ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 522/2010/222
'दिल की कलम से', 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में कल से हमने शुरु की है यह लघु शृंखला जिसके अन्तर्गत हम कुछ ऐसी फ़िल्मी रचनाएँ सुनवा रहे हैं जिनके रचनाकार हैं हिंदी साहित्य और काव्य जगत के कुछ नामचीन साहित्यकार व कवि। ये वो प्रतिभाएँ हैं जिन्होंने हिंदी साहित्य और काव्य में अपना महत्वपूर्ण योगदान देकर उन्हें समृद्ध किया है, और जब फ़िल्मी गीत लेखन की बात आई तो यहाँ भी, कम ही सही, लेकिन कुछ ऐसे स्तरीय और अर्थपूर्ण गीत लिखे कि फ़िल्म संगीत जगत धन्य हो गया। पंडित नरेन्द्र शर्मा के बाद आज हम जिस साहित्यकार की बात कर रहे हैं वो हैं वीरेन्द्र मिश्र। कवि वीरेन्द्र मिश्र और पंडित नरेन्द्र शर्मा को जो एक बात आपस में जोड़े रखती है, वह यह कि ये दोनों ही भारत के सब से लोकप्रिय रेडियो चैनल विविध भारती से जुड़े रहे। अगर शर्मा जी विविध भारती के जन्मदाता थे तो मिश्र जी भी इसके एक मानक प्रस्तुतकर्ता, यानी कि 'प्रोड्युसर एमेरिटस' रहे हैं। वीरेन्द्र मिश्र का जन्म मध्यप्रदेश के मोरैना में हुआ था। साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें देव पुरस्कार और निराला पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। साहित्यिक कृतियों के अलावा वीरेन्द्र जी ने फ़िल्मों के लिए भी कुछ गीत लिखे हैं। जितने भी लिखे हैं, वो हमारे लिए किसी अनमोल धरोहर से कम नहीं हैं। वो आज हमारे बीच तो नहीं हैं, पर उनके कोमल भावपूर्ण गीत और कविताएँ हमेशा हमारे साथ रहेंगे और याद दिलाते रहेंगे उनकी अद्भुत प्रतिभा की। वीरेन्द्र मिश्र के लिखे फ़िल्मी रचनाओं में उल्लेखनीय है फ़िल्म 'धूप छाँव' का गीत "जूड़े में गजरा मत बांधो, मेरा गीत महक जाएगा, तेरी प्रीत सुलग जाएगी, मेरा प्यार छलक जाएगा"। शास्त्रीय संगीत पर आधारित शृंगार रस का यह गीत एक बेशकीमती नगीना है फ़िल्म संगीत की धरोहर का। आज के इस अंक के लिए हमने चुना है मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ में फ़िल्म 'धूप छाँव' का यही काव्यात्मक गीत ।
'धूप छाँव' साल १९७७ की फ़िल्म थी जिसके संगीतकार थे शंकर जयकिशन। उस समय जयकिशन जीवित तो नहीं थे, लेकिन शंकर ने कभी जयकिशन का नाम अपने से जुदा होने नहीं दिया। वैसे शंकर के सहायक के रूप में दत्ताराम ने सहायक संगीतकार की भूमिका निभाई, जो ख़ुद भी एक स्वतंत्र संगीतकार बन चुके थे। रफ़ी साहब के अलावा तीनों मंगेशकर बहनों (लता, आशा और उषा) ने इस फ़िल्म में गीत गाए। वीरेन्द्र मिश्र के लिखे इस गीत के अलवा इस फ़िल्म में विश्वेश्वर शर्मा, विट्ठलभाई पटेल और कैफ़ी आज़्मी ने भी गीत लिखे हैं। प्रह्लाद शर्मा निर्देशित इस फ़िल्म को लिखा भी प्रह्लाद जी ने ही था। फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे संजीव कुमार, हेमा मालिनी, योगिता बाली, ओम शिवपुरी, नज़ीर हुसैन प्रमुख। ऐसे मंझे हुए कलाकारों के होते हुए भी यह फ़िल्म बॊक्स ऒफ़िस पर मुंह के बल गिरी। आज अगर इस फ़िल्म को लोग याद करते हैं तो बस वीरेन्द्र मिश्र के लिखे प्रस्तुत गीत की वजह से। तो आइए निर्माता एस. एन. जैन द्वारा निर्मित 'धूप छाँव' फ़िल्म का यह गीत सुना जाए जो सराबोर है शृंगार रस के रंग से। क्योंकि यह गीत शास्त्रीय नृत्य पर आधारित है, इसलिए यहाँ पर यह बताना ज़रूरी है कि इस फ़िल्म के नृत्य निर्देशक थे गोपी कृष्ण, सत्यनारायण, ऒस्कर, और विजय। हम पूरी यकीन के साथ तो नहीं कह सकते लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि इस गीत का नृत्य गोपी कृष्ण जी ने ही तैयार किया होगा। आपको यह भी बताते चलें कि इस फ़िल्म में सरोज ख़ान सहायक नृत्य निर्देशिका थीं।
क्या आप जानते हैं...
कि 'धूप छाँव' शीर्षक से १९३५ में एक फ़िल्म बनी थी जिसमें के. सी. डे के गाये "मन की आँखें खोल बाबा" और "तेरी गठरी में लागा चोर" जैसे गीत हिंदी सिनेमा के पहले पहले 'प्री-रेकॊर्डेड' गीत माने जाते हैं।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली ०३ /शृंखला ०३
ये है गीत का प्रिल्यूड -
अतिरिक्त सूत्र - मुखड़े में शब्द है "पपीहा".
सवाल १ - इस गीत के कवि गीतकार का नाम बताएं - २ अंक
सवाल २ - १९४८ में आई इस फिल्म के संगीतकार बताएं - १ अंक
सवाल ३ - प्रमुख नायिका ने जो कि एक मशहूर गायिका भी है, अपने लिए पार्श्वगायन किया था इस गीत में, नाम बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
वाह श्याम कान्त जी ने दमदार वापसी की है दो अंकों के जवाब के साथ. शरद जी ने भी १ अंक चुरा लिया है. दूसरी शृंखला के विजेता अमित जी ने भी खाता खोल लिया है, बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
'दिल की कलम से', 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में कल से हमने शुरु की है यह लघु शृंखला जिसके अन्तर्गत हम कुछ ऐसी फ़िल्मी रचनाएँ सुनवा रहे हैं जिनके रचनाकार हैं हिंदी साहित्य और काव्य जगत के कुछ नामचीन साहित्यकार व कवि। ये वो प्रतिभाएँ हैं जिन्होंने हिंदी साहित्य और काव्य में अपना महत्वपूर्ण योगदान देकर उन्हें समृद्ध किया है, और जब फ़िल्मी गीत लेखन की बात आई तो यहाँ भी, कम ही सही, लेकिन कुछ ऐसे स्तरीय और अर्थपूर्ण गीत लिखे कि फ़िल्म संगीत जगत धन्य हो गया। पंडित नरेन्द्र शर्मा के बाद आज हम जिस साहित्यकार की बात कर रहे हैं वो हैं वीरेन्द्र मिश्र। कवि वीरेन्द्र मिश्र और पंडित नरेन्द्र शर्मा को जो एक बात आपस में जोड़े रखती है, वह यह कि ये दोनों ही भारत के सब से लोकप्रिय रेडियो चैनल विविध भारती से जुड़े रहे। अगर शर्मा जी विविध भारती के जन्मदाता थे तो मिश्र जी भी इसके एक मानक प्रस्तुतकर्ता, यानी कि 'प्रोड्युसर एमेरिटस' रहे हैं। वीरेन्द्र मिश्र का जन्म मध्यप्रदेश के मोरैना में हुआ था। साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें देव पुरस्कार और निराला पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। साहित्यिक कृतियों के अलावा वीरेन्द्र जी ने फ़िल्मों के लिए भी कुछ गीत लिखे हैं। जितने भी लिखे हैं, वो हमारे लिए किसी अनमोल धरोहर से कम नहीं हैं। वो आज हमारे बीच तो नहीं हैं, पर उनके कोमल भावपूर्ण गीत और कविताएँ हमेशा हमारे साथ रहेंगे और याद दिलाते रहेंगे उनकी अद्भुत प्रतिभा की। वीरेन्द्र मिश्र के लिखे फ़िल्मी रचनाओं में उल्लेखनीय है फ़िल्म 'धूप छाँव' का गीत "जूड़े में गजरा मत बांधो, मेरा गीत महक जाएगा, तेरी प्रीत सुलग जाएगी, मेरा प्यार छलक जाएगा"। शास्त्रीय संगीत पर आधारित शृंगार रस का यह गीत एक बेशकीमती नगीना है फ़िल्म संगीत की धरोहर का। आज के इस अंक के लिए हमने चुना है मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ में फ़िल्म 'धूप छाँव' का यही काव्यात्मक गीत ।
'धूप छाँव' साल १९७७ की फ़िल्म थी जिसके संगीतकार थे शंकर जयकिशन। उस समय जयकिशन जीवित तो नहीं थे, लेकिन शंकर ने कभी जयकिशन का नाम अपने से जुदा होने नहीं दिया। वैसे शंकर के सहायक के रूप में दत्ताराम ने सहायक संगीतकार की भूमिका निभाई, जो ख़ुद भी एक स्वतंत्र संगीतकार बन चुके थे। रफ़ी साहब के अलावा तीनों मंगेशकर बहनों (लता, आशा और उषा) ने इस फ़िल्म में गीत गाए। वीरेन्द्र मिश्र के लिखे इस गीत के अलवा इस फ़िल्म में विश्वेश्वर शर्मा, विट्ठलभाई पटेल और कैफ़ी आज़्मी ने भी गीत लिखे हैं। प्रह्लाद शर्मा निर्देशित इस फ़िल्म को लिखा भी प्रह्लाद जी ने ही था। फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे संजीव कुमार, हेमा मालिनी, योगिता बाली, ओम शिवपुरी, नज़ीर हुसैन प्रमुख। ऐसे मंझे हुए कलाकारों के होते हुए भी यह फ़िल्म बॊक्स ऒफ़िस पर मुंह के बल गिरी। आज अगर इस फ़िल्म को लोग याद करते हैं तो बस वीरेन्द्र मिश्र के लिखे प्रस्तुत गीत की वजह से। तो आइए निर्माता एस. एन. जैन द्वारा निर्मित 'धूप छाँव' फ़िल्म का यह गीत सुना जाए जो सराबोर है शृंगार रस के रंग से। क्योंकि यह गीत शास्त्रीय नृत्य पर आधारित है, इसलिए यहाँ पर यह बताना ज़रूरी है कि इस फ़िल्म के नृत्य निर्देशक थे गोपी कृष्ण, सत्यनारायण, ऒस्कर, और विजय। हम पूरी यकीन के साथ तो नहीं कह सकते लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि इस गीत का नृत्य गोपी कृष्ण जी ने ही तैयार किया होगा। आपको यह भी बताते चलें कि इस फ़िल्म में सरोज ख़ान सहायक नृत्य निर्देशिका थीं।
क्या आप जानते हैं...
कि 'धूप छाँव' शीर्षक से १९३५ में एक फ़िल्म बनी थी जिसमें के. सी. डे के गाये "मन की आँखें खोल बाबा" और "तेरी गठरी में लागा चोर" जैसे गीत हिंदी सिनेमा के पहले पहले 'प्री-रेकॊर्डेड' गीत माने जाते हैं।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली ०३ /शृंखला ०३
ये है गीत का प्रिल्यूड -
अतिरिक्त सूत्र - मुखड़े में शब्द है "पपीहा".
सवाल १ - इस गीत के कवि गीतकार का नाम बताएं - २ अंक
सवाल २ - १९४८ में आई इस फिल्म के संगीतकार बताएं - १ अंक
सवाल ३ - प्रमुख नायिका ने जो कि एक मशहूर गायिका भी है, अपने लिए पार्श्वगायन किया था इस गीत में, नाम बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
वाह श्याम कान्त जी ने दमदार वापसी की है दो अंकों के जवाब के साथ. शरद जी ने भी १ अंक चुरा लिया है. दूसरी शृंखला के विजेता अमित जी ने भी खाता खोल लिया है, बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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