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हम जब सिमट के आपकी बाहों में आ गए - साहिर का लिखा एक खूबसूरत युगल गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 56

. पी. नय्यर ने अगर आशा भोंसले से सबसे ज़्यादा गाने लिये तो संगीतकार रवि ने भी लताजी से ज़्यादा आशाजी से ही गाने लिये। यहाँ तक की रवि के सबसे सफलतम गीत आशाजी ने ही गाये हैं। आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में पेश है संगीतकार रवि और गायिका आशा भोंसले की जोड़ी का एक शायराना नग्मा । महेन्द्र कपूर की भी आवाज़ शामिल है इस गाने में। जोड़ी की अगर बात करें तो रवि के साथ शायर और गीतकार साहिर लुधियानवी की जोड़ी भी ख़ूब जमी थी। हमराज़, नीलकमल, पारस, काजल, दो कलियाँ, गुमराह, आँखें, एक महल हो सपनों का, धुंध, और वक़्त जैसी कामयाब फ़िल्मों में साहिर और रवि ने एक साथ काम किया। आज aasha -महेन्द्र की आवाज़ों में जो गीत हम चुन कर लाए हैं वह है फ़िल्म वक़्त का। साहिर हमेशा से सीधे शब्दों में गहरी बात कह जाते थे। इस गीत में भी सीधे सीधे वो लिखते हैं कि "हम जब सिमट के आपकी बाहों में आ गए, लाखों हसीन ख़्वाब निगाहों में आ गए"। बात है तो बड़ी सीधी, लेकिन तरीका बेहद सुंदर और रुमानीयत से भरपूर।

फ़िल्म वक़्त बी. आर. चोपड़ा की फ़िल्म थी जिसका निर्देशन किया था यश चोपड़ा ने। यह हिन्दी फ़िल्मों के इतिहास की पहली 'मल्टी-स्टारर फ़िल्म' थी जिसमें कई बड़े और दिग्गज कलाकारों ने काम किया जैसे कि सुनिल दत्त, साधना, राज कुमार, शशि कपूर, शर्मिला टैगोर, बलराज साहनी, मोतीलाल और रहमान। पहले बी. आर. चोपड़ा इस फ़िल्म को पृथ्वीराज कपूर और उनके तीन बेटे राज, शम्मी और शशि को लेकर बनाना चाहते थे, लेकिन हक़ीक़त में केवल शशि कपूर को ही फ़िल्म में 'कास्ट' कर पाए। 'वक़्त' ने १९६६ में बहुत सारे फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीते, जैसे कि धरम चोपड़ा (सर्वश्रेष्ठ सिनेमाटोग्राफ़र), अख़्तर-उल-इमान (सर्वश्रेष्ठ संवाद), यश चोपड़ा (सर्वश्रेष्ठ निर्देशक), अख़्तर मिर्ज़ा (सर्वश्रेष्ठ कहानी), राज कुमार (सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेता), और बी. आर. चोपड़ा (सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म)। भले ही इस फ़िल्म के गीत संगीत के लिए किसी को कोई पुरस्कार नहीं मिला, लेकिन असली पुरस्कार तो जनता का प्यार है जो इस फ़िल्म के गीतों को भरपूर मिला और आज भी मिल रही है। चलिये, उसी प्यार को बरक़रार रखते हुए सुनिये आज का 'ओल्ड इज़ गोल्ड'।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. एक और बेमिसाल युगल गीत मुकेश और गीता दत्त का.
२. रोशन साहब का संगीत.
३. मुखड़े में शब्द है -"बेवफा"

कुछ याद आया...?

पिछली पहेली का परिणाम -
एक बार फिर नीरज और मनु जी की टीम को बधाई...सही गीत के लिए.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.


Comments

manu said…
ख्यालों में किसी के इस तरह आया नहीं करते,,,,
किसी को बेवफा आ आ के तडपाया नहीं करते,,,,

शायद फिल्म है बावरे नैन,,,
Neeraj Rohilla said…
हमे याद नहीं आया लेकिन मनुजी का जवाब सही लग रहा है। बधाई हो मनुजी,
neelam said…
phir se saahir ka gana aasha ki aawaj me ,wallllllllllllllah

shukriya

ek baat aur jawaab sujoy da bataate hain ya sajeev ji jaanna jaroori hai
bengali me baat karke imreess karke
uttar nahi bataane par pahley number pe aa sakte hain .thie is a secret ,don't tell it to anyone ,hahahahahaahahahahahahahahahahahahaha
Babli said…
मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
ras ganga men avgahan karane ke liye dhanyavad.

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