तुम्हारे बिन गुजारे हैं कई दिन अब न गुजरेंगें....विश्वेश्वर शर्मा का लिखा एक गंभीर गीत लता रफ़ी के युगल स्वरों में
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 530/2010/230
'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी संगीत रसिकों का बहुत बहुत स्वागत है इस ५३०-वीं कड़ी में। दोस्तों, पिछले दो हफ़्तों से इस स्तंभ में हम सुनते चले आ रहे हैं एक से एक नायाब गीत जिन्हें जादूई शब्दों से संवारे हैं हिंदी के कुछ बेहद नामचीन साहित्यकार और कवियों ने। 'दिल की कलम से' लघु शृंखला में अब तक हमने जिन साहित्यकारों की फ़िल्मी रचनाएँ आपको सुनवाईं हैं, वो हैं पंडित नरेन्द्र शर्मा, वीरेन्द्र मिश्र, गोपालसिंह नेपाली, बालकवि बैरागी, गोपालदास नीरज, अमृता प्रीतम, कवि प्रदीप, महादेवी वर्मा, और डॊ. हरिवंशराय बच्चन। आज इस शृंखला की अंतिम कड़ी के लिए हम चुन लाये हैं एक ऐसे साहित्यकार को जिनका शुमार बेहतरीन हास्यकवियों में होता है। हास्यकवि, यानी कि जो हास्य व्यंग के रस से ओत-प्रोत रचनाएँ लिखते हैं। उनकी लेखनी या काव्य के एक विशेषता होती है उनकी उपस्थित बुद्धि और सेन्स ऒफ़ ह्युमर। हिंदी के कुछ जाने माने हास्यकवियों के नाम हैं ओम प्रकाश आदित्य, अशकरण अटल, शैलेश लोधा, राहत इंदोरी, सुरेन्द्र शर्मा, डॊ. विष्णु सक्सेना, श्याम ज्वालामुखी, जगदिश सोलंकी, महेन्द्र अजनबी, माणिक वर्मा, अरुण जेमिनी, पंडित ओम व्यास ओम, नीरज पुरी, अशोक चक्रधर, पद्मश्री वाली और पंडित विश्वेश्वर शर्मा। और विश्वेश्वर शर्मा ही हैं हमारे आज के अंक के केन्द्रबिंदु में। शर्मा जी को आप में से बहुतों ने अलग अलग जगहों और मंचों पर हास्य कवि सम्मेलनों में भाग लेते हुए देखा व सुना होगा। उनकी हास्य कृतियाँ हमें इस तरह से गुदगुदा जाती हैं कि कुछ देर के लिए जैसे सारे तनाव और चिंताओं से मन मुक्त हो जाता है। फ़िल्म संगीत की बात करें तो ७० के दशक में शंकर जयकिशन (उस समय जयकिशन गुज़र चुके थे) के लिए विश्वेश्वर शर्मा ने कई गीत लिखे जो बेहद मक़बूल हुए थे। उदाहरण के तौर पर फ़िल्म 'संयासी' का शीर्षक गीत "चल संयासी मंदिर में" एक बेहद लोकप्रिय गीत साबित हुआ था। इस गीत में हास्य का भी एक अंग था। लता जी ने "चल" शब्द को गाते वक्त थोड़ी सी हँसी भी मिलाई थी। इसी फ़िल्म में विश्वेश्वर शर्मा ने एक और गीत लिखा था "जैसे मेरा रूप रंगीला"। फ़िल्म के बाक़ी गीत लिखे विट्ठलभाई पटेल, एम. जी, हशमत, इंदीवर और वर्मा मलिक ने।
ऐसा नहीं है कि विश्वेश्वर शर्मा ने केवल हास्य और हल्के फुल्के गीत ही लिखे। फ़िल्म 'दुनियादारी' के लिए उनका लिखा फ़िल्म का शीर्षक गीत "नाव काग़ज़ की गहरा है पानी, ज़िंदगी की यही है कहानी" में कितनी सच्चाई, कैसा दर्शन छुपा हुआ है, गीत को सुनते हुए अनुभव किया जा सकता है। विश्वेश्वर शर्मा की फ़िल्मी गीत लेखन का एक और ख़ूबसूरत उदाहरण है फ़िल्म 'आत्माराम' का युगल गीत "तुम्हारे बिन गुज़ारे हैं कई दिन अब न गुज़रेंगे"। दोस्तों, ये जितनी भी फ़िल्मों का हमने ज़िक्र किया, ये सब सोहनलाल कंवर की फ़िल्में हैं। दरअसल बात ऐसी है कि ७० के दशक में निर्माता शंकर को वह पूरा ६० सदस्यों वाला ऒरकेस्ट्रा नहीं मंज़ूर करते थे जिनके साथ उनकी रचनात्मक्ता खिल जाती थी। ऐसा ऒरकेस्ट्रा उन्हें केवल पुराने विश्वासपात्र मित्र सोहनलाल कंवर ही दिला सकते थे, और यही कारण है कि उपर लिखे फ़िल्मों के गानें ख़ूब चले, भले ही इन फ़िल्मों ने बहुत ज़्ज़्यादा व्यापार नहीं किया। ख़ैर, हम विश्वेश्वर शर्मा की बात कर रहे थे। तो आज हम आपको फ़िल्म 'आत्माराम' का यही सुंदर लोच भरा गीत सुनवा रहे हैं जिसे गाया है लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी ने। फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे शत्रुघ्न सिंहा, बिंदिया गोस्वामी, विद्या सिंहा, अरुणा ईरानी, फ़रीदा, प्राण और अमजद ख़ान। यह १९७९ की फ़िल्म थी। शंकर ने शंकर जयकिशन के नाम से फ़िल्म में संगीत दिया। इस फ़िल्म में उन्होंने सुलक्षणा पंडित से भी गानें गवाये थे। बहरहाल लता-रफ़ी का गाया फ़िल्म का सर्वश्रेष्ठ गीत सुनते हैं। और इसी के साथ 'दिल की कलम से' शृंखला को समाप्त करने की हमें इजाज़त दीजिए। जिन साहित्यकारों का ज़िक्र इस शृंखला में जाने अंजाने नहीं हो पाया, उन सब के लिए हम क्षमा चाहते हैं। आपको यह शृंखला कैसी लगी, टिप्पणी के अलावा oig@hindyugm.com के पते पर ईमेल करके हमें ज़रूर सूचित करें। शनिवार की शाम 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' में आपसे फिर मुलाक़ात होगी, तब तक के लिए अनुमति दीजिए, नमस्कार!
क्या आप जानते हैं...
कि पंडित विश्वेश्वर शर्मा के लिखे फ़िल्म 'दुनियादारी' के शीर्षक गीत "नाव कागज़ की गहरा है पानी" को शंकर ने उसी धुन में स्वरबद्ध किया जिस धुन में उन्होंने रचा था १९५५ की फ़िल्म 'सीमा' का वह सदाबहार गीत "सुनो छोटी सी गुड़िया की लम्बी कहानी"। ज़रा इन दोनों गीतों को गुनगुनाकर तो देखिए, आपको इसका अंदाज़ा हो जाएगा।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली १ /शृंखला ०४
ये है गीत के अंतरे की एक झलक -
अतिरिक्त सूत्र - उपलब्ध ग्रामोफोन रेकॉर्ड्स में इस फिल्म का ये गीत सबसे पुराना माना जाता है.
सवाल १ - गायक पहचानें - २ अंक
सवाल २ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल ३ - कौन थे फिल्म के निर्देशक - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
ताज्जुब है....कोई जवाब नहीं बूझ पाया या फिर जानकार नहीं दिया क्योंकि श्याम जी पहले ही जीत चुके थे ?...खैर तीसरी कड़ी के विजेता रहे श्याम जी. इस तरह वो अब तक दो बार विजेता बन कर सबसे आगे चल रहे हैं, इस शृंखला में उन्हें शरद जी और अमित से अच्छी टक्कर मिली. श्याम जी को बधाई. चलिए अब कमर कस लीजिए एक नयी जंग के लिए.
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी संगीत रसिकों का बहुत बहुत स्वागत है इस ५३०-वीं कड़ी में। दोस्तों, पिछले दो हफ़्तों से इस स्तंभ में हम सुनते चले आ रहे हैं एक से एक नायाब गीत जिन्हें जादूई शब्दों से संवारे हैं हिंदी के कुछ बेहद नामचीन साहित्यकार और कवियों ने। 'दिल की कलम से' लघु शृंखला में अब तक हमने जिन साहित्यकारों की फ़िल्मी रचनाएँ आपको सुनवाईं हैं, वो हैं पंडित नरेन्द्र शर्मा, वीरेन्द्र मिश्र, गोपालसिंह नेपाली, बालकवि बैरागी, गोपालदास नीरज, अमृता प्रीतम, कवि प्रदीप, महादेवी वर्मा, और डॊ. हरिवंशराय बच्चन। आज इस शृंखला की अंतिम कड़ी के लिए हम चुन लाये हैं एक ऐसे साहित्यकार को जिनका शुमार बेहतरीन हास्यकवियों में होता है। हास्यकवि, यानी कि जो हास्य व्यंग के रस से ओत-प्रोत रचनाएँ लिखते हैं। उनकी लेखनी या काव्य के एक विशेषता होती है उनकी उपस्थित बुद्धि और सेन्स ऒफ़ ह्युमर। हिंदी के कुछ जाने माने हास्यकवियों के नाम हैं ओम प्रकाश आदित्य, अशकरण अटल, शैलेश लोधा, राहत इंदोरी, सुरेन्द्र शर्मा, डॊ. विष्णु सक्सेना, श्याम ज्वालामुखी, जगदिश सोलंकी, महेन्द्र अजनबी, माणिक वर्मा, अरुण जेमिनी, पंडित ओम व्यास ओम, नीरज पुरी, अशोक चक्रधर, पद्मश्री वाली और पंडित विश्वेश्वर शर्मा। और विश्वेश्वर शर्मा ही हैं हमारे आज के अंक के केन्द्रबिंदु में। शर्मा जी को आप में से बहुतों ने अलग अलग जगहों और मंचों पर हास्य कवि सम्मेलनों में भाग लेते हुए देखा व सुना होगा। उनकी हास्य कृतियाँ हमें इस तरह से गुदगुदा जाती हैं कि कुछ देर के लिए जैसे सारे तनाव और चिंताओं से मन मुक्त हो जाता है। फ़िल्म संगीत की बात करें तो ७० के दशक में शंकर जयकिशन (उस समय जयकिशन गुज़र चुके थे) के लिए विश्वेश्वर शर्मा ने कई गीत लिखे जो बेहद मक़बूल हुए थे। उदाहरण के तौर पर फ़िल्म 'संयासी' का शीर्षक गीत "चल संयासी मंदिर में" एक बेहद लोकप्रिय गीत साबित हुआ था। इस गीत में हास्य का भी एक अंग था। लता जी ने "चल" शब्द को गाते वक्त थोड़ी सी हँसी भी मिलाई थी। इसी फ़िल्म में विश्वेश्वर शर्मा ने एक और गीत लिखा था "जैसे मेरा रूप रंगीला"। फ़िल्म के बाक़ी गीत लिखे विट्ठलभाई पटेल, एम. जी, हशमत, इंदीवर और वर्मा मलिक ने।
ऐसा नहीं है कि विश्वेश्वर शर्मा ने केवल हास्य और हल्के फुल्के गीत ही लिखे। फ़िल्म 'दुनियादारी' के लिए उनका लिखा फ़िल्म का शीर्षक गीत "नाव काग़ज़ की गहरा है पानी, ज़िंदगी की यही है कहानी" में कितनी सच्चाई, कैसा दर्शन छुपा हुआ है, गीत को सुनते हुए अनुभव किया जा सकता है। विश्वेश्वर शर्मा की फ़िल्मी गीत लेखन का एक और ख़ूबसूरत उदाहरण है फ़िल्म 'आत्माराम' का युगल गीत "तुम्हारे बिन गुज़ारे हैं कई दिन अब न गुज़रेंगे"। दोस्तों, ये जितनी भी फ़िल्मों का हमने ज़िक्र किया, ये सब सोहनलाल कंवर की फ़िल्में हैं। दरअसल बात ऐसी है कि ७० के दशक में निर्माता शंकर को वह पूरा ६० सदस्यों वाला ऒरकेस्ट्रा नहीं मंज़ूर करते थे जिनके साथ उनकी रचनात्मक्ता खिल जाती थी। ऐसा ऒरकेस्ट्रा उन्हें केवल पुराने विश्वासपात्र मित्र सोहनलाल कंवर ही दिला सकते थे, और यही कारण है कि उपर लिखे फ़िल्मों के गानें ख़ूब चले, भले ही इन फ़िल्मों ने बहुत ज़्ज़्यादा व्यापार नहीं किया। ख़ैर, हम विश्वेश्वर शर्मा की बात कर रहे थे। तो आज हम आपको फ़िल्म 'आत्माराम' का यही सुंदर लोच भरा गीत सुनवा रहे हैं जिसे गाया है लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी ने। फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे शत्रुघ्न सिंहा, बिंदिया गोस्वामी, विद्या सिंहा, अरुणा ईरानी, फ़रीदा, प्राण और अमजद ख़ान। यह १९७९ की फ़िल्म थी। शंकर ने शंकर जयकिशन के नाम से फ़िल्म में संगीत दिया। इस फ़िल्म में उन्होंने सुलक्षणा पंडित से भी गानें गवाये थे। बहरहाल लता-रफ़ी का गाया फ़िल्म का सर्वश्रेष्ठ गीत सुनते हैं। और इसी के साथ 'दिल की कलम से' शृंखला को समाप्त करने की हमें इजाज़त दीजिए। जिन साहित्यकारों का ज़िक्र इस शृंखला में जाने अंजाने नहीं हो पाया, उन सब के लिए हम क्षमा चाहते हैं। आपको यह शृंखला कैसी लगी, टिप्पणी के अलावा oig@hindyugm.com के पते पर ईमेल करके हमें ज़रूर सूचित करें। शनिवार की शाम 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' में आपसे फिर मुलाक़ात होगी, तब तक के लिए अनुमति दीजिए, नमस्कार!
क्या आप जानते हैं...
कि पंडित विश्वेश्वर शर्मा के लिखे फ़िल्म 'दुनियादारी' के शीर्षक गीत "नाव कागज़ की गहरा है पानी" को शंकर ने उसी धुन में स्वरबद्ध किया जिस धुन में उन्होंने रचा था १९५५ की फ़िल्म 'सीमा' का वह सदाबहार गीत "सुनो छोटी सी गुड़िया की लम्बी कहानी"। ज़रा इन दोनों गीतों को गुनगुनाकर तो देखिए, आपको इसका अंदाज़ा हो जाएगा।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली १ /शृंखला ०४
ये है गीत के अंतरे की एक झलक -
अतिरिक्त सूत्र - उपलब्ध ग्रामोफोन रेकॉर्ड्स में इस फिल्म का ये गीत सबसे पुराना माना जाता है.
सवाल १ - गायक पहचानें - २ अंक
सवाल २ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल ३ - कौन थे फिल्म के निर्देशक - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
ताज्जुब है....कोई जवाब नहीं बूझ पाया या फिर जानकार नहीं दिया क्योंकि श्याम जी पहले ही जीत चुके थे ?...खैर तीसरी कड़ी के विजेता रहे श्याम जी. इस तरह वो अब तक दो बार विजेता बन कर सबसे आगे चल रहे हैं, इस शृंखला में उन्हें शरद जी और अमित से अच्छी टक्कर मिली. श्याम जी को बधाई. चलिए अब कमर कस लीजिए एक नयी जंग के लिए.
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
आपने हास्य कवियों की जो सूची दी है उसमें राहत इन्दौरी, डॊ. विष्णु सक्सेना तथा जगदीश सौलंकी का नाम देख कर आश्चर्य हुआ । राहत इन्दौरी जी प्रसिद्ध शायर हैं डॊ. सक्सेना गीतकार तथा जगदीश सौलंकी जी जो कोटा के मेरे मित्र हैं ओज और वीर रस की रचनाओं के कवि हैं ।