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छोड़ आकाश को सितारे ज़मीं पर आये.....जब वी शांताराम पर्दे पर बोलता सपना लेकर आये

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 531/2010/231

मस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक और नई सप्ताह में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। दोस्तों, हिंदी सिनेमा की अगर हम बात करें, तो वैसे तो अनगिनत फ़िल्मकारों ने अपना अमूल्य योगदान इस जगत को दिया है, लेकिन उनमें भी कुछ फ़िल्मकार ऐसे हुए हैं जिन्होंने भारतीय सिनेमा को समूचे विश्व पटल पर ला खड़ा कर दिया, और यहाँ की संस्कृति और सभ्यता को पूरी दुनिया में फैलाने में अभूतपूर्व योगदान दिया। ये वो फ़िल्मकार हैं जिन्होंने फ़िल्म निर्माण को केवल अपना व्यावसाय या मनोरंजन का साधन नहीं समझा, बल्कि इस समाज के कल्याण के लिए कई संदेश और उपदेशात्मक फ़िल्में बनाईं। निस्संदेह इन महान फ़िल्मकारों को हम हिंदी सिनेमा के लौह स्तंभ कह सकते हैं। दोस्तों, ऐसे ही चार स्तंभों को चुन कर आज से हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर शुरु कर रहे हैं नई शृंखला 'हिंदी सिनेमा के लौह स्तंभ'। ऐसी बात बिल्कुल नहीं है कि केवल ये ही चार लौह स्तंभ हैं, बस हमने इस शृंखला में चार फ़िल्मकारों को चुना, और आगे चलकर बाकी महान फ़िल्मकारों पर भी शृंखला चलाएँगे। 'हिंदी सिनेमा के लौह स्तंभ' शृंखला को हम चार खण्डों में विभाजीत कर रहे हैं, और हर खण्ड में होगी एक फ़िल्मकार की चर्चा और हर खण्ड में होंगे कुल पाँच कड़ियाँ। यानी कि प्रत्येक फ़िल्मकार के पाँच फ़िल्मों के गीत आप हर खण्ड में सुन सकेंगे। तो आइए शुरु किया जाए 'हिंदी सिनेमा के लौह स्तंभ' शृंखला का प्रथम खण्ड, जिसमें हम सलाम करेंगे फ़िल्मकारों में भीष्म पितामह की हैसियत रखने वाले वी. शांताराम को।

राजाराम वनकुदरे शांताराम का जन्म महाराष्ट्र के कोल्हापुर में १९०१ में हुआ था। उन्हें ना के बराबर शिक्षा नसीब हुई। युवावस्था में वो रेल्वे में काम करते और साथ ही साथ एक 'गंधर्व नाटक मंडली' के लिए थिएटर में पर्दा गिराने और उठाने का कार्य भी करते। उस ज़माने में मूक फ़िल्मों का निर्माण शुरु हो चुका था और उनकी थिएटर के साथ साथ फ़िल्मों में भी रुचि जागी। इस रुचि को उन्होंने बढ़ावा दिया और बाबूराव पेण्टर की 'महाराष्ट्र फ़िल्म कंपनी' में दाख़िल हो गए, जहाँ पे उन्होंने पेण्टर साहब से फ़िल्म निर्माण की बारीकियाँ सीखी। उन्होंने अभिनय भी सीखा और १९२५ की मूक फ़िल्म 'सवकरी पाश' में एक युवा कृषक का रोल भी निभाया। शांताराम ने १९२७ में अपना पहला फ़िल्म निर्देशित किया 'नेताजी पालकर'। १९२९ में वी. जी. दामले, के. आर. धैबर, एस. फ़तेहलाल और एस. बी. कुलकर्णी के साथ मिलकर वी. शांताराम ने कोल्हापुर में ही 'प्रभात फ़िल्म कंपनई' की स्थापना की। इस स्टुडियो ने कामयाबी के झंडे गाढ़े, और जब सवाक फ़िल्मों का दौर शुरु हुआ तो 'प्रभात' के फ़िल्मों की चर्चा गली गली होने लगी। मूक फ़िल्मों की बात करें तो इस कंपनी ने 'गोपाल कृष्ण', 'ख़ूनी ख़ंजर', 'रानी साहेबा', 'चन्द्रसेना', 'ज़ुल्म' और 'उदयकाल' जैसी फ़िल्में बनाई और इन सभी फ़िल्मों को निर्देशित किया वी. शांताराम ने। १९३१ में आर्दशिर ईरानी ने 'आलम आरा' के निर्माण के साथ बोलती फ़िल्मों का द्वार खोल दिया, और अगले ही साल १९३२ में प्रभात फ़िल्म कंपनी लेकर आई मराठी फ़िल्म 'अयोध्या च राजा'। राजा हरीशचन्द्र के जीवन पर आधारित यह फ़िल्म असल में श्रद्धांजली थी दादा साहब फालके को, जिनकी पहली फ़िल्म इसी पौराणिक कहानी पर आधारित थी। मराठी में इस फ़िल्म को इतनी लोकप्रियता हासिल हुई कि हिंदी में फिर से इसका निर्माण हुआ 'अयोध्या का राजा' शीर्षक से। गोविंदराव टेम्बे इस फ़िल्म के संगीतकार थे और इस फ़िल्म के दो गीत "सकल जग में छत्रपति" और "आदि पुरुष नारायण" यादगार रहे। इसी साल 'प्रभात' ने 'जलती निशानी' और 'माया मछिंदर' का भी निर्माण किया। 'मया मछिंदर' की कहानी गोविंदराव टेम्बे की लिखी नाटक 'सिद्ध संसार' पर आधारित थी। ज़ाहिर है कि इस फ़िल्म में भी उन्हीं का संगीत था। ऐसा कहा जाता है कि 'माया मछिंदर' का ग्रामोफ़ोन रेकॊर्ड आज फ़िल्म संगीत का सब से पुराना रेकॊर्ड है। हमने भी कोशिश कर इस फ़िल्म का एक गीत प्राप्त किया है जिसे स्वयं गोविंदराव टेम्बे ने ही गाया है। गीत के बोल हैं "छोड़ आकाश को सितारे ज़मीं पर आये"। उस समय फ़िल्मी गीतों पर शास्त्रीय संगीत और नाट्य संगीत पूरी तरह से हावी हुआ करता था, और इस गीत में भी आप वही बात महसूस कर पाएँगे। तो आइए वी. शांताराम निर्देशित इस भूले बिसरे गीत से इस महत्वाकांशी शृंखला की हम शुरुआत करते हैं। यह गीत यकीनन आपको उस पुराने समय में ले जाए जब हिंदी फ़िल्म संगीत का बस जन्म ही हुआ था।



क्या आप जानते हैं...
कि दुर्गा खोटे हिंदी सिनेमा की पहली अभिनेत्री हैं जिन्होंने 'अयोध्या का राजा' फ़िल्म से अपने करीयर की शुरुआत की थीं। क्योंकि उन दिनों लड़कियों का फ़िल्मों में काम करना अच्छा नहीं माना जाता था, इसलिए नारी चरित्र भी पुरुष ही निभाया करते थे। दुर्गा खोटे ने अभिनेत्रियों के लिए फ़िल्मों का द्वार खोल दिया।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली २ /शृंखला ०४
गीत का प्रिल्यूड सुनिए -


अतिरिक्त सूत्र - भारत व्यास ने लिखा इस प्रेरणादायक गीत को.

सवाल १ - संगीतकार बताएं - २ अंक
सवाल २ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल ३ - गायक बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी आपकी बात सही है. लगता है सुजॉय को कहीं से ये जानकारी मिली होगी, जो कि पूर्णता सही नहीं है. ये हो सकता है कि संबंधित कवियों की कुछ हास्य रचनाएं भी रहीं होंगी जो बेहद लोकप्रिय हुई होंगीं. वैसे चौथी शृंखला की शुरूआत काफी दिलचस्प हुई है. रोमेंद्र जी २ अंकों के साथ सबसे आगे हैं, पर पुराने दिग्गज श्याम कान्त जी और शरद जी भी खाता खोल चुके हैं....बधाई

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments

Music Director : vasant Desai
ShyamKant said…
singer- Manna dey
chintoo said…
Toofan aur diya
AVADH said…
फिल्म: दो आँखें बारह हाथ
अवध लाल
AVADH said…
क्षमा करें जल्दी में गलत नाम लिख गया था पर देखा तो सही उत्तर अमित जी मुझसे पहले ही दे चुके हैं.
अवध लाल

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