ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 194
'१० गायक और एक आपकी आशा' की चौथी कड़ी में आज एक कमचर्चित गायक की बारी। ये गायक भी हैं और संगीतकार भी। बद्क़िस्मती से ये ना तो गायक के रूप में मशहूर हो सके और ना ही संगीतकार के रूप में। आशा जी के साथ आज अपनी आवाज़ मिला रहे हैं गायक जगमोहन बक्शी जिन्होने सपन सेनगुप्ता के साथ मिलकर बनाई संगीतकार जोड़ी सपन-जगमोहन की। दोस्तों, १९५४ में एक फ़िल्म आयी थी 'टैक्सी ड्राइवर' जिसमें आशा भोंसले और जगमोहन बक्शी का गाया हुआ एक छेड़-छाड़ भरा युगल गीत था, जो काफ़ी मशहूर भी हुआ था। वही गीत आज यहाँ पेश है। गुरु दत्त की फ़िल्म 'आर पार' कहानी थी एक टैक्सी ड्राइवर कालू की जो अमीर बनने के लिए अंडरवर्ल्ड से जुड़ जाता है। 'आर पार' की सफलता से प्रेरित हो कर नवकेतन फ़िल्म्स के आनंद भाइयों ने 'टैक्सी ड्राइवर' के शीर्षक से ही एक और फ़िल्म बना डालने की ठानी। फ़िल्म को निर्देशित किया चेतन आनंद ने, कहानीकार थे विजय आनंद, और मुख्य भूमिका में थे देव आनद, जिन्होने मंगल, टैक्सी ड्राइवर की भूमिका निभाई। कल्पना कार्तिक उनकी नायिका थीं इस फ़िल्म में। इस फ़िल्म के गीत "जाएँ तो जाएँ कहाँ" के लिए सचिन देव बर्मन को उस साल के सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फ़िल्म-फ़ेयर पुरस्कार मिला था। जहाँ तक इस फ़िल्म में आशा जी के गाए गीतों का सवाल है, यह बताना ज़रूरी है कि यही वह फ़िल्म है जिसमें आशा जी ने पहली बार बर्मन दादा के लिए गाया था। और पहला ही गीत था एक कैब्रे नंबर "जीने दो और जियो"। जगमोहन के साथ उनका गाया प्रस्तुत गीत एक 'रोमांटिक कामेडी नंबर' है। झूठ-मूठ के रूठने मनाने पर बनने वाले गीतों में यह शुरुआती गीतों में से एक है।
गायक जगमोहन बक्शी ने भले ही यह गीत सन् १९५४ में गाया था, सपन सेनगुप्ता के साथ मिल कर सपन-जगमोहन की संगीतकार जोड़ी बनाने के लिए उन्हे करीब करीब १० सालों की प्रतीक्षा करनी पड़ी। सन् १९६३ में बनी फ़िल्म 'बेगाना' से इस जोड़ी का बतौर फ़िल्म संगीतकार पदार्पण हुआ इस उद्योग में। ४५ साल की अवधी में इस जोड़ी ने लगभग ५० फ़िल्मों में संगीत दिया। उनके संगीत की अंतिम फ़िल्म 'अंबर' १९९६ में आयी थी। २६ फ़रबरी १९९९ को हृदय गति रुक जाने की वजह से ६५ वर्ष की आयु में जगमोहब बक्शी का निधन हो गया। सपन जगमोहन का स्वरबद्ध किया फ़िल्म 'दोराहा' का आशा जी का ही गाया हुआ गीत तो आप को याद है न? गीत कुछ इस तरह था "तुम ही रहनूमा हो मेरी ज़िंदगी के"। इसे लिखा था इंदीवर जी ने। यह गीत इंदीवर जी को बहुत पसंद था, तभी तो विविध भारती के जयमाला कार्यक्रम में इसे उन्होने शामिल किया था यह कहते हुए - "हमारी फ़िल्मों में आजकल कैब्रे बहुत आता है। संगीतकार भी लकीर के फ़कीर की तरह उसी तरह का संगीत, वही अन्ग्रेज़ी स्टाइल का डांस और सेक्सी रोमांस ले आते हैं। एक बार मुझे भी कैब्रे गीत लिखने का मौका मिला। अगर मैं कोई साधारण सा गीत लिख देता तो जो हीरोइन है, वो लोगों की नज़र से गिर जाती। तो मैने सोचा, क्यों ना कुछ ऐसा लिखा जाए जिससे हीरोइन हीरोइन ही बनी रहे, लोगों की नज़रों से गिरे नहीं। और मुझे ख़ुशी हुई जब मैने संगीतकार सपन जगमोहन को यह गीत सुनाया, और उन्होने कहा कि वाकई कुछ अलग है। और फिर उन्होने तर्ज़ बनाई, तर्ज़ भी बहुत अच्छी बनाई।" तो दोस्तों, यह तो था जगमोहन बक्शी और आशा जी का साथ जिसमें एक संगीतकार थे और दूसरी गायिका। लेकिन आज का जो हमारा प्रस्तुत गीत है, उसमें दोनों ही गायक का हैसीयत रखते हैं। सुनते हैं साहिर लुधियानवी का लिखा और बर्मन दादा का स्वरबद्ध किया हुआ फ़िल्म 'टैक्सी ड्राइवर' का यह युगल गीत।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. कल के गीत में आशा के साथ होंगे महेंद्र कपूर.
२. चोपडा कैम्प की एक फिल्म का है ये गीत.
३. इस लम्बे गीत में अमर प्रेमियों की दास्तानें है.
पिछली पहेली का परिणाम -
कल की पहेली कुछ मुश्किल थी, मगर इसी कोशिश में हमें मिले एक नए प्रतिभागी...रमन जी दो अंकों से आपका खाता खुला है. आशा है आगे भी आप जम कर मुकाबला करेंगें. मंजू जी आप तो कहीं के कहीं पहुँच जाती हैं :) "दुख यही है, कि मैने हिमाकत कर उनकी नाराज़गी मोल ली थी, जो अभी भी खलती है" दिलीप जी क्या आप आशा जी की बात कर रहे हैं....यदि हाँ तो हम सब के साथ भी बांटिये वो वाकया. शरद जी ऐसे सरप्राईस तो आपको मिलते ही रहेंगे :) रमना जी यदि आप गीत के बोल लिखना चाहें तो हिंदी में लिखा करें...
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
'१० गायक और एक आपकी आशा' की चौथी कड़ी में आज एक कमचर्चित गायक की बारी। ये गायक भी हैं और संगीतकार भी। बद्क़िस्मती से ये ना तो गायक के रूप में मशहूर हो सके और ना ही संगीतकार के रूप में। आशा जी के साथ आज अपनी आवाज़ मिला रहे हैं गायक जगमोहन बक्शी जिन्होने सपन सेनगुप्ता के साथ मिलकर बनाई संगीतकार जोड़ी सपन-जगमोहन की। दोस्तों, १९५४ में एक फ़िल्म आयी थी 'टैक्सी ड्राइवर' जिसमें आशा भोंसले और जगमोहन बक्शी का गाया हुआ एक छेड़-छाड़ भरा युगल गीत था, जो काफ़ी मशहूर भी हुआ था। वही गीत आज यहाँ पेश है। गुरु दत्त की फ़िल्म 'आर पार' कहानी थी एक टैक्सी ड्राइवर कालू की जो अमीर बनने के लिए अंडरवर्ल्ड से जुड़ जाता है। 'आर पार' की सफलता से प्रेरित हो कर नवकेतन फ़िल्म्स के आनंद भाइयों ने 'टैक्सी ड्राइवर' के शीर्षक से ही एक और फ़िल्म बना डालने की ठानी। फ़िल्म को निर्देशित किया चेतन आनंद ने, कहानीकार थे विजय आनंद, और मुख्य भूमिका में थे देव आनद, जिन्होने मंगल, टैक्सी ड्राइवर की भूमिका निभाई। कल्पना कार्तिक उनकी नायिका थीं इस फ़िल्म में। इस फ़िल्म के गीत "जाएँ तो जाएँ कहाँ" के लिए सचिन देव बर्मन को उस साल के सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फ़िल्म-फ़ेयर पुरस्कार मिला था। जहाँ तक इस फ़िल्म में आशा जी के गाए गीतों का सवाल है, यह बताना ज़रूरी है कि यही वह फ़िल्म है जिसमें आशा जी ने पहली बार बर्मन दादा के लिए गाया था। और पहला ही गीत था एक कैब्रे नंबर "जीने दो और जियो"। जगमोहन के साथ उनका गाया प्रस्तुत गीत एक 'रोमांटिक कामेडी नंबर' है। झूठ-मूठ के रूठने मनाने पर बनने वाले गीतों में यह शुरुआती गीतों में से एक है।
गायक जगमोहन बक्शी ने भले ही यह गीत सन् १९५४ में गाया था, सपन सेनगुप्ता के साथ मिल कर सपन-जगमोहन की संगीतकार जोड़ी बनाने के लिए उन्हे करीब करीब १० सालों की प्रतीक्षा करनी पड़ी। सन् १९६३ में बनी फ़िल्म 'बेगाना' से इस जोड़ी का बतौर फ़िल्म संगीतकार पदार्पण हुआ इस उद्योग में। ४५ साल की अवधी में इस जोड़ी ने लगभग ५० फ़िल्मों में संगीत दिया। उनके संगीत की अंतिम फ़िल्म 'अंबर' १९९६ में आयी थी। २६ फ़रबरी १९९९ को हृदय गति रुक जाने की वजह से ६५ वर्ष की आयु में जगमोहब बक्शी का निधन हो गया। सपन जगमोहन का स्वरबद्ध किया फ़िल्म 'दोराहा' का आशा जी का ही गाया हुआ गीत तो आप को याद है न? गीत कुछ इस तरह था "तुम ही रहनूमा हो मेरी ज़िंदगी के"। इसे लिखा था इंदीवर जी ने। यह गीत इंदीवर जी को बहुत पसंद था, तभी तो विविध भारती के जयमाला कार्यक्रम में इसे उन्होने शामिल किया था यह कहते हुए - "हमारी फ़िल्मों में आजकल कैब्रे बहुत आता है। संगीतकार भी लकीर के फ़कीर की तरह उसी तरह का संगीत, वही अन्ग्रेज़ी स्टाइल का डांस और सेक्सी रोमांस ले आते हैं। एक बार मुझे भी कैब्रे गीत लिखने का मौका मिला। अगर मैं कोई साधारण सा गीत लिख देता तो जो हीरोइन है, वो लोगों की नज़र से गिर जाती। तो मैने सोचा, क्यों ना कुछ ऐसा लिखा जाए जिससे हीरोइन हीरोइन ही बनी रहे, लोगों की नज़रों से गिरे नहीं। और मुझे ख़ुशी हुई जब मैने संगीतकार सपन जगमोहन को यह गीत सुनाया, और उन्होने कहा कि वाकई कुछ अलग है। और फिर उन्होने तर्ज़ बनाई, तर्ज़ भी बहुत अच्छी बनाई।" तो दोस्तों, यह तो था जगमोहन बक्शी और आशा जी का साथ जिसमें एक संगीतकार थे और दूसरी गायिका। लेकिन आज का जो हमारा प्रस्तुत गीत है, उसमें दोनों ही गायक का हैसीयत रखते हैं। सुनते हैं साहिर लुधियानवी का लिखा और बर्मन दादा का स्वरबद्ध किया हुआ फ़िल्म 'टैक्सी ड्राइवर' का यह युगल गीत।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. कल के गीत में आशा के साथ होंगे महेंद्र कपूर.
२. चोपडा कैम्प की एक फिल्म का है ये गीत.
३. इस लम्बे गीत में अमर प्रेमियों की दास्तानें है.
पिछली पहेली का परिणाम -
कल की पहेली कुछ मुश्किल थी, मगर इसी कोशिश में हमें मिले एक नए प्रतिभागी...रमन जी दो अंकों से आपका खाता खुला है. आशा है आगे भी आप जम कर मुकाबला करेंगें. मंजू जी आप तो कहीं के कहीं पहुँच जाती हैं :) "दुख यही है, कि मैने हिमाकत कर उनकी नाराज़गी मोल ली थी, जो अभी भी खलती है" दिलीप जी क्या आप आशा जी की बात कर रहे हैं....यदि हाँ तो हम सब के साथ भी बांटिये वो वाकया. शरद जी ऐसे सरप्राईस तो आपको मिलते ही रहेंगे :) रमना जी यदि आप गीत के बोल लिखना चाहें तो हिंदी में लिखा करें...
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
ROHIT RAJPUT
महेण्द्र कपूर और आशा भोसले के लगभग ६० गीत हैं, जिसमें से चोपडा केम्प की फ़िल्मों में लगभग १६ गाने गाये हैं, जिसमें किसी भी परम्परागत प्रेमीयों की फ़िल्म नहीं है.
आशाजी से तीन बार रू ब रू हुआ था, और तीनों में से दो बार ऐसे किस्से हो गये कि उनकी नाराज़गी तीसरी बार भी नज़र आयी. अपने हिमाकत को गलती भी नही कह सकता.
आपके साथ दोनों वाकयात शेयर करूंगा....
tu mujhmein hai main tujh mein hoon....
pakka...pakkaa..pakkaa...
yahi geet honaa chaahiye...
:)
magar kal walaa behad mushkil thaa..
dekho maane nahi roothi hasinaa..aaj pahli baar sunaa hai..
Singer(s): Mahendra Kapoor , आशा भोसले-(Asha)
तू हुस्न है मैं इश्क़ हूँ, तू मुझ में है मैं तुझ में हूँ
मैं इसके आगे क्या कहूँ, तू मुझ में है मैं तुझ में हूँ
म: ओ सोनिये
ल: ओ मेरे महिवाल
म: आजा ओय आजा
ल: पार नदी के मेरे यार का डेरा
म: तेरे हवाले रब्बा दिल्बर मेरा
ल: रात बला की बढ़ता जाए, लहरों का घेरा
कसम ख़ुदा की आज है मुश्किल मिलना मेरा
दोनो: खैर करी रब्बा
साथ जियेंगे साथ मरेंगे यही है फ़साना
ल: कहाँ सलीम का, रुतबा कहाँ अनारकली \-२
ये ऐसी शाख\-ए\-तमन्ना है, जो कभी न फली \-२
म: न बुझ सकेगी बुझाने से, अह्ल\-ए\-दुनिया के \-२
वो शमा जो तेरी आँखों में, मेरे दिल में जली \-२
ल: हुज़ूर एक न एक दिन ये बात आएगी \-२
के तख़्त\-ओ\-ताज भले हैं के एक कनीज़ भली \-२
म: मैं तख़्त\-ओ\-ताज को ठुकरा के तुझको ले लूँगा \-२
के तख़्त\-ओ\-ताज से तेरी गली की ख़ाक़ भली \-२
दोनो: साथ जियेंगे साथ मरेंगे यही है फ़साना \-२
regards