छायावाद के चार प्रमुख स्तंभों में महादेवी वर्मा एक हैं !इनका जन्म उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में एक संपन्न कला -प्रेमी परिवार में सन् १९०७ में होली के दिन हुआ !महादेवी जी अपने परिवार में लगभग २०० वर्ष बाद पैदा होने वाली लड़की थी! इसलिए उनके जन्म पर सबको बहुत प्रसन्नता हुई !अपने संस्मरण `मेरे बचपन के दिन' में उन्होंने लिखा है कि,"मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी खातिर हुई और मुझे वह सब नहीं सहन करना पड़ा जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता है !"इनके बाबा (पिता)दुर्गा के भक्त थे तथा फ़ारसी और उर्दू जानते थे !इनकी माता जी जबलपुर कि थीं तथा हिंदी पढ़ी लिखी थीं !वे पूजा पाठ बहुत करती थी !माताजी ने इन्हें पंचतंत्र पढना सिखाया था तथा बाबा इन्हें विदुषी बनाना चाहते थे !इनका मानना है कि बाबा की पढ़ाने की इच्छा और विरासत में मिले सांस्कृतिक आचरण ने ही इन्हें लेखन की प्रवर्ति की ओर अग्रसर किया !इनकी आरंभिक शिक्षा इंदौर में हुई !माता के प्रभाव ने इनके ह्रदय में भक्ति -भावना के अंकुर को जन्म दिया !मात्र ९ वर्ष की उम्र में ये विवाह -बंधन में बांध गयीं थीं !विवाह के उपरांत भी इनका अध्ययन चलता रहा !
आस्थामय जीवन की साधिका होने के कारण ये शीघ्र ही विवाह बंधन से मुक्त हो गयीं !सन् १९३३ में इन्होने प्रयाग में संस्कृत विषय में ऍम.ए.की परीक्षा उत्तीर्ण की !नारी समाज में शिक्षा प्रसार के उद्देश्य से प्रयाग महिला विद्यापीठ की स्थापना की !कुछ समय तक मासिक पत्रिका `चाँद 'का उन्होने निशुल्क सम्पादन किया !
महादेवी जी का कार्य क्षेत्र बहुमुखी रहा है !उन्हें सन् १९५२ में उत्तर प्रदेश की विधान परिषद् का सदस्य मनोनीत किया गया !सन् १९५४ में वे साहित्य अकादमी दिल्ली की संस्थापक सदस्य बनीं !सन् १९६० में प्रयाग महिला विद्यापीठ की कुलपति नियुक्त हुई !सन् १९६६ में साहित्यिक एवं सामाजिक कार्यों के लिए भारत सरकार ने पदमभूषण अलंकरण से विभूषित किया !विक्रम कुमांयुं तथा दिल्ली विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.लिट की मानद उपाधि प्रदान कर सम्मानित किया !१९८३ में चम ओर दीपशिखा पर उन्हें ज्ञानपीठ पुरूस्कार दिया गया !उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने भी `भारती'नाम से स्थापित हिंदी के सर्वोत्तम पुरूस्कार से महादेवी जी को सम्मानित किया !सन् १९८७ में इनका स्वर्गवास हो गया !
महादेवी जी ने गद्य ओर पद्य दोनों में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है !कविता में अनुभूति तत्व की प्रधानता है तो गद्य में चिंतन की !महादेवी उच्च कोटि की रहस्यवादी छायावादी कवियित्री हैं !वे मूलतः अपनी छायावादी रचनाओं के लिए प्रसिद्द हैं !गीत लिखने में महादेवी जी को आशातीत सफलता मिली है !उनकी रचनाओं में माधुर्य प्रांजलता ,करुणा,रोमांस ओर प्रेम की गहन पीडा ओर अनिर्वचनीय आनंद की अनुभूति की अभिव्यक्ति मिली है !इनके गीतों को पढ़ते समय पाठक का हृदय
भीग उठता है !विरह-वेदना को अपनी कला के रंग में रंग देने के कारण ही उन्हें आधुनिक युग की मीरा भी कहा जाता है !उन्हें अपने जीवन `दीपक'का प्रतीक अत्यंत प्रिय रहा है,जो उनकी कविताओं में जीवन का पर्याय बनकर प्रयुक्त हुआ है!`नीहार',`रश्मि',`नीरजा',`सांध्यगीत',`दीपशिखा'और `चामा 'उनकी प्रसिद्द काव्य -रचनाएँ हैं !गद्य के अंतर्गत `श्रंखला की कड़ियाँ ',`अतीत के चलचित्र ',`स्मृति की रेखाएं ',`पथ के साथी ' इत्यादि ऐसे संग्रह हैं ,जिनको पढ़ते समय आँखें भीगे बिना नहीं रहतीं और दिल सोचता ही रह जाता है ,कई प्रश्न और कई समस्याएं हमारे सामने चुनौतियों के रूप में कड़ी हो जाती हैं ,जिनका उत्तर हम स्वयं ही दे सकते हैं ,कोई और नहीं !
इन सबके अतिरिक्त देश-प्रेम भी इनके हृदय में कूट कूट कर भरा है !इनका मानना था कि यदि मनुष्य अपनी मन को जीत लेगा तो कोई दुनियाकी ताकत उसको पराजित नहीं कर सकती !इसका परिचय उनके द्वारा रचित कविता `जाग तुझको दूर जान' से मिलता है !जिसके अंतर्गत उन्होंने लिखा है कि -
"नभ तारक सा खंडित पुलकित
यह क्षुर-धारा को चूम रहा
वह अंगारों का मधु-रस पी
केशर-किरणों सा झूम रहा
अनमोल बना रहने को कब
टूटा कंचन हीरक ,पिघला ?"
इसमें महादेवी जी का कहना है कि आकर्षक रूप प्राप्त कर अमूल्य बने रहने के लिए सोना भला कब टूटा है और हीरा कब पिघला है ?भाव यह है कि दोनों अपनी अपनी प्रकृति के अनुरूप साधन अपनाकर ही अनुपम सौन्दर्य को प्राप्त करते हैं !सोने को तपना ही पड़ता है तथा हीरे को खंडित ही होना पड़ता है !वेदना कि अनुभूति कर ही दोनों अमूल्य बन जाते हैं !महादेवी जी ने अपने गीतों में आलस ,प्राक्रतिक आपदा ,सांसारिक मोह माया ,विभिन्न प्रकार के आकर्षण व् व्यक्तिगत कमजोरियों आदि पर विजय प्राप्त कर निरंतर साध्य पथ पर अग्रसर होते रहने कि बात कही है !यानिकी प्रत्येक परिस्थिति में स्वतंत्रता प्राप्त करना समस्त देशवासियों का फ़र्ज़ है !
दोस्तों, युग्म परिवार के आचार्य संजीव सलिल जी, आदरणीय महादेवी जी के भतीजे हैं. चूँकि मार्च २४ को उनकी जयंती थी, हमने मृदुल जी के संचालन में इस माह का पॉडकास्ट कवि सम्मलेन भी उन्ही को समर्पित किया था. आईये सुनें आचार्य संजीव सलिल जी से उनके अपने संस्मरण.
आलेख - शिवानी सिंह
आस्थामय जीवन की साधिका होने के कारण ये शीघ्र ही विवाह बंधन से मुक्त हो गयीं !सन् १९३३ में इन्होने प्रयाग में संस्कृत विषय में ऍम.ए.की परीक्षा उत्तीर्ण की !नारी समाज में शिक्षा प्रसार के उद्देश्य से प्रयाग महिला विद्यापीठ की स्थापना की !कुछ समय तक मासिक पत्रिका `चाँद 'का उन्होने निशुल्क सम्पादन किया !
महादेवी जी का कार्य क्षेत्र बहुमुखी रहा है !उन्हें सन् १९५२ में उत्तर प्रदेश की विधान परिषद् का सदस्य मनोनीत किया गया !सन् १९५४ में वे साहित्य अकादमी दिल्ली की संस्थापक सदस्य बनीं !सन् १९६० में प्रयाग महिला विद्यापीठ की कुलपति नियुक्त हुई !सन् १९६६ में साहित्यिक एवं सामाजिक कार्यों के लिए भारत सरकार ने पदमभूषण अलंकरण से विभूषित किया !विक्रम कुमांयुं तथा दिल्ली विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.लिट की मानद उपाधि प्रदान कर सम्मानित किया !१९८३ में चम ओर दीपशिखा पर उन्हें ज्ञानपीठ पुरूस्कार दिया गया !उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने भी `भारती'नाम से स्थापित हिंदी के सर्वोत्तम पुरूस्कार से महादेवी जी को सम्मानित किया !सन् १९८७ में इनका स्वर्गवास हो गया !
महादेवी जी ने गद्य ओर पद्य दोनों में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है !कविता में अनुभूति तत्व की प्रधानता है तो गद्य में चिंतन की !महादेवी उच्च कोटि की रहस्यवादी छायावादी कवियित्री हैं !वे मूलतः अपनी छायावादी रचनाओं के लिए प्रसिद्द हैं !गीत लिखने में महादेवी जी को आशातीत सफलता मिली है !उनकी रचनाओं में माधुर्य प्रांजलता ,करुणा,रोमांस ओर प्रेम की गहन पीडा ओर अनिर्वचनीय आनंद की अनुभूति की अभिव्यक्ति मिली है !इनके गीतों को पढ़ते समय पाठक का हृदय
भीग उठता है !विरह-वेदना को अपनी कला के रंग में रंग देने के कारण ही उन्हें आधुनिक युग की मीरा भी कहा जाता है !उन्हें अपने जीवन `दीपक'का प्रतीक अत्यंत प्रिय रहा है,जो उनकी कविताओं में जीवन का पर्याय बनकर प्रयुक्त हुआ है!`नीहार',`रश्मि',`नीरजा',`सांध्यगीत',`दीपशिखा'और `चामा 'उनकी प्रसिद्द काव्य -रचनाएँ हैं !गद्य के अंतर्गत `श्रंखला की कड़ियाँ ',`अतीत के चलचित्र ',`स्मृति की रेखाएं ',`पथ के साथी ' इत्यादि ऐसे संग्रह हैं ,जिनको पढ़ते समय आँखें भीगे बिना नहीं रहतीं और दिल सोचता ही रह जाता है ,कई प्रश्न और कई समस्याएं हमारे सामने चुनौतियों के रूप में कड़ी हो जाती हैं ,जिनका उत्तर हम स्वयं ही दे सकते हैं ,कोई और नहीं !
इन सबके अतिरिक्त देश-प्रेम भी इनके हृदय में कूट कूट कर भरा है !इनका मानना था कि यदि मनुष्य अपनी मन को जीत लेगा तो कोई दुनियाकी ताकत उसको पराजित नहीं कर सकती !इसका परिचय उनके द्वारा रचित कविता `जाग तुझको दूर जान' से मिलता है !जिसके अंतर्गत उन्होंने लिखा है कि -
"नभ तारक सा खंडित पुलकित
यह क्षुर-धारा को चूम रहा
वह अंगारों का मधु-रस पी
केशर-किरणों सा झूम रहा
अनमोल बना रहने को कब
टूटा कंचन हीरक ,पिघला ?"
इसमें महादेवी जी का कहना है कि आकर्षक रूप प्राप्त कर अमूल्य बने रहने के लिए सोना भला कब टूटा है और हीरा कब पिघला है ?भाव यह है कि दोनों अपनी अपनी प्रकृति के अनुरूप साधन अपनाकर ही अनुपम सौन्दर्य को प्राप्त करते हैं !सोने को तपना ही पड़ता है तथा हीरे को खंडित ही होना पड़ता है !वेदना कि अनुभूति कर ही दोनों अमूल्य बन जाते हैं !महादेवी जी ने अपने गीतों में आलस ,प्राक्रतिक आपदा ,सांसारिक मोह माया ,विभिन्न प्रकार के आकर्षण व् व्यक्तिगत कमजोरियों आदि पर विजय प्राप्त कर निरंतर साध्य पथ पर अग्रसर होते रहने कि बात कही है !यानिकी प्रत्येक परिस्थिति में स्वतंत्रता प्राप्त करना समस्त देशवासियों का फ़र्ज़ है !
दोस्तों, युग्म परिवार के आचार्य संजीव सलिल जी, आदरणीय महादेवी जी के भतीजे हैं. चूँकि मार्च २४ को उनकी जयंती थी, हमने मृदुल जी के संचालन में इस माह का पॉडकास्ट कवि सम्मलेन भी उन्ही को समर्पित किया था. आईये सुनें आचार्य संजीव सलिल जी से उनके अपने संस्मरण.
आलेख - शिवानी सिंह
Comments
अवनीश तिवारी
मालूम नहीं कब सुना जाए,,,,पर महादेवी जी के बारे में पढ़ना अच्छा लगा,,,,
उन्हें नमन,,,,,
आचार्य को प्रणाम,,,,,यदि यहाँ ना सुन सका तो आचार्य से कहूंगा के किसी दूसरी तरह का लिंक भेज दें,,,,,