ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 528/2010/228
हिंदी साहित्य छायावादी विचारधारा के लिए जाना जाता है। छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में एक स्तंभ का नाम है महादेवी वर्मा। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और स्वागत है हिंदी साहित्यकारों की फ़िल्मी रचनाओं पर आधारित लघु शृंखला 'दिल की कलम से' की आठवीं कड़ी में। महादेवी वर्मा ना केवल हिंदी की एक असाधारण कवयित्री थीं, बल्कि वो एक स्वाधीनता संग्रामी, नारीमुक्ति कार्यकर्ता और एक उत्कृष्ट शिक्षाविद भी थीं। महादेवी वर्मा का जन्म २६ मार्च १९०७ को फ़र्रुख़ाबाद में हुआ था। उनकी शिक्षा मध्यप्रदेश के जबलपुर में हुआ था। उनके पिता गिविंदप्रसाद और माता हेमरानी की वो वरिष्ठ संतान थीं। उनके दो भाई और एक बहन थीं श्यामा। महादेवी जी का विवाह उनके ९ वर्ष की आयु में इंदौर के डॊ. स्वरूप नारायण वर्मा से हुआ, लेकिन नाबालिक होने की वजह से वो अपने माता पिता के साथ ही रहने लगीं और पढ़ाई लिखाई में मन लगाया। उनके पति लखनऊ में अपनी पढ़ाई पूरी। महादेवी जी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की और १९२९ में बी.ए की डिग्री लेकर १९३३ में सम्स्कृत में एम.ए कर लीं। महादेवी वर्मा और उनके पति दांपत्य जीवन में ज़्यादातर अलग अलग ही रहे अपनी अपनी रुचियों के चलते। १९६६ में स्वरूप जी के निधन के बाद महादेवी स्थायी रूप से इलाहाबाद में रहने लगीं और आजीवन वहीं रहीं। महात्मा बुद्ध के विचारों का उन पर गहरा असर हुआ और एक समय उन्होंने एक बौध भिक्षुणी बनने की भी कोशिश की थी। इलाहाबाद महिला विद्यापीठ की वो प्रथम मुख्यशिक्षिका बनीं, जिसका मुख्य उद्येश्य था हिंदी माध्यम से लड़कियों को शिक्षा देना। आगे चलकर वो इस विद्यापीठ की चांसेलर भी बनीं। ११ सितंबर १९८७ के रात ९:२७ मिनट पर महादेवी वर्मा चिरनिद्रा में सो गईं।
महादेवी वर्मा द्वारा लिखित कविता संग्रह 'यामा' को बेहद सराहना मिली थी, जिसे ज्ञानपीठ पुरस्कर से सम्मानित किया गया था। १९५६ में भारत सरकार ने साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए महादेवी वर्मा को पद्म भूषण से सम्मानित किया था। इसके अलावा १९७९ में देश के सर्वोच्च साहित्य सम्मान 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' से उन्हें सम्मानित किया जा चुका है। १९८८ में मरणोपरांत उन्हें पद्मविभुषण से सम्मानित किया गया था। महादेवी वर्मा की लिखी कविताएँ और कहानियाँ स्कूल कालेजों के पाठ्यपुस्तकों में स्थान पाते हैं। महादेवी वर्मा को एक फ़िल्मी गीतकार के रूप में पाना फ़िल्म जगत का सौभाग्य है। १९८६ की फ़िल्म 'त्रिकोण का चौथा कोण' में उनका लिखा एक गीत शामिल किया गया था। छाया गांगुली की आवाज़ में यह गीत एक अद्भुत रचना है जिसे जयदेव ने स्वरबद्ध किया था। दोस्तों, मैं कोई साहित्यकार नहीं जो इस गीत के साहित्यिक पक्ष पर कोई टिप्पणी कर सकूँ, लेकिन इतना ज़रूर महसूस कर सकता हूँ कि यह एक उत्कृष्ट रचना है। इस कमचर्चित फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे विजयेन्द्र घाटगे, स्वरूप सम्पत, प्रियदर्शिनी, प्रमुख। जैसा कि फ़िल्म के शीर्षक से ही प्रतीत होता है, विवाह से बाहर के संबंधों का ताना बाना बुना गया होगा इस फ़िल्म की कहानी में। आइए इस गीत को सुनते हैं,
हौले हौले रस घोले बोले मुझसे जिया,
पिया पिया पे क्या जादू पर मैंने क्या किया।
इठलाये, इतराये, इतराये, इठलाये, पूछे मुझसे जिया,
पिया पिया पे क्या जादू पर मैंने क्या किया।
ज़रा देखिए कि किस तरह से "इठलाये" और "इतराये" शब्दों को दूसरी बार आपस में बदल कर गीत के सौंदर्य को और भी बढ़ा दिया है। लीजिए यह गीत सुनिए और महसूस कीजिए कि छाया गांगुली ने कैसा ख़ूबसूरत अंजाम दिया है इस गीत को। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का आज का यह अंक समर्पित है महान कवयित्री और साहित्यकार महादेवी वर्मा की पुण्य स्मृति को।
क्या आप जानते हैं...
कि छायावादी विचारधारा के चार स्तंभों में महादेवी वर्मा के अलावा बाकी तीन स्तंभ कौन से हैं? ये हैं सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', जयशंकर प्रसाद, और सुमित्रानंदन
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली ०९ /शृंखला ०३
ये प्रिल्यूड है गीत का -
अतिरिक्त सूत्र - ये कवि पिता भी हैं इंडस्ट्री के एक महानायक के.
सवाल १ - कवि / गीतकार का नाम बताएं - १ अंक
सवाल २ - गायक बताएं - २ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
श्याम कान्त जी ने काफी अच्छी बढ़त बना ली है, लगता है एक और मुकाबला उनके नाम रहेगा. शरद जी और अमित को भी बधाई, अवध जी का आभार
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
हिंदी साहित्य छायावादी विचारधारा के लिए जाना जाता है। छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में एक स्तंभ का नाम है महादेवी वर्मा। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और स्वागत है हिंदी साहित्यकारों की फ़िल्मी रचनाओं पर आधारित लघु शृंखला 'दिल की कलम से' की आठवीं कड़ी में। महादेवी वर्मा ना केवल हिंदी की एक असाधारण कवयित्री थीं, बल्कि वो एक स्वाधीनता संग्रामी, नारीमुक्ति कार्यकर्ता और एक उत्कृष्ट शिक्षाविद भी थीं। महादेवी वर्मा का जन्म २६ मार्च १९०७ को फ़र्रुख़ाबाद में हुआ था। उनकी शिक्षा मध्यप्रदेश के जबलपुर में हुआ था। उनके पिता गिविंदप्रसाद और माता हेमरानी की वो वरिष्ठ संतान थीं। उनके दो भाई और एक बहन थीं श्यामा। महादेवी जी का विवाह उनके ९ वर्ष की आयु में इंदौर के डॊ. स्वरूप नारायण वर्मा से हुआ, लेकिन नाबालिक होने की वजह से वो अपने माता पिता के साथ ही रहने लगीं और पढ़ाई लिखाई में मन लगाया। उनके पति लखनऊ में अपनी पढ़ाई पूरी। महादेवी जी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की और १९२९ में बी.ए की डिग्री लेकर १९३३ में सम्स्कृत में एम.ए कर लीं। महादेवी वर्मा और उनके पति दांपत्य जीवन में ज़्यादातर अलग अलग ही रहे अपनी अपनी रुचियों के चलते। १९६६ में स्वरूप जी के निधन के बाद महादेवी स्थायी रूप से इलाहाबाद में रहने लगीं और आजीवन वहीं रहीं। महात्मा बुद्ध के विचारों का उन पर गहरा असर हुआ और एक समय उन्होंने एक बौध भिक्षुणी बनने की भी कोशिश की थी। इलाहाबाद महिला विद्यापीठ की वो प्रथम मुख्यशिक्षिका बनीं, जिसका मुख्य उद्येश्य था हिंदी माध्यम से लड़कियों को शिक्षा देना। आगे चलकर वो इस विद्यापीठ की चांसेलर भी बनीं। ११ सितंबर १९८७ के रात ९:२७ मिनट पर महादेवी वर्मा चिरनिद्रा में सो गईं।
महादेवी वर्मा द्वारा लिखित कविता संग्रह 'यामा' को बेहद सराहना मिली थी, जिसे ज्ञानपीठ पुरस्कर से सम्मानित किया गया था। १९५६ में भारत सरकार ने साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए महादेवी वर्मा को पद्म भूषण से सम्मानित किया था। इसके अलावा १९७९ में देश के सर्वोच्च साहित्य सम्मान 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' से उन्हें सम्मानित किया जा चुका है। १९८८ में मरणोपरांत उन्हें पद्मविभुषण से सम्मानित किया गया था। महादेवी वर्मा की लिखी कविताएँ और कहानियाँ स्कूल कालेजों के पाठ्यपुस्तकों में स्थान पाते हैं। महादेवी वर्मा को एक फ़िल्मी गीतकार के रूप में पाना फ़िल्म जगत का सौभाग्य है। १९८६ की फ़िल्म 'त्रिकोण का चौथा कोण' में उनका लिखा एक गीत शामिल किया गया था। छाया गांगुली की आवाज़ में यह गीत एक अद्भुत रचना है जिसे जयदेव ने स्वरबद्ध किया था। दोस्तों, मैं कोई साहित्यकार नहीं जो इस गीत के साहित्यिक पक्ष पर कोई टिप्पणी कर सकूँ, लेकिन इतना ज़रूर महसूस कर सकता हूँ कि यह एक उत्कृष्ट रचना है। इस कमचर्चित फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे विजयेन्द्र घाटगे, स्वरूप सम्पत, प्रियदर्शिनी, प्रमुख। जैसा कि फ़िल्म के शीर्षक से ही प्रतीत होता है, विवाह से बाहर के संबंधों का ताना बाना बुना गया होगा इस फ़िल्म की कहानी में। आइए इस गीत को सुनते हैं,
हौले हौले रस घोले बोले मुझसे जिया,
पिया पिया पे क्या जादू पर मैंने क्या किया।
इठलाये, इतराये, इतराये, इठलाये, पूछे मुझसे जिया,
पिया पिया पे क्या जादू पर मैंने क्या किया।
ज़रा देखिए कि किस तरह से "इठलाये" और "इतराये" शब्दों को दूसरी बार आपस में बदल कर गीत के सौंदर्य को और भी बढ़ा दिया है। लीजिए यह गीत सुनिए और महसूस कीजिए कि छाया गांगुली ने कैसा ख़ूबसूरत अंजाम दिया है इस गीत को। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का आज का यह अंक समर्पित है महान कवयित्री और साहित्यकार महादेवी वर्मा की पुण्य स्मृति को।
क्या आप जानते हैं...
कि छायावादी विचारधारा के चार स्तंभों में महादेवी वर्मा के अलावा बाकी तीन स्तंभ कौन से हैं? ये हैं सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', जयशंकर प्रसाद, और सुमित्रानंदन
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली ०९ /शृंखला ०३
ये प्रिल्यूड है गीत का -
अतिरिक्त सूत्र - ये कवि पिता भी हैं इंडस्ट्री के एक महानायक के.
सवाल १ - कवि / गीतकार का नाम बताएं - १ अंक
सवाल २ - गायक बताएं - २ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
श्याम कान्त जी ने काफी अच्छी बढ़त बना ली है, लगता है एक और मुकाबला उनके नाम रहेगा. शरद जी और अमित को भी बधाई, अवध जी का आभार
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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