Skip to main content

जिसे अंधी गंदी खाईयों से लाए हम बचा के, उस आजादी को हरगिज़ न मिटने देंगें- ये प्रण लिया वी डी, बिस्वजीत और सुभोजीत ने

Season 3 of new Music, Song # 16

६३ वर्ष बीत चुके हैं हमें आजाद हुए. मगर अब समय है सचमुच की आजादी का. तन मन और सोच की आजादी का. अभी बहुत से काम बाकी है, क्योंकि जंग अभी भी जारी है. आतंकवाद, नक्सलवाद, भ्रष्टाचार, जाने कितने अन्दुरुनी दुश्मन हैं जो हमारे इस देश की जड़ों को अंदर से खोखला कर रहे हैं. आज समय आ गया है कि हम स्मरण करें उन देशभक्तों की कुर्बानियों का जिनके बदौलत आज हम खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं. आज समय है एक बार फिर उस सोयी हुई देशभक्ति को जगाने का जिसके अभाव में हम ईमानदारी, इंसानियत और इन्साफ के कायदों को भूल ही चुके हैं. आज समय है उस राष्ट्रप्रेम में सरोबोर हो जाने का जो त्याग और कुर्बानी मांगती है, जो एक होकर चलने की रवानी मांगती है. कुछ यही सोच यही विचार हम पिरो कर लाये हैं अपने इस नए स्वतंत्रता दिवस विशेष गीत में, जिसे लिखा है विश्व दीपक तन्हा ने, सुरों से सजाया है सुभोजित ने और गाया है बिस्वजीत ने. जी हाँ इस तिकड़ी का कमाल आप बहुत से पिछले गीतों में भी सुन ही चुके है, जाहिर है इस गीत में भी इन तीनों ने जम कर मेहनत की है. तो आईये सुनते है आज का ये ताज़ा अपलोड और इस स्वतंत्र दिवस को महज एक छुट्टी का दिन न रहने दें बल्कि इसे एक नए शुरूआत का शुभ मुहूर्त बन जाने दें, क्योंकि एक छोटी सी कोशिश ही एक बड़े आन्दोलन की शुरूआत होती है.

गीत के बोल -

हिन्दोस्तां.. मेरी खुशी
हिन्दोस्तां.. मेरी हँसी
हिन्दोस्तां.. मेरे आँसू
हिन्दोस्तां.. मेरा लहू..

इसे अंधी गंदी खाईयों से लाए हम बचा के,
इसे गोरी गाली गोलियों से लाए सर भिड़ा के,
इसे हमने अपने माथे रखा सरपंच बना के...

इसे अंधी गंदी खाईयों से लाए हम बचा के,
इसे गोरी गाली गोलियों से लाए सर भिड़ा के,
इसे हमने अपने माथे रखा सरपंच बना के...


हिम्मत जब जागे,
कुदरत भी पग लागे,
भारत के आगे
दहशत फिर काहे...

आ जा हर डर
को कर दें
ज़र्रा..
स्वाहा..

हाँ दिखला दें
इस हिन्द पर
कुर्बां.....
है जां...

गर चाहें हम
थर्रा दें..
अंबर..
भूतल..

यूँ चुप हैं
पर दम लें
बनकर
शंकर..

ये तो नीली काली आँखों तले सुनामी उछाले
ये तो खौली खौली साँसों में सौ तूफ़ानें उबाले
ये तो सोए सोए सीनों में भी हड़कंप मचा दे....

ये तो नीली काली आँखों तले सुनामी उछाले
ये तो खौली खौली साँसों में सौ तूफ़ानें उबाले
ये तो सोए सोए सीनों में भी हड़कंप मचा दे....



मेकिंग ऑफ़ "हिन्दोस्तां" - गीत की टीम द्वारा

बिस्वजीत: माँ और मातृभूमि दोनों के लिए गाना गाना एक सौभाग्य की बात होती है। मैं चाहे कितनी भी दूर रहूँ, जब भी राष्ट्रगान सुनता हूँ, रौंगटे खड़े हो जाते हैं। सुभो ने जब ये गाना भेजा, मैं बहुत खुश हुआ था। इसलिए नहीं कि मुझे एक गाना मिला, बल्कि इसलिए कि मेरी मातृभूमि के लिए एक गाना मैं गा पाऊँगा। और उन सबके लिए एक संदेश दे पाऊँगा जो हमारी धरती को बाँटने की कोशिश में जुड़े हैं। लेकिन उनको नहीं पता कि जिस धरती को वो तोड़ना चाहते हैं वो धरती नानक, वीर भगत सिंह और राम जी की है। हम अगर एक बार जग गए तो मिट जाएँगे वो लोग। आज मेरा जन्मदिन भी है। जन्मदिन पे इससे बड़ा तोहफ़ा और क्या मिल सकता है। वीडी भाई के बारे में आजकल बोलना हीं मैंने बंद कर दिया है। भाई, जो गगन को छूए, उसकी ऊँचाई की क्या तारीफ़ की जाए। सुभो का संगीत भी दिल को छू लेने वाला है। कुल-मिलाकर यह कह सकता हूँ कि यह गाना मेरे लिए बहुत हीं खास है और मैंने इसके लिए बहुत मेहनत की है। गाना रिकार्ड करने के लिए मुझे कितने पापड़ बेलने पड़े, यह मैं हीं जानता हूँ, लेकिन देश के लिए अगर इतना भी न किया तो फिर गायकी का क्या फ़ायदा। हाँ, रिकार्डिंग स्टुडियो के चक्कर लगा-लगाकर थक जाने के बाद मैंने यह निर्णय ले लिया है कि जल्द हीं अपना "होम स्टुडियो" सेट-अप करूँगा। उसके बाद तो दोस्तों की यह शिकायत भी दूर हो जाएगी कि मैं हमेशा गायब हो जाता हूँ। फिर मेरे गाने नियमित अंतराल पर आने लगेंगे। मुझे बस उसी दिन का इंतज़ार है।

सुभोजित: "उड़न-छूं" गाने पर काम करते वक़्त हमें यह ख्याल आया था कि इसी तरह का जोश भरा एक और गाना किया जाए। विषय कौन-सा हो, यह प्रश्न था, लेकिन हमारी यह मुश्किल भी आसान हो गई, जब बिस्वजीत ने स्वतंत्रता दिवस के नज़दीक होने की बात उठा दी। हम सबने मिलकर यही निर्णय लिया कि देश-भक्ति से ओत-प्रोत एक गाना तैयार किया जाए। "उडन-छूं" के खत्म होने की देर थी कि हमारी तिकड़ी "हिन्दोस्तां" की ओर चल पड़ी। मैंने कुछ महिनों पहले दो-चार देश-भक्ति गानों की धुन बनाई थी, लेकिन वे गाने धुन तक हीं सीमित थे। जब "हिन्दोस्तां" की बात चली तो मैंने उन्हीं में से एक धुन विश्व दीपक के पास भेज दी। कम्पोजिशन और अरेंज़मेंट हो जाने के बाद बिस्वजीत भाई गाने का हिस्सा बन गए। जिस वक्त गाना तैयार हुआ, उस वक्त बिस्वजीत भारत आए हुए थे, इसलिए हमें डर था कि यह गाना १५ अगस्त से पहले हो पाएगा या नहीं। लेकिन मैं बिस्वजीत की तारीफ़ करूँगा जो भारत से लौटने के बाद बड़े हीं कम वक़्त में उन्होंने गाना रिकार्ड कर लिया। अभी तक मैंने बिस्वजीत और विश्व दीपक के साथ कई सारे गाने किये हैं, मेरा अनुभव इनके साथ बहुत हीं अच्छा रहा है, इसलिए उम्मीद करता हूँ कि आगे भी हमारी यह तिकड़ी कायम रहेगी और इसी तरह नए-नए गानों पर काम करती रहेगी।

विश्व दीपक:अब इसे विडंबना कहिए या फिर हमारा दुर्भाग्य कि हमारी देश-भक्ति साल के बस दो या तीन दिनों के आसपास हीं सिमट कर रह गई है। १५ अगस्त पास हो या २६ जनवरी आने वाली हो, तो यकायक लोगों को हिन्दुस्तान की याद हो जाती है। बातों में कहीं से छुपते-छुपाते देश-प्रेम के दो बोल उभर आते हैं या फिर देश के लिए कोई चिंता हीं ज़ाहिर कर दी जाती है। जहाँ हमें साल के ३६५ दिन हिन्द का ख्याल रखना चाहिए था, वहाँ बस दो-तीन दिन यह जोश-ओ-जुनून देखकर बुरा लगता है। अगर हम इस स्थिति को सुधारना चाहते हैं और चाहते हैं कि लोग अपने देश को पूरी तरह से न भूल जाएँ तो हमें अपने भाईयों को यह याद दिलाना होगा कि यह हिन्द क्या है, क्या था, क्या हो सकता है और क्या कर सकता है। बस यही प्रयास लेकर हम इस गाने के साथ हाज़िर हुए हैं.. गाना बनाने का विचार कहाँ से आया? तो "उड़न छूं" की सफ़लता के बाद बिस्वजीत भाई उसी जोश को दुहराना चाहते थे। उन्होंने हीं सुझाया कि एक देशभक्ति गाना किया जाए। सुभोजित ने अपनी तिजोड़ी से एक धुन निकालकर मेरे हवाले कर दिया। मैं चाहता था कि मुखरे का पहला शब्द हीं देश को समर्पित हो। मेरा सौभाग्य देखिए कि "हिन्दोस्तां" शब्द ट्युन पर फिट बैठ गया। "हिन्दोस्तां" शब्द इस्तेमाल करने के पीछे मेरा एक और मक़सद था। एक दोस्त के साथ झड़प हो गई थी कि "हिन्दोस्तां" और "हिन्दी" में कोई संबंध है या नहीं। उसने "हिन्दोस्तां" को सांप्रदायिक बनाने के लिए इसे "हिन्दु" से जोड़ दिया और कहा कि अपना देश "भारत" कहा जाना चाहिए। मुझे यह दिखाना था कि चाहे कोई कुछ भी कहे "हिन्दोस्तां" शब्द सांप्रदायिक नहीं और अपने देश को इस नाम से पुकारने में कोई बुराई नहीं। बस इसी वज़ह से मैंने गाने में अपने देश को "हिन्दोस्तां" से संबोधित किया है.. हाँ अंतरा में एक जगह भारत भी है.. और वह इसलिए कि मुझे अपने देश के हर नाम से प्यार है। आपको भी होगा.. है ना?


बिस्वजीत
बिस्वजीत युग्म पर पिछले 1 साल से सक्रिय हैं। हिन्द-युग्म के दूसरे सत्र में इनके 5 गीत (जीत के गीत, मेरे सरकार, ओ साहिबा, रूबरू और वन अर्थ-हमारी एक सभ्यता) ज़ारी हो चुके हैं। ओडिसा की मिट्टी में जन्मे बिस्वजीत शौकिया तौर पर गाने में दिलचस्पी रखते हैं। वर्तमान में लंदन (यूके) में सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी कर रहे हैं। इनका एक और गीत जो माँ को समर्पित है, उसे हमने विश्व माँ दिवस पर रीलिज किया था।

सुभोजित
संगीतकार सुभोजित स्नातक के प्रथम वर्ष के छात्र हैं, युग्म के दूसरे सत्र में इनका धमाकेदार आगमन हुआ था हिट गीत "आवारा दिल" के साथ, जब मात्र १८ वर्षीय सुभोजित ने अपने उत्कृष्ट संगीत संयोजन से संबको हैरान कर दिया था. उसके बाद "ओ साहिबा" भी आया इनका और बिस्वजीत के साथ ही "मेरे सरकार" वर्ष २००९ में दूसरा सबसे लोकप्रिय गीत बना. अपनी बारहवीं की परीक्षाओं के बाद कोलकत्ता का ये हुनरमंद संगीतकार
तीसरे सत्र में उड़न छूं के साथ लौटा। विश्व दीपक के लिखे और बिस्वजीत के गाए उस गीत को भी खूब पसंद किया गया था।

विश्व दीपक 'तन्हा'
विश्व दीपक हिन्द-युग्म की शुरूआत से ही हिन्द-युग्म से जुड़े हैं। आई आई टी, खड़गपुर से कम्प्यूटर साइंस में बी॰टेक॰ विश्व दीपक इन दिनों पुणे स्थित एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर अपनी सेवाएँ दे रहे हैं। अपनी विशेष कहन शैली के लिए हिन्द-युग्म के कविताप्रेमियों के बीच लोकप्रिय विश्व दीपक आवाज़ का चर्चित स्तम्भ 'महफिल-ए-ग़ज़ल' के स्तम्भकार हैं। विश्व दीपक ने दूसरे संगीतबद्ध सत्र में दो गीतों की रचना की। इसके अलावा दुनिया भर की माँओं के लिए एक गीत को लिखा जो काफी पसंद किया गया।

Song - Hindostaan
Voice - Biswajith Nanda
Music - Subhojit
Lyrics - Vishwa Deepak
Graphics - Prashen's media


Song # 16, Season # 03, All rights reserved with the artists and Hind Yugm

इस गीत का प्लेयर फेसबुक/ऑरकुट/ब्लॉग/वेबसाइट पर लगाइए

Comments

जय हिन्दी
अच्छी प्रस्तुती के लिये आपका आभार


खुशखबरी

हिन्दी ब्लाँग जगत के लिये ब्लाँग संकलक चिट्ठाप्रहरी को शुरु कर दिया गया है । आप अपने ब्लाँग को चिट्ठाप्रहरी मे जोङकर एक सच्चे प्रहरी बनेँ , कृपया यहाँ एक चटका लगाकर देखेँ>>
M VERMA said…
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
सुमधुर संगीत
SambitMusic said…
Gud an abstract composition.......very unconventional melody......
देश को भरस्ताचारियो से बाचने का एक अच्छा प्रयास है| जय हिंद |
Anonymous said…
Biswajit Bhai, aap bahut achha gaaye ho. Maza aagaya sach mein.

-- arjun
Anonymous said…
Ek cheez kahna bhul gaya ki composition aur lyrics dono hi zabardast hai. jai hind.

BISWAJIT BHAI HAPPY BIRTHDAY.

-- arjun
RAJ SINH said…
कमाल भाई कमाल ही कर दिया .
जब तक हमारे युवाओं में ऐसे ज़ज्बे रहेंगे ,ऐसे गीत रचे जायेंगे तब तक ,भारत, हिंदुस्तान ,इंडिया ,आर्यावर्त या माँ का जो भी नाम लिया जाये , आसमानों की ऊँचाई पायेगा .

विश्व दीपक की रचना ,सुभोजित के संगीत और बिश्वजीत के स्वर नायाब हैं .

और विश्वजीत , जिओ हजारों साल और ऐसे ही बने रहो बेमिसाल .
स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!
Anonymous said…
bahut hi sundar geet ! composition, lyrics aur singing sabhi sundar hai ... khaas kar main Subhojit ke orchestration ki daad denaa chahoongi .. bahut mature lagaa !
team ko badhaaiyaan !
- Kuhoo
Subhojit said…
Thanks Kuhoo
Nalini said…
aap sabhi ko swatantrata divas ki hardik subh kaamnayen. Bahut sunder rachna, bahut achhi singing aur music. Badhaai.
Biswajeet said…
Aap sabhi ko swatantrata divas ki hardik subh kaamnayen. Mujhe Khushi hai ki hara ye geet aap sabhi ko pasand aa raha hai. :). Dhanyavaad.
Chandni said…
This song can be heard multiple times. Superb creation. :)
BindooL said…
Superb

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट