने के बाद जब भी कभी किसी टूटे हुए दिल की पुकार लिखने की बात आयी तो साहिर ने जैसे अपने दिल की भड़ास, अपना वही पुराना दर्द उड़ेल कर रख दिया। और फ़िल्म 'गुमराह' का यह नग्मा भी कुछ इसी अंदाज़ का है। "रूह में जल उठे बुझती हुई यादों के दिए, कैसे दीवाने थे हम आपको पाने के लिए, यूँ तो कुछ कम नहीं जो आपने अहसान किये, पर जो माँगे से न पाया वो सिला याद आया, कितने भूले हुए जख्मों का पता याद आया"।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. मुकेश का एक दर्द भरा गीत.
२. इसी फिल्म में एक मशहूर "राखी" गीत भी था जो आगे चल कर इस त्यौहार का ही पर्याय बन गया.
३. मुखड़े में शब्द है - "संगदिल".

कुछ याद आया...?

पिछली पहेली का परिणाम -
पराग जी ने फिर से बाज़ी मारी है आज. अवध जी, फिल्म गुमराह है, हमराज़ नहीं, वैसे हमराज़ के भी सभी गीत लाजवाब हैं और फिल्म भी जबरदस्त. रचना जी आपका भी जवाब सही है. मनु जी आप तो "सेंटी" हो गए...आचार्य जी महफिल की शोभा बढाने के लिए आपका भी आभार

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.


Comments

sumit said…
जाऊँ कहाँ बता ऐ दिल दुनिया बडी है संगदिल........
sumit said…
जाऊँ कहाँ बता ऐ दिल दुनिया बडी है संगदिल........
अंदाजा लगा रहा हूँ , वैसे ये पिल्म मैने देखी नही है, बस शब्द और मुकेश जी के नाम से अंदाजा लगाया
sumit said…
जाऊँ कहाँ बता ऐ दिल दुनिया बडी है संगदिल........
अंदाजा लगा रहा हूँ , वैसे ये फिल्म मैने देखी नही है, बस शब्द और मुकेश जी के नाम से अंदाजा लगाया
manu said…
१,,,२,,,३,,,
तीन कमेन्ट सुमित भाई के ,,,पर कन्फर्म नहीं,,
यही होगा जी,,,,
जाऊं कहा बता इए दिल,,,,
शायद ये गाना बड़ी बहन या छोटी बहन फिल्म का है,,,,
अब इसमें राखी गीत कौन सा है याद नहीं आ रहा,,,,शायद ,,,
राखी बंधवा ले मेरे बीर बंधवा ले रे भैया,,,,,
खैर जो भी हो,,,सुमित जी वाला जवाब ही सही लग रहा है,,,,,
तुक्का है पर ९९.९९ प्रतिशत सही होना चाहिए....
पहेली का जवाब मिल ही गया .. गाना अच्‍छा लगा .. धन्‍यवाद।
rachana said…
जाऊं कहाँ बताये दिल दुनिया बड़ी है संगदिल
चांदनी आई दिल जलने सूझे न कोई मंजिल
छोटी बहन का है
राखी वाला गाना ये था सायद भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना
तपन जी आप सदा सही होते हैं .बधाई मेरे ख्याल से इस बार भी आप सही होंगें
manu said…
हा,,हा,,
तपन जी तो कहीं दूर दूर तक नहीं नजर आ रहे हैं,,,,,

रचना जी
मुझे कह रही हैं या सुमित भाई को...????
neelam said…
महेन्द्र कपूर की आवाज़ में यह गीत सिर्फ़ संगीत की दृष्टि से ही नहीं बल्कि साहिर साहब की बेहतरीन उर्दू शायरी की वजह से भी एक अनमोल नग्मा बन कर रह गया है। "आपके लब पे कभी अपना भी नाम आया था, शोख़ नज़रों से कभी मोहब्बत का सलाम आया था, उम्र भर साथ निभाने का पयाम आया था",
aap ne to sab likh hi diya
saahir ji ki kalam ya phir ek dukhi rooh ke geet ,walllaah
BHARAT PANDYA. said…
eli ka Javab
jaaun kahaan bata ae dil Mukesh MD Shankarm & Jaikishen Chhoti Bahen
गीत तो सभी ने बता ही दिया है मैं तो इतना और बताना चाहूंगा कि यह गीत रहमान पर फ़िल्माया गया था । छोटी बहन फिल्म के इस गीत का संगीत शंकर जयकिशन का था तथा ’भैया मेरे राखी के बन्धन को निभाना ’ बहुत प्रसिद्ध हुआ था ।

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