ऐक्शन रिप्ले के सहारे इरशाद कामिल और प्रीतम ने बाकी गीतकार-संगीतकार जोड़ियों को बड़े हीं जोर का झटका दिया
ताज़ा सुर ताल ४२/२०१०
सुजॊय - 'ताज़ा सुर ताल' की एक और कड़ी के साथ हम हाज़िर हैं, और आप सभी का हार्दिक स्वागत है इस साप्ताहिक स्तंभ में! विश्व दीपक जी, पता है जब भी मैं इस स्तंभ के लिए आप से बातचीत का सिलसिला शुरु करता हूँ तो मुझे क्या याद आता है?
विश्व दीपक - अरे पहले मुझे सभी को नमस्ते तो कह लेने दो! सभी पाठकों व श्रोताओं को मेरा नमस्कार और सुजॊय, आप को भी! हाँ, अब बताइए आप को किस बात की याद आती है।
सुजॊय - जब मैं छोटा था, और गुवाहाटी में रहता था, तो उस ज़माने में तो फ़िल्मी गानें केवल रेडियो पर ही सुनाई देते थे, तभी से मुझे रेडियो सुनने में और ख़ास कर फ़िल्म संगीत में दिलचस्पी हुई। तो आकाशवाणी के गुवाहाटी केन्द्र से द्पहर के वक़्त दो घंटे के लिए सैनिक भाइयों का कार्यक्रम हुआ करता था (आज भी होता है) , जिसके अंतर्गत कई दैनिक, साप्ताहिक और मासिक कार्यक्रम प्रस्तुत होते थे फ़िल्मी गीतों के, कुछ कुछ विविध भारती अंदाज़ के। तो हर शुक्रवार के दिन एक कार्यक्रम आता था 'एक ही फ़िल्म के गीत', जिसमें किसी नए फ़िल्म के सभी गीत बजाए जाते थे। तो गर्मी की छुट्टियों में या कभी भी जब शुक्रवार को स्कूल की छुट्टी हो, उस 'एक ही फ़िल्म के गीत' कार्यक्रम को सुनने के लिए मैं और मेरा बड़े भाई बेसबरी से इंतज़ार करते थे। और कार्यक्रम शुरु होने पर जब उद्घोषक कहते कि "आज की फ़िल्म है...", उस वक़्त तो जैसे उत्तेजना चरम सीमा तक पहूँच जाया करती थी कि कौन सी फ़िल्म के गानें बजने वाले हैं। मुझे अब भी याद है कि हम किस तरह से ख़ुश हुए थे जिस दिन 'हीरो' फ़िल्म के गानें हमने पहली बार सुने थे उसी कार्यक्रम में।
विश्व दीपक - बहुत ही ख़ूबसूरत यादें हैं, और मैं भी महसूस कर सकता हूँ। उन दिनों मनोरंजन के साधन केवल रेडियो ही हुआ करता था, जिसकी वजह से रेडियो की लोकप्रियता बहुत ज़्यादा थी। अब बस यही कह सकते हैं कि विज्ञान ने हमें दिया है वेग, पर हमसे छीन लिया है आवेग।
सुजॊय - वाह! क्या बात कही है आपने! हाँ, तो मैं यही कह रहा था कि आज 'ताज़ा सुर ताल' प्रस्तुत करते हुए मुझे ऐसा लगता है कि मैं भी उन्हीं उद्घोषकों की तरह किसी नए फ़िल्म के गानें लेकर आता हूँ, कार्यक्रम वही एक ही फ़िल्म का है, लेकिन श्रोता से अब मैं एक प्रस्तुतकर्ता बन गया हूँ। चलिए अब बताया जाये कि आज हम कौन सी नई फ़िल्म के गीत लेकर उपस्थित हुए हैं।
विश्व दीपक - दरअसल, आज हम ज़रा हल्के फुल्के मूड में हैं। इसलिए ना तो आज किसी क़िस्म का सूफ़ी गीत बजेगा, और ना ही कोई दर्शन का गीत। आज तो बस मस्ती भरे अंदाज़ में सुनिए अक्षय कुमार और ऐश्वर्या राय बच्चन की नई नवेली फ़िल्म 'ऐक्शन रीप्ले' के गीत। विपुल शाह निर्देशित इस फ़िल्म में गीतकार - सगीतकार जोड़ी के रूप में हैं इरशाद कामिल और प्रीतम। अन्य मुख्य कलाकारों में शामिल हैं रणधीर कपूर, किरण खेर, ओम पुरी, नेहा धुपिया और आदित्य रॊय कपूर।
सुजॊय - इससे पहले कि गीतों का सिलसिला शुरु करें, मैं यह याद दिलाना चाहूँगा कि विपुल शाह की थोड़ी कम ही चर्चा होती है, लेकिन इन्होंने बहुत सी कामियाब और म्युज़िकल फ़िल्में दी हैं और अपने लिए एक सम्माननीय स्थान इस इण्डस्ट्री में बना लिया है। विपुल शाह और अक्षय कुमार की जोड़ी भी ख़ूब रंग लायी है, जैसे कि 'वक़्त', 'नमस्ते लंदन', 'सिंह इज़ किंग्' और 'लंदन ड्रीम्स' जैसी फ़िल्मों में। विपुल शाह निर्मित और अनीज़ बाज़्मी निर्देशित रोमांटिक कॊमेडी 'सिंह इज़ किंग्' में प्रीतम के सुपरहिट संगीत से ख़ुश होकर विपुल ने अपनी इस अगली रोमांटिक कॊमेडी के संगीत के लिए प्रीतम को चुना है।
विश्व दीपक - फ़िल्म की कहानी के हिसाब से फ़िल्म में ७० के दशक के संगीत की छाया होनी थी। दरअसल इस फ़िल्म की कहानी भी बेहद अजीब-ओ-ग़रीब है। इस फ़िल्म में आदित्य रॊय कपूर अपने माता पिता (ऐश्वर्या और अक्षय), जिनकी एक दूसरे से शादी नहीं हो पायी थी, टाइम मशीन में बैठ कर ७० के दशक में पहूँच जाता है और अपने माता पिता का मिलन करवाता है। तो इतनी जानकारी के बाद आइए अब पहला गीत सुन ही लिया जाए।
गीत - ज़ोर का झटका
सुजॊय - वाक़ई ज़ोर का झटका था! फ़ुल एनर्जी के साथ दलेर मेहंदी और रीचा शर्मा ने इस गीत को गाया है और आजकल यह गीत लोकप्रियता की सीढियाँ चढ़ता जा रहा है। शादी के नुकसानों को लेकर कई हास्य गीत बनें हैं, यह गीत उसी श्रेणी में आता है, और पूरी टीम ने ही अच्छा अंजाम दिया है गीत को।
विश्व दीपक - बड़ा ही संक्रामक रीदम है गीत का। कुछ कुछ "चोर बाज़ारी" गीत की तरह लगता है शुरु शुरु में, लेकिन बाद में प्रीतम ने गीत का रुख़ दूसरी ओर ही मोड़ दिया है। दलेर मेहंदी की गायकी के तो क्या कहने, और रीचा शर्मा के गले की हरकतों से तो सभी वाक़ीफ़ ही हैं। इन दोनों के अलावा मास्टर सलीम ने भी अपनी आवाज़ दी है इस गीत में कुछ और मसाला डालने के लिए।
सुजॊय - इस मस्ती भरे गीत के बाद अब एक रोमांटिक गीत, उस ७० के दशक के स्टाइल का हो जाए! गायिका हैं श्रेया घोषाल।
गीत - ओ बेख़बर
विश्व दीपक - बड़ा ही मीठा, सुरीला गीत था श्रेया की आवाज़ में। प्रीतम के संगीत की विशेषता यही है कि वो पूरी तरह से व्यावसायिक हैं, जिसे कहते हैं 'ट्रुली प्रोफ़ेशनल'। जिस तरह का संगीत आप उनसे माँगेंगे, वो बिलकुल उसी तरह का गीत आपको बनाकर दे देंगे। पीछले साल प्रीतम का ट्रैक रेकॊर्ड सब से उपर था, इस साल भी शायद उनका ही नाम सब से उपर रहेगा। ख़ैर, इस गीत की बात करें तो एक टिपिकल यश चोपड़ा फ़िल्म के गीत की तरह सुनाई देता है, बस लता जी की जगह अब श्रेया घोषाल है।
सुजॊय - मुझे तो इस गीत को सुनते हुए लग रहा था जैसे फूलों भरी वादियों, बर्फ़ीली पहाड़ियों, हरे भरे खेतों और झीलों में यह फ़िल्माया गया होगा। गानें का रंग रूप तो आधुनिक ही है, लेकिन एक उस ज़माने की बात भी कहीं ना कहीं छुपी हुई है। ऐश्वर्या के सौंदर्य को कॊम्प्लीमेण्ट करता यह गीत लोगों के दिलों को छू सकेगा, हम तो ऐसी ही उम्मीद करेंगे। ऐश्वर्या - श्रेया कम्बिनेशन में फ़िल्म 'गुरु' का गीत "बरसो रे मेघा मेघा" जिस तरह से लोकप्रिय हुआ था, इस गीत से भी वह उम्मीद रखी जा सकती है।
विश्व दीपक - चलिए अब बढ़ते हैं तीसरे गीत की ओर। इस बार सेवेंटीज़ के रेट्रो शैली का एक गीत "नखरे", जिसे आप एक कैम्पस छेड़-छाड़ सॊंग् भी कह सकते हैं।
गीत - नखरे
सुजॊय - "लड़की जो बनती प्रेमिका, बैण्ड बजाये चैन का, उड़ जाता सर्कीट ब्रेन का, पटरी पे बैठा आदमी, देखे रास्ता ट्रेन का"। कमाल के ख़यालात हैं इरशाद साहब के, जिनके लेखनी की दाद देनी ही पड़ेगी! और संगीत में प्रीतम ने कमाल तो किया ही है। गाने में आवाज़ फ़्रण्कोयस कास्तलीनो का था, जिन्हें आजकल हिंदी के एल्विस प्रेस्ली कहा जा रहा है। एक फ़ुल्टू रॊक-एन-रोल पार्टी सॊंग जिसे सुन कर झूमने को दिल करता है।
विश्व दीपक - अक्षय कुमार के मशहूर संवाद "आवाज़ नीचे" को गीत के शुरुवाती हिस्से में सुना जा सकता है। गीत के ऒरकेस्ट्रेशन की बात करें तो गीटार और पर्क्युशन का ज़बरदस्त इस्तेमाल प्रीतम ने किया है, और गीत के मूड और स्थान-काल-पात्र के साथ पूरा पोरा न्याय किया है।
सुजॊय - अच्छा विश्व दीपक जी, पिछली बार आपने किसी हिंदी फ़िल्म में होली गीत कब देखी थी याद है कुछ आपको?
विश्व दीपक - मेरा ख़याल है कि विपुल शाह की ही फ़िल्म 'वक़्त' में "डू मी एक फ़ेवर लेट्स प्ले होली" और 'बाग़बान' में "होली खेले रघुवीरा अवध में" ही होने चाहिए। वैसे आप के सवाल से ख़याल आया कि ७० के दशक में जिस तरह से होली गीत फ़िल्मों के लिए बनते थे, और जिस तरह से फ़िल्माये जाते थे, उनमें कुछ और ही बात होती थी। फ़िल्मी गीतों से धीरे धीरे विविधता ख़त्म होती जा रही है, ख़ास कर त्योहारों के गीत को बंद ही हो गये हैं। ख़ैर, होली गीत की बात चली है तो 'ऐक्शन रीप्ले' में भी एक होली गीत की गुंजाइश रखी गई है, आइए उसी गीत को सुन लिया जाए।
गीत - छान के मोहल्ला
सुजॊय - ऐश्वर्या और नेहा धुपिया पर फ़िल्माया गया यह गीत सुनिधि चौहान और ऋतु पाठक की आवाज़ों में था। पूर्णत: देसी फ़्लेवर का गाना था, लेकिन प्रीतम ने इस बात का पूरा पूरा ध्यान रखा कि यह एक आइटम सॊंग् होते हुए भी ऐश्वर्या पर फ़िल्माया जा रहा है, इसलिए एक तरह ही शालीनता भी बरक़रार रखी है।
विश्व दीपक - इरशाद कामिल लगता है गुलज़ार साहब के नक्श-ए-क़दम पर चल निकले हैं इस गीत में, जब वो लिखते हैं कि "जली तो, बुझी ना, क़सम से कोयला हो गई मैं"। इस तरह की उपमाएँ गुलज़ार साहब ही देते आये हैं। देखना यह है कि क्या यह गीत भी "डू मी एक फ़ेवर" की तरह चार्टबस्टर बन पाता है या नहीं।
सुजॊय - चार गानें हमने सुन लिए, और एक बात आपने ग़ौर की होगी कि इनमें ७० के दशक के रंग को लाने की कोशिश तो की गई है, लेकिन हर गीत एक दूसरे से अलग है। हम इस ऐल्बम के करीब करीब बीचो बीच आ पहुँचे हैं, यानी कि ९ गीतों में से ४ गीत सुन चुके हैं। तो आइए बिना कोई कमर्शियल ब्रेक लिए सुनते हैं 'ऐक्शन रीप्ले' का पाँचवाँ गीत।
गीत - तेरा मेरा प्यार
विश्व दीपक - कुल्लू मनाली की स्वर्गीक सुंदरता इस गीत के फ़िल्मांकन की ख़ासीयत है, और इस गीत को सुनने के बाद समझ में आता है कि विपुल शाह ने करीब करीब एक साल तक क्यों इंतेज़ार किया वहाँ के मौसम में सुधार का। पहाड़ी लोक गीत की छाया लिए इस गीत में अगर प्रीतम के भट्ट कैम्प की शैली सुनाई देती है तो कुछ कुछ रहमान का अंदाज़ भी महसूस होता है।
सुजॊय - बिलकुल मुझे भी यह गीत ईमरान हाश्मी टाइप का गीत लगा। कार्तिक, महालक्ष्मी और अंतरा मित्र की आवाज़ों में यह रोमांटिक गीत का भी अपना मज़ा है। और आपने कुल्लू मनाली का ज़िक्र छेड़ कर तो जैसे मुझे रोहतांग पास की पहाड़ियों में वापस ले गए जहाँ पर मैं अपने मम्मी डैडी के साथ दो साल पहले दशहरे के समय गया था। रोहतांग पास के समिट पर ऐसी बर्फ़ीली हवाएँ कि एक मिनट आप खड़े नहीं रह सकते। वहाँ से वापस आने के बाद ऐसा लगा कि जैसे किसी सपनो की दुनिया से घूम कर वापस आ रहे हों। मेरी मम्मी का एक्स्प्रेशन कुछ युं था कि "अब मुझे कहीं और घूमने जाने की चाहत ही नहीं रही"। ऐसा है कुल्लू मनाली।
विश्व दीपक - चलिए अब कुल्लू मनाली से पंजाब की धरती पर आ उतरते हैं, और सुनते हैं मीका की आवाज़ में "धक धक धक"।
गीत - धक धक धक
सुजॊय - प्रीतम के गायक चयन के बारे में हम कुछ दिन पहले ही बात कर चुके हैं। आज फिर से दोहरा रहे हैं कि प्रीतम यह भली भाँति जानते हैं कि कौन सा गीत किस गायक से गवाना है। और जब गीत बनकर बाहर आता है तो हमें यह मानना ही पड़ता है कि इस गीत के लिए चुना हुआ गायक ही सार्थक हैं उस गीत के लिए।
विश्व दीपक - इकतारा की धुनें, उसके बाद फिर धिनचक रीदम, कुल मिलाकर एक मस्ती भरा गीत। इस गीत के लिए भी थम्प्स अप ही देंगे। चलिए अब लुका छुपी का खेल भी खेल लिया जाए। अगर आपको याद हो तो फ़िल्म 'ड्रीम गर्ल' में एक गाना था "छुपा छुपी खेलें आओ", और अमिताभ बच्चन की फ़िल्म 'दो अंजाने' में भी "लुक छुप लुक छुप जाओ ना" गीत था। ये दोनों ही गानें बच्चों को केन्द्र में रख कर लिखे और फ़िल्माये गये थे। लेकिन 'ऐक्शन रीप्ले' का "लुक छुप" एक मस्ती और धमाल से लवरेज़ गीत है जिसे के. के और तुल्सी कुमार ने गाया है, जो आजकल अपने अपने करीयर में पूरे फ़ॊर्म में हैं।
सुजॊय - ७० के दशक के संगीत की बात है तो कुछ हद तक ऋषी कपूर के नृत्य गीतों की छाया इस गीत में पड़ती हुई सी लगती है। चलिए सुनते हैं।
गीत - लुक छुप जाना
विश्व दीपक - आपने ग़ौर किया कि मुखड़े का इस्तेमाल अंतरे में भी हुआ है, और यही चीज़ शायद गीत को भीड़ से अलग करती है। तालियों, सिन्थेसाइज़र, ग्रुंजे गीटार और स्टेडियम रॊक के रम्ग इस गीत में भरे गये हैं। ७० के नहीं, बल्कि मैं यह कहूँगा कि अर्ली से लेके मिड एइटीज़ का प्रभाव है इस गीत के संगीत में।
सुजॊय - रॊक मूड को बरकरार रखते हुए अब बारी है सूरज जगन के आवाज़ की, गीत है "आइ ऐम डॊग गॊन क्रेज़ी"। सूरज जगन आज के अग्रणी रॊक गायकों में से एक हैं, लेकिन इस गीत में ऐसा लगता है कि जैसे उन्होंने आवाज़ को दबाया हुआ है। इस ऐल्बम के हिसाब से मुझे तो यह गीत थोड़ा ढीला लगा, देखते हैं हमारे श्रोताओं के क्या विचार हैं।
विश्व दीपक - ६० और ७० के दशकों में बनने वाले रॊक गीतों का अंदाज़ लाने की कोशिश है इस गीत में। यहाँ पे यह बताना ज़रूरी है कि प्रीतम ही वो संगीतकार हैं जिन्होंने हार्ड रॊक को बैण्ड शोज़ से निकालकर हिंदी फ़िल्म संगीत की मुख्य धारा में शामिल करवाया 'गैंगस्टर' और 'लाइफ़ इन ए मेट्रो' जैसी फ़िल्मों के ज़रिये। आइए सुनते हैं...
गीत - आइ ऐम डॉग गॊन क्रेज़ी
सुजॊय - और अब हम पहूँच गये हैं 'ऐक्शन रीप्ले' फ़िल्म के नौवें और अंतिम गीत पर। श्रेया घोषाल की आवाज़ में नृत्य गीत "बाकी मैं भूल गई" प्यार का इज़हार करने वाले गीतों की श्रेणी में आता है, जिसमें नायिका अपनी दीवानगी ज़ाहिर करती है और उसका इक़रार करती है। प्रीतम विविधता का परिचय देते हुए मुखड़े और अंतरे की रीदम को बिलकुल अलग रखा है।
विश्व दीपक - वैसे इस गीत का प्रेरणा स्रोत हैं एक मिडल-ईस्टर्ण नंबर है, और फ़ीरोज़ ख़ान की फ़िल्मों में इस तरह के संगीत का इस्तेमाल सुना गया है। कुल मिलाकर यही कह सकते हैं कि इस ऐल्बम का एक सुखांत हुआ है। चलिए यह गीत सुन लेते हैं।
गीत - बाकी मैं भूल गई
सुजॊय - इन तमाम गीतों को सुनने के बाद मेरी अदालत यह फ़ैसला देती है कि 'ऐक्शन रीप्ले' के गीतों को बार बार रीप्ले किया जाए और सुना जाए। मेलडी और मस्ती का संगम है 'ऐक्शन रीप्ले' का ऐल्बम। प्रीतम, इरशाद कामिल और तमाम गायक गायिकाओं को मेरी तरफ़ से थम्प अप! 'चुस्त-दुरुस्त गीत' और 'लुंज पुंज गीत' तो विश्व दीपक जी अभी बताएँगे, लेकिन मुझसे अगर पूछा जाए कि वह एक गीत कौन सा है जो इस ऐल्बम का सर्वोत्तम है, तो मेरा वोट "ओ बेख़बर" को ही जाएगा।
विश्व दीपक - आपकी पसंद से हमारी पसंद जुदा कैसे हो सकती है सुजॉय जी। आपने "ओ बेखबर" को वोट दिया है तो मैं उसे हीं आज का "चुस्त-दुरुस्त" गीत घोषित करता हूँ। वैसे इस फिल्म के सभी गाने अच्छे हैं। मज़ेदार बात तो ये है कि इस दिवाली को जिन दो बड़ी फिल्मों में टक्कर है वे हैं "ऐक्शन रिप्ले" और "गोलमाल ३" और दोनों में हीं संगीत प्रीतम दा का है। अगर आप दोनों फिल्मों के गानें सुनें तो आपको लगेगा कि प्रीतम दा ने अपना ज्यादा प्यार "ऐक्शन रिप्ले" को दिया है और "गोलमाल ३" को जल्दी में निपटा-सा दिया है। खैर ये तो निर्माता-निर्देशक पर निर्भर करता है कि वे किसी संगीतकार या गीतकार से किस तरह का काम लेते हैं। मैं तो बस इतना हीं कह सकता हूँ कि विपुल शाह इस काम में सफल साबित हुए हैं। चलिए तो इन्हीं बातों के साथ आज की बैठक समाप्त करते हैं। जाते-जाते सुजॉय जी आपको और सभी मित्रों को दिपावली की अग्रिम शुभकामनाएँ।
आवाज़ की राय में
चुस्त-दुरुस्त गीत: ओ बेख़बर
लुंज-पुंज गीत: आइ ऐम डॉग गॊन क्रेज़ी
सुजॊय - 'ताज़ा सुर ताल' की एक और कड़ी के साथ हम हाज़िर हैं, और आप सभी का हार्दिक स्वागत है इस साप्ताहिक स्तंभ में! विश्व दीपक जी, पता है जब भी मैं इस स्तंभ के लिए आप से बातचीत का सिलसिला शुरु करता हूँ तो मुझे क्या याद आता है?
विश्व दीपक - अरे पहले मुझे सभी को नमस्ते तो कह लेने दो! सभी पाठकों व श्रोताओं को मेरा नमस्कार और सुजॊय, आप को भी! हाँ, अब बताइए आप को किस बात की याद आती है।
सुजॊय - जब मैं छोटा था, और गुवाहाटी में रहता था, तो उस ज़माने में तो फ़िल्मी गानें केवल रेडियो पर ही सुनाई देते थे, तभी से मुझे रेडियो सुनने में और ख़ास कर फ़िल्म संगीत में दिलचस्पी हुई। तो आकाशवाणी के गुवाहाटी केन्द्र से द्पहर के वक़्त दो घंटे के लिए सैनिक भाइयों का कार्यक्रम हुआ करता था (आज भी होता है) , जिसके अंतर्गत कई दैनिक, साप्ताहिक और मासिक कार्यक्रम प्रस्तुत होते थे फ़िल्मी गीतों के, कुछ कुछ विविध भारती अंदाज़ के। तो हर शुक्रवार के दिन एक कार्यक्रम आता था 'एक ही फ़िल्म के गीत', जिसमें किसी नए फ़िल्म के सभी गीत बजाए जाते थे। तो गर्मी की छुट्टियों में या कभी भी जब शुक्रवार को स्कूल की छुट्टी हो, उस 'एक ही फ़िल्म के गीत' कार्यक्रम को सुनने के लिए मैं और मेरा बड़े भाई बेसबरी से इंतज़ार करते थे। और कार्यक्रम शुरु होने पर जब उद्घोषक कहते कि "आज की फ़िल्म है...", उस वक़्त तो जैसे उत्तेजना चरम सीमा तक पहूँच जाया करती थी कि कौन सी फ़िल्म के गानें बजने वाले हैं। मुझे अब भी याद है कि हम किस तरह से ख़ुश हुए थे जिस दिन 'हीरो' फ़िल्म के गानें हमने पहली बार सुने थे उसी कार्यक्रम में।
विश्व दीपक - बहुत ही ख़ूबसूरत यादें हैं, और मैं भी महसूस कर सकता हूँ। उन दिनों मनोरंजन के साधन केवल रेडियो ही हुआ करता था, जिसकी वजह से रेडियो की लोकप्रियता बहुत ज़्यादा थी। अब बस यही कह सकते हैं कि विज्ञान ने हमें दिया है वेग, पर हमसे छीन लिया है आवेग।
सुजॊय - वाह! क्या बात कही है आपने! हाँ, तो मैं यही कह रहा था कि आज 'ताज़ा सुर ताल' प्रस्तुत करते हुए मुझे ऐसा लगता है कि मैं भी उन्हीं उद्घोषकों की तरह किसी नए फ़िल्म के गानें लेकर आता हूँ, कार्यक्रम वही एक ही फ़िल्म का है, लेकिन श्रोता से अब मैं एक प्रस्तुतकर्ता बन गया हूँ। चलिए अब बताया जाये कि आज हम कौन सी नई फ़िल्म के गीत लेकर उपस्थित हुए हैं।
विश्व दीपक - दरअसल, आज हम ज़रा हल्के फुल्के मूड में हैं। इसलिए ना तो आज किसी क़िस्म का सूफ़ी गीत बजेगा, और ना ही कोई दर्शन का गीत। आज तो बस मस्ती भरे अंदाज़ में सुनिए अक्षय कुमार और ऐश्वर्या राय बच्चन की नई नवेली फ़िल्म 'ऐक्शन रीप्ले' के गीत। विपुल शाह निर्देशित इस फ़िल्म में गीतकार - सगीतकार जोड़ी के रूप में हैं इरशाद कामिल और प्रीतम। अन्य मुख्य कलाकारों में शामिल हैं रणधीर कपूर, किरण खेर, ओम पुरी, नेहा धुपिया और आदित्य रॊय कपूर।
सुजॊय - इससे पहले कि गीतों का सिलसिला शुरु करें, मैं यह याद दिलाना चाहूँगा कि विपुल शाह की थोड़ी कम ही चर्चा होती है, लेकिन इन्होंने बहुत सी कामियाब और म्युज़िकल फ़िल्में दी हैं और अपने लिए एक सम्माननीय स्थान इस इण्डस्ट्री में बना लिया है। विपुल शाह और अक्षय कुमार की जोड़ी भी ख़ूब रंग लायी है, जैसे कि 'वक़्त', 'नमस्ते लंदन', 'सिंह इज़ किंग्' और 'लंदन ड्रीम्स' जैसी फ़िल्मों में। विपुल शाह निर्मित और अनीज़ बाज़्मी निर्देशित रोमांटिक कॊमेडी 'सिंह इज़ किंग्' में प्रीतम के सुपरहिट संगीत से ख़ुश होकर विपुल ने अपनी इस अगली रोमांटिक कॊमेडी के संगीत के लिए प्रीतम को चुना है।
विश्व दीपक - फ़िल्म की कहानी के हिसाब से फ़िल्म में ७० के दशक के संगीत की छाया होनी थी। दरअसल इस फ़िल्म की कहानी भी बेहद अजीब-ओ-ग़रीब है। इस फ़िल्म में आदित्य रॊय कपूर अपने माता पिता (ऐश्वर्या और अक्षय), जिनकी एक दूसरे से शादी नहीं हो पायी थी, टाइम मशीन में बैठ कर ७० के दशक में पहूँच जाता है और अपने माता पिता का मिलन करवाता है। तो इतनी जानकारी के बाद आइए अब पहला गीत सुन ही लिया जाए।
गीत - ज़ोर का झटका
सुजॊय - वाक़ई ज़ोर का झटका था! फ़ुल एनर्जी के साथ दलेर मेहंदी और रीचा शर्मा ने इस गीत को गाया है और आजकल यह गीत लोकप्रियता की सीढियाँ चढ़ता जा रहा है। शादी के नुकसानों को लेकर कई हास्य गीत बनें हैं, यह गीत उसी श्रेणी में आता है, और पूरी टीम ने ही अच्छा अंजाम दिया है गीत को।
विश्व दीपक - बड़ा ही संक्रामक रीदम है गीत का। कुछ कुछ "चोर बाज़ारी" गीत की तरह लगता है शुरु शुरु में, लेकिन बाद में प्रीतम ने गीत का रुख़ दूसरी ओर ही मोड़ दिया है। दलेर मेहंदी की गायकी के तो क्या कहने, और रीचा शर्मा के गले की हरकतों से तो सभी वाक़ीफ़ ही हैं। इन दोनों के अलावा मास्टर सलीम ने भी अपनी आवाज़ दी है इस गीत में कुछ और मसाला डालने के लिए।
सुजॊय - इस मस्ती भरे गीत के बाद अब एक रोमांटिक गीत, उस ७० के दशक के स्टाइल का हो जाए! गायिका हैं श्रेया घोषाल।
गीत - ओ बेख़बर
विश्व दीपक - बड़ा ही मीठा, सुरीला गीत था श्रेया की आवाज़ में। प्रीतम के संगीत की विशेषता यही है कि वो पूरी तरह से व्यावसायिक हैं, जिसे कहते हैं 'ट्रुली प्रोफ़ेशनल'। जिस तरह का संगीत आप उनसे माँगेंगे, वो बिलकुल उसी तरह का गीत आपको बनाकर दे देंगे। पीछले साल प्रीतम का ट्रैक रेकॊर्ड सब से उपर था, इस साल भी शायद उनका ही नाम सब से उपर रहेगा। ख़ैर, इस गीत की बात करें तो एक टिपिकल यश चोपड़ा फ़िल्म के गीत की तरह सुनाई देता है, बस लता जी की जगह अब श्रेया घोषाल है।
सुजॊय - मुझे तो इस गीत को सुनते हुए लग रहा था जैसे फूलों भरी वादियों, बर्फ़ीली पहाड़ियों, हरे भरे खेतों और झीलों में यह फ़िल्माया गया होगा। गानें का रंग रूप तो आधुनिक ही है, लेकिन एक उस ज़माने की बात भी कहीं ना कहीं छुपी हुई है। ऐश्वर्या के सौंदर्य को कॊम्प्लीमेण्ट करता यह गीत लोगों के दिलों को छू सकेगा, हम तो ऐसी ही उम्मीद करेंगे। ऐश्वर्या - श्रेया कम्बिनेशन में फ़िल्म 'गुरु' का गीत "बरसो रे मेघा मेघा" जिस तरह से लोकप्रिय हुआ था, इस गीत से भी वह उम्मीद रखी जा सकती है।
विश्व दीपक - चलिए अब बढ़ते हैं तीसरे गीत की ओर। इस बार सेवेंटीज़ के रेट्रो शैली का एक गीत "नखरे", जिसे आप एक कैम्पस छेड़-छाड़ सॊंग् भी कह सकते हैं।
गीत - नखरे
सुजॊय - "लड़की जो बनती प्रेमिका, बैण्ड बजाये चैन का, उड़ जाता सर्कीट ब्रेन का, पटरी पे बैठा आदमी, देखे रास्ता ट्रेन का"। कमाल के ख़यालात हैं इरशाद साहब के, जिनके लेखनी की दाद देनी ही पड़ेगी! और संगीत में प्रीतम ने कमाल तो किया ही है। गाने में आवाज़ फ़्रण्कोयस कास्तलीनो का था, जिन्हें आजकल हिंदी के एल्विस प्रेस्ली कहा जा रहा है। एक फ़ुल्टू रॊक-एन-रोल पार्टी सॊंग जिसे सुन कर झूमने को दिल करता है।
विश्व दीपक - अक्षय कुमार के मशहूर संवाद "आवाज़ नीचे" को गीत के शुरुवाती हिस्से में सुना जा सकता है। गीत के ऒरकेस्ट्रेशन की बात करें तो गीटार और पर्क्युशन का ज़बरदस्त इस्तेमाल प्रीतम ने किया है, और गीत के मूड और स्थान-काल-पात्र के साथ पूरा पोरा न्याय किया है।
सुजॊय - अच्छा विश्व दीपक जी, पिछली बार आपने किसी हिंदी फ़िल्म में होली गीत कब देखी थी याद है कुछ आपको?
विश्व दीपक - मेरा ख़याल है कि विपुल शाह की ही फ़िल्म 'वक़्त' में "डू मी एक फ़ेवर लेट्स प्ले होली" और 'बाग़बान' में "होली खेले रघुवीरा अवध में" ही होने चाहिए। वैसे आप के सवाल से ख़याल आया कि ७० के दशक में जिस तरह से होली गीत फ़िल्मों के लिए बनते थे, और जिस तरह से फ़िल्माये जाते थे, उनमें कुछ और ही बात होती थी। फ़िल्मी गीतों से धीरे धीरे विविधता ख़त्म होती जा रही है, ख़ास कर त्योहारों के गीत को बंद ही हो गये हैं। ख़ैर, होली गीत की बात चली है तो 'ऐक्शन रीप्ले' में भी एक होली गीत की गुंजाइश रखी गई है, आइए उसी गीत को सुन लिया जाए।
गीत - छान के मोहल्ला
सुजॊय - ऐश्वर्या और नेहा धुपिया पर फ़िल्माया गया यह गीत सुनिधि चौहान और ऋतु पाठक की आवाज़ों में था। पूर्णत: देसी फ़्लेवर का गाना था, लेकिन प्रीतम ने इस बात का पूरा पूरा ध्यान रखा कि यह एक आइटम सॊंग् होते हुए भी ऐश्वर्या पर फ़िल्माया जा रहा है, इसलिए एक तरह ही शालीनता भी बरक़रार रखी है।
विश्व दीपक - इरशाद कामिल लगता है गुलज़ार साहब के नक्श-ए-क़दम पर चल निकले हैं इस गीत में, जब वो लिखते हैं कि "जली तो, बुझी ना, क़सम से कोयला हो गई मैं"। इस तरह की उपमाएँ गुलज़ार साहब ही देते आये हैं। देखना यह है कि क्या यह गीत भी "डू मी एक फ़ेवर" की तरह चार्टबस्टर बन पाता है या नहीं।
सुजॊय - चार गानें हमने सुन लिए, और एक बात आपने ग़ौर की होगी कि इनमें ७० के दशक के रंग को लाने की कोशिश तो की गई है, लेकिन हर गीत एक दूसरे से अलग है। हम इस ऐल्बम के करीब करीब बीचो बीच आ पहुँचे हैं, यानी कि ९ गीतों में से ४ गीत सुन चुके हैं। तो आइए बिना कोई कमर्शियल ब्रेक लिए सुनते हैं 'ऐक्शन रीप्ले' का पाँचवाँ गीत।
गीत - तेरा मेरा प्यार
विश्व दीपक - कुल्लू मनाली की स्वर्गीक सुंदरता इस गीत के फ़िल्मांकन की ख़ासीयत है, और इस गीत को सुनने के बाद समझ में आता है कि विपुल शाह ने करीब करीब एक साल तक क्यों इंतेज़ार किया वहाँ के मौसम में सुधार का। पहाड़ी लोक गीत की छाया लिए इस गीत में अगर प्रीतम के भट्ट कैम्प की शैली सुनाई देती है तो कुछ कुछ रहमान का अंदाज़ भी महसूस होता है।
सुजॊय - बिलकुल मुझे भी यह गीत ईमरान हाश्मी टाइप का गीत लगा। कार्तिक, महालक्ष्मी और अंतरा मित्र की आवाज़ों में यह रोमांटिक गीत का भी अपना मज़ा है। और आपने कुल्लू मनाली का ज़िक्र छेड़ कर तो जैसे मुझे रोहतांग पास की पहाड़ियों में वापस ले गए जहाँ पर मैं अपने मम्मी डैडी के साथ दो साल पहले दशहरे के समय गया था। रोहतांग पास के समिट पर ऐसी बर्फ़ीली हवाएँ कि एक मिनट आप खड़े नहीं रह सकते। वहाँ से वापस आने के बाद ऐसा लगा कि जैसे किसी सपनो की दुनिया से घूम कर वापस आ रहे हों। मेरी मम्मी का एक्स्प्रेशन कुछ युं था कि "अब मुझे कहीं और घूमने जाने की चाहत ही नहीं रही"। ऐसा है कुल्लू मनाली।
विश्व दीपक - चलिए अब कुल्लू मनाली से पंजाब की धरती पर आ उतरते हैं, और सुनते हैं मीका की आवाज़ में "धक धक धक"।
गीत - धक धक धक
सुजॊय - प्रीतम के गायक चयन के बारे में हम कुछ दिन पहले ही बात कर चुके हैं। आज फिर से दोहरा रहे हैं कि प्रीतम यह भली भाँति जानते हैं कि कौन सा गीत किस गायक से गवाना है। और जब गीत बनकर बाहर आता है तो हमें यह मानना ही पड़ता है कि इस गीत के लिए चुना हुआ गायक ही सार्थक हैं उस गीत के लिए।
विश्व दीपक - इकतारा की धुनें, उसके बाद फिर धिनचक रीदम, कुल मिलाकर एक मस्ती भरा गीत। इस गीत के लिए भी थम्प्स अप ही देंगे। चलिए अब लुका छुपी का खेल भी खेल लिया जाए। अगर आपको याद हो तो फ़िल्म 'ड्रीम गर्ल' में एक गाना था "छुपा छुपी खेलें आओ", और अमिताभ बच्चन की फ़िल्म 'दो अंजाने' में भी "लुक छुप लुक छुप जाओ ना" गीत था। ये दोनों ही गानें बच्चों को केन्द्र में रख कर लिखे और फ़िल्माये गये थे। लेकिन 'ऐक्शन रीप्ले' का "लुक छुप" एक मस्ती और धमाल से लवरेज़ गीत है जिसे के. के और तुल्सी कुमार ने गाया है, जो आजकल अपने अपने करीयर में पूरे फ़ॊर्म में हैं।
सुजॊय - ७० के दशक के संगीत की बात है तो कुछ हद तक ऋषी कपूर के नृत्य गीतों की छाया इस गीत में पड़ती हुई सी लगती है। चलिए सुनते हैं।
गीत - लुक छुप जाना
विश्व दीपक - आपने ग़ौर किया कि मुखड़े का इस्तेमाल अंतरे में भी हुआ है, और यही चीज़ शायद गीत को भीड़ से अलग करती है। तालियों, सिन्थेसाइज़र, ग्रुंजे गीटार और स्टेडियम रॊक के रम्ग इस गीत में भरे गये हैं। ७० के नहीं, बल्कि मैं यह कहूँगा कि अर्ली से लेके मिड एइटीज़ का प्रभाव है इस गीत के संगीत में।
सुजॊय - रॊक मूड को बरकरार रखते हुए अब बारी है सूरज जगन के आवाज़ की, गीत है "आइ ऐम डॊग गॊन क्रेज़ी"। सूरज जगन आज के अग्रणी रॊक गायकों में से एक हैं, लेकिन इस गीत में ऐसा लगता है कि जैसे उन्होंने आवाज़ को दबाया हुआ है। इस ऐल्बम के हिसाब से मुझे तो यह गीत थोड़ा ढीला लगा, देखते हैं हमारे श्रोताओं के क्या विचार हैं।
विश्व दीपक - ६० और ७० के दशकों में बनने वाले रॊक गीतों का अंदाज़ लाने की कोशिश है इस गीत में। यहाँ पे यह बताना ज़रूरी है कि प्रीतम ही वो संगीतकार हैं जिन्होंने हार्ड रॊक को बैण्ड शोज़ से निकालकर हिंदी फ़िल्म संगीत की मुख्य धारा में शामिल करवाया 'गैंगस्टर' और 'लाइफ़ इन ए मेट्रो' जैसी फ़िल्मों के ज़रिये। आइए सुनते हैं...
गीत - आइ ऐम डॉग गॊन क्रेज़ी
सुजॊय - और अब हम पहूँच गये हैं 'ऐक्शन रीप्ले' फ़िल्म के नौवें और अंतिम गीत पर। श्रेया घोषाल की आवाज़ में नृत्य गीत "बाकी मैं भूल गई" प्यार का इज़हार करने वाले गीतों की श्रेणी में आता है, जिसमें नायिका अपनी दीवानगी ज़ाहिर करती है और उसका इक़रार करती है। प्रीतम विविधता का परिचय देते हुए मुखड़े और अंतरे की रीदम को बिलकुल अलग रखा है।
विश्व दीपक - वैसे इस गीत का प्रेरणा स्रोत हैं एक मिडल-ईस्टर्ण नंबर है, और फ़ीरोज़ ख़ान की फ़िल्मों में इस तरह के संगीत का इस्तेमाल सुना गया है। कुल मिलाकर यही कह सकते हैं कि इस ऐल्बम का एक सुखांत हुआ है। चलिए यह गीत सुन लेते हैं।
गीत - बाकी मैं भूल गई
सुजॊय - इन तमाम गीतों को सुनने के बाद मेरी अदालत यह फ़ैसला देती है कि 'ऐक्शन रीप्ले' के गीतों को बार बार रीप्ले किया जाए और सुना जाए। मेलडी और मस्ती का संगम है 'ऐक्शन रीप्ले' का ऐल्बम। प्रीतम, इरशाद कामिल और तमाम गायक गायिकाओं को मेरी तरफ़ से थम्प अप! 'चुस्त-दुरुस्त गीत' और 'लुंज पुंज गीत' तो विश्व दीपक जी अभी बताएँगे, लेकिन मुझसे अगर पूछा जाए कि वह एक गीत कौन सा है जो इस ऐल्बम का सर्वोत्तम है, तो मेरा वोट "ओ बेख़बर" को ही जाएगा।
विश्व दीपक - आपकी पसंद से हमारी पसंद जुदा कैसे हो सकती है सुजॉय जी। आपने "ओ बेखबर" को वोट दिया है तो मैं उसे हीं आज का "चुस्त-दुरुस्त" गीत घोषित करता हूँ। वैसे इस फिल्म के सभी गाने अच्छे हैं। मज़ेदार बात तो ये है कि इस दिवाली को जिन दो बड़ी फिल्मों में टक्कर है वे हैं "ऐक्शन रिप्ले" और "गोलमाल ३" और दोनों में हीं संगीत प्रीतम दा का है। अगर आप दोनों फिल्मों के गानें सुनें तो आपको लगेगा कि प्रीतम दा ने अपना ज्यादा प्यार "ऐक्शन रिप्ले" को दिया है और "गोलमाल ३" को जल्दी में निपटा-सा दिया है। खैर ये तो निर्माता-निर्देशक पर निर्भर करता है कि वे किसी संगीतकार या गीतकार से किस तरह का काम लेते हैं। मैं तो बस इतना हीं कह सकता हूँ कि विपुल शाह इस काम में सफल साबित हुए हैं। चलिए तो इन्हीं बातों के साथ आज की बैठक समाप्त करते हैं। जाते-जाते सुजॉय जी आपको और सभी मित्रों को दिपावली की अग्रिम शुभकामनाएँ।
आवाज़ की राय में
चुस्त-दुरुस्त गीत: ओ बेख़बर
लुंज-पुंज गीत: आइ ऐम डॉग गॊन क्रेज़ी
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लुक छुप पर एक और गीत याद आ रहा है - "राजा रानी प्यारे चाँद हमारे लुक छुप लुक छुप जाना, चाहे कोई जीते चाहे कोई हारे लुक छुप लुक छुप जाना".
अवध लाल