February 26, 2012
स्वरगोष्ठी – ५९ में आज
‘हमरी बन्नी के गोरे गोरे हाथ, मेंहदी खूब रचे...’
लोक संगीत से अनुराग करने वाले ‘स्वरगोष्ठी’ के सभी पाठको-श्रोताओं को कृष्णमोहन मिश्र का नमस्कार और स्वागत है। इस स्तम्भ की ५२ वीं कड़ी में हमने आपसे संस्कार गीत के अन्तर्गत विवाह पूर्व गाये जाने वाले बन्ना और बन्नी गीतों पर चर्चा की थी। वर और बधू का श्रृंगारपूर्ण वर्णन, विवाह से पूर्व के अन्य कई अवसरों पर किया जाता है, जैसे- हल्दी, मेंहदी, लगन चढ़ाना, सेहरा आदि। इनमें मेंहदी और सेहरा के गीत मुस्लिम समाज में भी प्रचलित है। इन सभी अवसरों के संस्कार गीत महिलाओं द्वारा समूह में गाये जाते है। आज सबसे पहले हम आपको अवध क्षेत्र में प्रचलित एक परम्परागत मेंहदी गीत सुनवाते हैं। गीत में दुल्हन का बहुविध श्रृंगार किया जा रहा है, उसके गोरे हाथों पर कलात्मक मेंहदी लगाई जा रही है और सखियाँ मेंहदी गीत गा रहीं हैं। आपके लिए हम यह मेंहदी गीत क्षिति तिवारी और साथियों के स्वरों में सुनवा रहे हैं।
मेंहदी गीत : ‘हमरी बन्नी के गोरे गोरे हाथ...’ : स्वर – क्षिति तिवारी और साथी
मेंहदी का उत्सव कन्या पक्ष के आँगन में सम्पन्न होता है, जब कि हल्दी, तेल और उबटन का उत्सव दोनों पक्षों में अलग-अलग आयोजित होता है। दूसरी ओर कन्या के पिता, वर पक्ष की सलाह पर अपने पुरोहित से विवाह का शुभ लग्न निकलवाते हैं। एक शुभ मुहूर्त में कन्या के पिता और परिवार के अन्य वरिष्ठ सदस्य, पुरोहित द्वारा तैयार लग्न पत्रिका और फल-मिष्ठान्न आदि भेंट वस्तुएँ लेकर वर के परिवार जाते हैं। औपचारिक रूप से वर के पिता उस लग्न के प्रस्ताव को अपनी सहमति देते हैं। भोजपुरी क्षेत्र में इस अवसर का बड़ा महत्त्व होता है। इन क्षेत्रों में इसे लग्न चढ़ाना कहते हैं। कन्या के परिवार की महिलाएँ खूब धूम-धाम से, गाते-बजाते लग्न चढ़ाने वालों को विदा करती हैं। भोजपुरी की चर्चित लोक-गायिका शारदा सिन्हा ने विवाह के अवसर पर गाये जाने वाले अनेक मोहक गीत गाये हैं। लग्न चढ़ाने के लिए वर पक्ष के यहाँ प्रस्थान करने के अवसर पर कोकिलकंठी श्रीमती सिन्हा ने एक बेहद मधुर गीत- ‘पूरब दिशा से चलले बेटी के बाबू, दूल्हा के लगन चढ़ावे जी...’ गाया है। आज हम आपको उन्हीं का गाया लग्न-गीत प्रस्तुत कर रहे हैं।
लग्न गीत : ‘पूरब दिशा से चलले बेटी के बाबू...’ : स्वर – शारदा सिन्हा और साथी
आज की ‘स्वरगोष्ठी’ में हमने आपसे अवधी और भोजपुरी क्षेत्रों में प्रचलित विवाह-पूर्व के संस्कार गीतों पर चर्चा की। अब हम आपको राजस्थान क्षेत्र की ओर ले चलते हैं, जहाँ आज भी अत्यन्त सुदृढ़ सामाजिक परम्पराएँ कायम हैं। आज़ादी के बाद से यहाँ के समाज में व्याप्त अनेक कुरीतियाँ, तेज़ी से समाप्त हो रही हैं। राजस्थान में प्रचलित बाल विवाह की कुप्रथा में भी धीरे-धीरे कमी आ रही है। रंग-रँगीले राजस्थान में कई लोक संगीतजीवी समुदाय हैं। लंगा, मांगनियार, मिरासी, भाँट आदि कई समुदाय वंश-परम्परा से आज भी जुड़े हैं। इन लोक कलाकारों को देश-विदेश में भरपूर मान-सम्मान भी प्राप्त हो रहा है। आज हम आपसे लंगा समुदाय के बारे में चर्चा करेंगे। लंगा मुस्लिम समुदाय के होते हैं, किन्तु वंश परम्परा के अनुसार ये हिन्दू परिवारॉ के मांगलिक कार्यों में भी न केवल शामिल होते हैं, बल्कि हिन्दू परम्पराओं और देवी-देवताओं पर रचे लोक गीतों का गायन भी करते हैं। हमारे एक पाठक डॉ. खेम सिंह ने लंगा कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किए गए गीत सुनने की इच्छा व्यक्त की थी। उन्हीं की फरमाइश पर आज हम इस समुदाय के चर्चित गायक कोहिनूर लंगा और साथियों द्वारा प्रस्तुत एक मेंहदी गीत सुनवाते हैं। वैवाहिक समारोह के अवसर पर प्रस्तुत किये जाने वाले इस मधुर गीत का आप रसास्वादन कीजिये और आज मुझे यहीं विराम लेने की अनुमति दीजिए।
मेंहदी गीत : ‘मेंहदी रो रंग लागो...’ : स्वर – कोहिनूर लंगा और साथी
आज की पहेली
अभी हमने आपको सातवें दशक के एक फिल्मी गीत का अंश सुनवाया है। इसे सुन कर आपको दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं।
१ – यह गीत किस फिल्म से लिया गया है? फिल्म का नाम बताइए।
२ – किस राग पर आधारित है यह गीत? राग का नाम बताइए।
आप अपने उत्तर हमें तत्काल swargoshthi@gmail.com पर भेजें। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के ६१वें अंक में सम्मान के साथ प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। हमसे सीधे सम्पर्क के लिए swargoshthi@gmail.com अथवा admin@radioplaybackindia.com पर भी अपना सन्देश भेज सकते हैं।
आपकी बात
‘स्वरगोष्ठी’ के ५७वें अंक में हमने आपको पण्डित भीमसेन जोशी से की गई बातचीत का एक अंश सुना कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। दोनों प्रश्नों के सही उत्तर है- फिल्म बसन्त बहार और गीतकार शैलेंद्र। दोनों प्रश्न का सही उत्तर राजस्थान के राजेन्द्र सोनकर और इन्दौर की क्षिति तिवारी ने दिया है। हमारे दोनों पाठको को रेडियो प्लेबैक इण्डिया की ओर से बधाई। इसी के साथ हमारे साथी और रेडियो प्लेबैक इण्डिया के तकनीकी प्रमुख अमित तिवारी, जालन्धर के करणवीर सिंह, नई दिल्ली से रजनीश पाण्डेय, लखनऊ से जुबेर खाँ, नितिन मिश्रा और बंगलुरु से पंकज मुकेश ने फिल्म बसन्त बहार के गीत में पण्डित भीमसेन जोशी और मन्ना डे की जुगलबन्दी को बेहद पसन्द किया है। कानपुर के अवतार सिंह जी ने लिखा है कि आप संगीत-प्रेमियों की अभिरुचि का ध्यान रखते हुए गीतों और रागों का चयन करते हैं, इससे भारतीय संगीत के श्रोताओं की वृद्धि होगी। आप सभी श्रोताओं-पाठको को अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए आभार।
झरोखा अगले अंक का
कृष्णमोहन मिश्र
‘हमरी बन्नी के गोरे गोरे हाथ, मेंहदी खूब रचे...’
भारतीय समाज में विवाह एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण संस्कार माना जाता है। एक पर्व की तरह यह संस्कार उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर हर धर्मावलम्बी अपने-अपने धार्मिक रीति-रिवाजो के के साथ-साथ लोकाचारों का पालन भी करते हैं। उल्लेखनीय है कि इन लोकाचारों में काफी समानता भी होती है। आपको स्मरण ही होगा कि ‘स्वरगोष्ठी’ में हमने निश्चय किया था कि प्रत्येक मास में कम से कम एक अंक हम लोक संगीत को समर्पित करेंगे। हमारा आज का अंक लोक संगीत पर केन्द्रित है।
लोक संगीत से अनुराग करने वाले ‘स्वरगोष्ठी’ के सभी पाठको-श्रोताओं को कृष्णमोहन मिश्र का नमस्कार और स्वागत है। इस स्तम्भ की ५२ वीं कड़ी में हमने आपसे संस्कार गीत के अन्तर्गत विवाह पूर्व गाये जाने वाले बन्ना और बन्नी गीतों पर चर्चा की थी। वर और बधू का श्रृंगारपूर्ण वर्णन, विवाह से पूर्व के अन्य कई अवसरों पर किया जाता है, जैसे- हल्दी, मेंहदी, लगन चढ़ाना, सेहरा आदि। इनमें मेंहदी और सेहरा के गीत मुस्लिम समाज में भी प्रचलित है। इन सभी अवसरों के संस्कार गीत महिलाओं द्वारा समूह में गाये जाते है। आज सबसे पहले हम आपको अवध क्षेत्र में प्रचलित एक परम्परागत मेंहदी गीत सुनवाते हैं। गीत में दुल्हन का बहुविध श्रृंगार किया जा रहा है, उसके गोरे हाथों पर कलात्मक मेंहदी लगाई जा रही है और सखियाँ मेंहदी गीत गा रहीं हैं। आपके लिए हम यह मेंहदी गीत क्षिति तिवारी और साथियों के स्वरों में सुनवा रहे हैं।
मेंहदी गीत : ‘हमरी बन्नी के गोरे गोरे हाथ...’ : स्वर – क्षिति तिवारी और साथी
मेंहदी का उत्सव कन्या पक्ष के आँगन में सम्पन्न होता है, जब कि हल्दी, तेल और उबटन का उत्सव दोनों पक्षों में अलग-अलग आयोजित होता है। दूसरी ओर कन्या के पिता, वर पक्ष की सलाह पर अपने पुरोहित से विवाह का शुभ लग्न निकलवाते हैं। एक शुभ मुहूर्त में कन्या के पिता और परिवार के अन्य वरिष्ठ सदस्य, पुरोहित द्वारा तैयार लग्न पत्रिका और फल-मिष्ठान्न आदि भेंट वस्तुएँ लेकर वर के परिवार जाते हैं। औपचारिक रूप से वर के पिता उस लग्न के प्रस्ताव को अपनी सहमति देते हैं। भोजपुरी क्षेत्र में इस अवसर का बड़ा महत्त्व होता है। इन क्षेत्रों में इसे लग्न चढ़ाना कहते हैं। कन्या के परिवार की महिलाएँ खूब धूम-धाम से, गाते-बजाते लग्न चढ़ाने वालों को विदा करती हैं। भोजपुरी की चर्चित लोक-गायिका शारदा सिन्हा ने विवाह के अवसर पर गाये जाने वाले अनेक मोहक गीत गाये हैं। लग्न चढ़ाने के लिए वर पक्ष के यहाँ प्रस्थान करने के अवसर पर कोकिलकंठी श्रीमती सिन्हा ने एक बेहद मधुर गीत- ‘पूरब दिशा से चलले बेटी के बाबू, दूल्हा के लगन चढ़ावे जी...’ गाया है। आज हम आपको उन्हीं का गाया लग्न-गीत प्रस्तुत कर रहे हैं।
लग्न गीत : ‘पूरब दिशा से चलले बेटी के बाबू...’ : स्वर – शारदा सिन्हा और साथी
आज की ‘स्वरगोष्ठी’ में हमने आपसे अवधी और भोजपुरी क्षेत्रों में प्रचलित विवाह-पूर्व के संस्कार गीतों पर चर्चा की। अब हम आपको राजस्थान क्षेत्र की ओर ले चलते हैं, जहाँ आज भी अत्यन्त सुदृढ़ सामाजिक परम्पराएँ कायम हैं। आज़ादी के बाद से यहाँ के समाज में व्याप्त अनेक कुरीतियाँ, तेज़ी से समाप्त हो रही हैं। राजस्थान में प्रचलित बाल विवाह की कुप्रथा में भी धीरे-धीरे कमी आ रही है। रंग-रँगीले राजस्थान में कई लोक संगीतजीवी समुदाय हैं। लंगा, मांगनियार, मिरासी, भाँट आदि कई समुदाय वंश-परम्परा से आज भी जुड़े हैं। इन लोक कलाकारों को देश-विदेश में भरपूर मान-सम्मान भी प्राप्त हो रहा है। आज हम आपसे लंगा समुदाय के बारे में चर्चा करेंगे। लंगा मुस्लिम समुदाय के होते हैं, किन्तु वंश परम्परा के अनुसार ये हिन्दू परिवारॉ के मांगलिक कार्यों में भी न केवल शामिल होते हैं, बल्कि हिन्दू परम्पराओं और देवी-देवताओं पर रचे लोक गीतों का गायन भी करते हैं। हमारे एक पाठक डॉ. खेम सिंह ने लंगा कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किए गए गीत सुनने की इच्छा व्यक्त की थी। उन्हीं की फरमाइश पर आज हम इस समुदाय के चर्चित गायक कोहिनूर लंगा और साथियों द्वारा प्रस्तुत एक मेंहदी गीत सुनवाते हैं। वैवाहिक समारोह के अवसर पर प्रस्तुत किये जाने वाले इस मधुर गीत का आप रसास्वादन कीजिये और आज मुझे यहीं विराम लेने की अनुमति दीजिए।
मेंहदी गीत : ‘मेंहदी रो रंग लागो...’ : स्वर – कोहिनूर लंगा और साथी
आज की पहेली
अभी हमने आपको सातवें दशक के एक फिल्मी गीत का अंश सुनवाया है। इसे सुन कर आपको दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं।
१ – यह गीत किस फिल्म से लिया गया है? फिल्म का नाम बताइए।
२ – किस राग पर आधारित है यह गीत? राग का नाम बताइए।
आप अपने उत्तर हमें तत्काल swargoshthi@gmail.com पर भेजें। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के ६१वें अंक में सम्मान के साथ प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। हमसे सीधे सम्पर्क के लिए swargoshthi@gmail.com अथवा admin@radioplaybackindia.com पर भी अपना सन्देश भेज सकते हैं।
आपकी बात
‘स्वरगोष्ठी’ के ५७वें अंक में हमने आपको पण्डित भीमसेन जोशी से की गई बातचीत का एक अंश सुना कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। दोनों प्रश्नों के सही उत्तर है- फिल्म बसन्त बहार और गीतकार शैलेंद्र। दोनों प्रश्न का सही उत्तर राजस्थान के राजेन्द्र सोनकर और इन्दौर की क्षिति तिवारी ने दिया है। हमारे दोनों पाठको को रेडियो प्लेबैक इण्डिया की ओर से बधाई। इसी के साथ हमारे साथी और रेडियो प्लेबैक इण्डिया के तकनीकी प्रमुख अमित तिवारी, जालन्धर के करणवीर सिंह, नई दिल्ली से रजनीश पाण्डेय, लखनऊ से जुबेर खाँ, नितिन मिश्रा और बंगलुरु से पंकज मुकेश ने फिल्म बसन्त बहार के गीत में पण्डित भीमसेन जोशी और मन्ना डे की जुगलबन्दी को बेहद पसन्द किया है। कानपुर के अवतार सिंह जी ने लिखा है कि आप संगीत-प्रेमियों की अभिरुचि का ध्यान रखते हुए गीतों और रागों का चयन करते हैं, इससे भारतीय संगीत के श्रोताओं की वृद्धि होगी। आप सभी श्रोताओं-पाठको को अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए आभार।
झरोखा अगले अंक का
फाल्गुन मास का परिवेश मानव को ही नहीं पशु-पक्षियों को भी आह्लादित करता है। इस सप्ताह रस-रंग से परिपूर्ण होली का पर्व उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। मूलतः प्रकृति पर केन्द्रित हमारे भारतीय संगीत की हर विधा- शास्त्रीय, उपशास्त्रीय, सुगम और लोक संगीत में फाल्गुनी परिवेश और होली पर्व का मनमोहक चित्रण मिलता है। ‘स्वरगोष्ठी’ के आगामी अंक में हम संगीत की विविध विधाओं में होली के इन्द्रधनुषी रंगों में आपके तन-मन को रंग देंगे। हमें आपकी प्रतीक्षा रहेगी।
कृष्णमोहन मिश्र
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