Skip to main content

जीत ही लेंगे बाज़ी हम तुम....खेल अधूरा छूटे न...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 41

हते हैं कि "ज़िंदगी हर क़दम एक नयी जंग है, जीत जाएँगे हम तू अगर संग है". हमसफ़र का अगर साथ हो तो ज़िंदगी की कोई भी बाज़ी आसानी से जीती जा सकती है, ज़िंदगी का सफ़र बडे ही सुहाने ढंग से तय किया जा सकता है. चाहे दुनिया कितनी भी रुकावटें खडी करें, चाहे कितनी भी परेशानियाँ दीवार बनकर सामने आए, अगर कोई सच्चा साथी साथ में हो तो ज़िंदगी के हर खेल को पूरा खेला जा सकता है. कुछ इसी तरह की बात कही गयी है आज के 'ओल्ड इस गोल्ड' में शामिल गीत में. मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर की आवाज़ों में "शोला और शबनम" फिल्म से आज हम लेकर आए हैं "जीत ही लेंगे बाज़ी हम तुम". शोला और शबनम रमेश सहगल की फिल्म थी जिसे उन्होने 1961 में बनाया था. अभी भट्टाचार्य और विजयलक्ष्मी अभिनीत इस फिल्म में ज़बरदस्त 'स्टारकास्ट' तो नहीं थी, लेकिन अच्छी कहानी, अच्छा अभिनय, बेहतरीन निर्देशन और मधुर गीत संगीत की वजह से इस फिल्म को लोगों ने सराहा और आज भी इस फिल्म के गाने बडे चाव से सुने जाते हैं, ख़ास कर ये गीत.

फिल्म शोला और शबनम के संगीतकार थे ख़य्याम. 1949 में शर्मा जी के नाम से उन्होने पहली बार फिल्म "परदा" में संगीत दिया था. इसी नाम से उन्होने 1950 की फिल्म "बीवी" में भी एक गीत को स्वरबद्ध किया था. उस वक़्त के सांप्रदायिक तनाव के चलते उन्होने अपना नाम बदलकर शर्मा जी रख लिया था. लेकिन 1953 में जिया सरहदी की फिल्म "फुटपाथ" में ख़य्याम के नाम से संगीत देकर वो फिल्म संगीत संसार में छा गये. इसके बाद कुछ सालों तक वो फिल्मों में संगीत तो देते रहे लेकिन कुछ बात नहीं बनी. 1958 में फिल्म "फिर सुबह होगी" उनके फिल्मी सफ़र में एक बार फिर से सुबह लेकर आई और उसके बाद उन्हे अपार शोहरत हासिल हुई. शोला और शबनम भी उनके सफ़र का एक महत्वपूर्ण पडाव था. ख़य्याम के संगीत की ख़ासीयत थी कि वो कम साज़ों का इस्तेमाल करते और उनके संगीत में एक ग़ज़ब का ठहराव होता था जो मन को एक अजीब सुकून से भर देता था. इस गीत में भले बहुत ज़्यादा ठहराव ना हो, लेकिन जहाँ तक सुकून का सवाल है, तो यह गीत भी उसी श्रेणी में शामिल होता है. गीत के शुरू में 'पियानो' का सुंदर प्रयोग हुआ है. तो लीजिए पेश है 'ओल्ड इस गोल्ड' में "जीत ही लेंगे बाज़ी हम तुम". गीतकार हैं कैफ़ी आज़मी.



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. हेलन के लिए आशा का गाया एक और क्लब सोंग.
२. बर्मन दा सीनियर का संगीत.
३. मुखड़े में शब्द है -"पगले"

कुछ याद आया...?

पिछली पहेली का परिणाम -
पारुल ने तो रंग ही जमा दिया इस बार, मनु जी आप हर बार पीछे छूट जाते हैं...:), शोभा जी आते रहिये, महफिल आप से ही रोशन है.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.




>

Comments

RAJ SINH said…
shola aur shabnam me kalakar dharmendre aur tarla the .dono pahlee bar aaye the ,
और इस गीत का फिल्मांकन भी बहुत खूब हुआ है, जब नायिका उठाकर नायक की परछाई को देखती है और लता के स्वर में "प्यार का बंधन छूटे न..." आता है तो बस :)...वाह ....गजब
Geet sunane ki kafi iccha thi, magar 'error opening file' msg aar raha hai. Chaliye fir kabhi...
बहुत ही सुंदर गीत , मेरी पसंद का, बहुत दिनो बाद आज अचानक सुननए को मिला धन्यवाद
Neeraj Rohilla said…
bas haaziri lagaa ke jaa rahe hein. Gaana soojha nahin, :-(
manu said…
club songs ki taraf waakai dhyan nahi jaataa,,,,,

bhale hi kitnaa bhi aasaan ho,,,
par,,

,जब नायिका उठाकर नायक की परछाई को देखती है और लता के स्वर में "प्यार का बंधन छूटे न..." आता है तो बस :)...वाह ....गजब

sajeev ji ,,,
aapne ek dam dil ki dhadkano ko chhoo liyaa,,,,,,,,
आवाज़ से आवाज़ गायब...?
RAJ SINH said…
isee film ka geet ' jane kya dhoondhtee rahtee hain aankhen mujhme....bhee bada hee pyara hai . kabhee sunvayen .

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट