मशहूर पार्श्व गायक महेन्द्र कपूर को अनिता कुमार की श्रद्धाँजलि
दोस्तो,
अभी-अभी खबर आयी कि शाम साढ़े सात बजे महेंद्र कपूर सदा के लिए रुखसत हो लिए। सुनते ही दिल धक्क से रह गया। अभी कल ही तो हेमंत दा की बरसी थी और वो बहुत याद आये, और आज महेंद्र कपूर चल दिये।
कानों में गूंजती उनकी आवाज के साथ साथ अपने बचपन की यादें भी लौट रही हैं। 1950 के दशक में जब महोम्मद रफ़ी, तलत महमूद, मन्ना डे, हेमंत दा, मुकेश और कालांतर में किशोर दा की तूती बोलती थी ऐसे में भी महेंद्र कपूर साहब ने अपना एक अलग मुकाम बना लिया था। एक ऐसी आवाज जो बरबस अपनी ओर खींच लेती थी। यूं तो उन्होंने उस जमाने के सभी सफ़ल नायकों को अपनी आवाज से नवाजा लेकिन मनोज कुमार भारत कुमार न होते अगर महेंद्र कपूर जी की आवाज ने उनका साथ न दिया होता। महेंद्र कपूर जी का नाम आते ही जहन में 'पूरब और पश्चिम' के गाने गूंजते लगते हैं
"है प्रीत की रीत जहां की रीत सदा, मैं गीत वहां के गाता हूँ, भारत का रहने वाला हूँ भारत की बात सुनाता हूँ"
आज भी इस गीत को सुनते-सुनते कौन भारतीय साथ में गुनगुनाने से खुद को रोक सकता है और किस भारतीय की छाती इस गाने के साथ चौड़ी नहीं होती। लाल बहादुर शास्त्री जी ने नारा दिया था "जय जवान, जय किसान", भारत के इस सपूत ने शास्त्री जी के इस नारे को अपने गीतों में न सिर्फ़ जिया बल्कि उस नारे को अमर भी कर दिया। जहां एक तरफ़ 'शहीद' फ़िल्म में उनकी आवाज गूंजी
"मेरा रंग दे बसंती चौला, माय , रंग दे बंसती चौला"
तो दूसरी तरफ़ 'उपकार' फ़िल्म के किसान की आवाज बन उन्हों ने गर्व से कहा
"मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती," ।
गीत सुनें
मोहम्मद रफ़ी को अपना गुरु मानने वाले, महेंद्र जी ने 1956 में ही फ़िल्मी गीतों के गायन की दुनिया में प्रवेश किया, लोगों ने शुरू-शुरू में कहा कि मोहम्मद रफ़ी को कॉपी करता है, लेकिन महज तीन साल बाद ही सन 1959 में उनका गाया 'नवरंग' फ़िल्म का गाना
-"आधा है चंद्रमा रात आधी, रह न जाये तेरी-मेरी बात आधी"
कालजयी गीत हमारे दिलों पर अपनी मोहर लगा गया। इसके पहले कि लोग कहते कि अरे ये तो तुक्का था जो लग गया, 1959 में ही एक और फ़िल्म 'धूल का फूल' का वो प्यारा सा गीत
"तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ, वफ़ा कर रहा हूँ वफ़ा चाहता हूँ"
ऐसा लोकप्रिय हुआ कि हर कोई उनसे वफ़ा करने को मजबूर हो गया।
फ़िर तो महेंद्र जी की शोहरत को मानो पंख लग गये, 1963 में आयी फ़िल्म 'गुमराह' का वो सदा बहार गीत
-" चलो इक बार फ़िर से अजनबी बन जाएं हम दोनों"
सुनिल दत्त और माला सिन्हा पर फ़िल्माया गया ये गीत हर टूटे दिल की आवाज बन गया और आज भी है। इस गाने पर महेंद्र जी को पहली बार फ़िल्म फ़ेअर अवार्ड भी मिला। इसी जैसा एक और गीत जो हमें याद आ रहा है वो है फ़िल्म 'वक़्त' का। हम लगभग दस साल के रहे होंगे जब फ़िल्म आयी "वक़्त", इस फ़िल्म के दो गाने बहुत लोकप्रिय हुए, एक तो मन्ना डे का गाया हुआ सदाबहार गीत जो आज भी हर किसी को गुदगुदाता है "ऐ मेरी जोहरा जबीं" और दूसरा गीत जो बहुत लोकप्रिय हुआ वो था महेंद्र जी का गाया
" दिन हैं बहार के ",
शशी कपूर और शर्मिला टैगोर पर फ़िल्माये इस गीत में महेंद्र जी ने जमाने भर की बेबसी भर शशी कपूर के किरदार को नयी ऊंचाई पर पहुंचा दिया था।
जहां ये गमगीन गाने हमारे गमों के साथी बने वहीं 'बहारें फ़िर भी आयेगीं' फ़िल्म का गीत
"बदल जाए अगर माली चमन होता नहीं खाली"
हर दिल की हौसलाअफ़्जाई करता मिल जाता है।
'किस्मत' फ़िल्म का वो गाना
"लाखों है यहां दिल वाले पर प्यार नहीं मिलता"
और
"तुम्हारा चाहने वाला खुदा की दुनिया में मेरे सिवा भी कोई और हो खुदा न करे"
कितने प्रेमियों को जबान दे गया
क्या क्या याद करें? अगर उन्होंने देश प्रेम, विरह, रोमान्स, आशावाद दिया तो भक्ति का रंग भी खूब जमाया। पूरब पश्चिम में उनकी गायी आरती
"ॐ जय जगदीश हरे "
तो आज मेरे ख्याल से हर घर में पूजा के अवसर पर बजती है। किसने सोचा था कि फ़िल्म का हिस्सा बन कर भी ये आरती फ़िल्मी रंग से अछूती रहेगी। बिना किसी लटके-झटके के सीधे सादे ट्रेडिशनल ढंग से गायी ये आरती आज भी मन को शांती देती है।
74 साल की उम्र में भी गुर्दे की बीमारी से जूझते हुए भी इस भारत के सपूत ने चैन से घर बैठना स्वीकार नहीं किया और देश-विदेश में घूम-घूम के भारतीय संगीत का जादू बिखेरता रहा, फ़िर वो जादू चाहे हिन्दी में हो या पंजाबी, गुजराती या मराठी में। मानो कहते हों
"तुम अगर साथ देने का वादा करो मैं यूं ही मस्त नगमें लुटाता रहूँ"
---अनिता कुमार
दोस्तो,
जन्म- ९ जनवरी १९३४
मूल- अमृतसर, पंजाब
मृत्यु- २७ सितम्बर, २००८
अभी-अभी खबर आयी कि शाम साढ़े सात बजे महेंद्र कपूर सदा के लिए रुखसत हो लिए। सुनते ही दिल धक्क से रह गया। अभी कल ही तो हेमंत दा की बरसी थी और वो बहुत याद आये, और आज महेंद्र कपूर चल दिये।कानों में गूंजती उनकी आवाज के साथ साथ अपने बचपन की यादें भी लौट रही हैं। 1950 के दशक में जब महोम्मद रफ़ी, तलत महमूद, मन्ना डे, हेमंत दा, मुकेश और कालांतर में किशोर दा की तूती बोलती थी ऐसे में भी महेंद्र कपूर साहब ने अपना एक अलग मुकाम बना लिया था। एक ऐसी आवाज जो बरबस अपनी ओर खींच लेती थी। यूं तो उन्होंने उस जमाने के सभी सफ़ल नायकों को अपनी आवाज से नवाजा लेकिन मनोज कुमार भारत कुमार न होते अगर महेंद्र कपूर जी की आवाज ने उनका साथ न दिया होता। महेंद्र कपूर जी का नाम आते ही जहन में 'पूरब और पश्चिम' के गाने गूंजते लगते हैं
"है प्रीत की रीत जहां की रीत सदा, मैं गीत वहां के गाता हूँ, भारत का रहने वाला हूँ भारत की बात सुनाता हूँ"
आज भी इस गीत को सुनते-सुनते कौन भारतीय साथ में गुनगुनाने से खुद को रोक सकता है और किस भारतीय की छाती इस गाने के साथ चौड़ी नहीं होती। लाल बहादुर शास्त्री जी ने नारा दिया था "जय जवान, जय किसान", भारत के इस सपूत ने शास्त्री जी के इस नारे को अपने गीतों में न सिर्फ़ जिया बल्कि उस नारे को अमर भी कर दिया। जहां एक तरफ़ 'शहीद' फ़िल्म में उनकी आवाज गूंजी
"मेरा रंग दे बसंती चौला, माय , रंग दे बंसती चौला"
तो दूसरी तरफ़ 'उपकार' फ़िल्म के किसान की आवाज बन उन्हों ने गर्व से कहा
"मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती," ।
गीत सुनें
चलो इक बार फिर से
शेष गाने आप नीचे के प्लेयर से सुनें।
मोहम्मद रफ़ी को अपना गुरु मानने वाले, महेंद्र जी ने 1956 में ही फ़िल्मी गीतों के गायन की दुनिया में प्रवेश किया, लोगों ने शुरू-शुरू में कहा कि मोहम्मद रफ़ी को कॉपी करता है, लेकिन महज तीन साल बाद ही सन 1959 में उनका गाया 'नवरंग' फ़िल्म का गाना-"आधा है चंद्रमा रात आधी, रह न जाये तेरी-मेरी बात आधी"
कालजयी गीत हमारे दिलों पर अपनी मोहर लगा गया। इसके पहले कि लोग कहते कि अरे ये तो तुक्का था जो लग गया, 1959 में ही एक और फ़िल्म 'धूल का फूल' का वो प्यारा सा गीत
"तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ, वफ़ा कर रहा हूँ वफ़ा चाहता हूँ"
ऐसा लोकप्रिय हुआ कि हर कोई उनसे वफ़ा करने को मजबूर हो गया।
फ़िर तो महेंद्र जी की शोहरत को मानो पंख लग गये, 1963 में आयी फ़िल्म 'गुमराह' का वो सदा बहार गीत
-" चलो इक बार फ़िर से अजनबी बन जाएं हम दोनों"
तान छेड़ते महेन्द्र |
---|
" दिन हैं बहार के ",
शशी कपूर और शर्मिला टैगोर पर फ़िल्माये इस गीत में महेंद्र जी ने जमाने भर की बेबसी भर शशी कपूर के किरदार को नयी ऊंचाई पर पहुंचा दिया था।
जहां ये गमगीन गाने हमारे गमों के साथी बने वहीं 'बहारें फ़िर भी आयेगीं' फ़िल्म का गीत
"बदल जाए अगर माली चमन होता नहीं खाली"
हर दिल की हौसलाअफ़्जाई करता मिल जाता है।
'किस्मत' फ़िल्म का वो गाना
"लाखों है यहां दिल वाले पर प्यार नहीं मिलता"
और
"तुम्हारा चाहने वाला खुदा की दुनिया में मेरे सिवा भी कोई और हो खुदा न करे"
कितने प्रेमियों को जबान दे गया
क्या क्या याद करें? अगर उन्होंने देश प्रेम, विरह, रोमान्स, आशावाद दिया तो भक्ति का रंग भी खूब जमाया। पूरब पश्चिम में उनकी गायी आरती
"ॐ जय जगदीश हरे "
तो आज मेरे ख्याल से हर घर में पूजा के अवसर पर बजती है। किसने सोचा था कि फ़िल्म का हिस्सा बन कर भी ये आरती फ़िल्मी रंग से अछूती रहेगी। बिना किसी लटके-झटके के सीधे सादे ट्रेडिशनल ढंग से गायी ये आरती आज भी मन को शांती देती है।
74 साल की उम्र में भी गुर्दे की बीमारी से जूझते हुए भी इस भारत के सपूत ने चैन से घर बैठना स्वीकार नहीं किया और देश-विदेश में घूम-घूम के भारतीय संगीत का जादू बिखेरता रहा, फ़िर वो जादू चाहे हिन्दी में हो या पंजाबी, गुजराती या मराठी में। मानो कहते हों
"तुम अगर साथ देने का वादा करो मैं यूं ही मस्त नगमें लुटाता रहूँ"
---अनिता कुमार
Comments
ऐसे गायक श्री महेन्द्र कपूरजी के निधन का शोकसमाचार दिया और मैँ
उनसे हुई वो आखिरी मुलाकात याद कर रही हूँ ~~
निर्माता निर्देशक श्री बी. आर. चोपडाजी के लिये बनी कई फोल्मोँ का पार्श्व गायन महेन्द्र कपूर ने किया और "महभारत "के लगभग सभी दोहे भी उन्होँने गाये हैँ -
मेरे पापाजी स्व. पँडित नरेन्द्र शर्माजी ने महाभारत मेँ कई दोहे व प्रमुख टाइटल गीत "अथ श्री महभारत कथा .." भी लिखा है और पापाजी के निधन के बाद, मेरे लिखे हुए १६ दोहे अँकल बी. आर. चोपडाजी ने उस धारावाहिक मेँ शामिल किये जिसे गाने के लिये महेन्द्र कपूरजी सँगीत निर्देशक स्व. राजकमल जी के साथ बी. आर. चोपडाजी की साँताक्रुज़,बम्बई की ओफीस मेँ आये थे और वहीँ उन्होँने मेरा लिखा दोहा गाया था, जिसके शब्द हैँ,
" बिगडी बात सँवारना,
साँवरिया की रीत,
पार्थ, सुभद्रा मिल गये,
हुई प्रणय की जीत "
प्रसँग था,अर्जुन द्वारा, सुभद्रा हरण का !
उस पल को याद करते हुए,
मेरे नमन !
- लावण्या शाह
हम जैसे संगीतप्रेमी महान कलाकारों के हुनरों को अपना मन देकर ही श्रद्धाँजलि दे सकते हैं। महेन्द्र कपूर को आपने इस रूप में याद किया। बहुत-बहुत शुक्रिया।
मुझे तो आज बहुत सी जानकारियाँ मिली। लावण्या जी द्वारा और आपके पति जी द्वारा दी गईं जानकारियाँ मेरे लिए नई हैं।
लावण्या जी से आग्रह है कि यदि महाभारत के दोहों की रिकॉर्डिंग उनके पास उपलब्ध हो तो कृपया 'आवाज़' के श्रोताओं को सुनवायें।
रफी और किशोर जैसे गायकों के बीच महेंद्र जी अपनी अलग ही पहचान बना ली थी.. हमराज़ के गाने सुनकर कोई ये नहीं कह सकता कि वे किसी से कम थे...उस समय के एवरग्रीन गायकों में से एक...
अनिता जी, आपने महेंद्र जी का परिचय कराया उसके लिये धन्यवाद..
पर कहते है न की कुछ लोग आते ही अमर होने के लिए है.अतः महेंद्र कपूर जैसे महान कलाकार न होते हुए भी हर संगीत प्रेमी के दिल में बसते है..और महेंद्र जी तो अपने गीतों के मध्यम से इस देश के राग-राग में बसते है..
अनीता जी इतना भावपूर्ण लेख प्रस्तुत करने के लिए हम आपके आभारी है..
भारतीय संगीत का एक सितारा चला गया..
उनको नमन..
मेरी श्रद्धांजलि!
महेंद्र कपूर के प्रेम नें यह करिश्मा भी कर दिखाया, कि आपके ब्लोग पर मेरी टिप्पणी छप गयी.(Some Technical Fault with my Laptop)
वरना यह कहने का समय आ रहा था कि-
चलो एक बार फिर से अजनबी बन जायें हम दोनों...
मैं यहां आज सुबह से आपके इस पोस्ट पर लगाई गयी गीतमाला को ही सुन रहा हूं.
आपकी आंखों ने क्या क्या जाम पिलवाये हमें,
होश खो बैठे तो ये जाना बेखुदी क्या चीज़ है...(I mean it)
इन गीतों को सुनकर सच में कितने भूले हुए ज़ख्मों का पता याद आया,दिल-ए नाशाद याद आया.और याद आयी उनके साथ बिताये सुरीले लमहें...
अवश्य बाटूंगा आपके साथ.
yah gana mujhe bahut achha lagta hai jiska main
kitana bhi tariff karun wo kam hai
roshan kannouje raipur (c.g.)
ek smaya tha jab main bus mahendra kapoor ji ke gane hi khojta phirta tha .
lagbhag unke sare gane mujhe bahut achhe lagte hain
aaj jab maine unki maut ki khaber suni to dil dhak se ker ke rah gaya..
ek smaya tha jab main bus mahendra kapoor ji ke gane hi khojta phirta tha .
lagbhag unke sare gane mujhe bahut achhe lagte hain
aaj jab maine unki maut ki khaber suni to dil dhak se ker ke rah gaya..