ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 217
'मेरी आवाज़ ही पहचान है' के तहत इन दिनों आप सुन रहे हैं लता मंगेशकर के गाए कुछ बेहद दुर्लभ और भूले बिसरे गीत जिन्हे चुनकर हमें भेजा है नागपुर निवासी अजय देशपाण्डे ने। अब तक आप ने जिन संगीतकारों की रचनाएँ इस शृंखला में सुने, वे थे खेमचंद प्रकाश, मास्टर ग़ुलाम हैदर, हुस्नलाल भगतराम, पंडित गोबिन्दराम और सी. रामचन्द्र। आज जिस संगीतकार की बारी है, वो एक ऐसे संगीतकार रहे जिनके साथ लता जी का भाई बहन का गहरा रिश्ता बना और इन दोनों ने मिलकर फ़िल्म संगीत के ख़ज़ाने को कुछ इस तरह समृद्ध किया कि आज दशकों बाद भी उन तमाम सुरीली मोतियों से रोशन है यह ख़ज़ाना। इन दोनों ने ख़ास कर फ़िल्मी ग़ज़लों की धारा ही बदल दी और उन्हे आम गीतों की तरह लोकप्रिय बनाया। जी हाँ, हम आज संगीतकार मदन मोहन की ही बात कर रहे हैं। अपने मदन भइया के बारे में लता जी ने समय समय पर कई इंटरव्यू में कहे हैं, आज भी हम ऐसी ही एक इंटरव्यू के अंश लेकर उपस्थित हुए हैं। लता जी का यह इंटरव्यू अमीन सायानी ने कुछ साल पहले लिया था। "मदन भइया के बारे में मैं यही कहूँगी कि जब भी रिकार्डिंग होती थी तो उनका एक यही होता था कि रिहर्सल वगेरह करते रहते थे, तो वो गाते ही रहते थे, और मुझसे कहते थे कि इसमें से तुमको जो ठीक लगे वो उठा लो। घर की बात थी, मैं उनके घर जाती थी, कभी कभी मैं सारा सारा दिन उनके साथ रहती थी, खाना बहुत अच्छा बनाते थे, 'म्युज़िक डिरेक्टर' मेरे हिसाब से बहुत बड़े थे, जैसे ग़ज़लें उन्होने बनाई, फ़िल्मों के लिए, किसी ने नहीं बनाई। बहुत लोगों ने कोशिश की और आज भी लोग कोशिश कर रहे हैं कि मदन मोहन की स्टाइल की ग़ज़ल बनाएँ पर कोई बना नहीं सकता है। अब ये सुनिए कि उनको संगीत की कितनी बड़ी देन थी। आमद का यह हाल था कि हारमोनियम लेके बैठे और धुन युँही चुटकियों में बन जाती। कभी मोटर चलाते हुए, कभी लिफ़्ट में उपर या नीचे जाते हुए भी तो धुन तैयार हो जाती। मदन भइया एक दो साल मिलिटरी में रहे थे। और शायद इसी वजह से उनकी उपरी बरताव में एक सख़ती हुआ करती थी। कई बार बड़े रफ़ से लगते थे। बातें खरी खरी मुँह पर सुना देते थे। प्यार भी उनका युं होता था कि बस हाथ उठाया और धम से मार दिया। मगर यह सख़ती सिर्फ़ उपर की थी, अंदर से तो वो बड़े भावुक थे और बड़े नरम। और यही नरमी, यह भावुकता, कभी कभी झलक दिखला जाती थी दिल को छू लेने वाली धुनों में ढलकर।"
लता मंगेशकर और मदन मोहन की जोड़ी का जो दुर्लभ नग़मा आज के लिए हमने चुना है वह है फ़िल्म 'निर्मोही' से। १९५२ में मदन मोहन के संगीत में इंटर्नेट से उपलब्ध जानकारी के अनुसार कुल ४ फ़िल्में परदर्शित हुईं थीं - अंजान, आशियाना, ख़ूबसूरत, और निर्मोही। 'निर्मोही' का निर्माण 'शीतल मूवीज़' के बैनर तले हुआ था, जिसके निर्देशक थे बृज शर्मा। सज्जन, नूतन, अमरनाथ, लीला मिश्रा अभिनीत यह फ़िल्म बड़ी बजट की फ़िल्म नहीं थी। शायद यही वजह थी कि मदन मोहन के रचे और लता जी के गाए इस फ़िल्म के गीतों को आज लोग कुछ भूल से गए हैं। लता जी ने इस फ़िल्म में कई गीत गाए, जिन्हे अलग अलग गीतकारों ने लिखे। लता जी की आवाज़ में पी. एन. रंगीन के लिखे दो गीत थे इस फ़िल्म में - "अब ग़म को बना लेंगे जीने का सहारा, दिल टूट गया छूट गया साथ हमारा" और "ये कहे चांदनी रात सुना दो अपने दिल की बात, आई रुत मस्तानी आई रुत मस्तानी"। उद्धव कुमार का लिखा गीत था "कल जलेगा चाँद सारी रात, रात भर होती रहेगी आग़ की बरसात"। लेकिन आज हम जिस गीत को सुनवा रहे हैं उसे लिखा है इंदीवर साहब ने - "दुखियारे नैना ढ़ूंढे पिया को, निसदिन करें पुकार"। इस गीत में "दुखियारे नैना" की धुन कुछ कुछ मदन मोहन साहब की ही फ़िल्म 'देख कबीरा रोया' की "मेरी वीणा तुम बिन रोये" की तरह सुनाई देती है। शास्त्रीय संगीत पर आधारित यह गीत फ़िल्म संगीत के ख़ज़ाने का एक अनमोल नगीना है। ऐसे न जाने लता - मदन मोहन के कितने गीत होंगे जिन्हे आज हम ज़्यादा याद नहीं करते, लेकिन जब भी कभी इन्हे सुनते हैं बस इनमें डूब से जाते हैं। भविष्य में लता-मदन मोहन के कमचर्चित गीतों पर एक शृंखला प्रस्तुत करने की हम ज़रूर कोशिश करेंगे, फिलहाल सुनिए आज का यह अनमोल गीत।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. साहिर है गीतकार लता के गाये इस दुर्लभ गीत के.
२. एस डी बर्मन की धुन से सजे इस गीत बूझकर पाईये 3 अंक.
३. इस प्रेरणात्मक गीत की पहली पंक्ति में शब्द है -"राही".
पिछली पहेली का परिणाम -
बिलकुल सही गीत है पूर्वी जी आपके ३१ शानदार अंक हो गए है और आप दूसरे स्थान पर हैं अब.....बधाई
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
'मेरी आवाज़ ही पहचान है' के तहत इन दिनों आप सुन रहे हैं लता मंगेशकर के गाए कुछ बेहद दुर्लभ और भूले बिसरे गीत जिन्हे चुनकर हमें भेजा है नागपुर निवासी अजय देशपाण्डे ने। अब तक आप ने जिन संगीतकारों की रचनाएँ इस शृंखला में सुने, वे थे खेमचंद प्रकाश, मास्टर ग़ुलाम हैदर, हुस्नलाल भगतराम, पंडित गोबिन्दराम और सी. रामचन्द्र। आज जिस संगीतकार की बारी है, वो एक ऐसे संगीतकार रहे जिनके साथ लता जी का भाई बहन का गहरा रिश्ता बना और इन दोनों ने मिलकर फ़िल्म संगीत के ख़ज़ाने को कुछ इस तरह समृद्ध किया कि आज दशकों बाद भी उन तमाम सुरीली मोतियों से रोशन है यह ख़ज़ाना। इन दोनों ने ख़ास कर फ़िल्मी ग़ज़लों की धारा ही बदल दी और उन्हे आम गीतों की तरह लोकप्रिय बनाया। जी हाँ, हम आज संगीतकार मदन मोहन की ही बात कर रहे हैं। अपने मदन भइया के बारे में लता जी ने समय समय पर कई इंटरव्यू में कहे हैं, आज भी हम ऐसी ही एक इंटरव्यू के अंश लेकर उपस्थित हुए हैं। लता जी का यह इंटरव्यू अमीन सायानी ने कुछ साल पहले लिया था। "मदन भइया के बारे में मैं यही कहूँगी कि जब भी रिकार्डिंग होती थी तो उनका एक यही होता था कि रिहर्सल वगेरह करते रहते थे, तो वो गाते ही रहते थे, और मुझसे कहते थे कि इसमें से तुमको जो ठीक लगे वो उठा लो। घर की बात थी, मैं उनके घर जाती थी, कभी कभी मैं सारा सारा दिन उनके साथ रहती थी, खाना बहुत अच्छा बनाते थे, 'म्युज़िक डिरेक्टर' मेरे हिसाब से बहुत बड़े थे, जैसे ग़ज़लें उन्होने बनाई, फ़िल्मों के लिए, किसी ने नहीं बनाई। बहुत लोगों ने कोशिश की और आज भी लोग कोशिश कर रहे हैं कि मदन मोहन की स्टाइल की ग़ज़ल बनाएँ पर कोई बना नहीं सकता है। अब ये सुनिए कि उनको संगीत की कितनी बड़ी देन थी। आमद का यह हाल था कि हारमोनियम लेके बैठे और धुन युँही चुटकियों में बन जाती। कभी मोटर चलाते हुए, कभी लिफ़्ट में उपर या नीचे जाते हुए भी तो धुन तैयार हो जाती। मदन भइया एक दो साल मिलिटरी में रहे थे। और शायद इसी वजह से उनकी उपरी बरताव में एक सख़ती हुआ करती थी। कई बार बड़े रफ़ से लगते थे। बातें खरी खरी मुँह पर सुना देते थे। प्यार भी उनका युं होता था कि बस हाथ उठाया और धम से मार दिया। मगर यह सख़ती सिर्फ़ उपर की थी, अंदर से तो वो बड़े भावुक थे और बड़े नरम। और यही नरमी, यह भावुकता, कभी कभी झलक दिखला जाती थी दिल को छू लेने वाली धुनों में ढलकर।"
लता मंगेशकर और मदन मोहन की जोड़ी का जो दुर्लभ नग़मा आज के लिए हमने चुना है वह है फ़िल्म 'निर्मोही' से। १९५२ में मदन मोहन के संगीत में इंटर्नेट से उपलब्ध जानकारी के अनुसार कुल ४ फ़िल्में परदर्शित हुईं थीं - अंजान, आशियाना, ख़ूबसूरत, और निर्मोही। 'निर्मोही' का निर्माण 'शीतल मूवीज़' के बैनर तले हुआ था, जिसके निर्देशक थे बृज शर्मा। सज्जन, नूतन, अमरनाथ, लीला मिश्रा अभिनीत यह फ़िल्म बड़ी बजट की फ़िल्म नहीं थी। शायद यही वजह थी कि मदन मोहन के रचे और लता जी के गाए इस फ़िल्म के गीतों को आज लोग कुछ भूल से गए हैं। लता जी ने इस फ़िल्म में कई गीत गाए, जिन्हे अलग अलग गीतकारों ने लिखे। लता जी की आवाज़ में पी. एन. रंगीन के लिखे दो गीत थे इस फ़िल्म में - "अब ग़म को बना लेंगे जीने का सहारा, दिल टूट गया छूट गया साथ हमारा" और "ये कहे चांदनी रात सुना दो अपने दिल की बात, आई रुत मस्तानी आई रुत मस्तानी"। उद्धव कुमार का लिखा गीत था "कल जलेगा चाँद सारी रात, रात भर होती रहेगी आग़ की बरसात"। लेकिन आज हम जिस गीत को सुनवा रहे हैं उसे लिखा है इंदीवर साहब ने - "दुखियारे नैना ढ़ूंढे पिया को, निसदिन करें पुकार"। इस गीत में "दुखियारे नैना" की धुन कुछ कुछ मदन मोहन साहब की ही फ़िल्म 'देख कबीरा रोया' की "मेरी वीणा तुम बिन रोये" की तरह सुनाई देती है। शास्त्रीय संगीत पर आधारित यह गीत फ़िल्म संगीत के ख़ज़ाने का एक अनमोल नगीना है। ऐसे न जाने लता - मदन मोहन के कितने गीत होंगे जिन्हे आज हम ज़्यादा याद नहीं करते, लेकिन जब भी कभी इन्हे सुनते हैं बस इनमें डूब से जाते हैं। भविष्य में लता-मदन मोहन के कमचर्चित गीतों पर एक शृंखला प्रस्तुत करने की हम ज़रूर कोशिश करेंगे, फिलहाल सुनिए आज का यह अनमोल गीत।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. साहिर है गीतकार लता के गाये इस दुर्लभ गीत के.
२. एस डी बर्मन की धुन से सजे इस गीत बूझकर पाईये 3 अंक.
३. इस प्रेरणात्मक गीत की पहली पंक्ति में शब्द है -"राही".
पिछली पहेली का परिणाम -
बिलकुल सही गीत है पूर्वी जी आपके ३१ शानदार अंक हो गए है और आप दूसरे स्थान पर हैं अब.....बधाई
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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आजकल व्यस्त्तता के कारण समय पर नहीं आ पा रहा हूँ अच्छा है नए नए लोग जुड रहे है