स्वरगोष्ठी – ५८ में आज
दो रागों के मेल से निर्मित रागों की श्रृंखला में बसन्त बहार अत्यन्त मनमोहक राग है। राग के नाम से ही स्पष्ट हो जाता है यह बसन्त और बहार, दोनों रागों के मेल से बना है। इस राग की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसकी प्रस्तुति में दोनों रागों की छाया परिलक्षित होती है।
समस्त संगीतानुरागियों का आज की ‘स्वरगोष्ठी’ के नवीन अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः स्वागत करता हूँ। इन दिनों हम बसन्त ऋतु में गाये-बजाये जाने वाले कुछ प्रमुख रागों पर आपसे चर्चा कर रहे हैं। आज हमारी चर्चा का विषय है, राग ‘बसन्त बहार’। परन्तु इस राग पर चर्चा करने से पहले हम दो ऐसे फिल्मी गीतों के विषय में आपसे ज़िक्र करेंगे, जो राग ‘बसन्त बहार’ पर आधारित है। हम सब यह पहले ही जान चुके हैं कि राग ‘बसन्त बहार’ दो स्वतंत्र रागों- बसन्त और बहार के मेल से बनता है। दोनों रागों के सन्तुलित प्रयोग से राग ‘बसन्त बहार’ का वास्तविक सौन्दर्य निखरता है। कभी-कभी समर्थ कलासाधक प्रयुक्त दोनों रागों में से किसी एक को प्रधान बना कर दूसरे का स्पर्श देकर प्रस्तुति को एक नया रंग दे देते हैं। आज प्रस्तुत किए जाने वाले फिल्मी गीतों में राग की इस विशेषता का आप प्रत्यक्ष अनुभव करेंगे।
राग ‘बसन्त बहार’ पर आधारित आज का पहला फिल्मी गीत हमने १९५६ में प्रदर्शित, राग के नाम पर ही रखे गए शीर्षक अर्थात फिल्म ‘बसन्त बहार’ से लिया है। यह एक संगीत-प्रधान फिल्म थी, जिसके संगीतकार शंकर-जयकिशन थे। राग आधारित गीतों की रचना फिल्म के कथानक की माँग भी थी और उस दौर में इस संगीतकार जोड़ी के लिए चुनौती भी। शंकर-जयकिशन ने शास्त्रीय संगीत के दो दिग्गजों- पण्डित भीमसेन जोशी और सारंगी के सरताज पण्डित रामनारायण को यह ज़िम्मेदारी सौंपी। पण्डित भीमसेन जोशी ने फिल्म के गीतकार शैलेन्द्र को एक पारम्परिक बन्दिश गाकर सुनाई और शैलेन्द्र ने १२ मात्रा के ताल पर शब्द रचे। पण्डित जी के साथ पार्श्वगायक मन्ना डे को भी गाना था। मन्ना डे ने जब यह सुना तो पहले उन्होने मना किया, लेकिन बाद में राजी हुए। इस प्रकार भारतीय फिल्म संगीत के इतिहास में एक अविस्मरणीय गीत दर्ज़ हुआ। आइए, पहले हम यह गीत सुनते हैं, उसके बाद हम गीत की कुछ और विशेषताओं पर चर्चा करेंगे।
फिल्म – बसन्त बहार : ‘केतकी गुलाब जूही...’: स्वर – पं. भीमसेन जोशी और मन्ना डे
‘फूल रही वन वन में सरसों, आई बसन्त बहार रे...’
दो रागों के मेल से निर्मित रागों की श्रृंखला में बसन्त बहार अत्यन्त मनमोहक राग है। राग के नाम से ही स्पष्ट हो जाता है यह बसन्त और बहार, दोनों रागों के मेल से बना है। इस राग की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसकी प्रस्तुति में दोनों रागों की छाया परिलक्षित होती है।
समस्त संगीतानुरागियों का आज की ‘स्वरगोष्ठी’ के नवीन अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः स्वागत करता हूँ। इन दिनों हम बसन्त ऋतु में गाये-बजाये जाने वाले कुछ प्रमुख रागों पर आपसे चर्चा कर रहे हैं। आज हमारी चर्चा का विषय है, राग ‘बसन्त बहार’। परन्तु इस राग पर चर्चा करने से पहले हम दो ऐसे फिल्मी गीतों के विषय में आपसे ज़िक्र करेंगे, जो राग ‘बसन्त बहार’ पर आधारित है। हम सब यह पहले ही जान चुके हैं कि राग ‘बसन्त बहार’ दो स्वतंत्र रागों- बसन्त और बहार के मेल से बनता है। दोनों रागों के सन्तुलित प्रयोग से राग ‘बसन्त बहार’ का वास्तविक सौन्दर्य निखरता है। कभी-कभी समर्थ कलासाधक प्रयुक्त दोनों रागों में से किसी एक को प्रधान बना कर दूसरे का स्पर्श देकर प्रस्तुति को एक नया रंग दे देते हैं। आज प्रस्तुत किए जाने वाले फिल्मी गीतों में राग की इस विशेषता का आप प्रत्यक्ष अनुभव करेंगे।
राग ‘बसन्त बहार’ पर आधारित आज का पहला फिल्मी गीत हमने १९५६ में प्रदर्शित, राग के नाम पर ही रखे गए शीर्षक अर्थात फिल्म ‘बसन्त बहार’ से लिया है। यह एक संगीत-प्रधान फिल्म थी, जिसके संगीतकार शंकर-जयकिशन थे। राग आधारित गीतों की रचना फिल्म के कथानक की माँग भी थी और उस दौर में इस संगीतकार जोड़ी के लिए चुनौती भी। शंकर-जयकिशन ने शास्त्रीय संगीत के दो दिग्गजों- पण्डित भीमसेन जोशी और सारंगी के सरताज पण्डित रामनारायण को यह ज़िम्मेदारी सौंपी। पण्डित भीमसेन जोशी ने फिल्म के गीतकार शैलेन्द्र को एक पारम्परिक बन्दिश गाकर सुनाई और शैलेन्द्र ने १२ मात्रा के ताल पर शब्द रचे। पण्डित जी के साथ पार्श्वगायक मन्ना डे को भी गाना था। मन्ना डे ने जब यह सुना तो पहले उन्होने मना किया, लेकिन बाद में राजी हुए। इस प्रकार भारतीय फिल्म संगीत के इतिहास में एक अविस्मरणीय गीत दर्ज़ हुआ। आइए, पहले हम यह गीत सुनते हैं, उसके बाद हम गीत की कुछ और विशेषताओं पर चर्चा करेंगे।
फिल्म – बसन्त बहार : ‘केतकी गुलाब जूही...’: स्वर – पं. भीमसेन जोशी और मन्ना डे
द्रुत एकताल में निबद्ध यह गीत मन्ना डे की प्रतिभा की दृष्टि से इसलिए उल्लेखनीय माना गया, कि इस गीत में उन्होने राग बसन्त के सटीक स्वरों का प्रयोग कर फिल्म जगत को चकित कर दिया था। इसके अलावा पण्डित जी की गायकी पर तो टिप्पणी की ही नहीं जा सकती। वास्तव में यह गीत राग बसन्त पर ही केन्द्रित है, किन्तु राग बहार का हल्का स्पर्श भी परिलक्षित होता है। राग बसन्त बहार की यही विशेषता होती है। समर्थ कलासाधक दो रागों के मेल से तीसरे राग की अनुभूति करा सकता है और राग बसन्त या बहार के महत्त्व को भी प्रदर्शित कर सकता है। अब हम आपको एक ऐसा फिल्मी गीत सुनवाते हैं, जो बसन्त बहार के स्वरों पर आधारित होते हुए भी पूर्वार्द्ध में बहार और उत्तरार्द्ध बसन्त के रस-रंग की सार्थक अनुभूति कराता है। यह गीत १९५४ में प्रदर्शित फिल्म ‘शबाब’ का है, जिसके संगीतकार थे नौशाद और इसे स्वर दिया लता मंगेशकर व मोहम्मद रफी ने। गीत का आरम्भ बहार के स्वरों से होता है, परन्तु आगे चल कर बसन्त का आकर्षक स्पर्श, गीत को द्विगुणित कर देता है। आइए सुनते हैं, तीनताल में निबद्ध नौशाद की यह अनूठी रचना।
फिल्म – शबाब : ‘मन की वीन मतवारी बाजे...’: स्वर – लता मंगेशकर व मो. रफी
हम पहले ही चर्चा कर चुके हैं कि बसन्त ऋतु का अत्यन्त मोहक राग ‘बसन्त बहार’ दो रागों के मेल से बना है। आम तौर पर इस राग के आरोह में बहार और अवरोह में बसन्त के स्वरों का प्रयोग किया जाता है। यदि आरोह में बसन्त के स्वरों का प्रयोग किया जाए तो इसे पूर्वांग प्रधान रूप देना आवश्यक है। षडज से मध्यम तक दोनों रागों के स्वर समान होते हैं, तथा मध्यम के बाद के स्वर दोनों रागों में अन्तर कर देते हैं। राग ‘बसन्त बहार’ दो प्रकार से प्रचलन में है। यदि बसन्त को प्रमुखता देनी हो तो इसे पूर्वी थाट के अन्तर्गत लेना चाहिए। ऐसे में वादी स्वर षडज और संवादी पंचम हो जाता है। काफी थाट के अन्तर्गत लेने पर राग बहार प्रमुख हो जाता है और वादी मध्यम और संवादी षडज हो जाता है। अन्य ऋतुओं में इस राग का गायन-वादन रात्रि के तीसरे प्रहर में किए जाने की परम्परा है, किन्तु बसन्त ऋतु में इसका प्रयोग किसी भी समय किया जा सकता है। आइए अब हम आपको राग ‘बसन्त बहार’ में निबद्ध एक मोहक खयाल सुनवाते हैं। वर्तमान में पटियाला घराना की गायकी के सिद्ध गायक पण्डित अजय चक्रवर्ती के स्वरों में आप यह अनूठी रचना सुनिए-
राग – बसन्त बहार : ‘आई बसन्त बहार रे...’: स्वर – पण्डित अजय चक्रवर्ती
अपनी आज की इस बैठक में आपको राग ‘बसन्त बहार’ की एक और अनूठी प्रस्तुति सुनवाने का लोभ संवरण मैं नहीं कर पा रहा हूँ। गत वर्ष २० अप्रैल के दिन पुणे में एक महत्त्वकांक्षी सांगीतिक अनुष्ठान आयोजित हुआ था। सुप्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर जी के सम्मुख देश भर से जुटे २७५० शास्त्रीय गायक कलासाधकों ने जाने-माने गायक बन्धु पण्डित राजन और साजन मिश्र के नेतृत्व में राग ‘बसन्त बहार’, तीनताल में निबद्ध एक बन्दिश समवेत स्वर में प्रस्तुत किया था। यह प्रस्तुति ‘अन्तर्नाद’ संस्था की थी, जिसके लिए २७,००० वर्गफुट आकार का मंच बनाया गया था। आकाश तक गूँजती यह रचना बनारस के संगीतविद पण्डित बड़े रामदास की थी। लखनऊ के भातखण्डे संगीत विश्वविद्यालय के गायन-शिक्षक विकास तैलंग जी ने इस विशाल सांगीतिक अनुष्ठान का विवरण देते हुए बताया कि प्रस्तुति में उनके दो विद्यार्थी रंजना अग्रहरि और अभिनव शर्मा भी प्रतिभागी थे। आइए इसी अनूठी प्रस्तुति का रसास्वादन करते हुए इस अंक को यहीं विराम देते हैं।
राग – बसन्त बहार : ‘माँ बसन्त आयो री...’: स्वर – पण्डित राजन-साजन मिश्र व २७५० समवेत स्वर
आज की पहेली
ऊपर दिये गए आडियो क्लिप के द्वारा आपको लोकगीत का एक अंश सुनवाया गया है। गीत के इस अंश को सुन कर आपको दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं।
१ - इस चर्चित लोक-गायिका के स्वरों को पहचानिए और हमें उनका नाम बताइए।
२ - यह लोकगीत किस अवसर पर गाया जाता है?
आप अपने उत्तर हमें तत्काल swargoshthi@gmail.com पर भेजें। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के ६०वें अंक में सम्मान के साथ प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। हमसे सीधे सम्पर्क के लिए swargoshthi@gmail.com अथवा admin@radioplaybackindia.com पर भी अपना सन्देश भेज सकते हैं।
आपकी बात
‘स्वरगोष्ठी’ के ५६ वें अंक में हमने आपको राग बहार पर आधारित एक फिल्मी गीत- ‘सकल वन पवन चलत पुरवाई...’ सुनवा कर आपसे फिल्म का नाम और संगीतकार का नाम पूछा था, जिसका क्रमशः सही उत्तर है, ममता और रोशन। दोनों प्रश्न का सही उत्तर इन्दौर की क्षिति जी ने ही दिया है। पटना की अर्चना टण्डन जी ने फिल्म का नाम तो सही लिखा, किन्तु संगीतकार को पहचानने में भूल कर बैठीं। इन्हें रेडियो प्लेबैक इण्डिया की ओर से बधाई। इसी के साथ लखनऊ के संगीत शिक्षक डॉ. सुनील पावगी ने फिल्म-संगीत के माध्यम से रागों की पहचान कराने के हमारे इस प्रयास की सराहना की है। क्षिति जी को पण्डित भीमसेन जोशी द्वारा प्रस्तुत राग बसन्त की बन्दिश और लखनऊ के डॉ. पी.के. त्रिपाठी को फिल्म स्त्री का गीत बहुत पसन्द आया। लुधियाना के करणवीर सिंह जी और कानपुर के अवतार सिंह जी ने रेडियो प्लेबैक इण्डिया के इस प्रयास को संगीत के विद्यार्थियों और सामान्य श्रोताओ के लिए ज्ञानवर्धक माना। आप सभी श्रोताओं-पाठको को अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए आभार।
झरोखा अगले अंक का
हमारी आज की पहेली से आपको यह अनुमान हो ही गया होगा कि ‘स्वरगोष्ठी’ का आगामी अंक लोक संगीत पर केन्द्रित होगा। आपको यह भी स्मरण होगा कि लोकगीतों के अन्तर्गत इन दिनों हम आपके लिए संस्कार-गीतों पर चर्चा कर रहे हैं। इस श्रृंखला की पाँचवीं कड़ी में हम आपकी ही फरमाइश पर अवधी, भोजपुरी और राजस्थानी गीत प्रस्तुत करेंगे। विश्वास है, आप अगले रविवार की गोष्ठी में अवश्य शामिल होंगे।
कृष्णमोहन मिश्र
फिल्म – शबाब : ‘मन की वीन मतवारी बाजे...’: स्वर – लता मंगेशकर व मो. रफी
हम पहले ही चर्चा कर चुके हैं कि बसन्त ऋतु का अत्यन्त मोहक राग ‘बसन्त बहार’ दो रागों के मेल से बना है। आम तौर पर इस राग के आरोह में बहार और अवरोह में बसन्त के स्वरों का प्रयोग किया जाता है। यदि आरोह में बसन्त के स्वरों का प्रयोग किया जाए तो इसे पूर्वांग प्रधान रूप देना आवश्यक है। षडज से मध्यम तक दोनों रागों के स्वर समान होते हैं, तथा मध्यम के बाद के स्वर दोनों रागों में अन्तर कर देते हैं। राग ‘बसन्त बहार’ दो प्रकार से प्रचलन में है। यदि बसन्त को प्रमुखता देनी हो तो इसे पूर्वी थाट के अन्तर्गत लेना चाहिए। ऐसे में वादी स्वर षडज और संवादी पंचम हो जाता है। काफी थाट के अन्तर्गत लेने पर राग बहार प्रमुख हो जाता है और वादी मध्यम और संवादी षडज हो जाता है। अन्य ऋतुओं में इस राग का गायन-वादन रात्रि के तीसरे प्रहर में किए जाने की परम्परा है, किन्तु बसन्त ऋतु में इसका प्रयोग किसी भी समय किया जा सकता है। आइए अब हम आपको राग ‘बसन्त बहार’ में निबद्ध एक मोहक खयाल सुनवाते हैं। वर्तमान में पटियाला घराना की गायकी के सिद्ध गायक पण्डित अजय चक्रवर्ती के स्वरों में आप यह अनूठी रचना सुनिए-
राग – बसन्त बहार : ‘आई बसन्त बहार रे...’: स्वर – पण्डित अजय चक्रवर्ती
अपनी आज की इस बैठक में आपको राग ‘बसन्त बहार’ की एक और अनूठी प्रस्तुति सुनवाने का लोभ संवरण मैं नहीं कर पा रहा हूँ। गत वर्ष २० अप्रैल के दिन पुणे में एक महत्त्वकांक्षी सांगीतिक अनुष्ठान आयोजित हुआ था। सुप्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर जी के सम्मुख देश भर से जुटे २७५० शास्त्रीय गायक कलासाधकों ने जाने-माने गायक बन्धु पण्डित राजन और साजन मिश्र के नेतृत्व में राग ‘बसन्त बहार’, तीनताल में निबद्ध एक बन्दिश समवेत स्वर में प्रस्तुत किया था। यह प्रस्तुति ‘अन्तर्नाद’ संस्था की थी, जिसके लिए २७,००० वर्गफुट आकार का मंच बनाया गया था। आकाश तक गूँजती यह रचना बनारस के संगीतविद पण्डित बड़े रामदास की थी। लखनऊ के भातखण्डे संगीत विश्वविद्यालय के गायन-शिक्षक विकास तैलंग जी ने इस विशाल सांगीतिक अनुष्ठान का विवरण देते हुए बताया कि प्रस्तुति में उनके दो विद्यार्थी रंजना अग्रहरि और अभिनव शर्मा भी प्रतिभागी थे। आइए इसी अनूठी प्रस्तुति का रसास्वादन करते हुए इस अंक को यहीं विराम देते हैं।
राग – बसन्त बहार : ‘माँ बसन्त आयो री...’: स्वर – पण्डित राजन-साजन मिश्र व २७५० समवेत स्वर
आज की पहेली
ऊपर दिये गए आडियो क्लिप के द्वारा आपको लोकगीत का एक अंश सुनवाया गया है। गीत के इस अंश को सुन कर आपको दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं।
१ - इस चर्चित लोक-गायिका के स्वरों को पहचानिए और हमें उनका नाम बताइए।
२ - यह लोकगीत किस अवसर पर गाया जाता है?
आप अपने उत्तर हमें तत्काल swargoshthi@gmail.com पर भेजें। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के ६०वें अंक में सम्मान के साथ प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। हमसे सीधे सम्पर्क के लिए swargoshthi@gmail.com अथवा admin@radioplaybackindia.com पर भी अपना सन्देश भेज सकते हैं।
आपकी बात
‘स्वरगोष्ठी’ के ५६ वें अंक में हमने आपको राग बहार पर आधारित एक फिल्मी गीत- ‘सकल वन पवन चलत पुरवाई...’ सुनवा कर आपसे फिल्म का नाम और संगीतकार का नाम पूछा था, जिसका क्रमशः सही उत्तर है, ममता और रोशन। दोनों प्रश्न का सही उत्तर इन्दौर की क्षिति जी ने ही दिया है। पटना की अर्चना टण्डन जी ने फिल्म का नाम तो सही लिखा, किन्तु संगीतकार को पहचानने में भूल कर बैठीं। इन्हें रेडियो प्लेबैक इण्डिया की ओर से बधाई। इसी के साथ लखनऊ के संगीत शिक्षक डॉ. सुनील पावगी ने फिल्म-संगीत के माध्यम से रागों की पहचान कराने के हमारे इस प्रयास की सराहना की है। क्षिति जी को पण्डित भीमसेन जोशी द्वारा प्रस्तुत राग बसन्त की बन्दिश और लखनऊ के डॉ. पी.के. त्रिपाठी को फिल्म स्त्री का गीत बहुत पसन्द आया। लुधियाना के करणवीर सिंह जी और कानपुर के अवतार सिंह जी ने रेडियो प्लेबैक इण्डिया के इस प्रयास को संगीत के विद्यार्थियों और सामान्य श्रोताओ के लिए ज्ञानवर्धक माना। आप सभी श्रोताओं-पाठको को अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए आभार।
झरोखा अगले अंक का
हमारी आज की पहेली से आपको यह अनुमान हो ही गया होगा कि ‘स्वरगोष्ठी’ का आगामी अंक लोक संगीत पर केन्द्रित होगा। आपको यह भी स्मरण होगा कि लोकगीतों के अन्तर्गत इन दिनों हम आपके लिए संस्कार-गीतों पर चर्चा कर रहे हैं। इस श्रृंखला की पाँचवीं कड़ी में हम आपकी ही फरमाइश पर अवधी, भोजपुरी और राजस्थानी गीत प्रस्तुत करेंगे। विश्वास है, आप अगले रविवार की गोष्ठी में अवश्य शामिल होंगे।
कृष्णमोहन मिश्र
Comments
1- Sharda sinha
2- ? ? ? ? ?