ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 463/2010/163
'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में आप सभी का एक बार फिर हार्दिक स्वागत है। इन दिनों इस स्तंभ में जारी है गीतकार व शायर गुलज़ार साहब के लिखे गीतों पर आधारित लघु शृंखला 'मुसाफ़िर हूँ यारों'। जिस तरह से मुसाफ़िर निरंतर चलता जाता है, बस चलता ही जाता है, ठीक उसी तरह से गुलज़ार साहब के गानें भी चलते चले जा रहे हैं। ना केवल उनके पुराने गानें, जो उन्होंने ६०, ७० और ८० के दशकों में लिखे थे, वो आज भी बड़े चाव से सुनें जाते हैं, बल्कि बदलते वक़्त के साथ साथ हर दौर में उन्होंने ज़माने की रुचि का नब्ज़ सही सही पकड़ा, और आज भी "दिल तो बच्चा है जी", "इब्न-ए-बतुता" और "पहली बार मोहब्बत की है" जैसे गानों के ज़रिये आज की पीढ़ी के दिनों पर राज कर रहे हैं। हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में वो जिस तरह की हैसियत रखते हैं, शायद ही किसी और गीतकार, शायर और फ़िल्मकार ने एक साथ रखा होगा। आइए 'मुसाफ़िर हूँ यारों' शृंखला की तीसरी कड़ी में आज सुनें लता मंगेशकर की आवाज़ में फ़िल्म 'पलकों की छाँव में' से "घुंघटा गिरा है ज़रा घुंघटा उठा दे रे, कोई मेरे माथे की बिंदिया सजा दे रे"। फ़िल्म में संगीत लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का था। १९७७ की इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे राजेश खन्ना, हेमा मालिनी, असरानी, फ़रीदा जलाल, कन्हैयालाल और लीला मिश्रा प्रमुख। कल के फ़िल्म 'सितारा' की तरह इस फ़िल्म को भी मेरज ने ही निर्देशित किया था। 'पलकों की छाँव में' की कहानी गुलज़ार साहब ने ख़ुद लिखी थी। अब क्योंकि गुलज़ार साहब पर ही शृंखला चल रही है और उन्ही की लिखी कहानी भी है, तो क्यों ना इस फ़िल्म की थोड़ी सी भूमिका आपको दे दी जाए! रवि (राजेश खन्ना) स्नातक बनने के बाद नौकरी ना मिलने पर एक दूर दराज़ के गाँव में डाकिये की नौकरी लेकर आ जाता है। यहाँ कई अलग अलग तरह के लोगों से उसकी मुलाक़ात होती है। यहीं उसे मोहिनी (हेमा मालिनी) भी मिलती है जिसके साथ उसकी दोस्ती तो होती है, लेकिन रवि इस रिश्ते कोई कुछ हद आगे तक ले जाने की बात सोचता है मन ही मन। और तभी उसे पता चलता है कि मोहिनी दरअसल किसी और से प्यार करती है। आर्मी का कोई जवान जो एक बार उस गाँव में ट्रेनिंग के लिए आया था। रवि मोहिनी और उसके प्रेमी को मिलाने की ठान लेता है, लेकिन बदक़िस्मती से रवि ही उस अर्मी जवान के शहीद हो जाने की ख़बर ले आता है। इस फ़िल्म की कहानी और पार्श्व कुछ हद तक हमें फ़िल्म 'ख़ुशबू' की याद भी दिला जाती है।
दोस्तों, इससे पहले कि आप इस गीत का आनंद लें, आज लता जी की तारीफ़ में कुछ वो बातें हो जाए जो गुलज़ार साहब ने कभी कहे थे विविध भारती पर। "लता जी के बारे में मैं कुछ कहना चाहता हूँ जो कभी किसी से आज तक नहीं कहा। लता जी के लिए मेरे दिल में बड़ी श्रद्धा है, कई सदियों में ऐसी आवाज़ कभी पैदा होती है। आगे आने वाली सदियों के लिए नहीं सोचता, वो उनकी आवाज़ को संभाल लेंगे, अफ़सोस तो उन सभी पर है जो उनकी आवाज़ सुने बग़ैर ही इस दुनिया से गुज़र गए"। दोस्तों, कितनी सच्चाई है गुलज़ार के इन शब्दों में! कितनी नीरस और बेजान रही होगी उन लोगों की ज़िंदगी जो लता जी की आवाज़ नहीं सुन पाए। ख़ैर, आज के गीत की बात करें तो लोक शैली में पिरोया हुआ गाना है। इस गीत में भी गुलज़ार साहब का यूनिक स्टाइल साफ़ झलकता है। आँखों में रात का काजल लगाना, आँगन में ठण्डे सवेरे बिछा देना, पैरों में मेहन्दी की अगन लगा देना जैसी तुलनाएँ व उपमाएँ एक वही तो देते आये हैं। अंतिम अंतरे में कितनी ख़ूबसूरती से वो लिखते हैं कि ना चिट्ठी आई ना संदेसा आया, कोई कम से कम झूट-मूट ही दरवाज़े की किवाडिया हिला दे ताकि किसी के आने की आस जगे! तो आइए सुना जाए आज का यह गीत।
क्या आप जानते हैं...
कि गुलज़ार साहब को ५ बार राष्ट्रीय पुरस्कार और १९ बार फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार से नवाज़ा गया है। इन १९ फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों में ९ पुरस्कार बतौर गीतकार उन्हें दिया गया जो कि किसी भी गीतकार के लिए सर्वाधिक है।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. इस गीत में किस गायिका ने रफ़ी साहब के साथ आवाज़ मिलायी है - ३ अंक.
२. सुरेन्द्र मोहन निर्देशित इस फिल्म के नाम की एक मशहूर फिल्म पहले भी बन चुकी है जिसमें नूतन ने अभिनय किया था, फिल्म का नाम बताएं - १ अंक.
३. एक अंतरे की पहली पंक्ति में शब्द है "वादा". संगीतकार बताएं - २ अंक.
४. इस फिल्म के नायक कौन है - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
किशोर जी ३ अंक आपके बहुत बधाई. नवीन जी प्रतिभा जी और वाणी जी सही जवाब आप सब के. कुछ क्रेडिट इंदु जी को भी अवश्य दें जिन्होंने इटें अनोखे अंदाज़ में हिंट दिए. हमारे देसी धुरंधर सब कहाँ गायब हैं ?
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में आप सभी का एक बार फिर हार्दिक स्वागत है। इन दिनों इस स्तंभ में जारी है गीतकार व शायर गुलज़ार साहब के लिखे गीतों पर आधारित लघु शृंखला 'मुसाफ़िर हूँ यारों'। जिस तरह से मुसाफ़िर निरंतर चलता जाता है, बस चलता ही जाता है, ठीक उसी तरह से गुलज़ार साहब के गानें भी चलते चले जा रहे हैं। ना केवल उनके पुराने गानें, जो उन्होंने ६०, ७० और ८० के दशकों में लिखे थे, वो आज भी बड़े चाव से सुनें जाते हैं, बल्कि बदलते वक़्त के साथ साथ हर दौर में उन्होंने ज़माने की रुचि का नब्ज़ सही सही पकड़ा, और आज भी "दिल तो बच्चा है जी", "इब्न-ए-बतुता" और "पहली बार मोहब्बत की है" जैसे गानों के ज़रिये आज की पीढ़ी के दिनों पर राज कर रहे हैं। हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में वो जिस तरह की हैसियत रखते हैं, शायद ही किसी और गीतकार, शायर और फ़िल्मकार ने एक साथ रखा होगा। आइए 'मुसाफ़िर हूँ यारों' शृंखला की तीसरी कड़ी में आज सुनें लता मंगेशकर की आवाज़ में फ़िल्म 'पलकों की छाँव में' से "घुंघटा गिरा है ज़रा घुंघटा उठा दे रे, कोई मेरे माथे की बिंदिया सजा दे रे"। फ़िल्म में संगीत लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का था। १९७७ की इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे राजेश खन्ना, हेमा मालिनी, असरानी, फ़रीदा जलाल, कन्हैयालाल और लीला मिश्रा प्रमुख। कल के फ़िल्म 'सितारा' की तरह इस फ़िल्म को भी मेरज ने ही निर्देशित किया था। 'पलकों की छाँव में' की कहानी गुलज़ार साहब ने ख़ुद लिखी थी। अब क्योंकि गुलज़ार साहब पर ही शृंखला चल रही है और उन्ही की लिखी कहानी भी है, तो क्यों ना इस फ़िल्म की थोड़ी सी भूमिका आपको दे दी जाए! रवि (राजेश खन्ना) स्नातक बनने के बाद नौकरी ना मिलने पर एक दूर दराज़ के गाँव में डाकिये की नौकरी लेकर आ जाता है। यहाँ कई अलग अलग तरह के लोगों से उसकी मुलाक़ात होती है। यहीं उसे मोहिनी (हेमा मालिनी) भी मिलती है जिसके साथ उसकी दोस्ती तो होती है, लेकिन रवि इस रिश्ते कोई कुछ हद आगे तक ले जाने की बात सोचता है मन ही मन। और तभी उसे पता चलता है कि मोहिनी दरअसल किसी और से प्यार करती है। आर्मी का कोई जवान जो एक बार उस गाँव में ट्रेनिंग के लिए आया था। रवि मोहिनी और उसके प्रेमी को मिलाने की ठान लेता है, लेकिन बदक़िस्मती से रवि ही उस अर्मी जवान के शहीद हो जाने की ख़बर ले आता है। इस फ़िल्म की कहानी और पार्श्व कुछ हद तक हमें फ़िल्म 'ख़ुशबू' की याद भी दिला जाती है।
दोस्तों, इससे पहले कि आप इस गीत का आनंद लें, आज लता जी की तारीफ़ में कुछ वो बातें हो जाए जो गुलज़ार साहब ने कभी कहे थे विविध भारती पर। "लता जी के बारे में मैं कुछ कहना चाहता हूँ जो कभी किसी से आज तक नहीं कहा। लता जी के लिए मेरे दिल में बड़ी श्रद्धा है, कई सदियों में ऐसी आवाज़ कभी पैदा होती है। आगे आने वाली सदियों के लिए नहीं सोचता, वो उनकी आवाज़ को संभाल लेंगे, अफ़सोस तो उन सभी पर है जो उनकी आवाज़ सुने बग़ैर ही इस दुनिया से गुज़र गए"। दोस्तों, कितनी सच्चाई है गुलज़ार के इन शब्दों में! कितनी नीरस और बेजान रही होगी उन लोगों की ज़िंदगी जो लता जी की आवाज़ नहीं सुन पाए। ख़ैर, आज के गीत की बात करें तो लोक शैली में पिरोया हुआ गाना है। इस गीत में भी गुलज़ार साहब का यूनिक स्टाइल साफ़ झलकता है। आँखों में रात का काजल लगाना, आँगन में ठण्डे सवेरे बिछा देना, पैरों में मेहन्दी की अगन लगा देना जैसी तुलनाएँ व उपमाएँ एक वही तो देते आये हैं। अंतिम अंतरे में कितनी ख़ूबसूरती से वो लिखते हैं कि ना चिट्ठी आई ना संदेसा आया, कोई कम से कम झूट-मूट ही दरवाज़े की किवाडिया हिला दे ताकि किसी के आने की आस जगे! तो आइए सुना जाए आज का यह गीत।
क्या आप जानते हैं...
कि गुलज़ार साहब को ५ बार राष्ट्रीय पुरस्कार और १९ बार फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार से नवाज़ा गया है। इन १९ फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों में ९ पुरस्कार बतौर गीतकार उन्हें दिया गया जो कि किसी भी गीतकार के लिए सर्वाधिक है।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. इस गीत में किस गायिका ने रफ़ी साहब के साथ आवाज़ मिलायी है - ३ अंक.
२. सुरेन्द्र मोहन निर्देशित इस फिल्म के नाम की एक मशहूर फिल्म पहले भी बन चुकी है जिसमें नूतन ने अभिनय किया था, फिल्म का नाम बताएं - १ अंक.
३. एक अंतरे की पहली पंक्ति में शब्द है "वादा". संगीतकार बताएं - २ अंक.
४. इस फिल्म के नायक कौन है - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
किशोर जी ३ अंक आपके बहुत बधाई. नवीन जी प्रतिभा जी और वाणी जी सही जवाब आप सब के. कुछ क्रेडिट इंदु जी को भी अवश्य दें जिन्होंने इटें अनोखे अंदाज़ में हिंट दिए. हमारे देसी धुरंधर सब कहाँ गायब हैं ?
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
Kishore S.
Canada
Naveen Prasad
Uttranchal, Foreign Worker in Canada
Pratibha K-S.
Canada
हा हा हा
शानदार प्ले था. जिसका निर्देशन भी मेरा था और लिखा भी मैंने. मैन रोल भी करना पड़ा.जिसे तैयार किया एन मौके पर वो इतनी नर्वस हो गई कि स्टेज पर आने से ही इनकार कर दिया.
पर....पब्लिक को हँसा हँसा कर लोट पोट कर दिया.आज फिर क्लब में प्रोग्राम था.देश-प्रेम भरा गीत गाना था ....मैंने कहा -'देश को एक तरफ कर दो भाई!छब्बीस जनवरी और पन्द्रह अगस्त को याद ही याद आती है इसकी सबको?'
प्रेम गीत सुना दिया.
हा हा हा
खरा है दर्द का रिश्ता तो फिर जुदाई क्या जुदा तो होते हैं वो खोट जिनकी चाह में है
मेरा तो जो भी कदम है वो तेरी राह में है कि तू कहीं भी रहे,तू मेरी निगाह में है.'
हा हा हा
.........और यही आप सबके लिए कहूँगी.आ पाऊँ ना आ पाऊँ,पर...आप सबको प्यार करती हूं.सच्ची क्योंकि
ऐसिच हूं मैं
मेरा तो जो भी कदम है वो तेरी राह में है कि तू कहीं भी रहे,तू मेरी निगाह में
kyaa kahuein....
बाबा! तुम्हे यहाँ देख कर अच्छा लगा.
कुछ दिन से बराबर तुम्हे याद कर ही रही थी. जब कोई दिखता नही तो बस एक ही गन्दा ख़याल दिमाग में आता है-'क्या हुआ? कहीं...???'
शरद भैया बीमार पड गए इसलिए नही आ रहे थे....बस ऐसे ही विचार मेरे दिमाग में पहले आते हैं.छिः बड़ी गन्दी हूं मैं....
ईश्वर आप सबको सदा खुश और स्वस्थ रखे.
@शरदजी
अब कैसे हैं आप? अपना ध्यान रखियेगा.
जब भी ये दिल उदास होता है जाने कौन आस पास होता है...
जय राम जी की इंदु मैम...
क्या दुखती रग पकड़ी है आपने...!!