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चंदनिया नदिया बीच नहाए, वो शीतल जल में आग लगाए...लोक रंग में रंग ये गीत कलमबद्ध किया राजेंद्र कृष्ण ने

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 208

'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल को आज हम रंग रहे हैं लोक संगीत के रंग से। यह एक ऐसा गीत है जिसे शायद बहुत दिनों से आप ने नहीं सुना होगा, और आप में से बहुत लोग इसे भूल भी गए होंगे। लेकिन कहीं न कहीं हमारी दिल की वादियों में ये भूले बिसरे गानें गूंजते ही रहते हैं और कभी कभार झट से ज़हन में आ जाते हैं, ठीक वैसे ही जैसे इस गीत की याद हमें आज अचानक आयी है। दोस्तों, हेमन्त कुमार की एकल आवाज़ में फ़िल्म 'अंजान' का यह गीत है "चंदनिया नदिया बीच नहाए, वो शीतल जल में आग लगाए, के चंदा देख देख मुस्काए, हो रामा हो"। दोस्तों, यह फ़िल्म १९५६ में आयी थी। इससे पहले कि हम इस फ़िल्म की और बातें करें, मुझे थोड़ा सा संशय है इस 'अंजान' शीर्षक पर बनी फ़िल्मों को लेकर। इस गीत के बारे में खोज बीन करते हुए मुझे एक और फ़िल्म 'अंजान' का पता चला जो उपलब्ध जानकारी के अनुसार १९५२ में प्रदर्शित हुई थी 'सनराइज़ पिक्चर्स' के बैनर तले, जिसके मुख्य कलाकार थे प्रेमनाथ और वैजयनंतीमाला, संगीतकार थे मदन मोहन तथा गीतकार थे क़मर जलालाबादी। अब संशय की बात यह है कि जहाँ तक मुझे मालूम है सेन्सर बोर्ड के नियमानुसार एक शीर्षक पर दो फ़िल्में १० साल के अंतर पर ही बन सकती है। यानी कि अगर १९५२ में 'अंजान' नाम की फ़िल्म बनी है तो १९६२ से पहले इस शीर्षक पर फ़िल्म नहीं बन सकती। तो फिर ४ साल के ही अंतर में, १९५६ में, दूसरी 'अंजान' जैसे बन गई! हो सकता है कि मैं कहीं ग़लत हूँ। तो यह मैं आप पाठकों पर छोड़ता हूँ कि आप भी तफ़तीश कीजिए और 'अंजान' की इस गुत्थी को सुलझाने में हमारी मदद कीजिए। और अब बात करते हैं १९५६ में बनी फ़िल्म 'अंजान' की। इस साल हेमन्त कुमार के संगीत निर्देशन में कुल ८ फ़िल्में आयीं - अंजान, ताज, दुर्गेश नंदिनी, बंधन, अरब का सौदागर, एक ही रास्ता, हमारा वतन, और इंस्पेक्टर। इन ८ फ़िल्मों में से ५ फ़िल्मों में प्रदीप कुमार नायक थे। प्रदीप कुमार और हेमन्त दा के साथ की बात हम पहले भी आप को बता चुके हैं। तो साहब, फ़िल्म 'अंजान' एम. सादिक़ की फ़िल्म थी जिसमें प्रदीप कुमार और वैजयंतीमाला मुख्य भूमिकायों में थे। राजेन्द्र कृष्ण के लिखे और ख़ुद हेमन्त दा के स्वरबद्ध किए और गाए हुए इस गीत में कुछ तो ख़ास बात होगी जिसकी वजह से आज ५३ साल बाद हम इस गीत को याद कर रहे हैं।

गीतकार राजेन्द्र कृष्ण ने ५० के दशक में जिन तीन संगीतकारों के लिए सब से ज़्यादा गानें लिखे थे, उनमें से एक हैं सी. रामचन्द्र, दूसरे हैं मदन मोहन, और तीसरे हैं, जी हाँ, हेमन्त कुमार। आइए दोस्तों आज राजेन्द्र कृष्ण जी की कुछ बातें की जाए। अपने कलम से दिलकश नग़मों को जनम देनेवाले राजेन्द्र कृष्ण का जन्म ६ जून १९१९ को शिमला में हुआ था। बहुत कम उम्र में ही वे मोहित हुए कविताओं से। सन् १९४० तक गुज़ारे के लिए वे शिमला के म्युनिसिपल औफ़िस में नौकरी करते रहे। लेकिन कुछ ही सालों में उन्होने यह नौकरी छोड़ दी और मुंबई का रुख़ किया। एक फ़िल्म लेखक और गीतकार बनने की चाह लेकर उन्होने शुरु किया अपना संघर्ष का दौर। और यह दौर ख़तम हुआ सन् १९४७ में जब उन्होने फ़िल्म 'ज़ंजीर' में अपना पहला फ़िल्मी गीत लिखा। उसी साल उन्होने लिखी फ़िल्म 'जनता' की स्क्रीप्ट। उन्हे पहली कामयाबी मिली १९४८ की फ़िल्म 'आज की रात' से। और सन् १९४९ में संगीतकार श्यामसुंदर के संगीत निर्देशन में फ़िल्म 'लाहोर' में उनके लिखे गीतों ने उनके सामने जैसे सफलता का द्वार खोल दिया। तो दोस्तों, पेश है आज का गीत, जिस टीम में शामिल हैं राजेन्द्र कृष्ण, हेमन्त कुमार और प्रदीप कुमार, सुनिए...



(चन्दनिया नदिया बीच नहाये, ओ शीतल जल में आग लगाये
के चन्दा देख देख मुस्काये, हो रामा, हो रामा हो)-२

(पूछ रही है लहर लहर से, कौन है ये मतवाली)-२
तन की गोरी चंचल छोरी, गेंदे की एक डाली
ओ...ओ...ओ...ओ...
रूप की चढ़ती, धूप सुनहेरा रंग आज बरसाये
हो रामा, हो रामा हो

चन्दनिया नदिया बीच नहाये, ओ शीतल जल में आग लगाये
के चन्दा देख देख मुस्काये, हो रामा हो रामा हो

(परबत परबत घूम के आयी, ये अलबेली धारा)-२
क्या जाने किस आसमान से टूटा है ये तारा
ओ.... ओ.... ओ....
शोला बनके, फूल कंवल का, जल में बहता जाये
हो रामा, हो रामा हो

चन्दनिया नदिया बीच नहाये, ओ शीतल जल में आग लगाये
के चन्दा देख देख मुस्काये, हो रामा, हो रामा हो


और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. इस गीत की अमर गायिका की जयंती है कल.
२. संगीतकार हैं श्याम सुंदर.
३. मुखड़े में शब्द है -"सहारा"

पिछली पहेली का परिणाम -
पराग जी आप एक बार फिर शीर्ष पर हैं अब...३० अंकों के लिए बधाई...

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

अब कुछ पहेली कठिन होती जा रही है देखें किसकी किस्मत बुलन्द है । अमर गायिका मेरा नमन ।
Disha said…
देवता तुम हो मेरा सहारा
बी एस पाबला said…
फिल्म: विलेज़ गर्ल
संगीतकार: श्यामसुंदर
गीतकार: वली साहेब
गायिका: नूरजहां

गीत के बोल:
बैठी हूँ तेरी याद का लेकर के सहारा
आ जाओ के चमके मेरी क़िस्मत का सितारा

दिन रात जला करती हूँ फ़ुर्क़त में तुम्हारी
हर साँस धुआँ बनके निकलता है हमारा
आ जाओ के चमके ...

चुप चाप सहे जाती हूँ मैं दर्द की चोटें
ले ले के जिये जाती हूँ मैं नाम तुम्हारा
आ जाओ के चमके ...

अक्सर मेरी आँखों ने तुझे नीन्द में ढूँडा
उठ उठ के तुझे दिल ने कई बार पुकारा
आ जाओ के चमके ...

बी एस पाबला
दिशा जी ये क्या तुक्का लगाया था
बी एस पाबला said…
Parag said…
पाबला जी को हार्दिक शुभकामनाएं

पराग
Shamikh Faraz said…
अमर गायिका नूरजहाँ को मेरी श्रद्धांजलि.
अजी) गीत सुन कर मस्त हो गये ओर आप की पहेली को भुल गये राम राम
बी एस पाबला जी को बधाई .. जन्‍मदिन पर दिमाग अधिक चलता है .. गाना हमेशा की तरह ही अच्‍छा लगा !!
Manju Gupta said…
पाबलाजी के वीडियो को बधाई और नूरजहाँ को मेरी श्रधाजंली .

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