सुनिए १९४९ में आयी फिल्म "बाज़ार" से लता के कुछ दुर्लभ गीत
रविवार की अलसाई सुबह का आनंद और बढ़ जाता है जब सुबह सुबह की कॉफी के साथ कुछ ऐसे दुर्लभ गीत सुनने को मिल जाएँ जिसे कहीं गाहे बगाहे सुना तो था, पर फिर कभी सुनने का मौका नहीं मिला -
एक पुराना मौसम लौटा , यादों की पुरवाई भी,
ऐसा तो कम ही होता है, वो भी हो तन्हाई भी...
चलिए आपका परिचय कराएँ आवाज़ के एक संगीत प्रेमी से. अजय देशपांडे जी नागपुर महाराष्ट्र में रहते हैं, आवाज़ के नियमित श्रोता हैं और जबरदस्त संगीत प्रेमी हैं. लता मंगेशकर इनकी सबसे प्रिय गायिका है, और रोशन साहब को ये संगीतकारों में अव्व्वल मानते हैं. मानें या न मानें इनके पास १९३५ से लेकर १९६० तक के लगभग ८००० गीतों का संकलन उपलब्ध है, जाहिर है इनमें से अधिकतर लता जी के गाये हुए हैं. आवाज़ के श्रोताओं के साथ आज वो बंटाना चाहते हैं १९४९ में आई फिल्म "बाज़ार" से लता और रफी के गाये कुछ बेहद मधुर गीत. फिल्म "बाज़ार" में संगीत था श्याम सुंदर का, दरअसल १९४९ का वर्ष श्याम सुंदर के लिए सर्वश्रेष्ठ रहा, "बाज़ार" के आलावा "लाहौर" में भी उनका संगीत बेहद लोकप्रिय हुआ. हालाँकि उनके काम को तो १९४५ में आई फिल्म "गाँव की गोरी" के बाद से ही सराहना मिलनी शुरू हो चुकी थी पर "बाज़ार" में आया लता की आवाज़ में गीत "साजन की गलियां छोड़ चले..." शायद उनके कैरियर का सर्वोत्तम गीत था. लता के भी अगर सर्वश्रेष्ठ गीतों की बात की जाए तो इस गाने का जिक्र अवश्य किया जायेगा. श्याम सुंदर ने इसके बाद "कमल के फूल", "काले बादल", "ढोलक" और १९५३ में आई "अलिफ़ लैला" में भी एक से एक हिट गीत दिए. उनके संगीत पर किसी परंपरा या जमाने का असर नहीं था. उनकी शैली पूर्णतया मौलिक थी, और धुनों में जो मिठास थी वो अदभुत ही थी.
"बाज़ार" के इन दुर्लभ गीतों को सुनने से पहले ज़रा उन गीतों की फेहरिस्त देखिये जो श्याम सुंदर के मधुर संगीत से रोशन हुई - "ज़रा सुन लो...", "शहीदों तुमको मेरा सलाम... "(बाज़ार), "बैठी हूँ तेरी याद में...", "किस तरह भूलेगा दिल..."(गाँव की गोरी), "बहारें फिर भी आयेंगीं..", "युहीं रोता हुआ दिल...", "टूटे हुए अरमानों की..."(लाहौर), "खामोश क्यों हो तारों..."(अलिफ़ लैला), "चोरी चोरी आग सी दिल में..."(ढोलक). दोस्तों ऐसे गीत आजकल कहीं सुनने को नहीं मिल पाते. पर आवाज़ की अब ये कोशिश रहेगी कि इन दुर्लभ मोतियों को आप तक निरंतर पहुंचाए. इस कार्य में हमें आपका भी सहयोग चाहिए. आप भी अपने संकलन से कुछ दुर्लभ गीत हमें भेजें और अन्य श्रोताओं के साथ बांटे.
अब सुनिए फिल्म "बाज़ार" से ये दुर्लभ गीत -
साजन की गलियां छोड़ चले...
ऐ मोहब्बत उनसे...
बसा लो अपनी निगाहों में...
ऐ दिल उनको याद न करना...
यदि कोई गीत, खास कर लता जी का गाया (1940-1960)आप सुनना चाहते हैं तो हमें लिखे हम आपका सन्देश अजय जी तक अवश्य पहुंचाएंगे.
"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.
रविवार की अलसाई सुबह का आनंद और बढ़ जाता है जब सुबह सुबह की कॉफी के साथ कुछ ऐसे दुर्लभ गीत सुनने को मिल जाएँ जिसे कहीं गाहे बगाहे सुना तो था, पर फिर कभी सुनने का मौका नहीं मिला -
एक पुराना मौसम लौटा , यादों की पुरवाई भी,
ऐसा तो कम ही होता है, वो भी हो तन्हाई भी...
चलिए आपका परिचय कराएँ आवाज़ के एक संगीत प्रेमी से. अजय देशपांडे जी नागपुर महाराष्ट्र में रहते हैं, आवाज़ के नियमित श्रोता हैं और जबरदस्त संगीत प्रेमी हैं. लता मंगेशकर इनकी सबसे प्रिय गायिका है, और रोशन साहब को ये संगीतकारों में अव्व्वल मानते हैं. मानें या न मानें इनके पास १९३५ से लेकर १९६० तक के लगभग ८००० गीतों का संकलन उपलब्ध है, जाहिर है इनमें से अधिकतर लता जी के गाये हुए हैं. आवाज़ के श्रोताओं के साथ आज वो बंटाना चाहते हैं १९४९ में आई फिल्म "बाज़ार" से लता और रफी के गाये कुछ बेहद मधुर गीत. फिल्म "बाज़ार" में संगीत था श्याम सुंदर का, दरअसल १९४९ का वर्ष श्याम सुंदर के लिए सर्वश्रेष्ठ रहा, "बाज़ार" के आलावा "लाहौर" में भी उनका संगीत बेहद लोकप्रिय हुआ. हालाँकि उनके काम को तो १९४५ में आई फिल्म "गाँव की गोरी" के बाद से ही सराहना मिलनी शुरू हो चुकी थी पर "बाज़ार" में आया लता की आवाज़ में गीत "साजन की गलियां छोड़ चले..." शायद उनके कैरियर का सर्वोत्तम गीत था. लता के भी अगर सर्वश्रेष्ठ गीतों की बात की जाए तो इस गाने का जिक्र अवश्य किया जायेगा. श्याम सुंदर ने इसके बाद "कमल के फूल", "काले बादल", "ढोलक" और १९५३ में आई "अलिफ़ लैला" में भी एक से एक हिट गीत दिए. उनके संगीत पर किसी परंपरा या जमाने का असर नहीं था. उनकी शैली पूर्णतया मौलिक थी, और धुनों में जो मिठास थी वो अदभुत ही थी.
"बाज़ार" के इन दुर्लभ गीतों को सुनने से पहले ज़रा उन गीतों की फेहरिस्त देखिये जो श्याम सुंदर के मधुर संगीत से रोशन हुई - "ज़रा सुन लो...", "शहीदों तुमको मेरा सलाम... "(बाज़ार), "बैठी हूँ तेरी याद में...", "किस तरह भूलेगा दिल..."(गाँव की गोरी), "बहारें फिर भी आयेंगीं..", "युहीं रोता हुआ दिल...", "टूटे हुए अरमानों की..."(लाहौर), "खामोश क्यों हो तारों..."(अलिफ़ लैला), "चोरी चोरी आग सी दिल में..."(ढोलक). दोस्तों ऐसे गीत आजकल कहीं सुनने को नहीं मिल पाते. पर आवाज़ की अब ये कोशिश रहेगी कि इन दुर्लभ मोतियों को आप तक निरंतर पहुंचाए. इस कार्य में हमें आपका भी सहयोग चाहिए. आप भी अपने संकलन से कुछ दुर्लभ गीत हमें भेजें और अन्य श्रोताओं के साथ बांटे.
अब सुनिए फिल्म "बाज़ार" से ये दुर्लभ गीत -
साजन की गलियां छोड़ चले...
ऐ मोहब्बत उनसे...
बसा लो अपनी निगाहों में...
ऐ दिल उनको याद न करना...
यदि कोई गीत, खास कर लता जी का गाया (1940-1960)आप सुनना चाहते हैं तो हमें लिखे हम आपका सन्देश अजय जी तक अवश्य पहुंचाएंगे.
"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.
Comments
Nostaligia recreated !!!
सभी गीत अच्छे लगे। लता जी के गाए शास्त्रीय संगीत पर आधारित गीत भी सुनवाएँ।
I enjoyed the songs- especially the first song- Saajan ki galiyaan
Thank u very much indeed.
I would like to listen to the first ever song of Lathaji recorded for a hindi film. If anyone has it, pl forward
KG Seshagiri Rao
shyam skha shyam
क्या गैर फ़िल्मी गज़लों की भी फरमाइश भेज सकता हूँ,,,,
KripalSinghArora