ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 518/2010/218
'गीत गड़बड़ी वाले' - 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस अनोखी शृंखला की आठवीं कड़ी में आप सभी का एक बार फिर स्वागत है। जैसा कि कल हमने आपको बताया था, आज भी हम एक ऐसा गीत सुनेंगे जिसमें गायक ने उर्दू उच्चारण में गड़बड़ी की है। कल आशा जी की बारी थी, आज कठघड़े में हैं उनकी बड़ी बहन लता जी। एक फ़िल्म आयी थी साल १९५१ में - 'सगाई'। इसमें एक बड़ा ही चंचल गीत था "झुकती है दुनिया झुकाने वाला चाहिए"। उस ज़माने में सी. रामचन्द्र के इस अंदाज़ के गानें ख़ूब चले थे। हास्य रस पर आधारित इस गीत को गाया था लता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी, चितलकर और साथियों ने। गीत के एक अंतरे की पंक्तियाँ हैं "श्रीमती हो या बेगम, एक जान और सौ सौ ग़म, औरत को कमज़ोर ना समझो मर्दों से किस बात पे कम"। इस पंक्ति में लता जी ने "बेगम" शब्द में "ग" को उर्दू गाफ की जगह ग़ैन का उपयोग कर "बेगम" को "बेग़म" गाया है। कुछ इसी तरह की ग़लती लता जी ने बरसों बरस बाद १९९५ की सुपर डुपर हिट फ़िल्म 'दिल तो पागल है' के एक गीत में भी किया है। लेकिन उसमें उन्होंने "ख़" को "ख" गाया है। "चाँद ने कुछ कहा, रात ने कुछ सुना, तू भी सुन बेख़बर प्यार कर"।
'सगाई' वर्मा फ़िल्म्स की प्रस्तुति थी जिसे निर्देशित किया था एच. एस. रवैल ने। प्रेम नाथ, रेहाना, याकूब, गोप, विजयलक्ष्मी अभिनीत इस फ़िल्म के गानें लिखे थे राजेन्द्र कृष्ण ने। आज के प्रस्तुत गीत के अलावा इस फ़िल्म में एक और हास्य गीत था लता जी की एकल आवाज़ में, जिसके बोल थे "डैडी जी मेरी मम्मी को सताना नहीं अच्छा"। इसके अलावा लता और तलत के गाये "मोहब्बत में ऐसे ज़माने भी आए, कभी रो दिए हम कभी मुस्कुराये" के क्या कहने! और लता की गाई "दिल की कहानी कहना तो चाहे हाये री क़िस्मत कह ना सके" भी ख़ूब मशहूर हुई थी उस ज़माने में। इसी साल लता - सी. रामचन्द्र - राजेन्द्र कृष्ण की टीम ने फ़िल्म 'ख़ज़ाना' में एक गाना दिया था, "ऐ चाँद प्यार मेरा मुझसे कह रहा है, युं बेवफ़ा ना होना दुनिया तो बेवफ़ा है", जो लेखन, संगीत और गायकी के लिहाज़ से बेहद उत्कृष्ट गीत है, लेकिन अफ़सोस कि आज ऐसे गीतों को भुला दिया जा चुका है। 'सगाई' में रफ़ी, चितलकर और शम्शाद बेगम का गाया हुआ भी एक दुर्लभ गीत है "एक दिन लाहौर की ठंडी सड़क... तबीयत साफ़ हो गई साफ़", यह गीत भी निस्संदेह हास्य व्यंग का गीत है। तो आइए इसी हास्य व्यंग के मूड को बरकरार रखते हुए सुनते हैं लता-रफ़ी-चितलकर की त्रिवेणी संगम से उत्पन्न फ़िल्म 'सगाई' का यह समूह गीत।
क्या आप जानते हैं...
कि सी. रामचन्द्र को १९३९ की तमिल फ़िल्म 'जयकोडी' में संगीत देने का मौका मिला था। पर फ़िल्म की नायिका से वो इश्क़ कर बैठे। और क्योंकि फ़िल्म के निर्माता भी उसी नायिका पर आशिक़ थे, इसलिए बात बिगड़ गई और सी. रामचन्द्र के हाथ से फ़िल्म निकल गई।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली ०९ /शृंखला ०२
बहुत आसान है इस प्रिल्यूड को सुनिए -
अतिरिक्त सूत्र - इस युगल गीत में पुरुष आवाज़ है किशोर दा की.
सवाल १ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल २ - गीतकार बताएं - २ अंक
सवाल ३ - संगीतकार बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी आपने पूरे प्रश्न का जवाब सही नहीं दिया, इसलिए हमें अंक शरद जी को देने पड़ेंगें. प्रतिभा जी और किशोर जी अरसे बाद लौटे कल, स्वागत और मनु जी ने आकर तो नुक्ते पर पूरी नुक्ताचीनी ही कर दी. अवध जी सुनना पड़ेगा फिर आपके वाला गीत भी
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
'गीत गड़बड़ी वाले' - 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस अनोखी शृंखला की आठवीं कड़ी में आप सभी का एक बार फिर स्वागत है। जैसा कि कल हमने आपको बताया था, आज भी हम एक ऐसा गीत सुनेंगे जिसमें गायक ने उर्दू उच्चारण में गड़बड़ी की है। कल आशा जी की बारी थी, आज कठघड़े में हैं उनकी बड़ी बहन लता जी। एक फ़िल्म आयी थी साल १९५१ में - 'सगाई'। इसमें एक बड़ा ही चंचल गीत था "झुकती है दुनिया झुकाने वाला चाहिए"। उस ज़माने में सी. रामचन्द्र के इस अंदाज़ के गानें ख़ूब चले थे। हास्य रस पर आधारित इस गीत को गाया था लता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी, चितलकर और साथियों ने। गीत के एक अंतरे की पंक्तियाँ हैं "श्रीमती हो या बेगम, एक जान और सौ सौ ग़म, औरत को कमज़ोर ना समझो मर्दों से किस बात पे कम"। इस पंक्ति में लता जी ने "बेगम" शब्द में "ग" को उर्दू गाफ की जगह ग़ैन का उपयोग कर "बेगम" को "बेग़म" गाया है। कुछ इसी तरह की ग़लती लता जी ने बरसों बरस बाद १९९५ की सुपर डुपर हिट फ़िल्म 'दिल तो पागल है' के एक गीत में भी किया है। लेकिन उसमें उन्होंने "ख़" को "ख" गाया है। "चाँद ने कुछ कहा, रात ने कुछ सुना, तू भी सुन बेख़बर प्यार कर"।
'सगाई' वर्मा फ़िल्म्स की प्रस्तुति थी जिसे निर्देशित किया था एच. एस. रवैल ने। प्रेम नाथ, रेहाना, याकूब, गोप, विजयलक्ष्मी अभिनीत इस फ़िल्म के गानें लिखे थे राजेन्द्र कृष्ण ने। आज के प्रस्तुत गीत के अलावा इस फ़िल्म में एक और हास्य गीत था लता जी की एकल आवाज़ में, जिसके बोल थे "डैडी जी मेरी मम्मी को सताना नहीं अच्छा"। इसके अलावा लता और तलत के गाये "मोहब्बत में ऐसे ज़माने भी आए, कभी रो दिए हम कभी मुस्कुराये" के क्या कहने! और लता की गाई "दिल की कहानी कहना तो चाहे हाये री क़िस्मत कह ना सके" भी ख़ूब मशहूर हुई थी उस ज़माने में। इसी साल लता - सी. रामचन्द्र - राजेन्द्र कृष्ण की टीम ने फ़िल्म 'ख़ज़ाना' में एक गाना दिया था, "ऐ चाँद प्यार मेरा मुझसे कह रहा है, युं बेवफ़ा ना होना दुनिया तो बेवफ़ा है", जो लेखन, संगीत और गायकी के लिहाज़ से बेहद उत्कृष्ट गीत है, लेकिन अफ़सोस कि आज ऐसे गीतों को भुला दिया जा चुका है। 'सगाई' में रफ़ी, चितलकर और शम्शाद बेगम का गाया हुआ भी एक दुर्लभ गीत है "एक दिन लाहौर की ठंडी सड़क... तबीयत साफ़ हो गई साफ़", यह गीत भी निस्संदेह हास्य व्यंग का गीत है। तो आइए इसी हास्य व्यंग के मूड को बरकरार रखते हुए सुनते हैं लता-रफ़ी-चितलकर की त्रिवेणी संगम से उत्पन्न फ़िल्म 'सगाई' का यह समूह गीत।
क्या आप जानते हैं...
कि सी. रामचन्द्र को १९३९ की तमिल फ़िल्म 'जयकोडी' में संगीत देने का मौका मिला था। पर फ़िल्म की नायिका से वो इश्क़ कर बैठे। और क्योंकि फ़िल्म के निर्माता भी उसी नायिका पर आशिक़ थे, इसलिए बात बिगड़ गई और सी. रामचन्द्र के हाथ से फ़िल्म निकल गई।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली ०९ /शृंखला ०२
बहुत आसान है इस प्रिल्यूड को सुनिए -
अतिरिक्त सूत्र - इस युगल गीत में पुरुष आवाज़ है किशोर दा की.
सवाल १ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल २ - गीतकार बताएं - २ अंक
सवाल ३ - संगीतकार बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी आपने पूरे प्रश्न का जवाब सही नहीं दिया, इसलिए हमें अंक शरद जी को देने पड़ेंगें. प्रतिभा जी और किशोर जी अरसे बाद लौटे कल, स्वागत और मनु जी ने आकर तो नुक्ते पर पूरी नुक्ताचीनी ही कर दी. अवध जी सुनना पड़ेगा फिर आपके वाला गीत भी
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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Pratibha Kaushal-Sampat
Ottawa, Canada