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फूलों के रंग से दिल की कलम से....जब भी लिखा नीरज ने, खालिस कविताओं और फ़िल्मी गीतों का जैसे फर्क मिट गया

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 525/2010/225

"फूलों के रंग से, दिल की कलम से,
तुझको लिखी रोज़ पाती,
कैसे बताऊँ किस किस तरह से,
पल पल मुझे तू सताती,
तेरे ही सपने लेकर के सोया,
तेरी ही यादों में जागा,
तेरे ख़यालों में उलझा रहा युं,
जैसे कि माला में धागा,
बादल बिजली, चंदन पानी जैसा अपना प्यार,
लेना होगा जनम हमें कई कई बार,
इतना मदिर, इतना मधुर, तेरा मेरा प्यार,
लेना होगा जनम हमें कई कई बार"।

दोस्तों, जहाँ पर कविता और फ़िल्मी गीत का मुखड़ा एकाकार हो जाए, उस अनोखे और अनूठे संगम का नाम है गोपालदास नीरज। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार और एक बार फिर स्वागत है लघु शृंखला 'दिल की कलम से' की आज की कड़ी में। जी हाँ, आज हमने चुना है प्रेम कवि गोपाल दास नीरज को, जिन्हें साहित्य और फ़िल्मी दुनिया नीरज के नाम से पहचानती है। फ़िल्म 'प्रेम पुजारी' के गीत का मुखड़ा जो उपर हमने लिखा, उसे पढ़ते हुए आपको यह ज़रूर लगा होगा कि आप कोई शृंगार रस की कविता पढ़ रहे हैं। साहित्य जगत के चमकीले सितारे कवि गोपालदास नीरज पहले साहित्य गीतकार हैं, फिर फ़िल्मी गीतकार। उनकी लिखी कविताएँ और साहित्य जितनी प्रभावशाली हैं, उतने ही लोकप्रिय हैं उनके रचे फ़िल्मी गीत। फ़िल्मों में गानें लिखते हुए किसी गीतकार को कई बार बेड़ियों में बाँध दिया जाता है, उनसे सारे अस्त्र-शस्त्र छीन लिए जाते हैं, और कहा जाता है कि गीत लिखो। पर नीरज ने किसी भी सिचुएशन के गाने को बड़े ही सुंदर शब्दों से ऐसे व्यक्त किया है कि आम जनता से लेकर शेर-ओ-शायरी व काव्य में रुचि रखने वाले श्रोताओं को उन्होंने एक ही समय संतुष्ट कर दिया है। साथ ही दुनिया को यह भी दिखा है कि चाहे कितनी भी बंदिशें हों गीतकार के सामने, प्रतिभावान गीतकार हर बार अच्छा गीत लिखकर निकल सकता है। इसके लिए ज़रूरी है कि गीतकार भाषा और विषय में पारदर्शी हो, जो कि नीरज जी थे। उन्होंने फ़िल्मी गीतों में भी ऐसा लालित्य प्रदान किया है कि यह सचमुच एक आश्चर्य की बात है।

नीरज ने युं तो कई संगीतकारों के साथ काम किया है, लेकिन सचिन देव बर्मन के साथ उनकी ट्युनिंग कुछ और ही जमी। 'शर्मिली', 'प्रेम पुजारी', 'कन्यादान', 'गैम्ब्लर', 'तेरे मेरे सपने', 'छुपा रुस्तम' जैसी फ़िल्मों में बर्मन दादा और नीरज ने साथ साथ काम किया और एक से बढ़कर एक गीत हमें उपहार स्वरूप दिए। शैलेन्द्र के गुज़र जाने के बाद शंकर जयकिशन हसरत साहब के अलावा और भी कई गीतकारों से गानें लिखवाने लगे थे, जिनमें एक नीरज भी थे। आज हम १९७० की फ़िल्म 'प्रेम पुजारी' का वही गीत सुनने जा रहे हैं किशोर कुमार की आवाज़ में। इसमें किसी तरह के कोई शक़ की गुंजाइश ही नहीं है कि इस गीत की लोकप्रियता और कालजयिता का मुख्य कारण है इसके असाधारण अद्भुत बोल, जिनके लिए श्रेय जाता है नीरज जी को। आइए आपको नीरज जी के बारे में कुछ बातें बतायी जाएँ। उनका जन्म ४ जनवरी १९२४ को उत्तर प्रदेश के ईटावा के पूरावली में हुआ था। उनकी लेखनी की विशेषता यह है कि उनके लिखे साहित्य और कविताओं के अर्थ आसानी से समझ में आ जाते हैं, लेकिन स्तरीय हिंदी का ही वो प्रयोग अपनी रचनाओं में किया करते थे। साहित्य जगत में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए उन्हें सन् २००७ में पद्म भूषण से सम्मानित किया जा चुका है। लिखने के अलावा वो पेशे के लिहाज़ से कॊलेज में अध्यापक रह चुके हैं, और हिंदी साहित्य के एक विख्यात प्रोफ़ेसर भी रहे हैं अलिगढ़ विश्वविद्यालय में। उनकी लिखी कविताओं को ही नहीं फ़िल्मी गीत का जामा पहनाया गया, बल्कि उनके लिखे नज़्मों को भी फ़िल्मी दुनिया ने सरमाथे पर बिठाया। फ़िल्म 'नई उमर की नई फ़सल' में "कारवाँ गुज़र गया ग़ुबार देखते रहे" उनके लिखे फ़िल्मी नज़्मों में सब से उपर आता है। तो आइए नीरज जी की प्रतिभा को समर्पित आज के इस अंक का गीत सुना जाए। शृंगार रस की एक अद्भुत रचना है यह किशोर दा की आवाज़ में।



क्या आप जानते हैं...
कि सचिन दा के संगीत में नीरज जी का लिखा पहला गीत था फ़िल्म 'प्रेम पुजारी' का - "रंगीला रे"। इस गीत में "शराब" के लिए "जल" का उपमान प्रस्तुत कर नीरज ने सचिन दा को चमत्कृत कर दिया था।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली ०६ /शृंखला ०३
ये है गीत का पहला इंटर ल्यूड -


अतिरिक्त सूत्र - मुखड़े में शब्द है -"सुराही"

सवाल १ - साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित होने वाली वो पहली महिला हैं इस कवियित्री का नाम बताएं - २ अंक
सवाल २ - १९७६ में आई इस फिल्म के संगीतकार बताएं - १ अंक
सवाल ३ - शबाना आज़मी अभिनीत इस फिल्म का नाम बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी २ अंक, और श्याम कान्त जी और अमित जी को १-१ अंक की बधाई, जी अवध ये गीत हमने शृंखला के बीचों बीच इस्तेमाल कर लिए, यूहीं एक बदलाव स्वरुप :). भारतीय नागरिक जी, कभी अपना नाम तो बताईये

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments

फिल्म है निशान्त... और संगीतकार हैं वनराज भाटिया...
ShyamKant said…
Lyricist- Amrita pritam
chintoo said…
सवाल २- Ustad Vilayat Ali Khan
bittu said…
Film- Kadambari
AVADH said…
श्यामकान्त जी,अमित जी और बिट्टू जी का उत्तर सही प्रतीत होता है.
बधाई.
अवध लाल
आज मैं भी चूक गया गीत कादम्बरी का ही है : अम्बर की इक पाक सुराही...

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