बात एक एल्बम की # 03
फीचर्ड आर्टिस्ट ऑफ़ दा मंथ - भूपेन हजारिका.
फीचर्ड एल्बम ऑफ़ दा मंथ - मैं और मेरा साया, - भूपेन हजारिका (गीत अनुवादन - गुलज़ार)
असम का बिहू, बन गीत और बागानों के लोकगीत को राष्ट्रीय फ़लक पे स्थपित करने का श्रेय हजारिका को ही जाता है. उनके शब्द आवाम की आवाज़ को सुन कर उन्ही के मनोभावों और एहसासों को गीत का रूप दे देते हैं और बहुत ही मासूमियत से फिर दादा पूछते हैं - 'ये किसकी सदा है'. भूपेन दा ने बतौर संगीतकार पहली असमिया फ़िल्म 'सती बेहुला' (१९५४) से अपना सफ़र शुरू क्या.
भूपेन दा असमिया फ़िल्म में काम करने के बाद अपना रुख मुंबई की ओर किया वहाँ इनकी मुलाकात सलिल चौधरी और बलराज सहानी से हुई। इनलोगों के संपर्क में आ कर भूपेन दा इंडियन पीपल थियेटर मोवमेंट से जुड़े. हेमंत दा भी इस थियेटर में आया करते थे. हेमंत दा और भूपेन दा की कैमेस्ट्री ऐसी जमी कि भूपेन दा उनके घर में हीं रहने लगे. एक दिन अचानक हेमंत दा हजारिका को लता जी से मुलाकात करवाने ले गए. लता से उनकी ये पहली मुलाकात थी भूपेनदा खासा उत्साहित थे.जब लता जी से मुलाकात हुई तब आश्चर्य से बोली कि 'आप ही भूपेन हो जितना आपका नाम है उतनी तो आपकी उम्र नही है!' भूपेन दा ने लता जी को बातो ही बातो में ये इकारानाम भी करवा लिए कि जब भी कोई हिन्दी फ़िल्म बनाऊंगा तब आप मेरे लिए गायेंगी ।
किसी गीत के सरल माध्यम से एक सशक्त सन्देश कैसे दिया जाता है ये कोई भूपेन दा से सीखे. एल्बम "मैं और मेरा साया" में भी उन्होंने कुछ ऐसे ही विचारों को उद्देलित करने वाले गीत रचे हैं, उदाहरण के लिए सुनिए आसाम के बागानों में गूंजती ये सदा..एक कली दो पत्तियां...नाज़ुक नाज़ुक उँगलियाँ....
सुनिए एक और कहानी इस गीत के माध्यम से, आवाज़ में ऐसा दर्द भूपेन दा के अलावा और कौन भर सकता है...
साप्ताहिक आलेख - उज्जवल कुमार
"बात एक एल्बम की" एक साप्ताहिक श्रृंखला है जहाँ हम पूरे महीने बात करेंगे किसी एक ख़ास एल्बम की, एक एक कर सुनेंगे उस एल्बम के सभी गीत और जिक्र करेंगे उस एल्बम से जुड़े फनकार/फनकारों की. इस स्तम्भ को आप तक ला रहे हैं युवा स्तंभकार उज्जवल कुमार. यदि आप भी किसी ख़ास एल्बम या कलाकार को यहाँ देखना सुनना चाहते हैं तो हमें लिखिए.
फीचर्ड आर्टिस्ट ऑफ़ दा मंथ - भूपेन हजारिका.
फीचर्ड एल्बम ऑफ़ दा मंथ - मैं और मेरा साया, - भूपेन हजारिका (गीत अनुवादन - गुलज़ार)
असम का बिहू, बन गीत और बागानों के लोकगीत को राष्ट्रीय फ़लक पे स्थपित करने का श्रेय हजारिका को ही जाता है. उनके शब्द आवाम की आवाज़ को सुन कर उन्ही के मनोभावों और एहसासों को गीत का रूप दे देते हैं और बहुत ही मासूमियत से फिर दादा पूछते हैं - 'ये किसकी सदा है'. भूपेन दा ने बतौर संगीतकार पहली असमिया फ़िल्म 'सती बेहुला' (१९५४) से अपना सफ़र शुरू क्या.
भूपेन दा असमिया फ़िल्म में काम करने के बाद अपना रुख मुंबई की ओर किया वहाँ इनकी मुलाकात सलिल चौधरी और बलराज सहानी से हुई। इनलोगों के संपर्क में आ कर भूपेन दा इंडियन पीपल थियेटर मोवमेंट से जुड़े. हेमंत दा भी इस थियेटर में आया करते थे. हेमंत दा और भूपेन दा की कैमेस्ट्री ऐसी जमी कि भूपेन दा उनके घर में हीं रहने लगे. एक दिन अचानक हेमंत दा हजारिका को लता जी से मुलाकात करवाने ले गए. लता से उनकी ये पहली मुलाकात थी भूपेनदा खासा उत्साहित थे.जब लता जी से मुलाकात हुई तब आश्चर्य से बोली कि 'आप ही भूपेन हो जितना आपका नाम है उतनी तो आपकी उम्र नही है!' भूपेन दा ने लता जी को बातो ही बातो में ये इकारानाम भी करवा लिए कि जब भी कोई हिन्दी फ़िल्म बनाऊंगा तब आप मेरे लिए गायेंगी ।
किसी गीत के सरल माध्यम से एक सशक्त सन्देश कैसे दिया जाता है ये कोई भूपेन दा से सीखे. एल्बम "मैं और मेरा साया" में भी उन्होंने कुछ ऐसे ही विचारों को उद्देलित करने वाले गीत रचे हैं, उदाहरण के लिए सुनिए आसाम के बागानों में गूंजती ये सदा..एक कली दो पत्तियां...नाज़ुक नाज़ुक उँगलियाँ....
सुनिए एक और कहानी इस गीत के माध्यम से, आवाज़ में ऐसा दर्द भूपेन दा के अलावा और कौन भर सकता है...
साप्ताहिक आलेख - उज्जवल कुमार
"बात एक एल्बम की" एक साप्ताहिक श्रृंखला है जहाँ हम पूरे महीने बात करेंगे किसी एक ख़ास एल्बम की, एक एक कर सुनेंगे उस एल्बम के सभी गीत और जिक्र करेंगे उस एल्बम से जुड़े फनकार/फनकारों की. इस स्तम्भ को आप तक ला रहे हैं युवा स्तंभकार उज्जवल कुमार. यदि आप भी किसी ख़ास एल्बम या कलाकार को यहाँ देखना सुनना चाहते हैं तो हमें लिखिए.
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