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निर्बल से लड़ाई बलवान की, ये कहानी है दीये की और तूफ़ान की....प्रेरणा का स्रोत है ये गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 532/2010/232

मस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर पहली बार बीस कड़ियों की एक लघु शृंखला कल से हमने शुरु की है - 'हिंदी सिनेमा के लौह स्तंभ'। इस शृंखला के पहले खण्ड में आप सुन रहे हैं फ़िल्मकार वी. शांताराम की फ़िल्मों के गीत और पढ़ रहे हैं उनके फ़िल्मी सफ़र का लेखा जोखा। मूक फ़िल्मों से शुर कर कल के अंक के अंत में हम आ पहुँचे थे साल १९३२ में। आज १९३३ से बात को आगे बढ़ाते हैं। इस साल शांताराम ने अपनी फ़िल्म 'सैरंध्री' को जर्मनी लेकर गए आगफ़ा लैब में कलर प्रोसेसिंग् के लिए। लेकिन जैसी उन्हें उम्मीद थी, वैसा रंग नहीं जमा सके। तस्वीरें बड़ी फीकी फीकी थी, वरना यही फ़िल्म भारत की पहली रंगीन फ़िल्म होने का गौरव प्राप्त कर लेती. यह गौरव आर्दशिर ईरानी के 'किसान कन्या' को प्राप्त हुआ आगे चलकर। कुछ समय के लिए शांताराम जर्मनी में रहे क्योंकि उन्हें वहाँ काम करने के तौर तरीक़े बहुत पसंद आये थे। १९३३ में ही 'प्रभात स्टुडियोज़' को कोल्हापुर से पुणे स्थानांतरित कर लिया गया, क्योंकि पुणे फ़िल्म निर्माण का एक मुख्य केन्द्र बनने लगा था। १९३४ में इस स्टुडियो ने प्रदर्शित की फ़िल्म 'अमृत मंथन', जिसका विषय था बौद्ध और दूसरे धर्मों के बीच का तनाव। यह फ़िल्म हिट हुई थी। शांता आप्टे के गाये इस फ़िल्म के गानें भी बहुत लोकप्रिय हुए थे। उसके बाद १९३५ में मराठी संत एकनाथ पर उन्होंने फ़िल्म बनायी 'धर्मात्मा', जिसमें संत एकनाथ का चरित्र निभाया था बाल गंधर्व ने। इस फ़िल्म की एक दिलचस्प बात पढ़िएगा "क्या आप जानते हैं" में। १९३६ में इसी तरह की एक और फ़िल्म आयी 'संत तुकाराम', जिसे १९३७ में वेनिस फ़िल्म फ़ेस्टिवल में पुरस्कृत किया गया था, जो ऐसी पहली भारतीय फ़िल्म थी। विष्णुपति पगनिस ने संत तुकाराम की भूमिका अदी की। वी. शांताराम के हर फ़िल्म में समाज के लिए कोई ना कोई संदेश हुआ करता था। १९३६ में बनी 'अमर ज्योति' एक औरत की कहानी थी जो एक डाकू बनकर अपने पे हुई अन्याय का बदला लेती है। यह एक बिलकुल ही अलग तरह की फ़िल्म थी 'प्रभात' के लिए, जिसमें स्टण्ट और ऐक्शन का बोलबाला था। आगे चलकर इस विषय पर बेशुमार फ़िल्में बनीं। १९३७ में एक और फ़िल्म आई 'दुनिया ना माने', जिसमें भी नारी समस्या केन्द्रबिंदु में थी। ३० के दशक का आख़िरी साल, १९३९ में शांताराम की एक बेहद महत्वपूर्ण फ़िल्म आई 'आदमी' और इस बार विषयवस्तु थी वेश्या। केसर नाम की एक वेश्या के संघर्ष की कहानी थी यह फ़िल्म। हालाँकि पी. सी. बरुआ ने 'देवदास' में चंद्रमुखी को एक बड़े ही भावुक किरदार में प्रस्तुत किया था, शांताराम ने केसर का ऐसा चित्रण क्या जो असली ज़िंदगी के बहुत करीब था। तो ये था ३० के दशक में शांताराम के फ़िल्मी सफ़र का एक संक्षिप्त विवरण। ये सभी फ़िल्में उस ज़माने में बेहद चर्चित हुई थी और शांताराम के इन प्रयासों से 'प्रभात स्टुडियोज़' कामयाबी के शिखर पर पहुँच चुका था।

दोस्तों, कल की कड़ी में हम आपको शांताराम के ४० के दशक की फ़िल्मों के बारे में बताएँगे, लेकिन फ़िल्हाल आइए एक बड़ा ही आशावादी गीत सुनते हैं। कौन सा गीत है, इस गीत से शांताराम जी की कैसी यादें जुड़ी हुई हैं, लीजिए पढ़िए शांताराम जी की ही ज़ुबानी, जो उन्होंने कहे थे विविध भारती के 'विशेष जयमाला' कार्यक्रम में। "मैं अपनी ज़िंदगी में उपदेशपूर्ण फ़िल्में बनाता आया हूँ। और उनमें सामाजिक, राजनैतिक और मानविक समस्याएँ प्रस्तुत करता रहा हूँ। साथ ही साथ इन समस्याओं को अपने ढंग से सुलझाने की कोशिश भी करता रहा हूँ। मेरी बनाई हुई फ़िल्में देखने के बाद देश के कोने कोने से लोग मुझे अपनी प्रशंसा और आलोचना लिख कर भेजते हैं। अधिकतर लोग मुझे ऐसी फ़िल्में बनाने की उपदेश भी देते हैं। ऐसे पत्रों को पढ़कर ऐसी समस्यापूर्ण और उपदेशपूर्ण फ़िल्में बनाने का मेरा उत्साह और भी बढ़ जाता है। इस संबंध में कई प्रत्यक्ष घटनाएँ भी हुईं हैं। उनमें से एक मैं आपको बताए बिना नहीं रह सकता। मेरी पहचान का एक आदमी किसी गाँव गया था। स्टेशन पर उसका सामान एक छोटे से लड़के ने उठाकर कहा 'बाहर पहूँचा दूँ साहब?' उस आदमी ने कहा 'अभी तू बहुत छोटा है, इतनी कष्ट का काम क्यों करता है?' लड़के ने जवाब दिया, 'मेहनत करके कुछ पैसे कमाऊँगा और अपनी माँ की मदद करूँगा।' उस आदमी ने फिर पूछा 'क्या तुम्हारी माँ ने तुम्हे काम करने को कहा है?' तब उस बालक ने कहा, 'माँ को तो इसका पता भी नहीं है, मैंने 'तूफ़ान और दीया' नाम की एक फ़िल्म देखी थी, उसमें मुझसे भी छोटा एक लड़का अपनी अंधी बहन के लिए इससे भी ज़्यादा कष्ट उठाता है, तो क्या मैं अपनी माँ के लिए इतना काम भी नहीं क सकता!' उस आदमी से यह घटना सुन कर मेरी आँखें भर आईं। आज तक मुझे मिलने वाले पुरस्कारों में यही एक पुरस्कार मेरे लिए बड़ा था। जी हाँ, 'तूफ़ान और दीया' फ़िल्म का निर्माण मैंने ही किया था, और दिग्दर्शन मेरा पुत्र प्रभात कुमार ने किया था। इस फ़िल्म का शीर्षक गीत आज भी निर्बल को बलवान बनाने का संदेश देता है।" तो लीजिए दोस्तों, मन्ना डे और साथियों की आवाज़ों में १९५६ की फ़िल्म 'तूफ़ान और दीया' का यह शीर्षक गीत सुनिए, गीत लिखा है भरत व्यास ने और संगीत दिया है वसंत देसाई ने।



क्या आप जानते हैं...
कि १९३५ की फ़िल्म 'धर्मात्मा', जो मराठी संत एकनाथ की जीवनी पर बनी फ़िल्म थी, इस फ़िल्म का शीर्षक पहले 'महात्मा' रखा गया था, लेकिन गांधीजी के नाम और काम के साथ समानता को देखते हुए सेन्सर बोर्ड ने फ़िल्म के कुछ सीन्स काटने का निर्देश दिया। शांताराम ने यह गवारा नहीं किया और फ़िल्म की शीर्षक ही बदल दिया।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली ३ /शृंखला ०४
गीत का इंटरल्यूड सुनिए -


अतिरिक्त सूत्र - यह एक बेहद कामयाब संगीतमयी फिल्म थी.

सवाल १ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल २ - पुरुष गायक कौन हैं इस युगल गीत में - १ अंक
सवाल ३ - गीतकार बताएं - २ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी आगे निकल आये हैं, उन्हें श्याम कान्त जी और अमित जी को बधाई....अवध जी जरा चूक गए पहले....रोमेंद्र जी आप फिर गायब हो गए

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments

ShyamKant said…
This post has been removed by the author.
ShyamKant said…
Hasrat Jaipuri
AVADH said…
फिल्म- झनक झनक पायल बाजे
अवध लाल
chintoo said…
2- Hemant Kumar
अजी नहीं ! गायब तो नहीं हुए...पर अलबत्ता देर से पहुंचे ! वो कहते हैं ना.."मैं देर करता नहीं देर हो जाती है .." बाकी सभी लोग पहले से ही पँजे तेज़ किये बैठे रहते है ! आज का मधुर गीत मेरा फेवरिट गीत है ...लेकिन जवाब सभी लोग पहले ही दे चुके हैं सो ...आज भी रह गए !
AVADH said…
भाई सुजॉय के परिणय बंधन पर हम समस्त आवाज़ रसिक परिवार की ओर से ढेर सारी शुभकामनाएं.
अवध लाल
ये जिन्दगी उसी की है जो किसी का हो गया
लता, राजेन्द्र कृष्ण, सी०रामचन्द्र, अनारकली..
हेमन्त जी तो पक्का हैं...
कल तो चोट हो गई । मैं ६.३० से बहुत देर तक पहेली का इन्तज़ार करता रहा पर नहीं आई थी सोचा शायद आज नहीं आनी होगी । फ़िर मैं भी एक शादी में चला गया । आज अभी देखा कि वह तो आई हुई है और बहुत ही सरल है\ मेरे नम्बर मारे गए । सुजॊय जी को हार्दिक शुभकामनाएं । उनसे कहें कि ’नैन सूं नैन जल्दी मिलाएं’

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