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Showing posts from January, 2012

ब्लोग्गर्स चोईस में आज रश्मि प्रभा के साथ हैं उड़न तश्तरी वाले समीर लाल

चिट्ठी आई है आई है चिट्ठी आई है मशहूर ब्लौगर, सहज व्यक्तित्व वाले समीर जी. भारत से कनाडा, कनाडा से भारत - जीने की अदभुत क्षमता है इनमें. नेट एक नशा है लोगों के लिए... इनके लिए है नेट भारत से जुड़े रहने का सुखद एहसास. मित्रों की भरमार, हितैषियों की भरमार, चाहनेवालों की भरमार. बहुत कुछ कहती है इनकी कलम, आज इनकी पसंद के गीत बहुत कुछ कहेंगे ... ५ गीतों का चयन लाखों गीतों में से आसान तो नहीं ही है...आसान बस इतना है कि जो पहले कौंध जाए. कौंधने में भी जीवन के हर मुकाम हैं - आइये बैठ जाइये घेरकर, सुनते हैं समीर जी की पसंद .............. जिन्दगी के अलग अलग अनुभवों से गुजरते, समय बेसमय तरह तरह के आयाम उस वक्त विशेष से एक गीत को पसंद करवाते रहे और आज उन्हीं प्यारे नगमों को सुन उन वक्तों और लम्हों को याद करना दिल को खठ्ठी मीठी यादों की तराई में ले जाकर एक अहसास छोड़ जाता है. जिन्दगी यूँ भी कभी खुशी कभी गम है...मगर ये मुए गम, देर तक भुलाये नहीं भूलते और छा जाते हैं खुशियों भरी यादों पर कोहरा बन कर......यही तो खेल है असल जिन्दगी का. लीजिये सुनिए मेरी ५ पसंद - शर्म आती है मगर आज ये कहना होगा..

३१ जनवरी- आज का गाना

गाना:  ये दुनिया वाले पूछेंगे चित्रपट: महल संगीतकार: कल्याणजी आनंदजी गीतकार:  आनंद बक्षी गायिका,गायक: आशा भोंसले, किशोर कुमार ये दुनिया वाले पूछेंगे ये दुनिया वाले पूछेंगे मुलाक़ात हुई क्या बात हुई ये बात किसी से ना कहना ये दुनिया वाले पूछेंगे मुलाक़ात हुई क्या बात हुई ये बात किसी से ना कहना ये दुनिया वाले पूछेंगे हो,ये बात अगर कोई पूछे क्यों नैन तेरे झुक जाते हैं तुम कहना इनकी आदत है ये नैन यूँ ही शरमाते हैं तुम लोगों से ये ना कहना साँवरिया से लागे नैना साँवरिया से लागे नैना ये दुनिया वाले पूछेंगे हो,मैं तो ये राज़ छुपा लूंगी तुम कैसे दिल को सम्भालोगे दिल क्या तुम तो दीवारों पे मेरी तस्वीर बना लोगे देखो ये काम नहीं करना मुझको बदनाम नहीं करना मुझको बदनाम नहीं करना ये दुनिया वाले पूछेंगे मुलाक़ात हुई क्या बात हुई ये बात किसी से ना कहना ये दुनिया वाले पूछेंगे हो,ये पूछेंगे वो कौन है जो चुपके सपनों में आता है ये पूछेंगे वो कौन है जो मेरे दिल को तड़पाता है तुम मेरा नाम नहीं लेना सर पे इल्ज़ाम नहीं लेना सर पे इल्ज़ाम नहीं लेना ये दुन

सिने-पहेली # 5

सिने-पहेली # 5 (30 जनवरी 2012) रेडियो प्लेबैक इण्डिया के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार! दोस्तों, 'सिने-पहेली' की पाँचवी कड़ी लेकर मैं हाज़िर हूँ। यह स्तंभ आज एक महीना पूरा कर रहा है, और जिस तरह से आप सब नें इसमें भागीदारी निभाई है, हम तहे दिल से आप सभी के आभारी हैं। हम यही समझते हैं कि कोई भी स्तंभ उसके पाठकों के सहयोग और योगदान के बिना सफल नहीं हो सकता। आगे भी इसी तरह से इस स्तंभ में हिस्सा लेते रहिएगा, चाहे जवाब मालूम हो या न हो, कम से कम कोशिश तो आप ज़रूर कर सकते हैं, और यही एक सच्चे खिलाड़ी की असली पहचान है। और फिर चलिए तैयार हो जाइए आज का खेल खेलने के लिए। शुरु करते हैं आज की सिने पहेली!!! जैसा कि अब तक आप समझ ही चुके होंगे इस प्रतियोगिता को, फिर भी अपने नये श्रोता-पाठकों के लिए बता दूँ कि इसमें हर सप्ताह हम पाँच सवाल पूछते हैं, जिनका जवाब आपको हमें लिख भेजने होते हैं cine.paheli@yahoo.com के ईमेल आइडी पर। हर सप्ताह पिछले सप्ताह में पूछे गए सवालों के सही जवाबों के साथ-साथ कम से कम एक सही जवाब लिख भेजने वाले सभी प्रतियोगियों के नाम घोषित किए जात

३० जनवरी- आज का गाना

गाना:  दे दी हमें आज़ादी चित्रपट: जागृति संगीतकार: हेमंत कुमार गीतकार:  कवि प्रदीप गायिका: आशा भोंसले दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल आँधी में भी जलती रही गाँधी तेरी मशाल साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल दे दी ... धरती पे लड़ी तूने अजब ढंग की लड़ाई दागी न कहीं तोप न बंदूक चलाई दुश्मन के किले पर भी न की तूने चढ़ाई वाह रे फ़कीर खूब करामात दिखाई चुटकी में दुश्मनों को दिया देश से निकाल साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल दे दी ... रघुपति राघव राजा राम शतरंज बिछा कर यहाँ बैठा था ज़माना लगता था मुश्किल है फ़िरंगी को हराना टक्कर थी बड़े ज़ोर की दुश्मन भी था ताना पर तू भी था बापू बड़ा उस्ताद पुराना मारा वो कस के दांव के उलटी सभी की चाल साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल दे दी ... रघुपति राघव राजा राम जब जब तेरा बिगुल बजा जवान चल पड़े मज़दूर चल पड़े थे और किसान चल पड़े हिंदू और मुसलमान, सिख पठान चल पड़े कदमों में तेरी कोटि कोटि प्राण चल पड़े फूलों की सेज छोड़ के दौड़े जवाहरलाल साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल दे द

पुण्य तिथि पर पण्डित विष्णु गोविन्द (वी.जी.) जोग को एक स्वरांजलि

स्वरगोष्ठी – ५५ में आज जुगल बन्दी के बादशाह वायलिन वादक पण्डित जोग   भारतीय संगीत के प्रातःकालीन रागों में एक बेहद मधुर और भक्तिरस से सराबोर राग है- अहीर भैरव। हिन्दी फिल्मों में इस राग का प्रयोग बहुत अधिक तो नहीं हुआ किन्तु जिन संगीतकारो ने इस राग का उपयोग किया , उन्होने फिल्म-संगीत-जगत को अपने सदाबहार गी तों से समृद्ध कर दिया। शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में सुप्रसिद्ध वायलिन वादक पण्डित वी.जी. (विष्णु गोविन्द) जोग का अत्यन्त प्रिय राग अहीर भैरव ही था। ३१ जनवरी को पण्डित जी की आठवीं पुण्यतिथि है। इस अवसर पर आज के अंक में हम उनके प्रिय राग ‘ अहीर भैरव ’ के माध्यम से उन्हें स्वरांजलि अर्पित कर रहे हैं।      आ ज ‘ स्वरगोष्ठी ’ में एक नए अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र , आप सभी संगीत- प्रेमियों की बैठक में उपस्थित हुआ हूँ। दोस्तों , आज की बैठक में हम सुप्रसिद्ध वायलिन वादक पण्डित वी.जी. जोग के व्यक्तित्व और कृतित्व पर उनके प्रिय राग ‘ अहीर भैरव ’ के माध्यम से चर्चा करेंगे। परन्तु चर्चा की शुरुआत हम दो ऐसे फिल्मी गीत से करेंगे , जिन्हें राग ‘ अहीर भैरव ’ के स्वरों में पिरोया ग

२९ जनवरी- आज का गाना

गाना:  मिल गए मिल गए आज मेरे सनम चित्रपट: कन्यादान संगीतकार: शंकर जयकिशन गीतकार:  हसरत जयपुरी गायिका: लता मंगेशकर मिल गए मिल गए आज मेरे सनम मिल गए मिल गए आज मेरे सनम आज मेरे ज़मीन पर नहीं हैं कदम आज मेरे ज़मीन पर नहीं हैं कदम मिल गए मिल गए आज मेरे सनम मिल गए मिल गए आज मेरे सनम आज मेरे ज़मीन पर नहीं हैं कदम आज मेरे ज़मीन पर नहीं हैं कदम ऐ नज़रों ज़रा काम इतना करो ऐ नज़रों ज़रा काम इतना करो तुम मेरी मांग में आज मोती भरो तुम मेरी मांग में आज मोती भरो एक उजाला हुआ ढल गई शाम-ए-ग़म एक उजाला हुआ ढल गई शाम-ए-ग़म आज मेरे ज़मीन पर नहीं हैं कदम मिल गए मिल गए आज मेरे सनम मिल गए मिल गए आज मेरे सनम आज मेरे ज़मीन पर नहीं हैं कदम आज मेरे ज़मीन पर नहीं हैं कदम वो कहाँ छुप रहे थे मैं हैरान थी वो कहाँ छुप रहे थे मैं हैरान थी मेरी सदियों से उनसे ही पहचान थी मेरी सदियों से उनसे ही पहचान थी ऐसे किस्से ज़माने में होते हैं कम ऐसे किस्से ज़माने में होते हैं कम आज मेरे ज़मीन पर नहीं हैं कदम मिल गए मिल गए आज मेरे सनम मिल गए मिल गए आज मेरे सनम आज मेरे ज़मीन पर नह

रेडियो प्लेबैक आर्टिस्ट ऑफ द मंथ - कुहू गुप्ता

कुहू गुप्ता  कवर गीतों से लेकर ढेरों ओरिजिनल गीतों को अपनी आवाज़ से सजाया है कुहू ने, इन्टरनेट पर सक्रिय अनेकों संगीतकारों की धुनों में अपनी आवाज़ का रंग भरने वाली गायिका कुहू गुप्ता है रेडियो प्लेबैक की आर्टिस्ट ऑफ द मंथ...अपने अब तक के करियर के कुछ यादगार गीत और गायन के अपने खट्टे मीठे अनुभव बाँट रही है आपके साथ गायिका कुहू गुप्ता.

२८ जनवरी- आज का गाना

गाना:  वो शाम कुछ अजीब थी चित्रपट: ख़ामोशी संगीतकार: हेमंत कुमार गीतकार:  गुलज़ार गायक: किशोर कुमार वो शाम कुछ अजीब थी, ये शाम भी अजीब है वो कल भी पास-पास थी, वो आज भी करीब है वो शाम कुछ अजीब थी, ये शाम भी अजीब है वो कल भी पास-पास थी, वो आज भी करीब है झुकी हुई निगाह में, कहीं मेरा ख़याल था दबी दबी हँसीं में इक, हसीन सा सवाल था मैं सोचता था, मेरा नाम गुनगुना रही है वो मैं सोचता था, मेरा नाम गुनगुना रही है वो न जाने क्यूँ लगा मुझे, के मुस्कुरा रही है वो वो शाम कुछ अजीब थी मेरा ख़याल हैं अभी, झुकी हुई निगाह में खिली हुई हँसी भी है, दबी हुई सी चाह में मैं जानता हूँ, मेरा नाम गुनगुना रही है वो मैं जानता हूँ, मेरा नाम गुनगुना रही है वो यही ख़याल है मुझे, के साथ आ रही है वो वो शाम कुछ अजीब थी, ये शाम भी अजीब है वो कल भी पास पास थी, वो आज भी करीब है

अकबर के नवरत्न - इब्ने इंशा की लघुकथा

'बोलती कहानियाँ' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने सलिल वर्मा की आवाज़ में गिरिजेश राव की एक कहानी " भूख " का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं इब्ने इंशा की लघुकथा " अकबर के नवरत्न ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने।  कहानी " अकबर के नवरत्न " का कुल प्रसारण समय 1 मिनट 19 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। इस कथा का टेक्स्ट बैरंग पर उपलब्ध है।  यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। और तो कोई बस न चलेगा हिज्र के दर्द के मारों का। ~ इब्ने इंशा (1927-1978) हर शुक्रवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी अकबर अनपढ़ था। ( इब्ने इंशा की "अकबर के नवरत्न" से एक अंश ) नीचे के प्लेयर से सुनें। (प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें

२७ जनवरी- आज का गाना

गाना:  वादा रहा सनम चित्रपट: खिलाड़ी संगीतकार: जतिन-ललित गीतकार:  अनवर सागर गायक,गायिका: अभिजीत, अलका याग्निक आ हा हा हा हा, आ हा हा हा हा आ आ आ हा हा हा हा हा वादा रहा सनम, होंगे जुदा ना हम चाहे ना चाहे ज़माना हमारी चाहतों का मिट ना सकेगा फ़साना हमारी चाहतों का मिट ना सकेगा फ़साना कैसी उदासी तेरे चेहरे पे छायी क्या बात है जो तेरी आँख भर आई कैसी उदासी तेरे चेहरे पे छायी क्या बात है जो तेरी आँख भर आई देखो तो क्या नज़ारे हैं तुम्हारी तरह प्यारे हैं हंसो ना मेरे लिए तुम सभी तो ये तुम्हारे हैं ओ जाने जान हमारी चाहतों का मिट ना सकेगा फ़साना हमारी चाहतों का मिट ना सकेगा फ़साना वादा रहा सनम, होंगे जुदा ना हम चाहे ना चाहे ज़माना हमारी चाहतों का मिट ना सकेगा फ़साना हमारी चाहतों का मिट ना सकेगा फ़साना इन वादियों में यूँ ही मिलते रहेंगे दिल में वफ़ा के दिए जलते रहेंगे इन वादियों में यूँ ही मिलते रहेंगे दिल में वफ़ा के दिए जलते रहेंगे यह माँगा है दुआओं में कमी ना हो वफाओं में रहें तेरी निगाहों में लिखो ना ये फिजाओं में ओ साजना हमारी चाहतों का मिट ना सक

शत्रुओं की छाती पर लोहा कुट.. बाबा नागार्जुन की हुंकार के साथ आईये करें गणतंत्र दिवस का स्वागत

महफ़िल-ए-ग़ज़ल ०२ बचपन बीत जाता है, बचपना नहीं जाता। बचपन की कुछ यादें, कुछ बातें साथ-साथ आ जाती हैं। उम्र की पगडंडियों पर चलते-चलते उन बातों को गुनगुनाते रहो तो सफ़र सुकून से कटता है। बचपन की ऐसी हीं दो यादें जो मेरे साथ आ गई हैं उनमें पहली है कक्षा सातवीं से बारहवीं तक (हाँ मेरे लिए बारहवीं भी बचपन का हीं हिस्सा है) पढी हुईं हिन्दी कविताएँ और दूसरी है साल में कम-से-कम तीन दिन देशभक्त हो जाना। आज २६ जनवरी है तो सोचा कि इन दो यादों को एक साथ पिरोकर एक ऐसे कवि और उनकी ऐसी कविताओं का ताना-बाना बुना जाए जिससे महफ़िल की पहचान बढे और आज के लिए थोड़ी बदले भी (बदलने की बात इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि आज की महफ़िल में उर्दू की कोई ग़ज़ल नहीं, बल्कि हिन्दी की कुछ कविताएँ हैं) मैंने बचपन की किताबों में कईयों को पढा और उनमें से कुछ ने अंदर तक पैठ भी हासिल की। ऐसे घुसपैठियों में सबसे आगे रहे बाबा नागार्जुन यानि कि ग्राम तरौनी, जिला दरभंगा के वैद्यनाथ मिश्र। अभी तक कंठस्थ है मुझे "बादल को घिरते देखा है"। शत-शत निर्झर-निर्झरणी कल  मुखरित देवदारु कनन में,  शोणित धवल भोज पत्रों

छीन सकती है नहीं सरकार वन्देमातरम...

‘ वन्देमातरम् ’ गीत के रचनाकार  बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय   ब्रिटिश शासन के विरुद्ध चले भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में बलिदानी क्रान्तिकारियों और आन्दोलनकारियों के हम सदैव ऋणी रहेंगे, परन्तु  इस दौर में कलम के सिपाहियों का योगदान भी कभी भुलाया नहीं जा सकता। आज गणतंत्र दिवस के अवसर पर हम कुछ ऐसे कवियों और शायरों का स्मरण करने जा रहे हैं, जिनकी कलम ने तलवार का रूप धारण कर ब्रिटिश हुकूमत के छक्के छुड़ा दिये। इन गीतों के उग्र तेवर से भयभीत होकर तत्कालीन सरकार ने इन्हें प्रतिबन्धित तक कर दिया। स्वरगोष्ठी – ५४ में आज – गणतन्त्र दिवस विशेषांक स्वतन्त्रता संग्राम के प्रतिबन्धित गीतों पर एक चर्चा आज गणतन्त्र दिवस के अवसर पर ‘स्वरगोष्ठी’ के इस विशेष अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र आपके बीच उपस्थित हूँ। मित्रों, आज हम आपसे किसी फिल्म संगीत, राग, ताल या किसी वरिष्ठ कलासाधक पर चर्चा नहीं, बल्कि कुछ ऐसे दुर्लभ गीतों पर चर्चा करेंगे, जिन्हें भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान लिखे और गाये गए। इन गीतों के रचनाकारों ने कलम को तलवार बना कर गीतों से जनमानस को उद्वेलित कर दिया। आज की गोष्ठी में

२६ जनवरी- आज का गाना

गाना:  जहाँ डाल डाल पर चित्रपट: सिकंदर-ए-आज़म संगीतकार: हंसराज बहल गीतकार: राजिंदर कृशन गायक: मोहम्मद रफी जहाँ डाल-डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा वो भारत देश है मेरा जहाँ सत्य, अहिंसा और धर्म का पग-पग लगता डेरा वो भारत देश है मेरा ये धरती वो जहाँ ऋषि मुनि जपते प्रभु नाम की माला जहाँ हर बालक एक मोहन है और राधा हर एक बाला जहाँ सूरज सबसे पहले आ कर डाले अपना फेरा वो भारत देश है मेरा अलबेलों की इस धरती के त्योहार भी हैं अलबेले कहीं दीवाली की जगमग है कहीं हैं होली के मेले जहाँ राग रंग और हँसी खुशी का चारों ओर है घेरा वो भारत देश है मेरा जब आसमान से बातें करते मंदिर और शिवाले जहाँ किसी नगर में किसी द्वार पर कोई न ताला डाले प्रेम की बंसी जहाँ बजाता है ये शाम सवेरा वो भारत देश है मेरा

"ऐ मेरे वतन के लोगों" - इस कालजयी देशभक्ति गीत को न गा पाने का मलाल आशा भोसले को आज भी है

कालजयी देशभक्ति गीत "ऐ मेरे वतन के लोगों" के साथ केवल पंडित नेहरू की यादें ही नहीं जुड़ी हुई हैं, बल्कि इस गीत के बनने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। आज गणतन्त्र दिवस की पूर्वसंध्या पर इसी गीत से जुड़ी कहानियाँ सुजॉय चटर्जी के साथ 'एक गीत सौ कहानियाँ' की चौथी कड़ी में... एक गीत सौ कहानियाँ # 4 देशभक्ति गीतों की बात चलती है तो कुछ गीत ऐसे हैं जो सबसे पहले याद आ जाते हैं, चाहे वो फ़िल्मी हों या ग़ैर-फ़िल्मी। लता मंगेशकर की आवाज़ में एक ऐसी ही कालजयी रचना है "ऐ मेरे वतन के लोगों, ज़रा आँख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा करो क़ुर्बानी"। कवि प्रदीप के लिखे और सी. रामचन्द्र द्वारा स्वरबद्ध इस गीत को जब भी सुनें, रोंगटे खड़े हुए बिना नहीं रहते, आँखें नम हुए बिना नहीं रहतीं, हमारे वीर शहीदों के आगे नतमस्तक हुए बिना हम नहीं रह पाते। इस गीत को १९६२ के भारत-चीन युद्ध के शहीदों को समर्पित किया गया था। कहते हैं कि रेज़ांग् ला के प्रथम युद्ध में १३ - कुमाऊं रेजिमेण्ट, सी-कंपनी के आख़िरी मोर्चे में परमवीर मेजर शैतान सिंह भाटी के दुस्साहस और बलिदान से प्रभावित