ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 66
'ओल्ड इज़ गोल्ड' में आज तक हमने आपको ज़्यादातर मशहूर संगीतकारों के नग्में ही सुनवाये हैं। इसमें कोई शक़ नहीं कि इन मशहूर संगीतकारों का फ़िल्म संगीत के विकास में, इसकी उन्नती में महत्वपूर्ण योगदान रहा है, लेकिन इन बड़े संगीतकारों के साथ साथ बहुत सारे कमचर्चित संगीतकार भी इस 'इंडस्ट्री' मे हुए हैं जिन्होने बहुत ज़्यादा काम तो नहीं किया लेकिन जितना भी किया बहुत उत्कृष्ट किया। कुछ ऐसे संगीतकार तो अपने केवल एक मशहूर गीत की वजह से ही अमर हो गये हैं। आज हम एक ऐसे ही कमचर्चित संगीतकर का ज़िक्र इस मजलिस में कर रहे हैं और वो संगीतकार हैं विनोद। विनोद का नाम लेते ही जो गीत झट से हमारे जेहन में आता है वह है फ़िल्म 'एक थी लड़की' का "लारा लप्पा लारा लप्पा लाई रखदा". संगीतकार विनोद की पहचान बननेवाला यह गीत आज प्रस्तुत है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में। यह गीत न केवल विनोद के संगीत सफ़र का एक ज़रूरी मुक़ाम था बल्कि लताजी के कैरियर के शुरुआती लोकप्रिय गीतों में से भी एक था।
इससे पहले कि आप यह गीत सुनें, संगीतकार विनोद के बारे में कुछ कहना चाहूँगा। विनोद का जन्म २८ मई १९२२ को लाहौर में हुआ था। धर्म से इसाई, उनका असली नाम था एरिक रॉबर्ट्स । संगीत का शौक उन्हे बचपन से ही था, इसलिए उस ज़माने के मशहूर संगीतकार पंडित अमरनाथ के शिष्य बन गये जिन्होने शास्त्रीय रागों से उनका परिचय करवाया और वायलिन पर धुनें बनानी भी सिखाई. १९४५ में पंडित अमरनाथ के अचानक बीमार हो जाने पर उनकी अधूरी फ़िल्मों के संगीत को पूरा करने का ज़िम्मा आ पड़ा विनोद के कंधों पर। और इस तरह से 'ख़ामोश निगाहें', 'पराये बस में' और 'कामिनी' जैसी फ़िल्मों के संगीत से एरिक रॉबर्ट्स, अर्थात विनोद का फ़िल्मी सफ़र शुरु हो गया। देश के बँटवारे के बाद जब फ़िल्मकार रूप शोरे लाहौर से बम्बई चले आये तो वो अपने साथ विनोद और गीतकार अज़िज़ कश्मीरी को भी ले आये और यहाँ आ कर इन तीनों ने एक साथ कई फ़िल्मों में काम किया। १९४९ की 'एक थी लड़की' भी ऐसी ही एक फ़िल्म थी जिसमें इन तीनों का संगम था। इस फ़िल्म में रूप शोरे की पत्नी मीना शोरे नायिका थीं और नायक बने मोतीलाल। बदकिस्मती विनोद की, कि इस कामयाब फ़िल्म के बावजूद उन्हे कभी बड़ी बजट की फ़िल्मों में संगीत देने का मौका नहीं मिला और वो कमचर्चित फ़िल्मकारों के सहारे ही अपना काम करते रहे। केवल ३७ वर्ष की आयु मे ही गुर्दे की बीमारी से विनोद का देहान्त हो गया लेकिन अपनी छोटी सी इस ज़िन्दगी में उन्होने कुछ ऐसा सुरीला काम किया कि सदा के लिए अमर हो गये। आज विनोद को गये ५० साल गुज़र चुके हैं, लेकिन वो कहते हैं न कि कलाकार और उसकी कला कभी बूढ़ी नहीं होती, वो तो हमेशा जवान रहती है, सदाबहार रहती है, तो विनोद भी अमर हैं अपने संगीत के ज़रिये। आज भी जब फ़िल्म 'एक थी लड़की' का यह चुलबुला सा गीत हम सुनते हैं तो वही गुदगुदी एक बार फिर से हमें छू जाती है एक ताज़े हवा के झोंके की तरह। तो सुनते हैं लता मंगेशकर, जी. एम. दुर्रानी और साथियों की आवाज़ो में यह छेड़-छाड़ भरा नग्मा । यह गीत समर्पित है संगीतकार विनोद की स्मृति को।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. गीता दत्त का गाया एक बेमिसाल दर्दीला गीत.
२. गीतकार रजा मेहंदी अली खान साहब की पहली फिल्म का है ये गीत.
३. मुखड़े में शब्द है -"बेदर्द".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
एक और नए विजेता मिले हैं अटलांटा, अमेरिका से हर्षद जांगला के रूप में. एक दम सही जवाब है आपका. सुमित जी कल नीलम जी ने आपको वो कह दिया जो दरअसल हम बहुत दिनों से कहना चाह रहे थे. अगर आप लता की आवाज़ नहीं पहचानते, और लता- आशा की आवाजों में फर्क नहीं देख पाते तो वाकई कानों के इलाज की जरुरत है....वैसे ये नीलम जी की सलाह है जिसका हम समर्थन करते हैं, आपकी तलाश जोरों पर है संभल के रहिये...हा हा हा...
भरत पण्डया ने भी अंतोगत्वा अपना सर खुजलाते-खुजलाते सही जवाब दे ही दिया। बधाई
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
'ओल्ड इज़ गोल्ड' में आज तक हमने आपको ज़्यादातर मशहूर संगीतकारों के नग्में ही सुनवाये हैं। इसमें कोई शक़ नहीं कि इन मशहूर संगीतकारों का फ़िल्म संगीत के विकास में, इसकी उन्नती में महत्वपूर्ण योगदान रहा है, लेकिन इन बड़े संगीतकारों के साथ साथ बहुत सारे कमचर्चित संगीतकार भी इस 'इंडस्ट्री' मे हुए हैं जिन्होने बहुत ज़्यादा काम तो नहीं किया लेकिन जितना भी किया बहुत उत्कृष्ट किया। कुछ ऐसे संगीतकार तो अपने केवल एक मशहूर गीत की वजह से ही अमर हो गये हैं। आज हम एक ऐसे ही कमचर्चित संगीतकर का ज़िक्र इस मजलिस में कर रहे हैं और वो संगीतकार हैं विनोद। विनोद का नाम लेते ही जो गीत झट से हमारे जेहन में आता है वह है फ़िल्म 'एक थी लड़की' का "लारा लप्पा लारा लप्पा लाई रखदा". संगीतकार विनोद की पहचान बननेवाला यह गीत आज प्रस्तुत है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में। यह गीत न केवल विनोद के संगीत सफ़र का एक ज़रूरी मुक़ाम था बल्कि लताजी के कैरियर के शुरुआती लोकप्रिय गीतों में से भी एक था।
इससे पहले कि आप यह गीत सुनें, संगीतकार विनोद के बारे में कुछ कहना चाहूँगा। विनोद का जन्म २८ मई १९२२ को लाहौर में हुआ था। धर्म से इसाई, उनका असली नाम था एरिक रॉबर्ट्स । संगीत का शौक उन्हे बचपन से ही था, इसलिए उस ज़माने के मशहूर संगीतकार पंडित अमरनाथ के शिष्य बन गये जिन्होने शास्त्रीय रागों से उनका परिचय करवाया और वायलिन पर धुनें बनानी भी सिखाई. १९४५ में पंडित अमरनाथ के अचानक बीमार हो जाने पर उनकी अधूरी फ़िल्मों के संगीत को पूरा करने का ज़िम्मा आ पड़ा विनोद के कंधों पर। और इस तरह से 'ख़ामोश निगाहें', 'पराये बस में' और 'कामिनी' जैसी फ़िल्मों के संगीत से एरिक रॉबर्ट्स, अर्थात विनोद का फ़िल्मी सफ़र शुरु हो गया। देश के बँटवारे के बाद जब फ़िल्मकार रूप शोरे लाहौर से बम्बई चले आये तो वो अपने साथ विनोद और गीतकार अज़िज़ कश्मीरी को भी ले आये और यहाँ आ कर इन तीनों ने एक साथ कई फ़िल्मों में काम किया। १९४९ की 'एक थी लड़की' भी ऐसी ही एक फ़िल्म थी जिसमें इन तीनों का संगम था। इस फ़िल्म में रूप शोरे की पत्नी मीना शोरे नायिका थीं और नायक बने मोतीलाल। बदकिस्मती विनोद की, कि इस कामयाब फ़िल्म के बावजूद उन्हे कभी बड़ी बजट की फ़िल्मों में संगीत देने का मौका नहीं मिला और वो कमचर्चित फ़िल्मकारों के सहारे ही अपना काम करते रहे। केवल ३७ वर्ष की आयु मे ही गुर्दे की बीमारी से विनोद का देहान्त हो गया लेकिन अपनी छोटी सी इस ज़िन्दगी में उन्होने कुछ ऐसा सुरीला काम किया कि सदा के लिए अमर हो गये। आज विनोद को गये ५० साल गुज़र चुके हैं, लेकिन वो कहते हैं न कि कलाकार और उसकी कला कभी बूढ़ी नहीं होती, वो तो हमेशा जवान रहती है, सदाबहार रहती है, तो विनोद भी अमर हैं अपने संगीत के ज़रिये। आज भी जब फ़िल्म 'एक थी लड़की' का यह चुलबुला सा गीत हम सुनते हैं तो वही गुदगुदी एक बार फिर से हमें छू जाती है एक ताज़े हवा के झोंके की तरह। तो सुनते हैं लता मंगेशकर, जी. एम. दुर्रानी और साथियों की आवाज़ो में यह छेड़-छाड़ भरा नग्मा । यह गीत समर्पित है संगीतकार विनोद की स्मृति को।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. गीता दत्त का गाया एक बेमिसाल दर्दीला गीत.
२. गीतकार रजा मेहंदी अली खान साहब की पहली फिल्म का है ये गीत.
३. मुखड़े में शब्द है -"बेदर्द".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
एक और नए विजेता मिले हैं अटलांटा, अमेरिका से हर्षद जांगला के रूप में. एक दम सही जवाब है आपका. सुमित जी कल नीलम जी ने आपको वो कह दिया जो दरअसल हम बहुत दिनों से कहना चाह रहे थे. अगर आप लता की आवाज़ नहीं पहचानते, और लता- आशा की आवाजों में फर्क नहीं देख पाते तो वाकई कानों के इलाज की जरुरत है....वैसे ये नीलम जी की सलाह है जिसका हम समर्थन करते हैं, आपकी तलाश जोरों पर है संभल के रहिये...हा हा हा...
भरत पण्डया ने भी अंतोगत्वा अपना सर खुजलाते-खुजलाते सही जवाब दे ही दिया। बधाई
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
पहेली का जवाब हैं "मेरा सुन्दर सपना बीत गया, मैं प्रेम में सब कुछ हार गयी बेदर्द ज़माना जीत गया" जो की राजा मेहंदी अली खान साहब ने लिखा था फिल्म दो भाई के लिए. इसी गाने से गायिका गीता रॉय और संगीत कार सचिन देव बर्मन साहब को सबसे पहली बड़ी लोकप्रियता हासील हुई.
पराग
यही गीत है पराग जी वाला,,,,,
"Mera Sunder sapana bit gaya
me premme sabkuchh har gayo bedard jamana jiy gaya-----