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चाहे चोरी चोरी आओ चाहे चुप चुप आओ....सुनिए लता का ये दुर्लभ अंदाज़

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 213

जारी है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर लता मंगेशकर के गाए हुए कुछ बेहद दुर्लभ और भूले बिसरे गीतों की एक बेहद ख़ास शृंखला 'मेरी आवाज़ ही पहचान है'। १९४७ और १९४८ की दो फ़िल्मों के गीत सुनने के बाद आज हम एक साल और आगे बढ़ते हैं, यानी कि १९४९ में। लता जी के संगीत सफ़र का शायद सब से महत्वपूर्ण साल रहा होगा यह। क्यों ना हो, 'महल', 'बरसात', 'बाज़ार', 'एक थी लड़की', 'लाहौर', और 'बड़ी बहन' जैसी फ़िल्मों में एक से एक सुपरहिट गीत गा कर लता जी एक दम से अग्रणी पार्श्व गायिका बन गईं। उनके इस तरह से छा जाने पर जैसे फ़िल्म संगीत की धारा ने एक नया मोड़ ले लिया हो! इन तमाम फ़िल्मों के संगीतकार थे खेमचंद प्रकाश, शंकर जयकिशन, विनोद, श्यामसुंदर, और हुस्नलाल भगतराम। १९४९ में फ़िल्म जगत की पहली संगीतकार जोड़ी हुस्नलाल भगतराम के संगीत से सज कर कुल १० फ़िल्में प्रदर्शित हुईं, जिनके नाम हैं - अमर कहानी, बड़ी बहन, बलम, बंसरिया, हमारी मंज़िल, जल तरंग, जन्नत, नाच, राखी, और सावन भादों। 'बड़ी बहन' में तो लता जी के गाए "चले जाना नहीं" और "चुप चुप खड़े हो ज़रूर कोई बात है" ने सफलता के कई झंडे गाढ़े, लेकिन फ़िल्म 'बंसरिया' का एक गीत ज़रा कम सुना सा रह गया। जिस गीत की हम बात कर रहे हैं, उसे भी कुछ कुछ "चुप चुप खड़े हो" के अंदाज़ में ही बनाया गया था, लेकिन इसे वह कामयाबी नहीं मिली जितना की उस गीत को मिली थी। फ़िल्म 'बंसरिया' का प्रस्तुत गीत है "चाहे चोरी चोरी आओ चाहे छुप छुप आओ, पर हमको पिया आज ज़रूर मिलना"। फ़िल्म 'बंसरिया' का निर्माण 'निगारिस्तान फ़िल्म्स' ने किया था, जिसे निर्देशित किया राम नारायण दवे और मुख्य भूमिकाओं में थे रणधीर और गीता बाली। फ़िल्म के गानें लिखे मुल्कराज भाकरी ने।

दोस्तों, आज का यह गीत सुनने से पहले आइए लता जी के बारे में कुछ ऐसे कलाकारों के उद्‍गार जान लेते हैं जो आज के इस दौर के कलाकार हैं। इस नई पीढ़ी के कलाकारों के दिलों में भी लता जी के लिए उतनी ही इज़्ज़त और सम्मान है जितने कि पिछले सभी पीढ़ियों के दिलों में हुआ करती है। ये तमाम बातें हम विविध भारती के अलग अलग 'जयमाला' और 'सरगम के सितारे' कार्यक्रमों से मिला-जुला कर प्रस्तुत कर रहे हैं।

प्रसून जोशी - मुझे याद है कि बचपन में एक प्रतियोगिता में मैने इस गीत को गाने की कोशिश की थी, लेकिन बीच में ही मैं बेसुरा हो गया और गा नहीं पाया। तब मुझे अहसास हुआ कि यह गीत कितना मुश्किल है और लता जी ने इसे कितनी आसानी से गाया है। यह गीत है "रसिक बलमा", बहुत सुंदर गीत है, बहुत सुंदर संगीत है, और इस गीत को सुनकर आप समझ सकते हैं कि लता जी लता जी क्यों है!!!

सोनू निगम - मुझे याद है वह १ अप्रैल १९९९ का दिन था, यानी कि 'अप्रैल फ़ूल्स डे'। लता जी पहले पहले गा रही थी ("ख़ामोशियाँ गुनगुनाने लगी"), और मुझे उनके ख़तम होने के बाद गाना था। वो गाने का अपना पोर्शन ख़तम कर जब बाहर आयीं तो मुझे कहने लगीं कि उन्होने मेरा 'सा रे गा मा पा' शो टी.वी पर देखा था जिसमें मैने तलत महमूद साहब का गाया एक गीत गाया था और वह उन्हे बहुत पसंद आया था। फिर उन्होने कहा कि वो मुझे सुनना चाहती हैं जब मैं अपना हिस्सा रिकार्ड करूँ। लेकिन उस दिन काफ़ी देर हो गई थी, इसलिए उन्हे निकलना पड़ा। उस दिन का एक्स्पेरियन्स मेरे लिए एक बहुत 'फ़ैन्टास्टिक एक्स्पेरियन्स' था।

श्रेया घोषाल - एक बार मैं किसी स्टुडियो में रिकार्डिंग कर रही थी, और वहाँ पर एक रिकार्डिस्ट को यह पता था कि मैं लता जी की बहुत बड़ी फ़ैन हूँ। नसीब से उस दिन लता जी भी उसी स्टुडियो में उपस्थित थीं। वो संगीतकार के साथ बैठी हुईं थीं। उस रिकार्डिस्ट ने मुझे कहा आ कर कि लता जी आई हुईं हैं, क्या मैं मिलना चाहूँगी? मैने कहा 'औफ़कोर्स'। फिर वो मुझे लता जी के पास ले गए। मैं कभी नहीं भूल सकती उस दिन को। लता जी के चेहरे पर एक नूर है। उनकी ऊंचाई ज़्यादा नहीं है लेकिन उनमें एक कमाल का व्यक्तित्व है। उनके सामने मैं गूँगी हो गई और एक शब्द मेरे मुँह से नहीं निकला। तब वो बोलीं 'श्रेया, मैने तुम्हारी एक इंटरव्यू देखा है, मैं माफ़ी चाहती हूँ लेकिन तुम्हारी बंगला प्रोनन्सिएशन अच्छा नहीं है।' मुझे इतनी ख़ुशी हुई यह सोच कर कि मुझ जैसी नई और छोटे सिंगर को उन्होने सुना है और मेरे बारे में इतना कुछ नोटिस भी किया है। वो महान हैं। फिर वहाँ बैठे संगीतकार ने मुझे कहा कि अभी अभी लता जी मेरी तारीफ़ कर रहीं थीं। यह सुनकर तो मैं सातवें आसमान पर उड़ने लगी। इससे ज़्यादा मैं क्या माँग सकती हूँ!

सुनिधि चौहान - लता जी तो भगवान हैं। तो उनके मुख से सिर्फ़ मेरा नाम निकलना ही बहुत बड़ी बात है। तो अगर वो मेरी तारीफ़ करती हैं तो इससे बड़ी बात मेरे लिए और कोई हो नहीं सकती। उनको तो मैं शुक्रिया अदा भी नहीं कर सकती। यही बोलूँगी कि अगर वो मुझे चाहती हैं तो बस उनका आशिर्वाद रहे और मैं अपनी तरफ़ से उनको निराश नहीं करूँगी। उनकी अगर उम्मीदें हैं मुझ से तो मैं ज़रूर कोशिश करूँगी। शुरु से ही उनके साथ एक अजीब सा रिश्ता रहा है, 'मेरी आवाज़ सुनो' के टाइम से, जब मैने ट्राफ़ी उनके हाथ से ली थी। कौम्पिटिशन में हिस्सा ही इसलिए लिया था कि एक दिन लता जी के दर्शन हो जाए। दिल्ली से थी तो मेरे लिए तो सपना सा था कि उनको छू के देखूँ कि वो कैसी दिखती हैं सामने से, और सोचा भी नहीं था कि जीतूँगी, बस यह कोशिश थी कि काफ़ी राउंड्स क्लीयर कर लूँ और मेगा फ़ाइनल तक पहुँच जाऊँ ताकि लता जी से मिल सकूँ। जीती तो ख़ुशी का कोई अंदाज़ा ही नहीं था, फिर उनका मुझे ट्राफ़ी देना, मेरे आँसू पोंछ कर मुझसे बोलना कि 'अगर तुमको किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो मैं हूँ'। मेरे लिए तो उससे बड़ा दिन ही नहीं था, सब से बड़ा ज़िंदगी का दिन वह था, और उसके बाद, वो सब हो जाने के बावजूद मेरी हिम्मत भी नहीं होती कि उनको फ़ोन करूँ, बात करूँ, तो दीदी से आज तक इतने सालों में मेरे ख़याल से ३ या ४ बार बात की होगी।

महालक्ष्मी अय्यर - अब मैं एक ऐसी गायिका का गाया गीत सुनाने जा रही हूँ जिनका गाना जितना सुरीला है उनकी बातें उससे भी मीठी। मेरे इस 'सिंगिंग लाइन' में आने का एक कारण भी वो ही हैं। जी हाँ, लता मंगेशकर जी। मैं हमेशा चाहती हूँ कि अगर लता जी के ५००० गानें हैं तो मेरा सिर्फ़ एक गाना उनके जैसा
हो।

तो दोस्तों, आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में लता जी के ज़िक्र के द्वारा हमने गुज़रे दौर और आज के दौर का संगम महसूस किया। यानी कि गुज़रे दौर के लता जी का गाया गीत बज रहा है और साथ में इस दौर के फ़नकारों के दिलों में लता जी के लिए प्यार और इज़्ज़त के चंद अंदाज़-ए-बयाँ आप ने पढ़े। कल कौन सा गीत बजने वाला है उसका आप अंदाज़ा लगाइए नीचे दिए गए पहेली के सुत्रों से, और अब मुझे आज के लिए इजाज़त दीजिए, नमस्कार!



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. ३ अंकों की बढ़त पाने के लिए बूझिये लता का एक बेहद दर्द भरा नगमा.
२. पंडित गोविन्दराम और आई सी कपूर थे इस गीत में गीत-संगीत के जोडीदार.
३. मुखड़े की पहली पंक्ति में शब्द है -"आसमाँ"

पिछली पहेली का परिणाम -
लगता है बेहद मुश्किल पहेली थी कल वाली....चलिए कोई बात नहीं आज कोशिश कीजिये....शुभकामनाएँ

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

Parag said…
इतना भी बेकसों को ना आसमान सताए
फिल्म भोली
purvi said…
बधाई पराग जी !!

कुछ दिनों से बाहर आना जाना ज्यादा होने से समय पर आना मुश्किल हो गया है, यहाँ पर लता जी के गीतों के साथ एक अंक ज्यादा दिया जा रहा है और हम पहुँच ही नहीं रहे हैं :( आगे की कड़ियों में कोशिश करेंगे..... शायद कुछ अंक हम भी पा जाएँ :)
आज मैं भी लेट हो गया । पराग जी को बधाई
Manju Gupta said…
जल्दी से कोई तो बताए .
Shamikh Faraz said…
पराग जी को बधाई

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