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‘बन्ने के नैना जादू बान, मैं वारी जाऊँ...’ : वर-बधू का श्रृंगारपूर्ण चित्रण


मानव जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण संस्कार, विवाह होता है। गृहस्थ जीवन की ओर बढ़ने वाला यह पहला कदम है। मुख्य वैवाहिक समारोह से पूर्व ही अनेक ऐसे प्रसंग होते हैं, जिनके सम्पादन के समय से लोकगीतों का गायन आरम्भ हो जाता है। घर, परिवार और अडोस-पड़ोस की महिलाएँ एकत्र होकर उस अवसर विशेष के गीत गाती हैं। ऐसे गीत वर और कन्या, दोनों पक्षों में गाने की परम्परा है। बन्ना और बन्नी इसी अवसर के श्रृंगार प्रधान गीत है।


SWARGOSHTHI -52 – Sanskar Geet – 4
स्वरगोष्ठी - 52 - संस्कार गीतों में अन्तरंग सम्बन्धों की सोंधी सुगन्ध


स्वरगोष्ठी के एक नये अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र आज की इस सांगीतिक बैठक में एक बार पुनः उपस्थित हूँ। आपको स्मरण ही होगा कि इस स्तम्भ में हम शास्त्रीय, उपशास्त्रीय, सुगम और लोक-संगीत पर चर्चा करते हैं। गत नवम्बर मास से हमने लोकगीतों के अन्तर्गत आने वाले संस्कार गीतों पर चर्चा आरम्भ की थी। इसी श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए आज हम संक्षेप में यज्ञोपवीत अर्थात जनेऊ संस्कार पर और फिर विवाह संस्कार के गीतों पर चर्चा करेंगे।

मानव जीवन में विवाह संस्कार एक पवित्र समारोह के रूप में आयोजित होता है। इस अवसर के संस्कार गीतों में वर और कन्या, दोनों पक्षों के गीत मिलते हैं। विवाह से पूर्व एक और संस्कार होता है, जिसे यज्ञोपवीत अथवा जनेऊ संस्कार कहा जाता है। वास्तव में यह प्राचीन काल का प्रचलित संस्कार है, जब उच्च शिक्षा के लिए किशोर आयु में माता-पिता का घर छोड़ कर गुरुकुल जाना पड़ता था। रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने राजा दशरथ द्वारा अपने चारो पुत्रों को गुरुकुल भेजने से पहले यज्ञोपवीत संस्कार सम्पन्न किये जाने का उल्लेख इन पंक्तियों में किया है-

‘भए कुमार जबहिं सब भ्राता, दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता।
गुरगृह गए पढ़न रघुराई, अलप काल विद्या सब पाई।।’


समय के साथ अब इस संस्कार में केवल औपचारिकता निभाई जाती है। विवाह से ठीक पहले और कहीं-कहीं तो विवाह के साथ ही इस संकार को सम्पन्न कर लिया जाता है। अवधी लोक संगीत के विद्वान राधावल्लभ चतुर्वेदी ने अपने लोकगीत संग्रह- ‘ऊँची अटरिया रंग भरी’ में यज्ञोपवीत संस्कार के कई गीत संग्रहीत किये थे। इन्हीं में से एक गीत अब हम आपको सुनवाते हैं।

संस्कार गीत : यज्ञोपवीत : ‘आवो सखी सब मंगल गाओ...’ स्वर – क्षिति तिवारी और साथी


यज्ञोपवीत संस्कार के इस मधुर गीत के बाद अब हम विवाह संस्कार के गीतों का सिलसिला आरम्भ करते हैं। भारतीय जीवन में विवाह एक ऐसा महत्त्वपूर्ण अवसर होता है जिससे जुड़े लोकगीत हर प्रान्त, हर क्षेत्र और हर भाषा के आज भी प्रयोग किये जाते हैं। शहरों में ही नहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में भी इन गीतों प्रचलन कम होता जा रहा है। विवाह के अवसर पर कुछ शास्त्रीय, तो कुछ लोकाचार के प्रसंग सम्पादित होते हैं। विवाह के सभी प्रसंगों के अलग-अलग गीत होते हैं। वर और कन्या, दोनों पक्षों की ओर से इन प्रसंगों पर गीत गाने की परम्परा है। वर और कन्या पक्ष के बड़े-बुजुर्ग जब विवाह तय कर देते हैं, उसी समय से ही मंगल गीतों के स्वरों से दोनों पक्षों के आँगन गूँजने लगते हैं। इन लोकाचारों पर गोस्वामी तुलसीदास की लघु कृति ‘रामलला नहछू’ में श्रीराम के विवाह से पूर्व का उल्लास इन पंक्तियों में चित्रित किया गया है-

दूलह के महतारि देखि मन हरखई हो,
कोटिन्ह दीन्हेऊ दान मेघ जनु बरसई हो।


वर और कन्या के नख-शिख श्रृंगार की प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है। वर पक्ष के ऐसे गीतों को ‘बन्ना’ और कन्या पक्ष के गीतों को ‘बन्नी’ कहा जाता है। आइए अब हम आपको एक अवधी ‘बन्ना’ सुनवाते है।

संस्कार गीत : बन्ना : ‘बन्ने के नैना जादू बान मैं वारी जाऊँ...’: स्वर – क्षिति तिवारी और साथी


बन्ना हो या बन्नी, इन गीतों में वर और कन्या का श्रृंगारपूर्ण वर्णन होता है। विवाह का दिन निकट आते ही कन्या पक्ष के आँगन भी ढोलक की थाप से गूँजने लगता है। फिल्मों में भी विवाह गीतों का प्रयोग हुआ है, किन्तु बन्ना या बन्नी का प्रयोग कम हुआ है। १९९५ में प्रदर्शित फिल्म ‘दुश्मन’ में राजस्थान की पृष्ठभूमि में एक बन्नी का प्रयोग हुआ है। इस बन्नी गीत को सपना अवस्थी ने स्वर दिया है। फिल्म के संगीतकार आनन्द-मिलिन्द और गीतकार समीर हैं। अपने समय की फिल्मों में सैकड़ों लोकगीतों की रचना के लिए विख्यात गीतकार अनजान के सुपुत्र समीर हैं। आप यह बन्नी गीत सुनिए और मुझे आज यहीं विराम लेने की अनुमति दीजिये।

बन्नी गीत : फिल्म – दुश्मन : ‘बन्नो तेरी अँखियाँ सुरमेदानी...’ : स्वर – सपना अवस्थी और साथी


अब हम आज के अंक को यहीं विराम देते हैं और आपको इस सुरीली संगोष्ठी में सादर आमंत्रित करते हैं। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सब के बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। अपने ५०वें अंक में हमने पहेली की विजेता के रूप में इन्दौर की श्रीमती क्षिति तिवारी के नाम की घोषणा की थी, उन्होने अपने गाये हुए कुछ लोकगीतों के आडियो और वीडियो भेजे हैं। आज के अंक में हमने पहला और दूसरा संस्कार गीत उन्हीं के भेजे गीतों में से ही चुना है। हम आपके सुझाव, समालोचना, प्रतिक्रिया और फरमाइश की प्रतीक्षा करेंगे और उन्हें पूरा सम्मान देंगे। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अथवा admin@radioplaybackindia.com पर अपना सन्देश भेज कर हमारी गोष्ठी में शामिल हो सकते हैं। आज हम आपसे यहीं विदा लेते हैं, अगले अंक में हमारी-आपकी पुनः सांगीतिक बैठक आयोजित होगी।

झरोखा अगले अंक का

आगामी २३जनवरी को अपने समय के सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ, शिक्षक, लेखक और प्रारम्भिक दौर की फिल्मों के संगीतकार पण्डित शंकरराव व्यास की ११३वीं जयन्ती है। २२जनवरी के अंक में हम उनकी फिल्म के एक बहुचर्चित गीत- ‘वीणा मधुर मधुर कछु बोल...’ के बहाने भारतीय संगीत के एक श्रृंगार रस प्रधान राग पर चर्चा करेंगे। यदि आप गीत के राग का अनुमान लगाने में सफल हो रहे हों तो हमें राग का नाम बताइए। अगले अंक में हम विजेता के रूप में आपका नाम घोषित करेंगे।

कृष्णमोहन मिश्र 

Comments

Anonymous said…
लाजवाब प्रस्तुति - सजीव सारथी
Amit said…
क्या बात है क्षिति जी.बहुत बढ़िया गाया है. कृष्णमोहन जी बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति है
Smart Indian said…
एकदम अनूठी प्रस्तुति है कृष्णमोहन जी। हार्दिक आभार!

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