शिखा वार्ष्णेय से जब मैंने गीत मांगे, तो सुना और भूल गईं. छोटी बहन ने सोचा - अरे यह रश्मि दी की आदत है, कभी ये लिखो, वो दो, ये करो .... हुंह. मैंने भी रहने दिया. पर अचानक जब उसने समीर जी की पसंद को सुना तो बोली - मैं भी...मैं भी.... हाहा, कौन नहीं चाहेगा कि हमारी पसंद से निकले ५ गीतों को हमें चाहनेवाले सुनें! तो शिखा की बड़ी बड़ी बातों से अलग आकर इस बहुत जाननेवाली की पसंद सुनिए उसके शब्दों में लिपटे-
रोज की आप धापी से
कुछ लम्हें खुद के लिए बचाकर कर
रख सर को नरम तकिये पर
मूँद कर पलकों को
कुछ पल सिर्फ एहसास के
जब दरकार हों .
यही गीत याद आते हैं.
और सुकून दे जाते हैं.
आप यूँ फासलों से गुजरते रहे
मेरा कुछ सामान - (इजाजत)
यह दिल और उनकी निगाहों के साये.
होटों से छू लो तुम (प्रेम गीत)
दिल तो है दिल .(मुकद्दर का सिकंदर.)
10 टिप्पणियां:
सारे गीत पसंदीदा हैं।
सभी गीत बेहतरीन।
सादर
इनमे से दो गीत तो मुझे भी बहुत पसंद हैं !
वाह ... अब तो लगता है कि मेरी बारी है कहने कि मैं भी , मैं भी ॥:):)
पांचों गीत बेहतरीन ... मेरा कुछ सामान ... मुझे भी पसंद है ॥
गीत तो सारे खूबसूरत है और मेरी पसंद के भी .
हा हा हा ..हाँ..सच में भूल गई थी :)...शुक्रिया रश्मि दी ! एक बार फिर से सुकून आया गीत सुनकर.
speaker to abhi nahi hai, par geet sunana padega...:)
बहुत सुन्दर पसंद... पांचो गीत कर्णप्रिय.... वाह!
सादर आभार.
सुन्दर चयन है आपका .
nice
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