Skip to main content

ब्लोग्गर्स चोईस में आज हैं जेनी शबनम और उनकी यादों में बसे कुछ गीत

५ गीतों की असमंजसता में आज हैं हमारे साथ जेनी शबनम जी, किसे चुनूँ किसे रहने दूँ ! धत् - जो पहले मन में आता है, जिसका एक ख़ास संबंध है जीवन से, वो ये हैं ...... गीत व्यक्तित्व की ही झलक हैं, पसंद बताते हैं कि व्यक्ति कैसा है . मन, दर्शन, रहस्य, भक्ति, आशा, निराशा. सबकुछ है गीतों में, जो आपको ही प्रस्तुत करते हैं. ये रहे ५ गीत जेनी जी की पसंद के...श्श्श्श....गीतों के मध्य बातचीत सही नहीं .... बस सुनिए
-



१. बाबुल की दुआएं लेती जा, जा तुझको सुखी संसार मिले..........
फिल्म - नील कमल


मेरे पिता को ये गाना बहुत पसंद था और जब मैं करीब १०-११ साल की थी तब ये गाना सुनते सुनते मेरे पापा रोने लगे थे कि एक दिन मेरी भी शादी इसी तरह हो जाएगी और मैं दूसरे घर चली जाऊँगी. हालांकि मेरी शादी होने तक वो जीवित न रहे. इसलिए जब भी ये गाना सुनती हूँ मुझे मेरे पापा याद आते हैं और उस दिन की घटना भी.



२. मैं एक सदी से बैठी हूँ, इस राह से कोई गुजरा नहीं......
फिल्म - लेकिन


इस गाने के पसंद की वजह तो मुझे भी नहीं मालूम. पर इतना याद है कि जिस दिन पहली बार इस गाना को सुना तो इसके बोल इतने पसंद आये कि सारा दिन बस इसी गाना को सुनती रही. इस गाने के बोल सीधे मन में उतर गए. यूँ लगता मानो किसी मसीहा के इंतज़ार में हूँ जो शायद...



३. नीला आसमान सो गया.........
फिल - सिलसिला


गाने के बोल और रेखा पर इसका फिल्मांकन दिल को छू गया है. अधिकांश स्त्रियों के अनकहे दर्द का चित्रण है. ऐसा लगता है मानो सम्पूर्ण कायनात उसके दर्द से छलनी है. मीना कुमारी के बाद मेरी पसंदीदा अभिनेत्री रेखा रही है, शायद इस लिए भी ये गाना बहुत पसंद है.



४. कहाँ तक ये मन को अँधेरे छलेंगे, उदासी भरे दिन कभी तो ढलेंगे..........
फिल्म - बातों बातों में


उम्मीद दिलाते इस गीत के बोल मुझमें हिम्मत और विश्वास जगाते हैं और हौसला बढ़ता है. ज़िन्दगी में कई बार जब लगता कि जीवन... अब बस... अब और नहीं... हार... दर्द... और फिर आत्मबल मिलता कि सब कुछ अब बस ठीक होने को है, दर्द का मौसम भी जल्दी हीं बीतेगा और फिर खुशियाँ खुशियाँ...



५. ज़िन्दगी के सफ़र में गुज़र जाते हैं जो मकाम...............
फिल्म - आप की कसम


इस गीत का मेरे जीवन से अनोखा सम्बन्ध है. जीवन में ऐसे पल आये जब ज़िन्दगी से दूर चले जाने का मन किया, ऐसे में ये गीत मुझे वापस अपनों के बीच ले आया. कई सन्देश है इस गीत में, सबसे अहम्... ''कल तड़पना पड़े याद में जिनकी रोक लो रूठ कर उनको जाने न दो...''

Comments

गीतों का चयन बहुत अच्छा है।
Sujoy Chatterjee said…
geeton ka chayan waaqai badhiya hai. khaas kar "main ek sadi se baithi hoon" aur "kahaan tak ye man ko andhere chhalenge" mujhe bhi bahut pasand hai.

Popular posts from this blog

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

खमाज थाट के राग : SWARGOSHTHI – 216 : KHAMAJ THAAT

स्वरगोष्ठी – 216 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 3 : खमाज थाट   ‘कोयलिया कूक सुनावे...’ और ‘तुम्हारे बिन जी ना लगे...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की तीसरी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया था। वर्तमान समय मे...