सजय पटेल ने दो बरस पहले ख्यात गायिका आशा भोंसले से उनके जन्मदिन के ठीक एक दिन पहले बात की थी.उसी गुफ़्तगू की ज़ुगाली आज आवाज़ पर....
संघर्ष हर एक के जीवन में हमेशा ही रहता है, लेकिन उन्होंने पीछे मुड़कर देखना नहीं सीखा और शायद इसीलिए वह सिर्फ़ नाम की आशा नहीं, ज़िंदगी का वो फ़लसफ़ा हैं जिसमें "निराशा' शब्द के लिए कोई जगह नहीं। वह वैसा फूल भी नहीं हैं जिसे कल मुरझाना है, वह ऐसी ख़ुशबू हैं जिसकी महक में उल्लास है, ख़ुशी है, ज़ज़्बा है।ये सारे शब्द उस आवाज़ के लिये यहाँ झरे हैं, जो साठ बरसों से मादकता, मदहोशी और मुस्कान का मीठा सिलसिला पेश करती आई हैं, आशा भोंसले।
दो बरस पहले टेलीफ़ोन पर उनसे जब चर्चा हुई थी तब आशाजी ने कहा- जीवन ताल और लय में होना ज़रूरी है। सुर उतरा तो चढ़ जाएगा, लेकिन ताल बिगड़ी तो समझिए संगीत का समॉं ही बिगड़ गया। मनुष्य के लिए "चाल-ढाल और गाने वालों के लिए ताल' बहुत ज़रूरी है। मैंने न जाने कितने संगीतकारों के साथ काम किया तो उसे अपना एक विनम्र कर्तव्य माना। कभी काम करके थकान नहीं महसूस की मैंने। मानकर चली कि संगीत का काम भी एक इबादत है, उसे तो करना ही है।
बातचीत में ज़ेहन में उनके सैकड़ों गीत उभरे लेकिन मैंने उनसे दो ख़ास प्रोजेक्ट की चर्चा की। एक उस्ताद अली अकबर ख़ॉं के साथ किए शास्त्रीय संगीत के एलबम की और दूसरे ग़ज़ल गायक ग़ुलाम अली द्वारा रचे गए ग़ज़लों के एलबम की। आशाजी ने बताया कि उस्ताद अली अकबर ख़ॉं साहब अपने एलबम के लिए क्लासिकल मौसिक़ी के कई बड़े नाम आज़मा चुके थे। लेकिन बात इसलिए नहीं बन रही थी कि वो जो चाहते वह बनता नहीं। गाने वाला अपना रंग उसमें उड़ेल देता। मैं ठहरी "प्लेबैक सिंगर' सो जैसा उन्होंने बताया, मैंने गाया। उनका सबसे बढ़िया कॉम्प्लीमेंट मेरे लिए यह था कि आशाबाई आपने बाबा के संगीत को पुनर्जीवित कर दिया। न जाने कौन-कौन से कैसे-कैसे क्लिष्टतम राग और बंदिशें थीं उसमें। लेकिन बस पन्द्रह दिन ख़ॉं साहब के साथ बैठी और रिकॉर्ड कर दिया। ग़ुलाम अली साहब के साथ भी पहले गाने में घबरा रही थी, पर मेरी बेटी वर्षा ने कहा - आप कीजिए। रात को एक कम्पोज़िशन गाकर सोई और सुबह दिमाग़ में धुन मुकम्मिल हो गई। बस बाकी तो आप संगीतप्रेमी जानते ही हैं कि वह एलबम लोगों को कितना पसंद आया।
जन्मदिन बिताने की तैयारी क्या है, पूछने पर उन्होंने कहा - अब जन्मदिन या जीवन की सारी ख़ुशियॉं मैं अपने नाती-पोतों में तलाशती हूँ। यह पूछने पर कि क्या यह कहना बेहतर होगा कि भारत में पॉप की साम्राज्ञी आप हैं, तो आशाजी ने ठहाके के साथ कहा कि मैंने अण्णा (संगीतकार सी.रामचंद्र) के साथ "इना मीना डीका' गाया था। वहॉं से पॉप को एक नई पहचान मिली। अब "रंग रंग रंगीला' तक सारा सिलसिला पॉप और मस्ती का ही तो है। उन्होंने मज़ाकिया लहज़े में कहा- लोगों के जीवन में जैसे "पाप' है वैसे ही मेरे जीवन में "पॉप' है।आशा जी बोले जा रहीं थीं और मेरे दिलों-दिमाग़ में सुरों का समंदर उमड़ता आ रहा था. यक़ीन जाने लें मुझ जैसे कानसेन के लिये इस सुरगंध से बतियाना लगभग एक क़िस्म से हिप्नॉटाइज़ हो जाने जैसा था.
आशा जी ने बताया कि लता मंगेशकर की छोटी बहन होना हमेशा से फ़ख़्र का विषय रहा है और हमने हमेशा एक व्यावसायिक अनुशासन को क़ायम रखा है. वे (दीदी)हमेशा एक महान गुलूकारा रहीं है और न जाने कितने गायक-गायिकाओं ने उनसे प्रेरणा ली है तो मेरे लिये तो वे बड़ी बहन और एक प्यारी सखी रहीं हैं.आशाजी ठीक कहतीं हैं.और बुरा न मानें जब भी कोई इन दो स्वर-महारानियों में तुलता करता है तो मुझे बेहद अफ़सोस होता है. देखा जाए तो दोनों एक तरह एक ध्वनि-मुद्रिका दो साइड हैं.बताइये कैसे करें तुलना. एक तरफ़ कोई गीत अधिक अच्छा है , दूसरी तरफ़ कोई दूसरा अच्छा.
आशा भोंसले गायकी में विविधता का दूसरा नाम है. ज़रा ग़ौर फ़रमाइये इस छोटी सी फ़ेहरिस्त पर : अब के बरस भेज भैया को बाबुल,रंग,रंग,रंगीला,दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिये,दम मारो दम,आगे भी जाने न तू,पीछे भी जाने तू, जो भी है बस वही एक पल है,चैन से हमको कभी आपने जीने न दिया,सुन सुन दीदी तेरे लिये एक रिश्ता आया है;कितनी विविधता है इन गीतों के मूड में और यहीं आकर आशाजी अपवाद हो जातीं है.वे वैरायटी का सरमाया हैं.
आशा भोंसले अपनी निजी ज़िन्दगी में बहुत टेढ़े-मेढ़े रास्तों से गुज़रीं हैं,लेकिन अपने नाम की तरह उन्होंने अपने आप को साबित किया है.समय की अदला-बदली चलती रहेगी,तहज़ीब छुपा-छाई खेलती रहेगी,ज़ुबान के तेवर बदलेंगें लेकिन आशा भोंसले हर दौर में प्रासंगिक होंगी.इस सर्वकालिक महान गायिका को ज़िन्दगी की पिचहत्तरवीं पायदान पर हम सब संगीतपेमियों का प्रेमल सलाम !
(चित्र में आशा जी एक कंसर्ट में गाती हुईं, संगीत दे रहे हैं, मरहूम संगीतकार और पति आर डी बर्मन साहब)
चित्र साभार - हमाराफोटोस
संघर्ष हर एक के जीवन में हमेशा ही रहता है, लेकिन उन्होंने पीछे मुड़कर देखना नहीं सीखा और शायद इसीलिए वह सिर्फ़ नाम की आशा नहीं, ज़िंदगी का वो फ़लसफ़ा हैं जिसमें "निराशा' शब्द के लिए कोई जगह नहीं। वह वैसा फूल भी नहीं हैं जिसे कल मुरझाना है, वह ऐसी ख़ुशबू हैं जिसकी महक में उल्लास है, ख़ुशी है, ज़ज़्बा है।ये सारे शब्द उस आवाज़ के लिये यहाँ झरे हैं, जो साठ बरसों से मादकता, मदहोशी और मुस्कान का मीठा सिलसिला पेश करती आई हैं, आशा भोंसले।
दो बरस पहले टेलीफ़ोन पर उनसे जब चर्चा हुई थी तब आशाजी ने कहा- जीवन ताल और लय में होना ज़रूरी है। सुर उतरा तो चढ़ जाएगा, लेकिन ताल बिगड़ी तो समझिए संगीत का समॉं ही बिगड़ गया। मनुष्य के लिए "चाल-ढाल और गाने वालों के लिए ताल' बहुत ज़रूरी है। मैंने न जाने कितने संगीतकारों के साथ काम किया तो उसे अपना एक विनम्र कर्तव्य माना। कभी काम करके थकान नहीं महसूस की मैंने। मानकर चली कि संगीत का काम भी एक इबादत है, उसे तो करना ही है।
बातचीत में ज़ेहन में उनके सैकड़ों गीत उभरे लेकिन मैंने उनसे दो ख़ास प्रोजेक्ट की चर्चा की। एक उस्ताद अली अकबर ख़ॉं के साथ किए शास्त्रीय संगीत के एलबम की और दूसरे ग़ज़ल गायक ग़ुलाम अली द्वारा रचे गए ग़ज़लों के एलबम की। आशाजी ने बताया कि उस्ताद अली अकबर ख़ॉं साहब अपने एलबम के लिए क्लासिकल मौसिक़ी के कई बड़े नाम आज़मा चुके थे। लेकिन बात इसलिए नहीं बन रही थी कि वो जो चाहते वह बनता नहीं। गाने वाला अपना रंग उसमें उड़ेल देता। मैं ठहरी "प्लेबैक सिंगर' सो जैसा उन्होंने बताया, मैंने गाया। उनका सबसे बढ़िया कॉम्प्लीमेंट मेरे लिए यह था कि आशाबाई आपने बाबा के संगीत को पुनर्जीवित कर दिया। न जाने कौन-कौन से कैसे-कैसे क्लिष्टतम राग और बंदिशें थीं उसमें। लेकिन बस पन्द्रह दिन ख़ॉं साहब के साथ बैठी और रिकॉर्ड कर दिया। ग़ुलाम अली साहब के साथ भी पहले गाने में घबरा रही थी, पर मेरी बेटी वर्षा ने कहा - आप कीजिए। रात को एक कम्पोज़िशन गाकर सोई और सुबह दिमाग़ में धुन मुकम्मिल हो गई। बस बाकी तो आप संगीतप्रेमी जानते ही हैं कि वह एलबम लोगों को कितना पसंद आया।
जन्मदिन बिताने की तैयारी क्या है, पूछने पर उन्होंने कहा - अब जन्मदिन या जीवन की सारी ख़ुशियॉं मैं अपने नाती-पोतों में तलाशती हूँ। यह पूछने पर कि क्या यह कहना बेहतर होगा कि भारत में पॉप की साम्राज्ञी आप हैं, तो आशाजी ने ठहाके के साथ कहा कि मैंने अण्णा (संगीतकार सी.रामचंद्र) के साथ "इना मीना डीका' गाया था। वहॉं से पॉप को एक नई पहचान मिली। अब "रंग रंग रंगीला' तक सारा सिलसिला पॉप और मस्ती का ही तो है। उन्होंने मज़ाकिया लहज़े में कहा- लोगों के जीवन में जैसे "पाप' है वैसे ही मेरे जीवन में "पॉप' है।आशा जी बोले जा रहीं थीं और मेरे दिलों-दिमाग़ में सुरों का समंदर उमड़ता आ रहा था. यक़ीन जाने लें मुझ जैसे कानसेन के लिये इस सुरगंध से बतियाना लगभग एक क़िस्म से हिप्नॉटाइज़ हो जाने जैसा था.
आशा जी ने बताया कि लता मंगेशकर की छोटी बहन होना हमेशा से फ़ख़्र का विषय रहा है और हमने हमेशा एक व्यावसायिक अनुशासन को क़ायम रखा है. वे (दीदी)हमेशा एक महान गुलूकारा रहीं है और न जाने कितने गायक-गायिकाओं ने उनसे प्रेरणा ली है तो मेरे लिये तो वे बड़ी बहन और एक प्यारी सखी रहीं हैं.आशाजी ठीक कहतीं हैं.और बुरा न मानें जब भी कोई इन दो स्वर-महारानियों में तुलता करता है तो मुझे बेहद अफ़सोस होता है. देखा जाए तो दोनों एक तरह एक ध्वनि-मुद्रिका दो साइड हैं.बताइये कैसे करें तुलना. एक तरफ़ कोई गीत अधिक अच्छा है , दूसरी तरफ़ कोई दूसरा अच्छा.
आशा भोंसले गायकी में विविधता का दूसरा नाम है. ज़रा ग़ौर फ़रमाइये इस छोटी सी फ़ेहरिस्त पर : अब के बरस भेज भैया को बाबुल,रंग,रंग,रंगीला,दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिये,दम मारो दम,आगे भी जाने न तू,पीछे भी जाने तू, जो भी है बस वही एक पल है,चैन से हमको कभी आपने जीने न दिया,सुन सुन दीदी तेरे लिये एक रिश्ता आया है;कितनी विविधता है इन गीतों के मूड में और यहीं आकर आशाजी अपवाद हो जातीं है.वे वैरायटी का सरमाया हैं.
आशा भोंसले अपनी निजी ज़िन्दगी में बहुत टेढ़े-मेढ़े रास्तों से गुज़रीं हैं,लेकिन अपने नाम की तरह उन्होंने अपने आप को साबित किया है.समय की अदला-बदली चलती रहेगी,तहज़ीब छुपा-छाई खेलती रहेगी,ज़ुबान के तेवर बदलेंगें लेकिन आशा भोंसले हर दौर में प्रासंगिक होंगी.इस सर्वकालिक महान गायिका को ज़िन्दगी की पिचहत्तरवीं पायदान पर हम सब संगीतपेमियों का प्रेमल सलाम !
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(चित्र में आशा जी एक कंसर्ट में गाती हुईं, संगीत दे रहे हैं, मरहूम संगीतकार और पति आर डी बर्मन साहब)
चित्र साभार - हमाराफोटोस
Comments
लेख अच्छा है | संजय को धन्यवाद |
अवनीश
बहुत खूबसूरत पेशकश। जैसा नाम वैसा धाम।
आशा जी से आपकी भेटवार्त्ता हम सबके लिए बेहद लाभप्रद है।
इसके लिए आपका तहे-दिल से शुक्रिया।