ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 285
राज कपूर के आर.के.फ़िल्म्स के बैनर के बाहर की फ़िल्मों में लिखे हुए गीतकार शैलेन्द्र के गीतों का करवाँ इन दिनों बढ़ा जा रहा है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस ख़ास शृंखला "शैलेन्द्र- आर.के.फ़िल्म्स के इतर भी" के अंतर्गत। मन्ना डे, लता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी और मुकेश के बाद आज बारी है हमारे किशोर दा की। इससे पहले हमने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर शैलेन्द्र, सलिल चौधरी और किशोर कुमार की तिकड़ी का केवल गीत बजाया है फ़िल्म 'नौकरी' से "छोटा सा घर होगा बादलों की छाँव में"। आज हम आपको सुनवाने के लिए लाए हैं इसी तिकड़ी का बनाया हुआ १९५७ की फ़िल्म 'मुसाफ़िर' का एक बड़ा ही प्यारा सा बच्चों वाला गीत - "मुन्ना बड़ा प्यारा अम्मी का दुलारा, कोई कहे चाँद कोई आँख का तारा"। 'फ़िल्म ग्रूप' के बैनर तले बनी इस फ़िल्म को निर्देशित किया ॠषीकेश मुखर्जी ने। फ़िल्म की कहानी काफ़ी दिलचस्प थी। कहानी एक मकान और उसमें रहने वाले किराएदारों के इर्द-गिर्द घूमती है। हर किराएदार कुछ दिनों के लिए रहता है, दर्शकों के दिलों में जगह बनाता है और फिर एक दिन उस घर को छोड़कर चला जाता है। इस फ़िल्म में कई बड़े नाम शामिल हैं लेकिन वो फ़िल्म में एक साथ स्क्रीन स्पेस शेयर नहीं करते। सुचित्रा सेन घर से भागे हुए एक दम्पति का हिस्सा हैं जो उस मकान के पहले किराएदार होते हैं। उनके जाने के बाद अगला परिवार उस मकान में आता है जिसमें शामिल हैं किशोर कुमार, नासिर हुसैन और निरुपा रॉय। आख़िरी किराएदार परिवार में थे उषा किरण और दिलीप कुमार। दोस्तों, इस फ़िल्म में दिलीप साहब ने लता जी के साथ एक डुएट गीत गाया था "लागी नाही छूटे रामा चाहे जिया जाए"। लेकिन आज हम आपको किशोर दा का गाया गीत सुनवा रहे हैं, जो बहुत ही ख़ुशरंग है, और बहुत ही मासूमियत से भरा हुआ है। कुल मिलाकर, फ़िल्म 'मुसाफ़िर' एक दिलचस्प कहानी है और ॠषी दा ने बहुत ही अच्छा निर्देशन किया है। कहने की ज़रूरत नहीं कि उनके निर्देशित फ़िल्मों में अनाड़ी, असली नकली, अनुपमा, अनुराधा, आनंद, बावर्ची, गुड्डी, गोलमाल, जैसे कामयाब फ़िल्में शामिल हैं।
शैलेन्द्र ने प्रस्तुत गीत में लिखा है "एक दिन वो माँ से बोला क्यों फूँकती है चूल्हा, क्यों ना रोटियों का पेड़ लगा लें, आम तोड़े रोटी तोड़े, रोटी आम खा लें, काहे कले (करे) लोज लोज (रोज़ रोज़) तू ये झमेला"। इसमें बच्चे का अपनी माँ के लिए फ़िक्र झलकता है। लेकिन माँ यही जवाब देती है कि "अम्मी को आई हँसी, हँस के वो कहने लगी, लाल मेहनत के बिना रोटी किस घर में पकी, जियो मेरे लाल"। इस हँसते खेलते मस्ती भरे गीत में भी किस तरह की गम्भीर सीख दी गई है, ज़रा महसूस कीजिए। दोस्तों, जब मुन्ना और अम्मी का ज़िक्र आज हो ही रहा है तो क्यों ना हम शैलेन्द्र जी के बेटे से यह जानें कि किस तरह के संबंध थे उनके अपने पिता के साथ। क्या कभी उन्होने उनकी पिटाई भी की थी? यह अंश उसी १०४.४ आवाज़ एफ़.एम. दुबई के कार्यक्रम से लिया गया है। मनोज शैलेन्द्र कहते हैं - "बाबा का जो नेचर था बहुत ही सॉफ्ट और केयरिंग् था। जितनी भी पिटाई हुई हमारी वो सब मम्मी ने करी। बाबा ने एक बार भी हाथ नहीं उठाया हमारे उपर। लेकिन हमें याद है एक बार हमारे स्कूल की रिपोर्ट इतनी अच्छी नहीं थी, I think high school 10th class report card था जो उनसे साइन करवाना था, बाबा से। तो लेके गया, बताया, बाबा ने कहा कि this is not good, यह रिपोर्ट अच्छी नहीं है तुम्हारी। तो इतना कहा कि हमारे कमरे से बाहर जाओ और हम तुमसे बात नहीं करेंगे। It was such a painful experience, that the fact that I wont talk to you, it was such painful, I am telling, I was crying and crying. I wished कि वो हमें दो थप्पड़ मार देते तो I would have borne it and it would have been over, but this was more painful than the slaps. I went back to him and said that I am very very sorry, I will definitely improve upon." तो ये तो थी बाप बेटे का बात, अब वक़्त है माँ बेटे के रिश्ते पर आधारित गीत सुनने की। सुनते हैं "मुन्ना बड़ा प्यारा"। शैलेन्द्र, सलिल दा और किशोर दा का एक यादगार गीत।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी (दो बार), स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. शैलेन्द्र ने कुछ कड़े सवाल पूछे हैं ऊपर वाले से इस गीत में.
२. आवाज़ है लता की.
३. एक अंतरे की पहली पंक्ति में शब्द है -"धूल".
पिछली पहेली का परिणाम -
अवध जी बहुत दिनों बाद आपकी आमद हुई, चलते चलते आपने भी ६ अंक कमा ही लिए. बधाई...इंदु जी जन्मदिन किसका था, आपका ?, अगर हाँ तो हमारी पूरी टीम की तरफ से स्वीकार कीजिये ढेर सारी शुभकामनाएँ, स्वस्थ का ध्यान रखें और मधुर गीतों से जीवन संवारते रहें.
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
राज कपूर के आर.के.फ़िल्म्स के बैनर के बाहर की फ़िल्मों में लिखे हुए गीतकार शैलेन्द्र के गीतों का करवाँ इन दिनों बढ़ा जा रहा है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस ख़ास शृंखला "शैलेन्द्र- आर.के.फ़िल्म्स के इतर भी" के अंतर्गत। मन्ना डे, लता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी और मुकेश के बाद आज बारी है हमारे किशोर दा की। इससे पहले हमने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर शैलेन्द्र, सलिल चौधरी और किशोर कुमार की तिकड़ी का केवल गीत बजाया है फ़िल्म 'नौकरी' से "छोटा सा घर होगा बादलों की छाँव में"। आज हम आपको सुनवाने के लिए लाए हैं इसी तिकड़ी का बनाया हुआ १९५७ की फ़िल्म 'मुसाफ़िर' का एक बड़ा ही प्यारा सा बच्चों वाला गीत - "मुन्ना बड़ा प्यारा अम्मी का दुलारा, कोई कहे चाँद कोई आँख का तारा"। 'फ़िल्म ग्रूप' के बैनर तले बनी इस फ़िल्म को निर्देशित किया ॠषीकेश मुखर्जी ने। फ़िल्म की कहानी काफ़ी दिलचस्प थी। कहानी एक मकान और उसमें रहने वाले किराएदारों के इर्द-गिर्द घूमती है। हर किराएदार कुछ दिनों के लिए रहता है, दर्शकों के दिलों में जगह बनाता है और फिर एक दिन उस घर को छोड़कर चला जाता है। इस फ़िल्म में कई बड़े नाम शामिल हैं लेकिन वो फ़िल्म में एक साथ स्क्रीन स्पेस शेयर नहीं करते। सुचित्रा सेन घर से भागे हुए एक दम्पति का हिस्सा हैं जो उस मकान के पहले किराएदार होते हैं। उनके जाने के बाद अगला परिवार उस मकान में आता है जिसमें शामिल हैं किशोर कुमार, नासिर हुसैन और निरुपा रॉय। आख़िरी किराएदार परिवार में थे उषा किरण और दिलीप कुमार। दोस्तों, इस फ़िल्म में दिलीप साहब ने लता जी के साथ एक डुएट गीत गाया था "लागी नाही छूटे रामा चाहे जिया जाए"। लेकिन आज हम आपको किशोर दा का गाया गीत सुनवा रहे हैं, जो बहुत ही ख़ुशरंग है, और बहुत ही मासूमियत से भरा हुआ है। कुल मिलाकर, फ़िल्म 'मुसाफ़िर' एक दिलचस्प कहानी है और ॠषी दा ने बहुत ही अच्छा निर्देशन किया है। कहने की ज़रूरत नहीं कि उनके निर्देशित फ़िल्मों में अनाड़ी, असली नकली, अनुपमा, अनुराधा, आनंद, बावर्ची, गुड्डी, गोलमाल, जैसे कामयाब फ़िल्में शामिल हैं।
शैलेन्द्र ने प्रस्तुत गीत में लिखा है "एक दिन वो माँ से बोला क्यों फूँकती है चूल्हा, क्यों ना रोटियों का पेड़ लगा लें, आम तोड़े रोटी तोड़े, रोटी आम खा लें, काहे कले (करे) लोज लोज (रोज़ रोज़) तू ये झमेला"। इसमें बच्चे का अपनी माँ के लिए फ़िक्र झलकता है। लेकिन माँ यही जवाब देती है कि "अम्मी को आई हँसी, हँस के वो कहने लगी, लाल मेहनत के बिना रोटी किस घर में पकी, जियो मेरे लाल"। इस हँसते खेलते मस्ती भरे गीत में भी किस तरह की गम्भीर सीख दी गई है, ज़रा महसूस कीजिए। दोस्तों, जब मुन्ना और अम्मी का ज़िक्र आज हो ही रहा है तो क्यों ना हम शैलेन्द्र जी के बेटे से यह जानें कि किस तरह के संबंध थे उनके अपने पिता के साथ। क्या कभी उन्होने उनकी पिटाई भी की थी? यह अंश उसी १०४.४ आवाज़ एफ़.एम. दुबई के कार्यक्रम से लिया गया है। मनोज शैलेन्द्र कहते हैं - "बाबा का जो नेचर था बहुत ही सॉफ्ट और केयरिंग् था। जितनी भी पिटाई हुई हमारी वो सब मम्मी ने करी। बाबा ने एक बार भी हाथ नहीं उठाया हमारे उपर। लेकिन हमें याद है एक बार हमारे स्कूल की रिपोर्ट इतनी अच्छी नहीं थी, I think high school 10th class report card था जो उनसे साइन करवाना था, बाबा से। तो लेके गया, बताया, बाबा ने कहा कि this is not good, यह रिपोर्ट अच्छी नहीं है तुम्हारी। तो इतना कहा कि हमारे कमरे से बाहर जाओ और हम तुमसे बात नहीं करेंगे। It was such a painful experience, that the fact that I wont talk to you, it was such painful, I am telling, I was crying and crying. I wished कि वो हमें दो थप्पड़ मार देते तो I would have borne it and it would have been over, but this was more painful than the slaps. I went back to him and said that I am very very sorry, I will definitely improve upon." तो ये तो थी बाप बेटे का बात, अब वक़्त है माँ बेटे के रिश्ते पर आधारित गीत सुनने की। सुनते हैं "मुन्ना बड़ा प्यारा"। शैलेन्द्र, सलिल दा और किशोर दा का एक यादगार गीत।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी (दो बार), स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. शैलेन्द्र ने कुछ कड़े सवाल पूछे हैं ऊपर वाले से इस गीत में.
२. आवाज़ है लता की.
३. एक अंतरे की पहली पंक्ति में शब्द है -"धूल".
पिछली पहेली का परिणाम -
अवध जी बहुत दिनों बाद आपकी आमद हुई, चलते चलते आपने भी ६ अंक कमा ही लिए. बधाई...इंदु जी जन्मदिन किसका था, आपका ?, अगर हाँ तो हमारी पूरी टीम की तरफ से स्वीकार कीजिये ढेर सारी शुभकामनाएँ, स्वस्थ का ध्यान रखें और मधुर गीतों से जीवन संवारते रहें.
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
tere charanon ki jo dhool mil jaye
ho sakta hai ye gana ho
I AM NOT SURE BUT......MAIDAN ME KOI NHI .ek baar fir tukka
vaise ye gana raat gahri neend me spno me suna
sujoyji kya blog hai aapka bhai waah ,neend men bhi dstk deta hai
film ram hanuman ka gana bhi ho skta hai jise shailendra ne likha hai gaya lataji ne hai bol hain aaj meri laaj rakho
fir bhi nhi to ......iska bhi n audio n vedio mila kahin ?
itna katheen paper to main bhi nhi apne bchcho ko
jaan loge kya bchchi ki
sb dhn dhool sman bhi likha aata hai
pr inke geetkar jitna pta lgane ka time ab nhi bcha
ek bchche ke chot lag gai hospital jana pd gaya wo mere bina patti hi nhi bndhwarha tha
sb dhn dhool sman bhi likha aata hai
pr inke geetkar jitna pta lgane ka time ab nhi bcha
ek bchche ke chot lag gai hospital jana pd gaya wo mere bina patti hi nhi bndhwarha tha
public maaregi mujhe
klu de do bhaiya,dimag yun bhi km kam kar raha hai aaj kl sugar khoob bdhi hui hai teen bar din me insulin lene pd rhe hai
so aaj to haar swikar apun ko