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४ फरवरी - आज का गाना


गाना: तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा




चित्रपट:धूल का फूल
संगीतकार:एन. दत्ता
गीतकार:साहिर लुधियानवी
गायक:रफ़ी





तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा
इन्सान की औलाद है इन्सान बनेगा

अच्छा है अभी तक तेरा कुछ नाम नहीं है
तुझ को किसी मज़हब से कोई काम नहीं है
जिस इल्म ने इन्सानों को तक़सीम किया है
इस इल्म का तुझ पर कोई इल्ज़ाम नहीं है

तू बदले हुए वक़्त की पहचान बनेगा
इन्सान की औलाद है इन्सान बनेगा

मालिक ने हर इन्सान को इन्सान बनाया
हमने उसे हिन्दू या मुसलमान बनाया
क़ुदरत ने तो बख़्शी थी हमें एक ही धरती
हमने कहीं भारत कहीं ईरान बनाया

जो तोड़ दे हर बंद वह तूफ़ान बनेगा
इन्सान की औलाद है इन्सान बनेगा

नफ़रत जो सिखाए वो धरम तेरा नहीं है
इन्साँ को जो रौंदे वो क़दम तेरा नहीं है
क़ुरान न हो जिसमें वह मंदिर नहीं तेरा
गीता न हो जिस में वो हरम तेरा नहीं है

तू अमन का और सुलह का अरमान बनेगा
इन्सान की औलाद है इन्सान बनेगा

यह दीन के ताज़िर, यह वतन बेचनेवाले
इन्सानों की लाशों के कफ़न बेचनेवाले
यह महलों में बैठे हुए क़ातिल, यह लुटेरे
काँटों के एवज़ रूह-ए-चमन बेचनेवाले

तू इन के लिए मौत का ऐलान बनेगा
इन्सान की औलाद है इन्सान बनेगा


Comments

,संगीत,गाने हम पर कितना असर छोड़ते हैं वो हम सार्वजनिक रूप से स्वीकारे ना स्वीकारे पर हम जानते हैं प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप मे ये हम पर अपना असर छोड़ते हैं.इस गाने ने बचपन से मेरी सोच को इतना प्रभावित किया कि..............
अपने जीवन को मैंने इन बच्चो को सौंप दिया.ज्यादा कुछ बताना नही चाहती.आत्मश्लाघा का आरोप लगा देंगे सब मुझ पर.किन्तु ..... मेरे तीन बच्चो मे से एक ऐसा ही एक बच्चा है.यूँ जब भी ज़िक्र भी करती हूँ आत्मा पर एक बोझ सा चदा जाता है पर......शायद फिर कोई आगे आए इसे पढ़ने के बाद...किसी बच्चे के लिए यही सोचे ............

'अच्छा है अभी तक तेरा कुछ नाम नहीं है
तुझ को किसी मज़हब से कोई काम नहीं है
जिस इल्म ने इन्सानों को तक़सीम किया है
इस इल्म का तुझ पर कोई इल्ज़ाम नहीं है'

'नफ़रत जो सिखाए वो धरम तेरा नहीं है
इन्साँ को जो रौंदे वो क़दम तेरा नहीं है
क़ुरान न हो जिसमें वह मंदिर नहीं तेरा
गीता न हो जिस में वो हरम तेरा नहीं है'
क्या बोलू! कहोगे यह कितना रोती है...दुखियारी है बेचारी शायद कोई......पर.......मैं इतनी भावुक हूँ कि........ शायद इसी लिए सबने लिखा,पढ़ा ,गया इन शब्दों को और.....मैं जी गई.एक बार नही कई कई बार और मुझे अपने खूबसूरत दिल और दिमाग से इश्क हो गया.खुद को और अपनी भावुकता को चाहने लगी हूँ.इस गाने ने मुझ से वो सब करवाया जिसे आम लोग सोच भी नही पाते.मेरी सोचको उस मुकाम पर ले गया जहां मैं ईश्वर से नजर मिलाकर बात कर सकती हूँ.गांधी,गौतम,मदर टेरेसा हर कोई नही बन सकता पर.........ऐसे ही गानों ने मुझे इंसान बनकर जीना सिखाया है अमित!
जानती हूँ जिस दिन इस दुनिया से जाऊंगी,ऐसे कई बच्चे मुझे जाते हुए देखेंगे और मैं उनके सपनों मे आ कर उन्हें प्यार करूंगी.अपने कृष्णा से गले लग कर कह सकूंगी 'तुने अपने से दूर कर दिया पर देख कितने कृष्णा की यशोदा बन गई थी मैं वहाँ' तब शायद वो मुझे गले लगा ले. उसी के लिए यह सब करती हूँ.बहुत स्वार्थी औरत हूँ मैं मात्र एक बार मुझे वो गले लगा ले.इसलिए तुम्हारे इस गीत के शब्दों को जी रही हूँ बाबु!
क्या करूं???? ऐसीच हूँ मैं तो

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