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एक गीत सौ कहानियाँ # 9
अक्सर हम लोगों को यह चर्चा करते हुए पाते हैं कि पहले की तुलना में फ़िल्मी गीतों का स्तर गिर गया है, अब वह बात नहीं रही फ़िल्मी गीत-संगीत में। काफ़ी हद तक यह बात सच भी है, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि इसमें केवल कलाकारों का दोष नहीं। फ़िल्म और फ़िल्म-संगीत समाज का ही आइना होता है, जो समय चल रहा है, जो दौर जारी है, समाज की जो रुचि है, वही सब कुछ फ़िल्मों और फ़िल्मी गीतों में नज़र आते हैं। और यह भी उतना ही सच है कि अगर
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जहाँ एक तरफ़ इस गीत के पीछे पुरस्कारों की लाइन लग गई, वहीं दूसरी तरफ़ एक विवाद भी खड़ा हो गया था। हुआ यह कि इस फ़िल्म की ऑडियो सीडी के कवर पर इरशाद कामिल का नाम नहीं दिया गया, बल्कि कवर पर कवि रुमि का नाम साफ़-साफ़ दिया गया है जिनकी कविता को रणबीर कपूर ने गाया है। इंडस्ट्री में यह बात चल पड़ी थी कि इरशाद कामिल इस बात से नाख़ुश हैं, बल्कि यूं कहें कि वो फ़िल्म के निर्माता इमतियाज़ अली से नाख़ुश हैं। इससे पहले इरशाद ने इमतियाज़ की 'सोचा न था', 'जब वी मेट', और 'लव आज कल' के गानें लिखे थे। 'सोचा न था' के संगीतकार संदेश शान्डिल्य ने पहली बार इरशाद की भेंट इमतियाज़ से करवाई थी। इस गड़बड़ी का ज़िक्र जब मीडिया ने इमतियाज़ से किया तो उन्होंने बताया कि यह एक क्लेरिकल एरर थी और कभी-कभार ऐसी ग़लतियाँ हो जाती हैं जिन पर किसी का बस नहीं चलता। उन्होंने यह भी कहा कि इरशाद उनके दोस्त हैं और सीडी के अगले लॉट में इस ग़लती को सुधार लिया जाएगा। दूसरी तरफ़ जब टी-सीरीज़ के मालिक भूषण कुमार से इस ग़लती के बारे में पूछा गया तो उन्होंने यह साफ़ कह दिया कि यह फ़िल्म के निर्माता की ग़लती है जिन्हें सीडी कवर को ध्यान से देख कर ही अप्रूव करना चाहिए था। "ऐल्बम के कवर पब्लिसिटी डिज़ाइनर द्वारा बनाए जाते हैं और शायद वो इरशाद का नाम डालना भूल गए होंगे। ऐसा फ़िल्म 'मौसम' के साथ भी हुआ था, पर मैंने जैसे ही यह देखा, उसे ठीक कर दिया", भूषण कुमार ने बताया। इरशाद कामिल ऐसे पहले गीतकार नहीं हैं जिन्हें ऐसी हालात से गुज़रना पड़ा हो। उनसे पहले संगीतकार सागर देसाई ने दिल्ली हाइ कोर्ट में सोनी म्युज़िक, फ़ॉक्स स्टार स्टुडियोज़ और फ़ैट-फ़िश के ख़िलाफ़ मुक़द्दमा दायर किया था क्योंकि उन्हें 'क्वीक गन मुरुगन' के सीडी, पोस्टर और वेबसाइट में क्रेडिट नहीं दिया गया था।
"नादान परिंदे" गीत को सुन कर जैसे एक आस की किरण दिखाई देने लगती है यह सोचते हुए कि शायद अर्थपूर्ण गीतों का दौर अभी पूरी तरह से समाप्त नहीं हुआ है। जब इरशाद कामिल से यह किसी साक्षात्कार में पूछा गया कि आज के गीतों में अर्थ कम और शोर शराबा ज़्यादा होता है, इस बारे में उनका क्या ख़याल है, तो उन्होंने बताया, "आप सही कह रहे हैं कि फ़िल्मी गीतों के बोल बदल गए हैं, पर यह भी तो देखिए कि सिर्फ़ बोल ही नहीं बल्कि फ़िल्में और पूरा समाज भी तो बदल गया है। आज भारतीय युवा पीढ़ी हिन्दी कम और अंग्रेज़ी ज़्यादा समझती है। अगर कोई शुद्ध हिन्दी या वज़नदार उर्दू के शब्द बोले तो बहुतों को समझ ही नहीं आएगी। मैं पुराने गानें पसन्द करता हूँ, पर हमें समकालीन रुचि के साथ भी तो चलना ही पड़ेगा। जो अच्छे शायर हैं, वो अच्छी शायरी करते रहेंगे। आप जिन गीतों की तरफ़ इशारा कर रहे हैं, वो दरअसल डान्स या आइटम नंबर्स हैं।" किस तरह के गानें लिखना सबसे ज़्यादा मुश्किल है? "मेरे लिए रोमांटिक गीत लिखना सबसे ज़्यादा मुश्किल है क्योंकि इस विषय पर इतना कुछ लिखा जा चुका है कि कोई नई चीज़ लिखना बहुत ही मुश्किल है। कुछ शब्द जो मैं अपने शब्दकोश में नही रखता, वो हैं "दिल", "धड़कन", "जिगर", "प्यार", "इक़रार", "इन्तज़ार" वगेरह।" तो फिर किस तरह के गीत लिखना इरशाद साहब को सबसे ज़्यादा पसन्द है? "मुझे अकेलेपन के रोमांटिक गीत, जिनमें दर्द है, पर एक सूफ़ी टच भी है, लिखना पसन्द है। आजकल क्या होता है कि जिन गीतों में "अल्लाह" या "मौला" शब्द होते हैं, उन पर सूफ़ी गीत होने का ठप्पा लगा दिया जाता है, पर ऐसा बिल्कुल नहीं है।" "नादान परिन्दे" में भी एक अकेलापन सुनाई देता है, जीवन-दर्शन दिखाई देता है। सूफ़ी संगीत को दो भागों में बांटा जा सकता है। पहले में आता है क़व्वालियाँ जिसमे हैं अल्लाह की बातें, अल्लाह तक पहुँचने की बातें; और दूसरे भाग में आता है दर्शन, दार्शनिक बातें, जिस तरह से कबीरदास और रहीमदास के दोहों में होती थीं। इस तरह से कहीं न कहीं इस गीत में इरशाद कामिल ने अपनी पसन्द को शामिल किया है, यानी कि अकेलेपन और सूफ़ी, दोनों। जो भी है, इस गीत ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीतकार का पुरस्कार जितवा कर आज की पीढ़ी के तमाम गीतकारों की कतार में सबसे आगे ला खड़ा कर दिया है।
"नादान परिन्दे" सुनने के लिए नीचे प्लेयर पर क्लिक करें...
तो दोस्तों, यह था आज का 'एक गीत सौ कहानियाँ'। आज बस इतना ही, अगले बुधवार फिर किसी गीत से जुड़ी बातें लेकर मैं फिर हाज़िर होऊंगा, तब तक के लिए अपने इस ई-दोस्त सुजॉय चटर्जी को इजाज़त दीजिए, नमस्कार!
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