ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 51
'ओल्ड इज़ गोल्ड की ५१ वीं कड़ी मे आपका स्वागत है। इन सुरीली लहरों के साथ बहते बहते हम पूरे ५० दिन गुज़ार चुके हैं। हम यही उम्मीद करते हैं कि जिस तरह से हमने इस शृंखला को प्रस्तुत करते हुए ख़ूशी मह्सूस की है, आप ने भी उतना ही आनंद उठाया होगा। अगर आपका इसी तरह साथ बना रहा तो हम भी इसी तरह एक से एक ख़ूबसूरत सुरीली मोती आप पर लुटाते रहेंगे, यह हमारा आप से वादा है। चलिए अब हम आते हैं आज के गीत पर। आज का ओल्ड इज़ गोल्ड, गायक एवं संगीतकार हेमन्त कुमार के नाम। बंगाल में हेमन्त मुखर्जी का वही दर्जा है जो हिन्दी में किशोर कुमार या महम्मद रफ़ी का है। भले ही बहुत ज़्यादा हिन्दी फ़िल्मों में उन्होने गाने नहीं गाये लेकिन जितने भी गाये उत्कृष्ट गाये। उनके संगीत से सजी फ़िल्मों के गीतों के भी क्या कहने। आज सुनिए उन्ही का गाया और स्वरबद्ध किया हुआ फ़िल्म "कोहरा" का एक बहुत ही चर्चित गाना। नायिका के नयनों की ख़ूबसूरती की तुलना मदिरा के छलकते प्यालों के साथ की है गीतकार कैफ़ी आज़मी ने। इस गीत में मादकता भी है, शरारत भी, मासूमीयत भी है और साथ ही है शायराना अंदाज़। "ये नयन डरे डरे ये जाम भरे भरे ज़रा पीने दो" सुनहरे दौर का एक ऐस नग्मा है जिसे सुनते हुए हम एक अलग ही दुनिया में जा पहुँचते हैं। हेमन्तदा की गम्भीर आवाज़ का नाद मधुरता का एक अलग ही संसार रचता है। वह जिस अदा से किसी गीत को गाते हैं, वह गीत और कोई नहीं गा सकता। वो हर एक गीत को अपनी ख़ास अदायिगी से इस तरह से पेश करते हैं कि उसके प्रभाव से बच पाना नामुमकिन है, और प्रस्तुत गीत भी इन्हीं गीतों में से एक है।
कोहरा १९६४ की फ़िल्म थी जिसका निर्माण खुद हेमन्त कुमार ने ही किया था अपने बैनर गीतांजली पिक्चर्स के तले। एक गायक और संगीतकार होने के अतिरिक्त वह एक फ़िल्म निर्माता भी रहे और अपने इस बैनर पर कई फ़िल्मों का निर्माण किया। शुरु में फ़िल्मिस्तान में उन्होने एस. मुखर्जी के लिए फ़िल्में बनानी शुरु की और उसके बाद उन्होने अपना बैनर लौन्च किया। १९६२ में निर्देशक बिरेन नाग और अभिनेता बिश्वजीत को लेकर उन्होने बनाई 'बीस साल बाद'। जब 'सस्पेन्स थ्रिलर' वाली फ़िल्मों की बात चलती है तो 'बीस साल बाद' का नाम इज़्ज़त से लिया जाता है। शक़ील बदायूनीं के लिखे और हेमन्त कुमार के संगीत से सजे 'बीस साल बाद' के गाने ख़ूब सुने गये और यह फ़िल्म 'बॉक्स औफ़िस' पर बेहद मक़बूल रही। शायद इसी से प्रेरीत होकर हेमन्त-दा ने 'बीस साल बाद' के दो साल बाद इसी तरह की रहस्य रोमान्च से भरी एक और फ़िल्म 'कोहरा' बनाने की सोची। एक बार फिर बिरेन नाग, बिश्वजीत, और वहीदा रहमान को लेकर उन्होने एक बार फिर से वही प्रयोग किया और एक बार फिर से सफलता उनके हाथ लगी। कोहरा का संगीत ख़ासा लोकप्रिय हुआ। हेमन्त-दा के गाए इस फ़िल्म के कम से कम दो गीत ख़ूब सुने सुनाए गए - "राह बनी ख़ूद मंज़िल" और "ये नयन डरे डरे"। आज का यह गीत सुनने से पहले आपको यह भी बता दें कि हेमन्त कुमार ने खार स्थित अपने बंगले का नाम भी गीतांजली रखा था।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. हसरत के बोलों पर शंकर जयकिशन का मधुर संगीत.
२. लता मुकेश का क्लासिक राजकपूर नर्गिस के लिए.
३. गीत में एक पंक्ति है -"तुने देखा न होगा ये समां".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
वाह वाह नीलम जी एकदम सही जवाब. बहुत बधाई....कल गोल्डन जुबली एपिसोड था और हमारे दूसरे धुरंधर नहीं दिखे...कहाँ गए भाई.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
'ओल्ड इज़ गोल्ड की ५१ वीं कड़ी मे आपका स्वागत है। इन सुरीली लहरों के साथ बहते बहते हम पूरे ५० दिन गुज़ार चुके हैं। हम यही उम्मीद करते हैं कि जिस तरह से हमने इस शृंखला को प्रस्तुत करते हुए ख़ूशी मह्सूस की है, आप ने भी उतना ही आनंद उठाया होगा। अगर आपका इसी तरह साथ बना रहा तो हम भी इसी तरह एक से एक ख़ूबसूरत सुरीली मोती आप पर लुटाते रहेंगे, यह हमारा आप से वादा है। चलिए अब हम आते हैं आज के गीत पर। आज का ओल्ड इज़ गोल्ड, गायक एवं संगीतकार हेमन्त कुमार के नाम। बंगाल में हेमन्त मुखर्जी का वही दर्जा है जो हिन्दी में किशोर कुमार या महम्मद रफ़ी का है। भले ही बहुत ज़्यादा हिन्दी फ़िल्मों में उन्होने गाने नहीं गाये लेकिन जितने भी गाये उत्कृष्ट गाये। उनके संगीत से सजी फ़िल्मों के गीतों के भी क्या कहने। आज सुनिए उन्ही का गाया और स्वरबद्ध किया हुआ फ़िल्म "कोहरा" का एक बहुत ही चर्चित गाना। नायिका के नयनों की ख़ूबसूरती की तुलना मदिरा के छलकते प्यालों के साथ की है गीतकार कैफ़ी आज़मी ने। इस गीत में मादकता भी है, शरारत भी, मासूमीयत भी है और साथ ही है शायराना अंदाज़। "ये नयन डरे डरे ये जाम भरे भरे ज़रा पीने दो" सुनहरे दौर का एक ऐस नग्मा है जिसे सुनते हुए हम एक अलग ही दुनिया में जा पहुँचते हैं। हेमन्तदा की गम्भीर आवाज़ का नाद मधुरता का एक अलग ही संसार रचता है। वह जिस अदा से किसी गीत को गाते हैं, वह गीत और कोई नहीं गा सकता। वो हर एक गीत को अपनी ख़ास अदायिगी से इस तरह से पेश करते हैं कि उसके प्रभाव से बच पाना नामुमकिन है, और प्रस्तुत गीत भी इन्हीं गीतों में से एक है।
कोहरा १९६४ की फ़िल्म थी जिसका निर्माण खुद हेमन्त कुमार ने ही किया था अपने बैनर गीतांजली पिक्चर्स के तले। एक गायक और संगीतकार होने के अतिरिक्त वह एक फ़िल्म निर्माता भी रहे और अपने इस बैनर पर कई फ़िल्मों का निर्माण किया। शुरु में फ़िल्मिस्तान में उन्होने एस. मुखर्जी के लिए फ़िल्में बनानी शुरु की और उसके बाद उन्होने अपना बैनर लौन्च किया। १९६२ में निर्देशक बिरेन नाग और अभिनेता बिश्वजीत को लेकर उन्होने बनाई 'बीस साल बाद'। जब 'सस्पेन्स थ्रिलर' वाली फ़िल्मों की बात चलती है तो 'बीस साल बाद' का नाम इज़्ज़त से लिया जाता है। शक़ील बदायूनीं के लिखे और हेमन्त कुमार के संगीत से सजे 'बीस साल बाद' के गाने ख़ूब सुने गये और यह फ़िल्म 'बॉक्स औफ़िस' पर बेहद मक़बूल रही। शायद इसी से प्रेरीत होकर हेमन्त-दा ने 'बीस साल बाद' के दो साल बाद इसी तरह की रहस्य रोमान्च से भरी एक और फ़िल्म 'कोहरा' बनाने की सोची। एक बार फिर बिरेन नाग, बिश्वजीत, और वहीदा रहमान को लेकर उन्होने एक बार फिर से वही प्रयोग किया और एक बार फिर से सफलता उनके हाथ लगी। कोहरा का संगीत ख़ासा लोकप्रिय हुआ। हेमन्त-दा के गाए इस फ़िल्म के कम से कम दो गीत ख़ूब सुने सुनाए गए - "राह बनी ख़ूद मंज़िल" और "ये नयन डरे डरे"। आज का यह गीत सुनने से पहले आपको यह भी बता दें कि हेमन्त कुमार ने खार स्थित अपने बंगले का नाम भी गीतांजली रखा था।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. हसरत के बोलों पर शंकर जयकिशन का मधुर संगीत.
२. लता मुकेश का क्लासिक राजकपूर नर्गिस के लिए.
३. गीत में एक पंक्ति है -"तुने देखा न होगा ये समां".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
वाह वाह नीलम जी एकदम सही जवाब. बहुत बधाई....कल गोल्डन जुबली एपिसोड था और हमारे दूसरे धुरंधर नहीं दिखे...कहाँ गए भाई.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
गीत के बोल, भाव और दादा की आवाज़ सब का अच्छा संगम है |
ऐसे गीत कम ही बनते हैं आज :(
धन्यवाद लोगों से बांटने के लिए |
अवनीश तिवारी
gaana hai
aaja re ab mera dil pukara, ro ro k gum bhi haara......
apne beemar gum ko dekh le, ho sake to humko dekh le, tune dekha na hoga ye sama, kaise jata hai dum tu dekh le.......
bahut he pyaara gaana
aur ye hement da wala gaana bhi bahut pyaara lga maine ise radio par kai baar suna hai
तूने देखा ना होगा ये समा
कैसे जाता है दम को दर्ख ले......
आजा रे , अब मेरा दिल पुकारा......
इतना सिंपल भी क्यों दे दिया ....?