बहुमुखी प्रतिभा-यही शब्द हैं जो आशा भोंसले के पूरे कैरियर को अपने में समाहित करते है। और कौन ऐसा है जो गर्व कर सके, जिसने व्यापक तौर पर तीन पीढ़ियों के महान संगीतकारों के साथ काम किया हो। चाहें ५० के दशक में ऒ.पी नय्यर का मधुर संगीत हो या आर.डी.बर्मन के ७० के दशक के पॉप हों या फिर ए.आर.रहमान का लयबद्ध संगीत- आशा जी ने सभी के साथ भरपूर काम किया है। गायन के क्षेत्र में प्रयोग करने की उनकी भूख की वजह से ही उनमें विविधता आ पाई है। उन्होंने १९५० के दशक में हिन्दी सिने जगत के पहले रॉक गीतों में से एक "ईना, मीना, डीका.." गाया। उन्होंने महान गज़ल गायक गुलाम अली व जगजीत सिंह के साथ कईं गज़लों में भी काम किया, और बिद्दू के पॉप व बप्पी लहड़ी के डिस्को गीत भी गाये।
मंगेशकर बहनों में से एक, आशा भोंसले का जन्म ८ सितम्बर १९३३ को महाराष्ट्र के मशहूर अभिनेता व गायक दीनानाथ मंगेशकर के घर छोटे से कस्बे "गोर" में हुआ। अपनी बड़ी बहन लता मंगेशकर की तरह इन्होंने भी बचपन से ही गाना शुरु कर दिया था। परन्तु अपने पिता से शास्त्रीय संगीत सीखने के कारण वे जल्द ही पार्श्व गायन के क्षेत्र में कूद पड़ी। अप्रैल १९४२ में इनके पिताजी का देहांत हो गया जिसके बाद इनका परिवार पुणे से कोल्हापुर और बाद में मुम्बई जा बसा। करीबन १० वर्ष की उम्र में इन्होंने अपना पहला गीत मराठी फिल्म "माझा बाल" के लिये गाया। आशा अपने जन्म-स्थल को आज भी याद करती हैं और कहती हैं-"मैं अब भी संगली में बिताये अपने बचपन के दिन याद करती हूँ क्योंकि मेरी वजह से ही लता दी स्कूल से भागतीं थीं। मैं संगली को कभी नहीं भूल सकती क्योंकि वहाँ मेरा जन्म हुआ था"।
आशा ने पार्श्व गायन की शुरुआत १९४८ में फिल्म "चुनरिया" से कर दी थी। किन्तु उन्हें अपनी जगह बनाने में काफी समय लगा। १९४९ का अंत होते होते लाहौर, बरसात, अंदाज़ और महल जैसी फिल्में आईं और लता मंगेशकर संगीतकारों की पहली पसंद बन गईं थीं। आशा, लता दी जितनी ही प्रतिभाशाली होने के बावजूद अपना सही हक नहीं ले पा रहीं थी। ऐसे भी कईं संगीतकार थे जो लता के बाद शमशाद बेगम और गीता दत्त से गवाने के बारे में सोचते थे। जिसकी वजह से फिल्मी जगत में आशा की जगह न के बराबर थी। काफी हल्के बजट की फिल्में या वो फिल्में जिनमें लता न गा पा रहीं हों, वे ही उन्हें मिल पा रहीं थी। मास्टर कृष्ण दयाल, विनोद, हंसराज बहल, बसंत प्रकाश, धनीराम व अन्य संगीतकार थे जिन्होंने आशा जी के शुरुआती दिनों में उन्हें काम दिया। "चुनरिया" के अलावा १९४९ में आईं "लेख" और "खेल" ही ऐसी फिल्में रहीं जिनमें आशा जी ने गाना गाया। "लेख" में उन्होंने मास्टर कृष्ण दयाल के संगीत से सजा एक एकल गीत गाया व मुकेश के साथ एक युगल गीत -'ये काफिला है प्यार का चलता ही जायेगा..." गाया। १९५३ में "अरमान" के बाद ही उन्हें कामयाबी मिलनी शुरु हुई। एस.डी.बर्मन द्वारा संगीतबद्ध मशहूर गाना-"चाहें कितना मुझे तुम बुलावो जी, नहीं बोलूँगी, नहीं बोलूँगी...' गाया। यही गाना उन्होंने तलत महमूद के साथ भी गाया।
उसके बाद रवि ने उन्हें १९५४ में "वचन" में काम दिया। जहाँ उन्होंने मोहम्मद रफी के साथ फिल्म में एकमात्र गीत गाया-"जब लिया हाथ में हाथ..."। ये अकेला गीत ही उन्हें प्रसिद्धि दिला गया और उन्होंने अपने पैर जमाने शुरु कर दिये। लेकिन एक दो तीन (१९५२), मुकद्दर(१९५०), रमन(१०५४), सलोनी (१९५२), बिजली(१९५०), नौलखा हार(१९५४) और जागृति(१९५३) जैसी कुछ फिल्में ही थी जिनमें उन्होंने एक या दो गाने गाये और यही उनके गाते रहने की उम्मीद थी।
१९५७ उनके लिये एक नईं किरण ले कर आया जब ओ.पी नय्यर जी ने उनसे "तुमसा नहीं देखा" और " नया दौर" के गीत गाने को कहा। उसी साल एस.डी.बर्मन और लता के बीच में थोड़ी अनबन हुई। उधर गीता दत्त भी शादी के बाद परेशान थीं और उपलब्ध नहीं रहती थीं। नतीजतन एस.डी.बर्मन ने भी आशा जी को अपनी फिल्म में लेने का निश्चय किया। उससे अगले साल उन्होंने हावड़ा ब्रिज, चलती का नाम गाड़ी और लाजवंती के कईं सुपरहिट गाने गाये। उसके बाद तो १९७० के दशक तक ओ.पी. नय्यर के लिये आशा जी पहली पसंद बनी रहीं। उसके बाद इन दोनों की जोड़ी में दरार आई। १९६० के दशक में ओ.पी नय्यर के संगीत में आशा जी ने एक से बढ़कर एक बढ़िया गाने गाये। १९७० का दशक उन्हें आर.डी. बर्मन के नज़दीक ले कर आया जिन्होंने आशा जी से कईं मस्ती भरे गीत गवाये। पिया तू अब तो आजा(कारवाँ), दम मारो दम(हरे राम हरे कृष्णा) जैसे उत्तेजक और नईं चुनौतियों भरे गाने भी उन्होंने गाये। जवानी दीवानी (१९७२) के गीत "जाने जां...." में तो उन्होंने बड़ी आसानी से ही ऊँचे और नीचे स्केल में गाना गाया। १९८० में तो उन्होंने गज़ल के क्षेत्र में कमाल ही कर दिया। "दिल चीज़ क्या है..", " इन आँखों की मस्ती..", " ये क्या जगह है दोस्तों..", "जुस्तुजू जिसकी थी.." जैसी सदाबहार गज़लें उनकी उम्दा गायकी निशानी भर हैं। इजाज़त (१९८७) में उन्होंने "मेरा कुछ सामान..: गाना गाया, जिसके लिये उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। ये गाना सबसे मुश्किल गानों में से एक गिना जाता है क्योंकि ये पद्य न हो कर गद्य के रूप में है। ९० के दशक में तो आशा ही छाईं रहीं। चाहें पॉप फिल्मी गीत हो, या पाश्चात्य संगीत की एल्बम हो सभी में आशा जी ही दिखाई पड़ती थीं। वैसे तो उन्होंने गाने गाने कम कर दिये हैं पर आज भी उर्मिला या ऐश्वर्या को रंगीला (१९९४) व ताल ('९९) में आशा जी के गानों पर थिरकते हुए देखा जा सकता है।
आज उनकी आवाज़ पहले से बेहतर और विविधता भरी हो गई है। यदि हम उन्हें संदीप चौटा के "कम्बख्त इश्क.." से पहले आर.डी.बर्मन "तेरी मेरी यारी बड़ी पुरानी.." गाते हुए सुन लें तो भी प्रत्यक्ष तौर पर दोनों आवाज़ों में अंतर करना बहुत कठिन होगा.. जबकि दोनों गानों में ३० बरस का अंतर है!!
दो दिन बाद आशा जी अपना ७५ वां जन्मदिन मनायेंगी, इस अवसर पर संजय पटेल का विशेष आलेख अवश्य पढियेगा, फिलहाल सुनते हैं फ़िल्म "ये रात फ़िर न आयेगी" फ़िल्म का ये मधुर गीत आशा जी की आवाज़ में -
जानकारी स्रोत - इन्टनेट
संकलन - तपन शर्मा "चिन्तक"
मंगेशकर बहनों में से एक, आशा भोंसले का जन्म ८ सितम्बर १९३३ को महाराष्ट्र के मशहूर अभिनेता व गायक दीनानाथ मंगेशकर के घर छोटे से कस्बे "गोर" में हुआ। अपनी बड़ी बहन लता मंगेशकर की तरह इन्होंने भी बचपन से ही गाना शुरु कर दिया था। परन्तु अपने पिता से शास्त्रीय संगीत सीखने के कारण वे जल्द ही पार्श्व गायन के क्षेत्र में कूद पड़ी। अप्रैल १९४२ में इनके पिताजी का देहांत हो गया जिसके बाद इनका परिवार पुणे से कोल्हापुर और बाद में मुम्बई जा बसा। करीबन १० वर्ष की उम्र में इन्होंने अपना पहला गीत मराठी फिल्म "माझा बाल" के लिये गाया। आशा अपने जन्म-स्थल को आज भी याद करती हैं और कहती हैं-"मैं अब भी संगली में बिताये अपने बचपन के दिन याद करती हूँ क्योंकि मेरी वजह से ही लता दी स्कूल से भागतीं थीं। मैं संगली को कभी नहीं भूल सकती क्योंकि वहाँ मेरा जन्म हुआ था"।
हम सबकीं आशा |
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उसके बाद रवि ने उन्हें १९५४ में "वचन" में काम दिया। जहाँ उन्होंने मोहम्मद रफी के साथ फिल्म में एकमात्र गीत गाया-"जब लिया हाथ में हाथ..."। ये अकेला गीत ही उन्हें प्रसिद्धि दिला गया और उन्होंने अपने पैर जमाने शुरु कर दिये। लेकिन एक दो तीन (१९५२), मुकद्दर(१९५०), रमन(१०५४), सलोनी (१९५२), बिजली(१९५०), नौलखा हार(१९५४) और जागृति(१९५३) जैसी कुछ फिल्में ही थी जिनमें उन्होंने एक या दो गाने गाये और यही उनके गाते रहने की उम्मीद थी।
१९५७ उनके लिये एक नईं किरण ले कर आया जब ओ.पी नय्यर जी ने उनसे "तुमसा नहीं देखा" और " नया दौर" के गीत गाने को कहा। उसी साल एस.डी.बर्मन और लता के बीच में थोड़ी अनबन हुई। उधर गीता दत्त भी शादी के बाद परेशान थीं और उपलब्ध नहीं रहती थीं। नतीजतन एस.डी.बर्मन ने भी आशा जी को अपनी फिल्म में लेने का निश्चय किया। उससे अगले साल उन्होंने हावड़ा ब्रिज, चलती का नाम गाड़ी और लाजवंती के कईं सुपरहिट गाने गाये। उसके बाद तो १९७० के दशक तक ओ.पी. नय्यर के लिये आशा जी पहली पसंद बनी रहीं। उसके बाद इन दोनों की जोड़ी में दरार आई। १९६० के दशक में ओ.पी नय्यर के संगीत में आशा जी ने एक से बढ़कर एक बढ़िया गाने गाये। १९७० का दशक उन्हें आर.डी. बर्मन के नज़दीक ले कर आया जिन्होंने आशा जी से कईं मस्ती भरे गीत गवाये। पिया तू अब तो आजा(कारवाँ), दम मारो दम(हरे राम हरे कृष्णा) जैसे उत्तेजक और नईं चुनौतियों भरे गाने भी उन्होंने गाये। जवानी दीवानी (१९७२) के गीत "जाने जां...." में तो उन्होंने बड़ी आसानी से ही ऊँचे और नीचे स्केल में गाना गाया। १९८० में तो उन्होंने गज़ल के क्षेत्र में कमाल ही कर दिया। "दिल चीज़ क्या है..", " इन आँखों की मस्ती..", " ये क्या जगह है दोस्तों..", "जुस्तुजू जिसकी थी.." जैसी सदाबहार गज़लें उनकी उम्दा गायकी निशानी भर हैं। इजाज़त (१९८७) में उन्होंने "मेरा कुछ सामान..: गाना गाया, जिसके लिये उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। ये गाना सबसे मुश्किल गानों में से एक गिना जाता है क्योंकि ये पद्य न हो कर गद्य के रूप में है। ९० के दशक में तो आशा ही छाईं रहीं। चाहें पॉप फिल्मी गीत हो, या पाश्चात्य संगीत की एल्बम हो सभी में आशा जी ही दिखाई पड़ती थीं। वैसे तो उन्होंने गाने गाने कम कर दिये हैं पर आज भी उर्मिला या ऐश्वर्या को रंगीला (१९९४) व ताल ('९९) में आशा जी के गानों पर थिरकते हुए देखा जा सकता है।
आज उनकी आवाज़ पहले से बेहतर और विविधता भरी हो गई है। यदि हम उन्हें संदीप चौटा के "कम्बख्त इश्क.." से पहले आर.डी.बर्मन "तेरी मेरी यारी बड़ी पुरानी.." गाते हुए सुन लें तो भी प्रत्यक्ष तौर पर दोनों आवाज़ों में अंतर करना बहुत कठिन होगा.. जबकि दोनों गानों में ३० बरस का अंतर है!!
दो दिन बाद आशा जी अपना ७५ वां जन्मदिन मनायेंगी, इस अवसर पर संजय पटेल का विशेष आलेख अवश्य पढियेगा, फिलहाल सुनते हैं फ़िल्म "ये रात फ़िर न आयेगी" फ़िल्म का ये मधुर गीत आशा जी की आवाज़ में -
जानकारी स्रोत - इन्टनेट
संकलन - तपन शर्मा "चिन्तक"
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gajab ki varstalitiy thi unme