ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 460/2010/160
ये महकती ग़ज़लें इन दिनों आप सुन रहे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर लघु शृंखला 'सेहरा में रात फूलों की' के तहत। 'सेहरा में रात फूलों की, जैसा कि आप में से बहुतों को मालूम ही होगा मशहूर शायर मख़्दूम महिउद्दिन की एक मशहूर ग़ज़ल के एक शेर का हिस्सा है, जिसे हमने इस शृंखला के शीर्षक के लिए चुना। क्यों चुना, शायद यह हमें अब बताने की ज़रूरत नहीं। ८० के दशक के संगीत का जो चलन था, उस लिहाज़ से ये ग़ज़लें सेहरा में फूलों भरी रात की तरह ही तो हैं। ख़ैर, आज इस शृंखला की अंतिम कड़ी में मख़्दूम के इसी ग़ज़ल की बारी, जिसे फ़िल्म 'बाज़ार' के लिए स्वरबद्ध किया था ख़य्याम साहब ने। और यह ख़य्याम साहब के संगीत में इस शृंखला की चौथी ग़ज़ल भी है, जैसा कि हमने आप से वादा किया था। फ़िल्म 'बाज़ार' के सभी ग़ज़लें कंटेम्पोररी शायरों की ग़ज़लें हैं। ऐसा कैसे संभव हुआ आइए जान लेते हैं ख़य्याम साहब से जो उन्होने विविध भारती के 'संगीत सरिता' कार्यक्रम में कहे थे। "वो हमारी फ़िल्म आपको याद होगी, 'बाज़ार'। उसमें ये सागर सरहदी साहब हमारे मित्र हैं, दोस्त हैं, तो ऐसा सोचा सागर साहब ने कि 'ख़य्याम साहब, आजकल का जो संगीत है, उस वक़्त भी, 'बाज़ार' के वक़्त भी, हल्के फुल्के गीत चलते थे। तो उन्होने कहा कि कुछ अच्छा आला काम किया जाए, अनोखी बात की जाए। तो सोचा गया कि बड़े शायरों के कलाम इस्तेमाल किए जाएँ फ़िल्म संगीत में। तो मैं दाद दूँगा कि प्रोड्युसर डिरेक्टर चाहते हैं कि ऊँचा काम हो। हो सकता है कि शायद लोगों की समझ में ना आए। लेकिन उन्होने कहा कि आप ने बिलकुल ठीक सोचा है। तो जैसे मैं आपको बताऊँ कि मीर तक़ी मीर ("दिखाई दिए युं के बेख़ुद किया"), मिर्ज़ा शौक़ ("देख लो आज हमको जी भर के"), बशीर नवाज़ ("करोगे याद तो हर बात याद आएगी"), इन सब को इस्तेमाल किया। फिर मख़्दूम मोहिउद्दिन, "फिर छिड़ी रात बात फूलों की", यह उनकी बहुत मशहूर ग़ज़ल है, और मख़्दूम साहब के बारे में कहूँगा कि बहुत ही रोमांटिक शायर हुए हैं। और हमारे हैदराबाद से ताल्लुख़, और बहुत रेवोल्युशनरी शायर। जी हाँ, बिलकुल, अपने राइटिंग में भी, और अपने किरदार में भी। वो एक रेवोल्युशनरी, वो चाहते थे कि हर आम आदमी को उसका हक़ मिले।" तो दोस्तों, इसी ग़ज़ल को आज हम आपको सुनवा रहे हैं जिसे युगल आवाज़ें दी हैं लता जी और मशहूर ग़ज़ल गायक तलत अज़ीज़ ने। फूलों पर लिखी गई ग़ज़लों में मेरे ख़याल से इससे ख़ूबसूरत ग़ज़ल कोई और नहीं।
फ़िल्म 'बाज़ार' की तमाम जानकारियाँ हमने आपको 'दस गीत समानांतर सिनेमा के' शृंखला में दी थी और 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की रवायत है कि यहाँ हर अंक नया होता है, किसी दोहराव की कम से कम अब तक कोई गुंजाइश नहीं हुई है। तो ऐसे में यहाँ आपको इसी ग़ज़ल के बारे में कुछ और बातें बता दी जाए। ये बातें कही है ख़ुद तलत अज़ीज़ साहब ने फ़ौजी जवानों के लिए प्रसारित 'विशेष जयमाला' कार्यक्रम में। "ख़य्याम साहब का नाम तो आपने सुना ही होगा। बहुत ही बड़े संगीतकार हैं। एक बार उन्होने मुझे मुंबई के एक प्राइवेट महफ़िल में गाते हुए सुना और उन्होने कहा कि मैं आपको जल्द से जल्द फ़िल्म में गवाउँगा। मैंने सोचा कि ऐसे ही उन्होने कह दिया होगा, कहाँ मुझे फ़िल्म में गाने देंगे! लेकिन उन्होने मुझे जल्द ही बुलाया और मैंने उनके लिए गाया और वो गीत काफ़ी मक़बूल हुआ। लेकिन अब मैं आपको वो गीत नहीं सुनवाउँगा। मैं आपको अब फ़िल्म 'बाज़ार' का वो डुएट ग़ज़ल सुनवाउँगा जिसे मैंने लता जी के साथ गाया था। मुझे याद है जब मैं इस गाने की रेकॊर्डिंग् के लिए स्टुडियो पहुँचा तो लता जी वहाँ ऒलरेडी पहुँच चुकी थीं। मैं इतना नर्वस हो गया कि पूछिए मत। उनके साथ यह मेरा पहला गीत था। मैंने उनसे कहा कि लता जी, अगर मुझसे कोई ग़लती हो जाए तो माफ़ कर दीजिएगा। लता जी ने कहा कि क्या बात कर रहे हैं, आप तो बहुत अच्छा गाते हैं। मैंने पूछा कि आपने मुझे सुना है, तो वो बोलीं कि हाँ, मैंने आपकी गाई हुई ग़ज़ल सुनी है। तब जाकर मुझमें कॊन्फ़िडेन्स आया और यह ग़ज़ल रेकॊर्ड हुआ।" तो दोस्तों, आपको यह बताते हुए कि इस ग़ज़ल और इस अंक के साथ इस लघु शॄंखला का समापन हो रहा है, आपको यह शृंखला कैसी लगी हमें ज़रूर लिखिएगा oig@hindyugm.com के पते पर। रविवार से एक नई लघु शृंखला के साथ हम फिर से हाज़िर होंगे, तब तक के लिए इजाज़त दीजिए, और आप सुनिए इस महकती हुई फूलों भरी ग़ज़ल को जिसके शेर हम नीचे लिख रहे हैं। चलते चलते शायराना अंदाज़ में यही कहते चलेंगे कि "अब तो जाते हैं मयक़दे से मीर, फिर मिलेंगे गर ख़ुदा लाया तो", ख़ुदा हाफ़िज़!
फिर छिड़ी रात, बात फूलों की,
रात है या बारात फूलों की।
फूल के हार, फूल के गजरे,
शाम फूलों की, रात फूलों की।
आपका साथ, साथ फूलों का,
आपकी बात, बात फूलों की।
फूल खिलते रहेंगे दुनिया में,
रोज़ निकलेगी बात फूलों की।
नज़रें मिलती हैं जाम मिलते हैं,
मिल रही हैं हयात फूलों की।
ये महकती हुई ग़ज़ल मख़्दूम,
जैसे सेहरा में रात फूलों की।
क्या आप जानते हैं...
कि तलत अज़ीज़ के सब से पसंदीदा संगीतकार हैं मदन मोहन। उन्होने यह 'जयमाला' कार्यक्रम ना केवल ये बात बताई बल्कि उनके स्वरबद्ध जिन दो गीतों को उसमें शामिल किया वो थे "वो भूली दास्ताँ लो फिर याद आ गई" (संजोग) और "जो हमने दास्ताँ अपनी सुनाई आप क्यों रोये" (वो कौन थी)।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. जिस गीतकार पर हमारी आगामी शृंखला है उनका जन्मदिन इसी माह में है, नाम बताएं - १ अंक.
२. आजादी से पूर्व घटी एक दुखद एतिहासिक घटना पर है फिल्म का शीर्षक, नाम बताएं- २ अंक.
३. आर डी बर्मन के संगीतबद्ध किये इस गीत में किस गायक की प्रमुख आवाज़ है - २ अंक.
४. मुखड़े में शब्द है "आफताब", इस फिल्म में गीतकार ने पठकथा और संवाद भी लिखे थे, निर्देशक बताएं- ३ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
इंदु जी, शरद जी, प्रतिभा जी और किशोर जी, सभी को बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ये महकती ग़ज़लें इन दिनों आप सुन रहे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर लघु शृंखला 'सेहरा में रात फूलों की' के तहत। 'सेहरा में रात फूलों की, जैसा कि आप में से बहुतों को मालूम ही होगा मशहूर शायर मख़्दूम महिउद्दिन की एक मशहूर ग़ज़ल के एक शेर का हिस्सा है, जिसे हमने इस शृंखला के शीर्षक के लिए चुना। क्यों चुना, शायद यह हमें अब बताने की ज़रूरत नहीं। ८० के दशक के संगीत का जो चलन था, उस लिहाज़ से ये ग़ज़लें सेहरा में फूलों भरी रात की तरह ही तो हैं। ख़ैर, आज इस शृंखला की अंतिम कड़ी में मख़्दूम के इसी ग़ज़ल की बारी, जिसे फ़िल्म 'बाज़ार' के लिए स्वरबद्ध किया था ख़य्याम साहब ने। और यह ख़य्याम साहब के संगीत में इस शृंखला की चौथी ग़ज़ल भी है, जैसा कि हमने आप से वादा किया था। फ़िल्म 'बाज़ार' के सभी ग़ज़लें कंटेम्पोररी शायरों की ग़ज़लें हैं। ऐसा कैसे संभव हुआ आइए जान लेते हैं ख़य्याम साहब से जो उन्होने विविध भारती के 'संगीत सरिता' कार्यक्रम में कहे थे। "वो हमारी फ़िल्म आपको याद होगी, 'बाज़ार'। उसमें ये सागर सरहदी साहब हमारे मित्र हैं, दोस्त हैं, तो ऐसा सोचा सागर साहब ने कि 'ख़य्याम साहब, आजकल का जो संगीत है, उस वक़्त भी, 'बाज़ार' के वक़्त भी, हल्के फुल्के गीत चलते थे। तो उन्होने कहा कि कुछ अच्छा आला काम किया जाए, अनोखी बात की जाए। तो सोचा गया कि बड़े शायरों के कलाम इस्तेमाल किए जाएँ फ़िल्म संगीत में। तो मैं दाद दूँगा कि प्रोड्युसर डिरेक्टर चाहते हैं कि ऊँचा काम हो। हो सकता है कि शायद लोगों की समझ में ना आए। लेकिन उन्होने कहा कि आप ने बिलकुल ठीक सोचा है। तो जैसे मैं आपको बताऊँ कि मीर तक़ी मीर ("दिखाई दिए युं के बेख़ुद किया"), मिर्ज़ा शौक़ ("देख लो आज हमको जी भर के"), बशीर नवाज़ ("करोगे याद तो हर बात याद आएगी"), इन सब को इस्तेमाल किया। फिर मख़्दूम मोहिउद्दिन, "फिर छिड़ी रात बात फूलों की", यह उनकी बहुत मशहूर ग़ज़ल है, और मख़्दूम साहब के बारे में कहूँगा कि बहुत ही रोमांटिक शायर हुए हैं। और हमारे हैदराबाद से ताल्लुख़, और बहुत रेवोल्युशनरी शायर। जी हाँ, बिलकुल, अपने राइटिंग में भी, और अपने किरदार में भी। वो एक रेवोल्युशनरी, वो चाहते थे कि हर आम आदमी को उसका हक़ मिले।" तो दोस्तों, इसी ग़ज़ल को आज हम आपको सुनवा रहे हैं जिसे युगल आवाज़ें दी हैं लता जी और मशहूर ग़ज़ल गायक तलत अज़ीज़ ने। फूलों पर लिखी गई ग़ज़लों में मेरे ख़याल से इससे ख़ूबसूरत ग़ज़ल कोई और नहीं।
फ़िल्म 'बाज़ार' की तमाम जानकारियाँ हमने आपको 'दस गीत समानांतर सिनेमा के' शृंखला में दी थी और 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की रवायत है कि यहाँ हर अंक नया होता है, किसी दोहराव की कम से कम अब तक कोई गुंजाइश नहीं हुई है। तो ऐसे में यहाँ आपको इसी ग़ज़ल के बारे में कुछ और बातें बता दी जाए। ये बातें कही है ख़ुद तलत अज़ीज़ साहब ने फ़ौजी जवानों के लिए प्रसारित 'विशेष जयमाला' कार्यक्रम में। "ख़य्याम साहब का नाम तो आपने सुना ही होगा। बहुत ही बड़े संगीतकार हैं। एक बार उन्होने मुझे मुंबई के एक प्राइवेट महफ़िल में गाते हुए सुना और उन्होने कहा कि मैं आपको जल्द से जल्द फ़िल्म में गवाउँगा। मैंने सोचा कि ऐसे ही उन्होने कह दिया होगा, कहाँ मुझे फ़िल्म में गाने देंगे! लेकिन उन्होने मुझे जल्द ही बुलाया और मैंने उनके लिए गाया और वो गीत काफ़ी मक़बूल हुआ। लेकिन अब मैं आपको वो गीत नहीं सुनवाउँगा। मैं आपको अब फ़िल्म 'बाज़ार' का वो डुएट ग़ज़ल सुनवाउँगा जिसे मैंने लता जी के साथ गाया था। मुझे याद है जब मैं इस गाने की रेकॊर्डिंग् के लिए स्टुडियो पहुँचा तो लता जी वहाँ ऒलरेडी पहुँच चुकी थीं। मैं इतना नर्वस हो गया कि पूछिए मत। उनके साथ यह मेरा पहला गीत था। मैंने उनसे कहा कि लता जी, अगर मुझसे कोई ग़लती हो जाए तो माफ़ कर दीजिएगा। लता जी ने कहा कि क्या बात कर रहे हैं, आप तो बहुत अच्छा गाते हैं। मैंने पूछा कि आपने मुझे सुना है, तो वो बोलीं कि हाँ, मैंने आपकी गाई हुई ग़ज़ल सुनी है। तब जाकर मुझमें कॊन्फ़िडेन्स आया और यह ग़ज़ल रेकॊर्ड हुआ।" तो दोस्तों, आपको यह बताते हुए कि इस ग़ज़ल और इस अंक के साथ इस लघु शॄंखला का समापन हो रहा है, आपको यह शृंखला कैसी लगी हमें ज़रूर लिखिएगा oig@hindyugm.com के पते पर। रविवार से एक नई लघु शृंखला के साथ हम फिर से हाज़िर होंगे, तब तक के लिए इजाज़त दीजिए, और आप सुनिए इस महकती हुई फूलों भरी ग़ज़ल को जिसके शेर हम नीचे लिख रहे हैं। चलते चलते शायराना अंदाज़ में यही कहते चलेंगे कि "अब तो जाते हैं मयक़दे से मीर, फिर मिलेंगे गर ख़ुदा लाया तो", ख़ुदा हाफ़िज़!
फिर छिड़ी रात, बात फूलों की,
रात है या बारात फूलों की।
फूल के हार, फूल के गजरे,
शाम फूलों की, रात फूलों की।
आपका साथ, साथ फूलों का,
आपकी बात, बात फूलों की।
फूल खिलते रहेंगे दुनिया में,
रोज़ निकलेगी बात फूलों की।
नज़रें मिलती हैं जाम मिलते हैं,
मिल रही हैं हयात फूलों की।
ये महकती हुई ग़ज़ल मख़्दूम,
जैसे सेहरा में रात फूलों की।
क्या आप जानते हैं...
कि तलत अज़ीज़ के सब से पसंदीदा संगीतकार हैं मदन मोहन। उन्होने यह 'जयमाला' कार्यक्रम ना केवल ये बात बताई बल्कि उनके स्वरबद्ध जिन दो गीतों को उसमें शामिल किया वो थे "वो भूली दास्ताँ लो फिर याद आ गई" (संजोग) और "जो हमने दास्ताँ अपनी सुनाई आप क्यों रोये" (वो कौन थी)।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. जिस गीतकार पर हमारी आगामी शृंखला है उनका जन्मदिन इसी माह में है, नाम बताएं - १ अंक.
२. आजादी से पूर्व घटी एक दुखद एतिहासिक घटना पर है फिल्म का शीर्षक, नाम बताएं- २ अंक.
३. आर डी बर्मन के संगीतबद्ध किये इस गीत में किस गायक की प्रमुख आवाज़ है - २ अंक.
४. मुखड़े में शब्द है "आफताब", इस फिल्म में गीतकार ने पठकथा और संवाद भी लिखे थे, निर्देशक बताएं- ३ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
इंदु जी, शरद जी, प्रतिभा जी और किशोर जी, सभी को बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
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pAwAN KuMAR
Pratibha K.
Canada
Kishore
Canada
Naveen Prasad
Dehradun, now working in Canada
नए नए लोग जुड़ते जा रहे हैं,स्वागत.
परिवार बढ़ता जा रहा है.
सुजोयजी,सजीवजी और...सभी को बधाई