अनुराग शर्मा |
दोस्तो,
पिछले २ सप्ताहों से आप एक आवाज़ को हिन्द-युग्म पर खूब सुन रहे हैं। और आवाज़ ही क्या, इंटरनेट पर जहाँ-जहाँ हिन्दी की उपस्थिति है, वहाँ ये उपस्थित दिखाई देते हैं। हमारे भी हर मंच पर ये दिखते हैं। इन्होंने आवाज़ पर ऑडियो-बुक का बीज डाला। इनका मानना है कि भारत में ऑडियो बुक्स में अभी बहुत सम्भावनाएँ हैं। ये हिन्दी साहित्य को किसी भी तरह से जनप्रिय बनाना चाहते हैं। इसीलिए अपनी आवाज़ में प्रसिद्ध कहानियाँ वाचने का सिलसिला शुरू कर दिया है।
अनुराग विज्ञान में स्नातक तथा आईटी प्रबंधन में स्नातकोत्तर हैं। एक बैंकर रह चुके हैं और वर्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका में एक स्वास्थ्य संस्था में ऍप्लिकेशन आकिर्टेक्ट हैं। उत्तरप्रदेश में जन्मे अनुराग भारत के विभिन्न राज्यों में रह चुके हैं। फिलहाल पिट्सबर्ग में रहते हैं। लिखना, पढ़ना, बात करन,ा यानी सामाजिक संवाद उनकी हॉबी है। शायद इसीलिए वे कविता, कहानी, लेख आदि विधाओं में सतत् लिखते रहे हैं। वे दो वर्ष तक एक इन्टरनेट रेडियो (PittRadio) चला चुके है। पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति पर वे सृजनगाथा में एक शृंखला लिख रहे हैं। एक हिन्दी काव्य संग्रह "पतझड़ सावन वसंत बहार" प्रकाशनाधीन है। आजकल अपने उपन्यासों “बांधों को तोड़ दो” व "An Alien Among Flesh Eaters" पर काम कर रहे हैं। उन्हें Friends of Tibet (भारत) एवं United Way (संयुक्त राज्य अमेरिका) जैसे समाजसेवी संगठनों से जुड़ने का सौभाग्य प्राप्त है। वे सन् 2005 में लगभग एक लाख डॉलर की सहायता राशि जुटाने वाली त्सुनामी समिति के सदस्य भी रहे हैं। आप उन्हें स्मार्ट इंडियन पर भी मिल सकते हैं।
आइए इनसे कुछ बातें करते हैं।
सवाल: आप इतना सबकुछ करते हैं, कहीं आपका २४ घण्टा ४८ का तो नहीं होता! :)
अनुराग: मेरा दिन सिर्फ़ १५-१६ घंटे का होता है क्योंकि और कुछ हो न हो ८-९ घंटे की नींद मेरी सबसे ज़रूरी खुराक है। काम शुरू करने से पहले जहाँ तक सम्भव हो उसकी योजना मन में बना लेता हूँ। याददाश्त अच्छी है, और मन शांत रहता है, इसलिए थोड़ी आसानी हो जाती है। समय का सदुपयोग करता हूँ। मेरा काम ऐसा है जिसमें नयी तकनीक से हमेशा रूबरू होना पड़ता है और मैं आजन्म विद्यार्थी हूँ। किताबें पढने के बजाय जहाँ तक सम्भव हो ऑडियो बुक्स को सुनता हूँ। ड्राइव करते समय रेडियो पर खबरें और CD पर किताबें व संगीत सुनता हूँ। दफ्तर व घर में काम करते समय भी अपने काम से जुड़े हुए पॉडकास्ट सुनता हूँ।
सवाल: आज, जबकि भारत में इंटरनेट गति की बहुत अच्छी हालत नहीं है, फिर आप कैसे मान रहे हैं कि हमारा कहानियों, उपन्यासों, नाटकों को आवाज़ देने का प्रोजेक्ट सफल होगा?
अनुराग: पता नहीं इसका उत्तर मैं ठीक से (express) समझा पाऊँगा कि नहीं, मगर कुछ उदाहरणों से कोशिश करता हूँ:
क) सुनना प्राकृतिक है, पढ़ना नहीं.
ख) आज इन्टरनेट धीमा हो सकता है लेकिन कल उसे तेज़ ही होना है, पॉडकास्ट्स का प्रचलन बढ़ने का समय बहुत दूर नहीं है।
ग) ८० के दशक में भारतीय बैंकों ने कंप्यूटर लगाने की कोशिश की थी। एक लाख रुपये में बिना हार्ड डिस्क के १२८ MB रैम के कंप्यूटर आये तो कुछ लोगों ने कहा कि कम्प्यूटर पैसे की बर्बादी है। वामपंथी दलों ने तो बहुत पुरजोर विरोध इस बिना पर किया कि कंप्यूटर आने से सारा भारत बेरोजगार हो जायेगा। एक दशक के अन्दर न सिर्फ़ कंप्यूटर सुधरे, उनसे जुड़ी हुई नई तकनीक, इन्टरनेट, मोबाइल आदि संसार पर छा गए। बेरोजगारी आना तो दूर की बात है, कंप्यूटर की बदौलत, आज भारतीयों को सारी दुनिया में रोज़गार मिला है। यह घटना बताने का तात्पर्य यह है कि दृष्टा आज को नहीं आगत कल और परसों को देखता है - यहीं पर वह अन्य लोगों से भिन्न होता है।
घ) धीमी गति में डाउनलोड होने पर भी वह डाउनलोड दूसरा काम करते हुए - मसलन आप नहाइये तब तक डाउनलोड हो जाता है - कपड़े पहनिए तब तक सुना भी जा सकता है। उसी सामग्री को पढ़ने में कहीं अधिक समय भी लगता है, और अन्य कार्यों में बाधा भी उत्पन्न होती है।
प) वृद्ध लोग, कमज़ोर आँखों वाले, या मेरे जैसे व्यक्ति जो आँखें बंद करके बेहतर ध्यान दे पाते हैं - ऐसे लोगों के लिए तो ऑडियो-बुक्स वरदान के समान हैं। मैं कितना भी थका हुआ हूँ, भले ही पढ़ न सकूँ, सुन तो सकता ही हूँ।
फ) नाद ब्रह्म है। कागज़ आया और चला गया - श्रुतियाँ उससे पहले भी थीं और उसके बाद भी रहेंगी - सरस्वती वाक्-देवी हैं। संस्कृत का पूरा नाम संस्कृत-वाक् है। हमारी संस्कृति में कथा का पाठ नहीं वाचन होता है।
भ) टीवी आया तो सबने कहा कि रेडियो के दिन पूरे हुए - मगर हुआ क्या? AM से हम FM में आ गए और आगे शायद कहीं और जाएँ मगर निकट भविष्य में सुनना आउट ऑफ़ फैशन नहीं होने वाला है यह निश्चित है।
सवाल: क्या आप अपने वाचन से संतुष्ट हैं या इसमें परिमार्जन के पक्षधर हैं?
अनुराग: मैं अपने वाचन से कतई भी संतुष्ट नहीं हूँ मगर मेरा विश्वास है कि - लैट परफेक्शन नॉट बी दि एनेमी ऑफ़ द गुड। मेरे शब्दों में -
बात तो आपकी सही है यह, थोडा करने से सब नहीं होता
फ़िर भी इतना तो मैं कहूंगा ही, कुछ न करने से कुछ नहीं होता
साहित्यिक पॉडकास्टिंग की इस प्रक्रिया में मेरा वाचन भी सुधरेगा - दूसरे जब यह काम शुरू हो जायेगा, तो दूसरी बहुत अच्छी आवाजें सामने आयेंगी। जब हम एक टीम बना पायेंगे, तो कथा-संकलन संगीत, आवाज़ व रिकार्डिंग तकनीक के श्रेष्ठ पक्ष सामने आयेंगे।
सवाल: भारत से दूर रहकर खुद को भारत से जोड़ना ब्लॉगिंग के कारण कुछ आसान नहीं हो गया है?
अनुराग: भारत से दूर रहकर भी खुद को भारत से जोड़ना ब्लॉगिंग के कारण बहुत आसान हुआ है - मैं इसका श्रेय यूनीकोड और ट्रांसलिट्रेशन को दूंगा जिन्होंने हम जैसों में लिखना आसान कर दिया।
सवाल: आवाज़ पर आपकी भावी योजनाएँ क्या हैं?
अनुराग: आवाज़ की भावी योजनाएँ तो सारी टीम को मिलकर लोकतांत्रिक (पारंपरिक शब्दों में याज्ञिक) रूप से ही तय करनी होंगी, लेकिन जो भी होगा अच्छा ही होना चाहिए।
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Comments
आपकी आवाज़ मैंने कहानियों और कविताओं के पॉडकास्ट में सुनी है, बहुत ही प्यारी आवाज़ है। आपकी आवाज़ सुनकर ऐसा लगता है कि हमेशा जवान रहने वाली आवाज़ है। और यदि आपका भरोसा है कि हमलोग ऑडियो बुक के माध्यम से हिन्दी साहित्य का प्रचार-प्रसार कर सकते हैं तो मुझे भी लगता है। खूब जमेगा रंग जब मिल-बैठेंगे हम लोग। सफलता की शुभकामनाएँ और हिन्द-युग्म पर आपका एक बार और अभिनंदन।
शन्नो
आपकी एक टिप्पणी ने हमे व्यथित किया था ,कहानी तो सुनते थे ,और सोचते थे की कोई ,अध्यन के लिए गया हुआ विधार्थी अपने देश को याद कर रहा है ,मगर
जब आपकी तस्वीर देखी
तो ,समझ पाये कि आप एक परिपक्व इंसान हैं ,जो प्रेमचंद के साहित्य से सबसे ज्यादा जुड़े हैं ,मौजूदा हालत में तो ,प्रेमचंद की कहानियों को सुनने वाला श्रोता वर्ग अभी न के बराबर ही है ,किंतु आपके इस प्रयास के उज्जवल भविष्य की कामना करती हूँ |