ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 43
जहाँ तक फिल्मी क़व्वालियों का सवाल है, तो फिल्म संगीत में क़व्वाली को लोकप्रिय बनाने में संगीतकार रोशन का महत्वपूर्ण और सराहनीय योगदान रहा है. यूँ तो उनसे पहले भी फिल्मों में कई क़व्वालियाँ आईं, लेकिन उनमें फिल्मी रंग की ज़रा कमी सी थी जिसकी वजह से वो आम जनता में लोकप्रिय तो हुए लेकिन वो मुकाम हासिल ना कर सके जो दूसरे साधारण गीतों ने किये. रोशन ने क़व्वालियों में वो फिल्मी अंदाज़, वो फिल्मी रंग भरा जो सुननेवालों के दिलों पर ऐसा चढा कि आज तक उतरने का नाम नहीं लेता. हुआ यूँ कि एक बार रोशन ने पाकिस्तान में एक क़व्वाली सुन ली "यह इश्क़ इश्क़ है". यह उन्हे इतनी पसंद आई कि अनुमति लेकर उन्होने इस क़व्वाली को अपनी अगली फिल्म "बरसात की रात" में शामिल कर लिया. यह क़व्वाली इतना लोकप्रिय हुई कि अगली फिल्म "दिल ही तो है" में निर्माता ने उनसे एक और ऐसी ही क़व्वाली की माँग कर बैठे. और एक बार फिर से रोशन ने अपने इस हुनर का जलवा बिखेरा "निगाहें मिलाने को जी चाहता है" जैसी क़व्वाली बनाकर. जी हाँ, आज 'ओल्ड इस गोल्ड' में सुनिए यही मशहूर क़व्वाली.
फिल्म "दिल ही तो है" बनी थी सन् 1963 में. बी एल रावल निर्मित और सी एल रावल और पी एल संतोषी निर्देशित इस फिल्म के मुख्य कलाकार थे राज कपूर और नूतन. इस फिल्म का संगीत बेहद मक़बूल हुआ और मन्ना डे का गाया "लागा चुनरी में दाग" तो एक मील का पत्थर है इस गीत से जुडे हर एक कलाकार के संगीत सफ़र की. आशा भोंसले और साथियों का गाया "निगाहें मिलाने को जी चाहता है" एक मशहूर क़व्वाली के रूप में आज भी याद किया जाता है. इस क़व्वाली को लिखा था साहिर लुधियानवी ने, जिन्होने बरसात की रात की क़व्वाली भी लिखी थी. फिल्म "दिल ही तो है" की इस क़व्वाली के फ़िल्मांकन की अगर हम बात करें तो नूतन ने अपना बहुत ही अलग और खूबसूरत अंदाज़ इसमें पेश किया है. नूतन नृत्यांगना नहीं थी और ना ही इस तरह के पात्र उन्होने निभाए थे. बावजूद इसके, उन्होने बहुत ही अच्छे तरीके से इस जमीला बानो के चरित्र को निभाया जिसे दर्शकों ने बहुत पसंद किया. अब शायद आपका भी "जी चाह रहा" होगा इस क़व्वाली को सुनने का, तो पेश-ए-खिदमत है...
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. सी रामचंद्र के संगीत में किशोर की आवाज़.
२. कमर जलालाबादी ने बोल लिखे हैं और परदे पर किशोर कुमार ने निभाया है गीत को.
३. गीत शुरू होता है इस शब्द से -"मुखड़े पे..."
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
पारुल जब भी आती है बाजी मार ले जाती है, मनु और नीरज जी आप सब को भी बधाई, सही कहा आपने रोशन साहब हिंदी फिल्म संगीत के कव्वाली किंग हैं. आचार्य जी आशा के कुछ गीत ऐसे हैं जिन्हें उनके आलावा कोई दूसरा गा ही नहीं सकता.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
जहाँ तक फिल्मी क़व्वालियों का सवाल है, तो फिल्म संगीत में क़व्वाली को लोकप्रिय बनाने में संगीतकार रोशन का महत्वपूर्ण और सराहनीय योगदान रहा है. यूँ तो उनसे पहले भी फिल्मों में कई क़व्वालियाँ आईं, लेकिन उनमें फिल्मी रंग की ज़रा कमी सी थी जिसकी वजह से वो आम जनता में लोकप्रिय तो हुए लेकिन वो मुकाम हासिल ना कर सके जो दूसरे साधारण गीतों ने किये. रोशन ने क़व्वालियों में वो फिल्मी अंदाज़, वो फिल्मी रंग भरा जो सुननेवालों के दिलों पर ऐसा चढा कि आज तक उतरने का नाम नहीं लेता. हुआ यूँ कि एक बार रोशन ने पाकिस्तान में एक क़व्वाली सुन ली "यह इश्क़ इश्क़ है". यह उन्हे इतनी पसंद आई कि अनुमति लेकर उन्होने इस क़व्वाली को अपनी अगली फिल्म "बरसात की रात" में शामिल कर लिया. यह क़व्वाली इतना लोकप्रिय हुई कि अगली फिल्म "दिल ही तो है" में निर्माता ने उनसे एक और ऐसी ही क़व्वाली की माँग कर बैठे. और एक बार फिर से रोशन ने अपने इस हुनर का जलवा बिखेरा "निगाहें मिलाने को जी चाहता है" जैसी क़व्वाली बनाकर. जी हाँ, आज 'ओल्ड इस गोल्ड' में सुनिए यही मशहूर क़व्वाली.
फिल्म "दिल ही तो है" बनी थी सन् 1963 में. बी एल रावल निर्मित और सी एल रावल और पी एल संतोषी निर्देशित इस फिल्म के मुख्य कलाकार थे राज कपूर और नूतन. इस फिल्म का संगीत बेहद मक़बूल हुआ और मन्ना डे का गाया "लागा चुनरी में दाग" तो एक मील का पत्थर है इस गीत से जुडे हर एक कलाकार के संगीत सफ़र की. आशा भोंसले और साथियों का गाया "निगाहें मिलाने को जी चाहता है" एक मशहूर क़व्वाली के रूप में आज भी याद किया जाता है. इस क़व्वाली को लिखा था साहिर लुधियानवी ने, जिन्होने बरसात की रात की क़व्वाली भी लिखी थी. फिल्म "दिल ही तो है" की इस क़व्वाली के फ़िल्मांकन की अगर हम बात करें तो नूतन ने अपना बहुत ही अलग और खूबसूरत अंदाज़ इसमें पेश किया है. नूतन नृत्यांगना नहीं थी और ना ही इस तरह के पात्र उन्होने निभाए थे. बावजूद इसके, उन्होने बहुत ही अच्छे तरीके से इस जमीला बानो के चरित्र को निभाया जिसे दर्शकों ने बहुत पसंद किया. अब शायद आपका भी "जी चाह रहा" होगा इस क़व्वाली को सुनने का, तो पेश-ए-खिदमत है...
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. सी रामचंद्र के संगीत में किशोर की आवाज़.
२. कमर जलालाबादी ने बोल लिखे हैं और परदे पर किशोर कुमार ने निभाया है गीत को.
३. गीत शुरू होता है इस शब्द से -"मुखड़े पे..."
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
पारुल जब भी आती है बाजी मार ले जाती है, मनु और नीरज जी आप सब को भी बधाई, सही कहा आपने रोशन साहब हिंदी फिल्म संगीत के कव्वाली किंग हैं. आचार्य जी आशा के कुछ गीत ऐसे हैं जिन्हें उनके आलावा कोई दूसरा गा ही नहीं सकता.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
धन्यवाद
aadhe idhar aadhe udhar
chanda pe baadal chhaa gaye,
aadhe idhar aadhe udhar
Bada madur geet hai, ise yaad karane ka shikriya
Film: Payal ki Jhankar
कव्वाली सुनकर आनन्द आगया। आभार।
बधाई हो आपको,,,,,,
मगर फिलहाल तो नहीं याद आ रहा है,,,,,हाँ आपने कहा है तो एकदम सही ही होगा,,,,
walllah