Skip to main content

अहमद फ़‌राज़ की शायरी, उनकी अपनी आवाज़ में

सुनिए अहमद फ़राज़ की २३ रिकॉर्डिंग उन्हीं की आवाज़ में

पिछला सप्ताह कविता-शायरी के इतिहास के लिए अच्छा नहीं कहा जा सकता क्योंकि हमने पिछले सोमवार कविता का न मिट सकने वाले अध्याय का सृजक, पाकिस्तानी शायर अहमद फ़राज़ को खो दिया। एक दिन बाद ही हिन्द-युग्म पर प्रेमचंद की रूला देने वाली श्रद्धाँजलि प्रकाशित हुई। दीप-जगदीप ने उनके आखिरी ३७ दिनों का ज़िक्र किया। मेरा कविता-प्रेमी मन भी उनको इंटरनेट पर तलाशता रहा। मैंने उनकी आवाज़ कभी नहीं सुनी थी। हाँ, उनकी शायरियाँ दूसरे लोगों की जुबानों से सैकड़ों बार सुन चुका था।

पाकिस्तान के नवशेरा में जन्मे फ़राज़ की आवाज़ खोजते-खोजते मैं एक पाकिस्तानी फोरम पर पहुँच गया, जहाँ उनकी आवाज़ सुरक्षित थी। एक नहीं पूरी २३ रिकॉर्डिंग। कुछ तकनीकी कमियों के कारण उन्हें सीधे सुन पाना आसान न था, तो मैंने सोचा इस महान शायर के साथ यह अन्याय होगा, यदि आवाज़ बहुत बड़े श्रोतावर्ग तक नहीं पहुँची तो। वे फाइलें भी सुनने लायक हालत में नहीं थी। अनुराग शर्मा से निवेदन किया कि वे उन्हें परिवर्धित और संपादित कर दें।

उसी का परिणाम है कि आज हम आपके सामने उनकी २३ रिकॉर्डिंग लेकर उपलब्ध हैं। हर शे'र में अलग-अलग रंग हैं। ज़िदंगी के फलसफे हैं। नीचे के प्लेयर को चलाएँ और कम से कम १ घण्टे के लिए अहमद फ़राज़ की यादों में डूब जायें।


Ahmad Faraz ki ghazalen, unhin ki aawaaz mein

बहुत से पाठकों और श्रोताओं को अहमद फ़राज़ के बारे में अधिक पता नहीं है। आइए शॉर्ट में जानते हैं उनका परिचय।

अहमद फ़राज़ (जनवरी १४, १९३१- अगस्त २५, २००८)


अहमद फ़राज़ बीती सदी के आधुनिक कवियों में से एक माने जाते हैं। 'फ़राज़' उनका तख़ल्लुस है। इनका मूल नाम सैयद अहमद शाह था। अपनी साधारण मगर प्रभावी शैली के कारण फ़राज़ की तुलना मोहम्मद इकबाल और फै़ज़ अहमद फ़ैज़ से की जाती है, तथा तात्कालिक कवियों (शायरों) में इन्हें विशेष स्थान प्राप्त था। मज़हबी रूप से पश्तूनी होते हुए भी फ़राज़ ने पेशावर विश्वविद्यालय से पर्शियन और ऊर्दू भाषा में दक्षता हासिल की और बाद में वहीं अध्यापन करने लगे। हालाँकि उनका जन्मस्थान नौशेरा बताया जाता है लेकिन 'डेली जंग' के साथ एक साक्षात्कार में फ़राज़ ने अपना जन्मस्थान कोहाट बताया था। रेडिफ डॉट कॉम से साथ एक इंटरव्यू में फ़राज़ ने अपने पिता सैयद मुहम्मद शाह के द्वारा अपने भाइयों के लिए आधुनिक वस्त्र और इनके लिए एक साधारण काश्मीरा लाने पर उसको लौटाये जाने और एक पर्ची पर अपनी पहली द्विपंक्ति लिखे जाने का ज़िक्र भी किया था। लाइने थीं-

लाये हैं कपड़े सबके लिए सेल से
लाये हैं हमारे लिए कम्बल जेल से।


( उपर्युक्त बात का उल्लेख साहित्यकार प्रेमचंद सहजवाला ने भी फ़राज़ पर लिखे अपने लेख में किया है)

अपने कॉलेज़ के दिनों में अहमद फ़राज़ और अली सरदार जाफ़री सर्वश्रेष्ठ प्रगतिशील कवि माने जाते थे। खुद फ़राज़ भी जाफरी से प्रभावित थे और उन्हें अपना रॉल मॉडेल मानते थे।

अनेक राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाज़े गये फ़राज़ को तब जेल भेज दिया गया था जब वे एक मुशायरे में ज़िया-उल-हक़ काल के मिलिटरी राज़ की आलोचना करते पाये गये थे। फिर उन्होंने खुद को ही ६ वर्षों के लिए देश निकाला दे दिया। बाद में जब वे स्वदेश लौटे तो पाकिस्तानी एकादमी ऑफ लेटर्स के चेयरमैन बनें, पाकिस्तान नेशनल बुक फाउँडेशन के भी कई वर्षों तक चेयरमैन रहे।

फ़राज़ जुल्फ़िक़ार-अली-भुट्टो और पाकिस्तानी पिपुल्स पार्टी से प्रभावित थे। साहित्य-सेवा के लिए इन्हें वर्ष २००४ में हिलाल-ए-इम्तियाज़ का पुरस्कार मिला, जिसे इन्होंने सन् २००६ में पाकिस्तानी सरकार की कार्यप्रणाली और नीतियों से नाखुश होकर लौटा दिया।

"मेरी आत्मा मुझे कभी क्षमा नहीं करेगी यदि मैं मूक-चश्मदीद की तरह अपने आस-पास को देखता रहा। कम से कम मैं इतना कर सकता हूँ कि तानाशाह सरकार यह जाने कि अपने मानवाधिकारों के लिए गंभीर जनता की नज़रों क्या स्थान रखती है। मैं यह गरिमामयी सम्मान लौटाकर यह दिखाना चाहता हूँ कि मैं इस सरकार के साथ किसी भी तौर पर नहीं हूँ।" फ़राज़ का वक्तव्य।

शायर अहमद फ़राज़ ने अपना सर्वोत्तम देश-निकाला के समय लिखा। जुलाई २००८ में एक अफ़वाह फैली कि फ़राज़ का शिकागो के एक हस्पताल में देहांत हो गया। फ़राज़ के चिकित्सक ताहिर रोहैल ने इस समाचार का खंडन किया, लेकिन यह सुनिश्चित किया कि वो बहुत बीमार हैं। धीरे-धीरे फ़राज़ का स्वास्थ्य बिगड़ता रहा और २५ अगस्त २००८ की शाम इस्लामाबाद के एक अस्पताल में इनका शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया। इनके मृत-शरीर को २६ अगस्त २००८ की शाम को एच-८, कब्रगाह, इस्लामाबाद में दफना दिया गया।

प्रस्तुति- शैलेश भारतवासी
सहयोग- अनुराग शर्मा

Comments

मैंने भी आज पहली बार फ़राज़ साहब को सुना, लग रहा है जैसे किसी मुशायरे से लौटा हूँ,
अगरचे जोर हवाओं ने डाल रखा है,
मगर चिरागों ने लौ को संभाल रखा है.
वाह, मुझे लगता है की जब भी मुझे समय मिलेगा मैं लौट कर इस पन्ने पर आऊंगा इस शायरी के समुन्दर में नहा लूँगा
आभार शैलेश
shivani said…
शैलेश जी और अनुराग जी ,आपका बहुत बहुत धन्यवाद ...आपके माध्यम से अहमद फ़राज़ साहब की शायरी सुनने को मिली और उनके बारे में अनछुए पहलु भी जानने का अवसर मिला !उनकी शायरी और नज़्म सुन कर सुकून मिला !मुझे उनकी शायरी बहुत पसंद आई !धन्यवाद !
Shivani Singh said…
Aankh se Door Na ho

"awesome,lajawaab,kya khoob kaha hai...aankh se door na ho.................guzar jaayega.....bahut gahraayi hai in shabdon mein....waah ...."

Wekhshatein

"bahut khoob........"

chalo-wo-ishq-nahee-ahmad-fraz

"main aaina hoon ,mujhey tootne ki aadat hai.......subhaan allah..."

Aashiqi mein Meer Jaise Khwab

"aashiqui mein meer jaise khwaab mat dekha karo baavle ho jaaoge ,mahtaab mat dekha karo bahut khoob ahmad faraz sahib....."

Is Qadar Musalsil Thi

"aaj pahli baar humne unse bewafai ki........ bahut khoob............kai baar sun chuki hoon...shukriya..."

Kali Deewar

"ek safed imaarat jiski nagar nagar mein dhoom.......... bahut jazbaati nazm sunai hai faraz sahib ne......shukriya..."

Silsile Tor Gaya Woh

"kya kahne.......kamaal ka kah gaye aap to....."

Suna Hai Log Use

"suna hai bole to...............baat kar ke dekhtey hain...... bahut khoob farmaya aapne....."

Yeh To IssKa Hai Karishma

"waah........is se zyada kya kah saktey hain.....waah....."
शैलेश जी आपको और अनुराग जी को दिल से धन्यवाद जो अपने हम श्रोताओ के लिए इतना अच्छा संकलन प्रस्तुत किया.वाकई ऐसा लगता है की हम स्वयं कही मुशायरे में बैठे है.
bahut acchey...jee khush ho gayaa..aabhaar
neelam said…
सिर्फ़ कमेंट्स पढ़ के दिल को बहला लेते हैं
शैलेश जी ,मदद ,कीजिये
rachana said…
mujhe linkm nahi mila please help karen
saader
rachana
Anonymous said…
where can i get faraz'z poetry in hindi script?

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की