ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 215
लता मंगेशकर के गाए कुछ भूले बिसरे और दुर्लभ गीतों पर आधारित हमारी विशेष शृंखला आप इन दिनों सुन रहे हैं 'मेरी आवाज़ ही पहचान है'। अब तक आप ने कुल ४ गानें सुने हैं जो ४० के दशक की फ़िल्मों से थे। आइए आगे बढ़ते हुए प्रवेश करते हैं ५० के दशक में। सन् १९५१ में एक फ़िल्म आयी थी 'सौदागर'। 'वेस्ट हिंद पिक्चर्स' के बैनर तले बनी इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे नासिर ख़ान और रेहाना। पी. एल. संतोषी के गीत थे और सी. रामचन्द्र का संगीत। दोस्तों, इससे पहले हम ने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर पी. एल. संतोषी और सी. रामचन्द्र के जोड़ी की बातें भी कर चुके हैं और 'शिन शिना की बबला बू' फ़िल्म के गीत "तुम क्या जानो तुम्हारी याद में हम कितना रोये" सुनवाते वक़्त संतोषी साहब और रेहाना से संबंधित एक क़िस्सा भी बताया था। अगर आप ने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में हाल ही में क़दम रखा है तो उस आलेख को यहाँ क्लिक कर के पढ़ सकते हैं। इस गीत के अलावा पी. एल. संतोषी, सी. रामचन्द्र और लता जी की तिकड़ी का जो एक और गीत हमने आप को यहाँ सुनवाया है वह है फ़िल्म 'सरगम' का "वो हम से चुप हैं हम उनसे चुप हैं"। ये दोनों ही गीत अपने ज़माने के बेहद मशहूर गीतों मे से रहे हैं। लेकिन आज इस तिकड़ी के जिस गीत को हम पेश कर रहे हैं वह इन गीतों से अलग हट के है। 'सौदागर' फ़िल्म के इस गीत के बोल हैं "मैं हूँ कली तेरी तू है भँवर मेरा, मैं हूँ नज़र तेरी तू है जिगर मेरा"। लता और सखियों की आवाज़ों में इस गीत को सुनते हुए, इसके रीदम को सुनते हुए आप को सी. रामचन्द्र का वह मशहूर गीत "भोली सूरत दिल के खोटे" ज़रूर याद आ जायेगा, इन दोनों गीतों के बीट्स एक जैसे ही हैं। गोवन लोक संगीत की छटा इस गीत में बिखेरी है चितलकर साहब ने।
लता जी ने सी. रामचन्द्र के संगीत में ५० के दशक में बेशुमार गानें गाए हैं। लेकिन पता नहीं किसकी नज़र लग गई कि इन दोनों में कुछ ग़लतफ़हमी सी हो गई और दोनों ने एक दूसरे के साथ काम करना बंद कर दिया कई सालों के लिए। चलिए आज वही दास्तान आप को बताते हैं ख़ुद लता जी के शब्दों में जिन्हे उन्होने अमीन सायानी के एक इंटरव्यू में कहा था।
"मेरा दुश्मन कोई नहीं है, ना ही मैं किसी की दुश्मन हूँ। पर इतने सारे म्युज़िक डिरेक्टर्स के साथ जब हम काम करते हैं, इतने लोग मिलते हैं रोज़, तो कहीं ना कहीं छोटी मोटी बात हो जाती है। उनके (सी. रामचन्द्र) साथ क्या हुआ था कि एक रिकार्डिस्ट थे जो मेरी पीठ पीछे कुछ बात करते थे। मुझे मालूम हुआ था और वो जिसने मुझे बताया था वो आदमी मुझे बहुत ज़्यादा प्यार करता था, कहता था 'मैं सुन नहीं सकता हूँ लता जी, वो आप के बारे में बात ऐसी करते हैं'। और मेरी रिकार्डिंग थी सी. रामचन्द्र की जो उसी स्टुडियो में। अन्ना को कहा कि 'अन्ना, मैं इस रिकार्डिस्ट के पास रिकार्डिंग नहीं करूँगी क्योंकि ये मेरे लिए बहुत ख़राब बात करता है। जब मैं गाउँगी मेरा मन नहीं लगेगा यहाँ और मैं जब गाती हूँ मेरे दिमाग़ को अच्छा लगना चाहिए, सुकून मिलना चाहिए कि भई जो गाना मैं गा रही हूँ, अच्छा लग रहा है, तभी गाना अच्छा बन सकता है।' उनको पता नहीं क्या हुआ, उन्होने कहा कि 'लता, तुम अगर नहीं गाओगी तो मैं भी अपने दोस्त को नहीं छोड़ सकता हूँ, मैं तुम्हारी जगह किसी और को लाउँगा'। मैने कहा कि 'बिल्कुल आप ला सकते हैं, किसी को भी ले आइए'। और मैने वह काम छोड़ दिया, पर मेरा उनका झगड़ा ऐसा नहीं हुआ। मैने वह गाना, मतलब रिहर्सल किया हुआ, मैं छोड़ के चली आई और उन्होने फिर किसी और से वह गाना लिया, और वह एक मराठी गाना था। तो वह गाना होने के बाद, उस समय उनके पास काम भी बहुत कम था, और फिर बाद में मेरी उनकी बात नहीं हुई, मुलाक़ात नहीं हुई, कुछ नहीं। और फिर अगर उनका मेरा इतना झगड़ा हुआ होता तो फिर वो मेरे पास दोबारा "ऐ मेरे वतन के लोगों" लेकर आते? तो झगड़ा तो था ही नहीं। "ऐ मेरे वतन के लोगों" के लिए वो मेरे घर आए बुलाने के लिए, वो और प्रदीप जी, दोनों ने आ कर कहा कि 'यह गाना तुमको गाना ही पड़ेगा'। मैने कहा 'मैं गाउँगी नहीं, मेरी तबीयत ठीक नहीं, रिहर्सल करना पड़ेगा, दिल्ली जाना पड़ेगा'। पर उस गाने के लिए प्रदीप जी ने बहुत ज़ोर लगाया। प्रदीप जी ने यहाँ तक कहा कि 'लता, अगर तुम यह गाना नहीं गाओगी तो फिर मैं यह गाना दूँगा ही नहीं।' तो उनका दिल नहीं तोड़ सकी मैं।"
तो दोस्तों, ये बातें थीं लता जी की कि किस तरह से उनके और अन्ना के बीच में दूरियाँ बढ़ी और किस तरह से "ऐ मेरे वतन के लोगों" ने सुलह भी करवा दिया। तो आइए अब लता और अन्ना की सुरीली जोड़ी के नाम सुनते हैं आज का यह गीत, जिसके लिए हम विशेष रूप से आभारी हैं अजय देशपाण्डे जी के जिन्होने इस गीत को हमें उपलब्ध करवाया, सुनिए।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. संगीतकार रोशन के लिए गाया लता ने ये गीत..बूझने वाले को मिलेंगें २ के स्थान पर ३ अंक.
२. इस फिल्म में कलाकार थे नासिर खान और नूतन.
३. मुखड़े में शब्द है -"सिंगार".
पिछली पहेली का परिणाम -
वाह वाह पराग लगातार २ सही जवाब और आपका स्कोर पहुंचा है ३६ पर...बधाई...हमारे और धुरंधर सब कहाँ चले गए भाई....सभी को नवमी, दुर्गा पूजा और दशहरे की ढेरों बधाईयाँ
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
लता मंगेशकर के गाए कुछ भूले बिसरे और दुर्लभ गीतों पर आधारित हमारी विशेष शृंखला आप इन दिनों सुन रहे हैं 'मेरी आवाज़ ही पहचान है'। अब तक आप ने कुल ४ गानें सुने हैं जो ४० के दशक की फ़िल्मों से थे। आइए आगे बढ़ते हुए प्रवेश करते हैं ५० के दशक में। सन् १९५१ में एक फ़िल्म आयी थी 'सौदागर'। 'वेस्ट हिंद पिक्चर्स' के बैनर तले बनी इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे नासिर ख़ान और रेहाना। पी. एल. संतोषी के गीत थे और सी. रामचन्द्र का संगीत। दोस्तों, इससे पहले हम ने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर पी. एल. संतोषी और सी. रामचन्द्र के जोड़ी की बातें भी कर चुके हैं और 'शिन शिना की बबला बू' फ़िल्म के गीत "तुम क्या जानो तुम्हारी याद में हम कितना रोये" सुनवाते वक़्त संतोषी साहब और रेहाना से संबंधित एक क़िस्सा भी बताया था। अगर आप ने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में हाल ही में क़दम रखा है तो उस आलेख को यहाँ क्लिक कर के पढ़ सकते हैं। इस गीत के अलावा पी. एल. संतोषी, सी. रामचन्द्र और लता जी की तिकड़ी का जो एक और गीत हमने आप को यहाँ सुनवाया है वह है फ़िल्म 'सरगम' का "वो हम से चुप हैं हम उनसे चुप हैं"। ये दोनों ही गीत अपने ज़माने के बेहद मशहूर गीतों मे से रहे हैं। लेकिन आज इस तिकड़ी के जिस गीत को हम पेश कर रहे हैं वह इन गीतों से अलग हट के है। 'सौदागर' फ़िल्म के इस गीत के बोल हैं "मैं हूँ कली तेरी तू है भँवर मेरा, मैं हूँ नज़र तेरी तू है जिगर मेरा"। लता और सखियों की आवाज़ों में इस गीत को सुनते हुए, इसके रीदम को सुनते हुए आप को सी. रामचन्द्र का वह मशहूर गीत "भोली सूरत दिल के खोटे" ज़रूर याद आ जायेगा, इन दोनों गीतों के बीट्स एक जैसे ही हैं। गोवन लोक संगीत की छटा इस गीत में बिखेरी है चितलकर साहब ने।
लता जी ने सी. रामचन्द्र के संगीत में ५० के दशक में बेशुमार गानें गाए हैं। लेकिन पता नहीं किसकी नज़र लग गई कि इन दोनों में कुछ ग़लतफ़हमी सी हो गई और दोनों ने एक दूसरे के साथ काम करना बंद कर दिया कई सालों के लिए। चलिए आज वही दास्तान आप को बताते हैं ख़ुद लता जी के शब्दों में जिन्हे उन्होने अमीन सायानी के एक इंटरव्यू में कहा था।
"मेरा दुश्मन कोई नहीं है, ना ही मैं किसी की दुश्मन हूँ। पर इतने सारे म्युज़िक डिरेक्टर्स के साथ जब हम काम करते हैं, इतने लोग मिलते हैं रोज़, तो कहीं ना कहीं छोटी मोटी बात हो जाती है। उनके (सी. रामचन्द्र) साथ क्या हुआ था कि एक रिकार्डिस्ट थे जो मेरी पीठ पीछे कुछ बात करते थे। मुझे मालूम हुआ था और वो जिसने मुझे बताया था वो आदमी मुझे बहुत ज़्यादा प्यार करता था, कहता था 'मैं सुन नहीं सकता हूँ लता जी, वो आप के बारे में बात ऐसी करते हैं'। और मेरी रिकार्डिंग थी सी. रामचन्द्र की जो उसी स्टुडियो में। अन्ना को कहा कि 'अन्ना, मैं इस रिकार्डिस्ट के पास रिकार्डिंग नहीं करूँगी क्योंकि ये मेरे लिए बहुत ख़राब बात करता है। जब मैं गाउँगी मेरा मन नहीं लगेगा यहाँ और मैं जब गाती हूँ मेरे दिमाग़ को अच्छा लगना चाहिए, सुकून मिलना चाहिए कि भई जो गाना मैं गा रही हूँ, अच्छा लग रहा है, तभी गाना अच्छा बन सकता है।' उनको पता नहीं क्या हुआ, उन्होने कहा कि 'लता, तुम अगर नहीं गाओगी तो मैं भी अपने दोस्त को नहीं छोड़ सकता हूँ, मैं तुम्हारी जगह किसी और को लाउँगा'। मैने कहा कि 'बिल्कुल आप ला सकते हैं, किसी को भी ले आइए'। और मैने वह काम छोड़ दिया, पर मेरा उनका झगड़ा ऐसा नहीं हुआ। मैने वह गाना, मतलब रिहर्सल किया हुआ, मैं छोड़ के चली आई और उन्होने फिर किसी और से वह गाना लिया, और वह एक मराठी गाना था। तो वह गाना होने के बाद, उस समय उनके पास काम भी बहुत कम था, और फिर बाद में मेरी उनकी बात नहीं हुई, मुलाक़ात नहीं हुई, कुछ नहीं। और फिर अगर उनका मेरा इतना झगड़ा हुआ होता तो फिर वो मेरे पास दोबारा "ऐ मेरे वतन के लोगों" लेकर आते? तो झगड़ा तो था ही नहीं। "ऐ मेरे वतन के लोगों" के लिए वो मेरे घर आए बुलाने के लिए, वो और प्रदीप जी, दोनों ने आ कर कहा कि 'यह गाना तुमको गाना ही पड़ेगा'। मैने कहा 'मैं गाउँगी नहीं, मेरी तबीयत ठीक नहीं, रिहर्सल करना पड़ेगा, दिल्ली जाना पड़ेगा'। पर उस गाने के लिए प्रदीप जी ने बहुत ज़ोर लगाया। प्रदीप जी ने यहाँ तक कहा कि 'लता, अगर तुम यह गाना नहीं गाओगी तो फिर मैं यह गाना दूँगा ही नहीं।' तो उनका दिल नहीं तोड़ सकी मैं।"
तो दोस्तों, ये बातें थीं लता जी की कि किस तरह से उनके और अन्ना के बीच में दूरियाँ बढ़ी और किस तरह से "ऐ मेरे वतन के लोगों" ने सुलह भी करवा दिया। तो आइए अब लता और अन्ना की सुरीली जोड़ी के नाम सुनते हैं आज का यह गीत, जिसके लिए हम विशेष रूप से आभारी हैं अजय देशपाण्डे जी के जिन्होने इस गीत को हमें उपलब्ध करवाया, सुनिए।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. संगीतकार रोशन के लिए गाया लता ने ये गीत..बूझने वाले को मिलेंगें २ के स्थान पर ३ अंक.
२. इस फिल्म में कलाकार थे नासिर खान और नूतन.
३. मुखड़े में शब्द है -"सिंगार".
पिछली पहेली का परिणाम -
वाह वाह पराग लगातार २ सही जवाब और आपका स्कोर पहुंचा है ३६ पर...बधाई...हमारे और धुरंधर सब कहाँ चले गए भाई....सभी को नवमी, दुर्गा पूजा और दशहरे की ढेरों बधाईयाँ
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
फिल्म शीशम
मुस्कराहट तेरे होठों की मेरा सिंगार है
तू है जब तक ज़िन्दगी में ज़िन्दगी से प्यार है ।
मैनें कब मांगी मुहब्बत कब कहा तुम प्यार दो
प्यार तुमको कर सकूं इतना मुझे अधिकार दो
मेरे नैया की तुम्हारे हाथ में पतवार है ।
मेरे काजल में भरा है रंग तेरी तस्वीर का
सामने है तू मेरे एहसान है तक्दीर का
तेरी आँखों में बसाया मैनें इक संसार है ।
इन्दीवर
दुर्गा पूजा व विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं