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प्रलय के बाद भी बचा रहेगा लता मंगेशकर का पावन स्वर !

लता मंगेशकर का जन्मदिन हर संगीतप्रेमी के लिये उल्लास का प्रसंग है. फ़िर हमारे प्रिय चिट्ठाकार संजय पटेल के लिये तो विशेष इसलिये है कि वे उसी शहर इन्दौर के बाशिंदे हैं जहाँ दुनिया की सबसे सुरीली आवाज़ का जन्म हुआ था. लताजी और उनका संगीत संजय भाई के लिये इबादत जैसा है. वे लताजी के गायन पर लगातार लिखते और अपनी अनूठी एंकरिंग के ज़रिये बोलते रहे हैं.आज आवाज़ के लिये लता मंगेशकर पर उनका यह भावपूर्ण लेख लता –मुरीदों के लिये एक विशिष्ट उपहार के रूप में पेश है.

आइये भगवान से प्रार्थना करें लताजी दीर्घायु हों और उनकी पाक़ आवाज़ से पूरी क़ायनात सुरीली होती रहे...बरसों बरस.



आप शास्त्रीय संगीत, लोक संगीत या चित्रपट या सुगम संगीत के पूरे विश्व इतिहास पर दृष्टि डाल लीजिये, किंतु आप निराश ही होंगे यह जानकर कि एक भी नाम ऐसा नहीं है जो अमरता का वरदान लेकर इस सृष्टि में आया हो; एक अपवाद छोड़कर और वह नाम है स्वर-साम्राज्ञी भारतरत्न लता मंगेशकर। लताजी के जन्मोत्सव की बेला में मन-मयूर जैसे बावला-सा हो गया है। दिमाग पर ज़ोर डालें तो याद आता है कि लताजी अस्सी के अनक़रीब आ गईं.श्रोताओं की चार पीढ़ियों से राब्ता रखने वाली लता मंगेशकर के वजूद को अवाम अपने से अलग ही नहीं कर सकता। यही वजह है कि जीवन की अस्सी वीं पायदान पर आ रही स्वर-कोकिला देखकर वक्त की बेरहमी पर गुस्सा-सा आता है कि कमबख़्त तू इतना तेज़ी से क्यों चलता है ?

बहरहाल २८ सितम्बर संगीतप्रेमियों की पूरी जमात के जश्न मनाने का दिन होता है. कुदरत के इस नायाब हीरे पर कौन फ़ख्र नहीं करेगा। दुनिया के दिग्गज देश अपनी इकॉनामी, प्राकृतिक सुंदरता, सकल उत्पादन और उच्च शिक्षा पर नाज़ करते हैं। डींगें मारते हैं बड़ी-बड़ी कि हमारे पास फलॉं चीज़ है, दुनिया में किसी और के पास नहीं। किबला! मैं आपसे पूछता हूँ- क्या आपके पास लता मंगेशकर हैं ? हिन्दुस्तान के ख़ज़ाने का ऐसा कोहिनूर जिसकी कीमत अनमोल है, जिसकी चमक बेमिसाल है।



लता मंगेशकर से सिर्फ़ अज़ीम मौसिक़ारों का संगीत, गीतकारों के शब्द ही रोशन नहीं; उनकी आवाज़ से अमीर का महल और किसी फटेहाल गरीब का झोपड़ा दोनों ही आबाद हैं। लताजी सिर्फ़ होटल ताज, संसद भवन, षणमुखानंद या अल्बर्ट हॉल तक महदूद नहीं, वे गॉंव की पगडंडियों, गाड़ी-गडारों और पनघट पर किलकती तितली हैं। वे शास्त्र का महिमागान नहीं; आम आदमी के होठों पर थिरकता एक प्यारा-सा मुखड़ा हैं, जिसमें ज़िंदगी के सारे ग़म और तमाम ख़ुशियॉं आकर एक निरापद आनंद पा जाती हैं। लताजी का स्वर है तो ज़िंदगी का सारा संघर्ष बेमानी है और सारी कामयाबियॉं द्विगुणित। लता की आवाज़ से मोहब्बत करने के लिए आई.आई.एम से एम.बी.ए. करने की ज़रूरत नहीं, आप अनपढ़ ही भले। आपके तमाम हीनभावों और अशिक्षा को धता बताकर लता की आवाज़ आपको इस बात का गौरव प्रदान कर सकती है कि आप लता के संगीत के दीवाने हैं और आपका यही दीवानापन आपकी बड़ी काबिलियत है।

लता की आवाज़ में जीवन के सारे रस और प्रकृति की सारी गंध सम्मिलित है। आदमी की हैसियत, उसका रुतबा, उसका सामर्थ्य माने नहीं रखता; माने यह बात रखती है कि क्या उसने लता मंगेशकर के गीत सुने हैं; गुनगुनाया है कभी उनको, यदि हॉं तो मूँगफली खाता एक गरीब लता का गीत गुनगुनाते हुए अपने आपको रायबहादुर समझने का हक रखता है। आप हिन्दुस्तान के किसी भी प्रदेश में चले जाइए; आपको लता मंगेशकर एक परिचित नाम मिलेगा। "ब्रांडनेम' की होड़ के ज़माने में लता मंगेशकर भारत का एक निर्विवाद ब्रांड है पचास बरसों से। ऐसा ब्रांड जिस पर भारत की मोनोपाली है और जिसका मार्केट-शेयर शत-प्रतिशत है। इस ब्रांड का जलवा ऐसा है कि संगीतप्रेमियों के शेयर बाज़ार में इसका सेंसेक्स सबसे ऊपर रहता है कभी वह नीचे गिरा ही नहीं।

अपने आपको ताज़िंदगी विद्यार्थी समझने वाली लता मंगेशकर का संघर्ष, तप और समर्पण विलक्षण है। उनका करियर ऐसी ख़ूबियों से पटा पड़ा है, जिस पर रचनाकारों और संगीत सिरजने वालों को फ़ख्र है। जीते जी लता मंगेशकर ऐसी किंवदंती बन गई हैं कि उनकी आवाज़ को पाकर शब्द अमर हो जाते हैं; धुन निहाल हो जाती है; नायिकाएं सुरीली हो जाती हैं और श्रोता बिना धेला दिए मालामाल। यहोँ अनायास इस मालवी-जीव को दादा बालकवि बैरागी रचित फ़िल्म "रेशमा और शेरा' का गीत तू चंदा मैं चॉंदनी' याद हो आता है। संगीतकार जयदेव और बैरागीजी को इस गीत ने जो माइलेज दिया है वह बेमिसाल है। बैरागीजी की क़लम की ताब और लताजी के सुरों की आब इस गीत के विभिन्न शेड्स आपके मन को बावरा बनाकर रेगिस्तान में नीम के दरख्त की छॉंह मिल जाए वैसी अनुभूति देते हैं।

( ख़ुद ही अनुभव करें )



आज परिवारों में आपको ऐसे अनेक उदाहरण मिल जाएँगे जहॉं परदादा ने, दादा, पिता और पुत्र ने लता के गायनामृत का रसपान किया होगा। लताजी के गाए गीत पूरे मुल्क की अमानत हैं। इसलिए यह कहने में गर्व है कि हमें इस बात से क्या लेना-देना कि हमारे राष्ट्रीय कोष में कितने ख़रबों रुपए हैं; हमें इस बात का अभिमान है कि हज़ारों गीतों ने लता के स्वर का आचमन किया है। सदियॉं गुज़र जाएँगी, आदमी ख़ूब आगे बढ़ जाएगा, दुनिया विशालतम होती जाएगी लेकिन लता के स्वरों का जादू कभी फीका नहीं पड़ेगा। सृष्टि के पंचभूतों में छठा तत्व है "लता', जो अजर-अमर है। संगीत के सात सुरों का आठवॉं सुर है लता मंगेशकर। मैं कम्प्यूटर युग में प्रगति का ढोल बजा रही पीढ़ी से गुज़ारिश करना चाहूँगा; दोस्तों ! गफ़लत छोड़ो और इस बात का मद पालो कि तुम उस भारत में पैदा हुए हो जहॉं लता मंगेशकर ने संगीत साधना की; अपने स्वरों से इस पूरी कायनात का अभिषेक किया; इंसान के मन-मंडप में अपने संगीत के तोरण बॉंधे। ज़िंदगी के रोने तो चलते ही रहेंगे, जश्न मनाओ कि लता हमारे बीच हैं. कहते हैं प्रलय के बाद मनुष्य नहीं बचेगा, लेकिन यदि कुछ बचेगा तो सिर्फ़ लता मंगेशकर की आवाज़ क्योंकि उसने संगीत को दिया है अमरता का अमृत।


लता carricature - कुलदीप दिमांग

Comments

आपके द्वारा कही गई हर बात अकाट्य सत्य है.जिसे कोई भी नही नकार सकता.कोई विरला ही होगा जो लता जी की सुरीली आवाज़ से परचित नही होगा....
लता जी को बतलाता ये लेख अपने साथ अपनी भावनाओ में डूबा ले जाता है और लगता है अभी खत्म नही होना चाहिए.
साथ ही लता जी का हसता-मुस्कुराता चित्र बहुत पसंद आया
लता जी को जन्मदिन की ढेरो सुभकामनाये और धन्यवाद भी की उन्होंने हमारे देश के संगीत को विश्व-पटल पर एक अलग पहचान दी. .
संजय भाई ... ये आवाज़ इस युग को एक आशीर्वाद है ... हम धन्य हैं ...
Great article & tribute Sanjay bhai ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

ईश्वर, उन्हें स्वस्थ और सदा प्रसन्न रखें यही कामना है ...
उनसे यही कहती हूँ, " शतं जीवेंन ` शरद : दीदी " : साल गिरह मुबारक हो ! "
दीदी के स्वर्गवासी पिताजी मास्टर दीनानाथ मंगेशकर जी ने अपनी सबसे बड़ी बिटिया को संगीत का जो नन्हा बिरवा , सौंपा था आज उस अमर बेली की शाखाएं , पुरे विश्व में , फ़ैली हुई हैं ...
दीदी का स्वर कोई ऐसा द्वीप या भूखंड नही है जहाँ , सुनाई ना देती हो ```
जहाँ कहीं एक भी भारतीय रहता होगा, वहाँ एक नन्हा भारतीय दिल धड़कता होगा और उस दिल में से लता दीदी की आवाज़ गूंजती होगी .....
" वंदे मातरम` ....सुजलाम सुफलाम् मलयज शीतलाम , शस्य श्यामला मातरम` ...वंदे ....मातरम` " ( फ़िल्म: आनंद मठ , कवि : श्री बंकिमचन्द्र जी )
http://www.youtube.com/watch?v=xj1Iy4nRMkc
जुग जुग जियो , मेरी लाडली बड़ी दीदी !

आप सदा स्वस्थ व खुश रहें और मनमोहक गीतों से सृष्टि को संवारतीं रहें .................................बहुत बधाई हो !
आपकी बहन लावण्या के चरण स्पर्श !

Please Read the entire article on my BLOG - Post -
http://www.lavanyashah.com/2008/09/blog-post_27.html
लता के अजर-अमर होने पर जिसे कोई शंका भी होगी, वह यदि आपका यह आलेख पढ़ लेगा तो नहीं बची रहेगी। बहुत ही अच्छा आलेख।

संगीत की देवी लता खूब जियें और खूब गायें ताकि भारत गूँजता रहे।
संजय भाई बहुत से आलेख पढ़े पर यकीनन कहता हूँ ये आपके बहतरीन आलेखों में से एक है, लता के स्वर को आपने जिन दिल से निकले शब्दों से शाश्वत किया है वो अद्भुत है. लता दी के बारे में सब बहुत कुछ कह ही चुके हैं पर मैं आपकी तारीफ किए बिना नही रह सकता, आपके जैसा संगीत प्रेमी भी दुनिया में विरला ही होता है, आपके समर्पण को सलाम, हमारे आवाज़ की जान बन चुके हैं आप.....तहे दिल से आपको और लता दी मेरी शुभकामनायें
संजय जी आप सौभाग्‍यशाली हैं कि आप उस शहर के बाशिंदे हैं जहां पर स्‍वयं सरस्‍वती ने जन्‍म लिया और मैं अपने को भी भाग्‍यशाली मानता हूं कि मैने भी उसी मालवांचल में जन्‍म लिया जहां लता जी का जन्‍म हुआ । आपने जो आलेख लिखा है वो अद्भुत है सचमुच ही लता जी का स्‍वर वो है जो कि प्रलय के बाद भी बाकी रहेगा और गूंजता रहेगा । कभी कभी तो ऐसा लगता है कि लता जी का स्‍वर प्राणों में समा चुका है । मैंने अपने होश में पहला गीत जो सुना था वो था छुप गया कोई रे दूर से पुकार के । खैर आपने इस दिन का सार्थक कर दिया । और ये भी साबित कर दिया कि ये बात ग़लत नहीं है कि दुनिया में अगर संगीत के सबसे जियादह कद्रदान कहीं हैं तो वो इंदौर में ही हैं । मेरे एक मित्र कभी इन्‍दौर में थे उनके पास एलपी का अद्भूत कलेक्‍शन था फिश्र उनके यहां आग लगने से काफी नष्‍ट हो गया था । मगर फिर भी काफी खजाना उनके पास था नाम तो याद नहीं आ रहा शायद श्‍यामलाल या ऐसा ही कुछ था राजबाड़े के आसपास ही कहीं घर था उनका । उनकी दीवानगी देख कर हैरत होती थी । उनके पास से ही लता जी के कुछ दुर्लभ गीत मैंने लिये थे जिनमें गृहस्‍थी दिल ने पुकारा जैसी फिल्‍मों के गीत थे । लता जी के गैर फिल्‍मी गीतों पर आप एक श्रंखला आवाज पर प्रारंभ करें लता सिंग्‍स गालिब, चालावाही देस, प्रेम भक्ति मुक्ति, मीरा, मीरा सूर कबीरा, सजदा, गुरबाणी, गीता, जैसे कई सारे एल्‍बम हैं । आपकी लेखनी का जादू पाकर शब्‍द बोलने लगते हैं । बधाई
पंकज सुबीर
लता दी को उनको जन्म-दिवस की ढेरों बधाईयाँ।
संजय जी आपका आलेख पढकर हृदय खुशी से झूम गया। आपकी लेखनी ने लता दी के व्यक्तित्व के साथ भरपूर न्याय किया है।

बधाई स्वीकारें।

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